खेल में देश अव्वल हो इससे किसको ऐतराज हो सकता है, पर खेल देश की जनता के जीवन की कीमत पर हो तो इसे यूं ही 'बी कूल' होकर आप नहीं देख सकते...
प्रेमा नेगी
क्रिकेट के बुखार में देशभक्ति की तपिश से आप पाकिस्तान की सीमा पर जलजला ला दें, उससे पहले इन आंकड़ों को पढ़ लीजिए कि कैसे आप किसानों के लिए सिर्फ स्यापा करते हैं और हकीकत में मुनाफे की लाल कालीन उनके लिए बिछाते हैं, जिनकी मुनाफाखोरी की वजह से इस देश में हर रोज सैकड़ों किसान, मजदूर और बेरोजगार आत्महत्या करते हैं, भूख, गरीबी और गुर्बत में मरते हैं, मरते हुए जीने को मजबूर होते हैं।
अब से कुछ ही घंटों बाद भारत-पाकिस्तान के बीच लंदन के ओवल में चैम्पियंस ट्रॉफी का फाइनल मैच खेला जाएगा। इसका लाइव टेलीकास्ट करने वाले स्टार स्पोर्ट्स ने अपने सभी चैनल्स पर विज्ञापन के रेट 10 गुना तक बढ़ा दिए हैं। इन चैनल्स पर मैच के दौरान दिखाए जाने वाले 30 सेकंड के विज्ञापन के लिए 1 एक करोड़ रुपए लिए जा रहे हैं।
जबकि आम दिनों में इन चैनल्स पर इतने वक्त के विज्ञापनों के लिए 10 लाख रुपए चार्ज किए जाते हैं। यानी आज आपकी देशभक्ति मुनाफाखोरों को 10 गुना ज्यादा मुनाफा दिलाएगी! आज के मैच को करीब दुनियाभर के 100 करोड़ लोग देखने वाले हैं। प्रतिशत में देखें तो यह विश्व की कुल आबादी का 12.5 प्रतिशत होगा।
30 सेकेंड का 1 करोड़। उतना वक्त जितने वक्त में एक रोटी नहीं सेंकी जा सकती, किसान अपने जानवरों के लिए एक बाल्टी नहीं भर सकता और विद्यार्थी अपने पाठ का पूरा का एक पैराग्राफ नहीं पढ़ सकता। सिर्फ इतने वक्त का 1 करोड़ मिलेगा।
कौन देगा? आपकी आंखें!
खैर! आप अपनी आंखें उन्हें दे दीजिए लेकिन दृष्टि तो अपने पास रखिए। कभी सोचा है कि जब आपकी आंखें इतनी कीमती हैं तो आपको उस कीमत का क्या मिलता है? आपकी क्या भागीदारी होती है।
यह भी सोचिए कि जिन विज्ञापनों का रेट आपकी वजह से 10 गुना बढ़ा है, 10 लाख के 30 सेकेंड का स्लॉट 1 करोड़ हुआ है, तो 90 लाख जो कंपनियां स्टार स्पोर्ट्स को वहन करेंगी वह किसकी जेब से आएगा, वह रोकड़ा किसकी मेहनत की कमाई का होगा?
सवाल यह भी है कि क्या एक देशभक्त युवा, नौजवान, छात्र ऐसा होगा जो अपनी दृष्टि की कमी के कारण अपनी आंखें पूंजीपतियों और मुनाफाखोरों के यहां यूं ही जाया कर देगा और किसानों, मजदूरों के लिए सिर्फ फेसबुक और अन्य मीडिया माध्यमों पर सरकार और व्यवस्था को कोसेगा, रूदन करेगा? या यह सच जानकर उसकी आंखें खुलेंगी और वह लौटा लाएगा अपनी बची आंखों की गर्मी।
जब ढलती दोपहर में आप अपने पेप्सी—कोक की बोतलें लिए अंकल चिप्स का कुरकुराता पैकेट दांतों से मसल रहे होंगे, ठीक उन्हीं घंटों में देश का कोई किसान आत्महत्या कर रहा होगा और उसी आत्महत्या की कीमत पर बने अंकल चिप्स को लेकर आप ये मारा—वो मारा, ले ली पाकिस्तान की करते हुए आह्लादित हो रहे होंगे। अपने दोस्तों के साथ 'हाय फाइव' कर रहे होंगे।
आपको इस आह्लाद से कोई रोक नहीं सकता। रोकना भी क्यों चाहिए। आप खुश होइए! देश खेल में अव्वल बने इससे किसको ऐतराज हो सकता है। पर खेल देश की जनता के जीवन की कीमत पर होने लगे तो ऐतराज तो बनता है। ऐतराज तब और गंभीर बनता है जब वह हमारी आंखों के साथ हमारी दृष्टि भी मुनाफों के तिजोरियों में कैद हो जाएं।
आखिर वह कौन सा जादू है जिसके बूते 2 किलो का आलू आपकी चिप्स बनते—बनते 4 सौ रुपए किलो का हो जाता है। कभी तो आप सोचते होंगे? यह तथ्य तो आपकी जानकारी में वर्षों से है? इसपर जिरह इसलिए क्योंकि आप सब, हम सभी किसान आत्महत्याओं पर स्यापा खूब करते हैं।
थोड़ा इस पर सोचिएगा कि आपकी पेप्सी की एक बोतल तब बनती है जब पानी का सौ लीटर बर्बाद होता है।
यह दो मामूली आंकड़े इसलिए जरूरी हैं कि तमिलनाडु, आंध्र, विदर्भ, बुंदेलखंड, मध्यप्रदेश, पंजाब और दूसरे अन्य राज्यों में किसान आत्महत्याओं का मुख्य कारण पानी की कमी और उनके उपज को न मिलने वाली कीमत ही है।
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बंगलादेश के लोकप्रिय क्रिकेटर मशरफ़े मुर्तज़ा का दुनिया के सभी क्रिकेटप्रेमियों के नाम संदेश
"हाँ, में क्रिकेट खेलता हूँ। लेकिन क्या मैं किसी की जान बचा सकता हूँ? क्या गेहूं का एक दाना उगा सकता हूं? क्या एक ईंट जोड़ सकता हूँ? हीरो बनाना है तो डॉक्टर को, किसान को, मज़दूर को बनाइए।
मैं काहे का हीरो हूँ? मैं आपका मनोरंजन करने के पैसे लेता हूँ। आपका चहेता परफॉर्मर हूँ, जैसे फिल्मी सितारे होते हैं।
मुक्ति योद्धाओं ने गोलियों का सामना पैसे के लिए नहीं किया। वे हीरो थे, परफॉर्मर नहीं। हीरो क्रिकेटर रकीबुल हसन था जो मुक्तियुद्ध के पहले ही अपने बल्ले पर जय बांग्ला लिखकर मैदान पर उतरा था।
वे कौन अहमक (मूर्ख) हैं जो देशभक्ति को क्रिकेट से जोड़कर खेल बना रहे हैं। वे ख़तरनाक खिलाड़ी हैं। वे सच्चे देशभक्तों की बेइज़्ज़ती करते हैं।..."
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