हर तीसरे घर में अपने मुखिया के खो जाने के बाद दुख में व्याकुल लोग मिल जाएंगे। तबाही का ये मंजर है कि अक्टूबर 2016 से आत्महत्याओं का आंकड़ा 254 पहुंच गया.....
आकांक्षा
जंतर मंतर के सामने अपने आगे नरकंकालों की खोपड़ियां लिए धरने पर बैठे कुछ लोग सूनी आंखों से अपना दर्द बयान कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से खबरों में यही तस्वीर दिखाई जा रही हैं। ये लोग कोई और नहीं तमिलनाडु के किसान हैं। देश का अन्नदाता कहे जाने वाले किसान की ये दुर्दशा हो गई है कि खेतों की बजाय खोपड़ियां लिए प्रदर्शन करने को मजबूर हैं। वजह भयंकर सूखे के हालात, जो अकाल जैसी स्थिति में बदलते जा रहे हैं।
भारत का दूसरा बड़ा चावल उत्पादक प्रदेश तमिलनाडु आज सदी के भीषण सूखे से जूझ रहा है। हालात इतने बदतर हो गए हैं कि पिछले दो महीनों में 65 किसानों ने आत्महत्या कर ली। दिन पर दिन स्थिति और बिगड़ती ही जा रही है। अक्टूबर 2016 से ये सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इन हालातों को देखते हुए एआईडीएमके के नेता पन्नीरसेलवम ने जनवरी 2017 में तमिलनाडु के 32 जिलों के सूखे की चपेट में होने की रिपोर्ट केंद्र सरकार को दी है। तकरीबन 13,305 गांव बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।
गौरतलब है कि पूरे तमिलनाडु में औसत से 35 से 85 प्रतिशत बारिश कम हुई है, जिसकी सीधी मार फसलों पर पड़ी है। सूखे के हालात और भी बदतर तब हुए जब कर्नाटक ने कावेरी नदी का पानी रोक लिया। इन सब कारण पहले तो सामान्य से 40 से 50 प्रतिशत खेती नहीं हुई, जो हुई वह भी बिना पानी बर्बाद हो गई। फसलों से लहलहाने वाले खेत आज बंजर भूमि में तब्दील होकर रह गए और किसान हताशा के बोझ तले दब गए। तमिलनाडु के साथ आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल के कुछ हिस्से भी सूखे से जूझ रहे हैं।
हताशा का मंज़र
तमिलनाडु के औसत किसान के पास एक से तीन एकड़ जमीन है, जिस पर 15000 से 18000 रुपए प्रति एकड़ तक का खर्च आता है। लेकिन 2016 से हालात ऐसे बदले कि देखते ही देखते कृषि दर सामान्य से 40 से 50 प्रतिशत घट गयी। जिन किसानों की फसलें लहलहाने का और कटाई के बाद खुशियां मनाने का वक्त था, वह सूखे की चपेट में ऐसी आई कि घरों में मातम पसर गया। हर तीसरा घर मातम मनाता नजर आता है।
एक किसान अपनी 3 एकड़ की फसल की बर्बादी को देखकर इस कदर टूटा कि अपने बेटे को चाय लाने के बहाने भेजकर आत्महत्या कर ली। फसलों की बर्बादी और कर्ज की लटकती तलवारों से निजात पाने का सिर्फ एक यही तरीका किसानों के पास रह गया है।
तमिलनाडु के हर तीसरे घर में अपने मुखिया के खो जाने के बाद दुख में व्याकुल लोग मिल जाएंगे। तबाही का ये मंजर है कि अक्टूबर 2016 से आत्महत्याओं का आंकड़ा 254 पहुंच गया। पिछले दो महीनों में 65 किसानों ने भी यही रूख अपनाया। लेकिन सरकारी कागजों में ये आंकड़ा सिर्फ 17 तक ही पहुंचा। तमिलनाडु किसान संगठन के नेता बी आर पंडियन ने सरकार पर गुमराह करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सरकार सही आंकड़े छुपा रही है जिससे हालात और बिगड़ सकते हैं।
सरकार का रुख
बर्बाद होती फसलें लगातार बढ़ती आत्महत्याओं और धरने प्रदर्शन के बाद सरकार ने तमिलनाडु को 10 जनवरी, 2017 को सूखाग्रसित राज्य घोषित कर दिया। सरकार ने करीब 10 दिन पहले नागापटटीनम और थंजावूर जैसे भारी तबाही वाले जिलों में किसान परिवारों को 3 लाख रुपए मदद के रूप में दिए। किसानों की प्रति एकड़ बर्बाद हुई फसलों का मुआवजा देने का वादा भी किया गया। केंद्र ने सूखाग्रसित तमिलनाडु के लिए करीब 2014 करोड़ रुपए की सहायता राशि अनुमोदित की है। राज्य सरकार को केंद्र से 39000 करोड़ रुपए की मदद की उम्मीद थी।
इस बारे में किसान संगठन अध्यक्ष बी पंडियन का कहना है ये राशि घड़े में एक बूंद के समान है। सरकार ने प्रति एकड़ जमीन के हिसाब से भी क्षतिपूर्ति देने का वादा किया है। इसमें कावेरी नदी के आसपास वाले किसानों को 25000 प्रति एकड़ दिए जाएंगे, जबकि अन्य किसानों को 21000 से 26000 प्रति एकड़ के बीच आपदा राहत कोष से सहायता मिलेगी। सर्वे के मुताबिक कावेरी नदी के आसपास करीब 80000 एकड़ फसल बर्बाद हुई है। यूं तो सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत 130,000 धान के खेतों का बीमा किया हुआ था, जिसके अंतर्गत करीब 95 प्रतिशत किसानों के खेत आते हैं। कुल मिलाकर 11 करोड़ की प्रीमियम राशि भी किसानों तक पहुंच जाए, तो आत्महत्या जैसे हताशा भरे कदम से तो निजात मिलेगी।
सरकार के वादों से उम्मीद की जा सकती है कि किसानों की बदतर स्थिति में थोड़ा सुधार आएगा। लेकिन ये तभी मुमकिन है जब सरकार और किसानों के बीच के लंबे फासले को घटाया जा सके, ताकि मदद की गुहार लगाते किसानों को कुछ लाभ मिल सके।
मानसून की मार
मौसम विभाग के अनुसार तमिलनाडु में इस बार 70 प्रतिशत मानसून कम रहा, जिसका सीधा असर भूमिगत जल स्तर पर पड़ा जो 85 प्रतिशत कम हो गया। जाहिर है बिना पानी के फसलें बुरी तरह बर्बाद हो गईं। मौसम विभाग के मुताबिक जून से सितंबर के बीच आने वाले दक्षिण पश्चिम मानसून पिछले 140 सालों में सबसे खराब रहा। यही हाल उत्तर पूर्वी मानसून का भी रहा, जो तमिलनाडु से होता हुआ आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों दक्षिण कर्नाटक और केरल से होकर जाता है। 145 सालों में दूसरी बार ये खराब मानसून रहा। इसका सीधा असर जल स्त्रोतों पर पड़ा, जो 20 प्रतिशत तक सूख गए।
इसी के साथ पेयजल का संकट भी गहराने लगा है। सरकार की ओर से नदी नहरों के मरम्मत के लिए भी करोड़ों का प्रावधान रखा गया है जिससे किसानों को मनरेगा के तहत काम मिल सके। मनरेगा योजना में भी 100 दिन से बढ़ाकर 150 दिन कर दिए गए हैं, ताकि काम करने वाले किसानों की रोजी रोटी चल सके।
आकांक्षा युवा पत्रकार हैं।
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