सुप्रीम कोर्ट ने मानवधिकार कार्यकर्ता और चिकित्सक बिनायक सेन की ज़मानत याचिका को मंज़ूरी दे दी है. काग़ज़ी कार्रवाई पूरी होने के बाद उन्हें आज शाम तक या शनिवार को रिहा होने की उम्मीद जताई जा रही है.
कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा है,"बिनायक सेन के ख़िलाफ़ राजद्रोह का आरोप नहीं बनता.हम एक लोकतांत्रिक देश हैं, बिनायक नक्सलियों से सहानुभूति रखने वालों में से हो सकते हैं लेकिन इस बिनाह पर उनके ख़िलाफ़ राजद्रोह का मामला नहीं लगाया जा सकता."
बिनायक सेन के ख़िलाफ़ राजद्रोह का आरोप नहीं बनता. हम एक लोकतांत्रिक देश हैं, बिनायक नकस्लियों से सहानुभूति रखने वालों में से हो सकते हैं लेकिन इस बिनाह पर उनके ख़िलाफ़ राजद्रोह का मामला नहीं लगाया जा सकता.
कोर्ट का निर्देश
इससे पहले सरकारी वकील ने तर्क देते हुए कहा था कि बिनायक सेन को ज़मानत न दी जाए. वकील के मुताबिक अगर बिनायक सेन को ज़मानत मिली तो वे छत्तीसगढ़ में प्रत्यक्षदर्शियों को प्रभावित कर सकते हैं जैसा कि अमित शाह ने गुजरात में किया था. इस पर जज ने कहा कि दोनों व्यक्तियों की तुलना नहीं हो सकती और फिर ज़मानत याचिका को मंज़ूरी दे दी.
मामला
बिनायक सेन को पिछले साल रायपुर की एक अदालत ने माओवादियों से सांठ गांठ रखने, उन्हें सर्मथन देने और राजद्रोह के लिए उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी.
इस आदेश के ख़िलाफ़ उन्होंने बिलासपुर उच्च न्यायालय का दरवाज़ा भी खटखटाया था लेकिन वहाँ उनकी अर्ज़ी ख़ारिज हो गई थी जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी. हाई कोर्ट में दाखिल की गई अपील में बिनायक सेन ने कहा था कि अभियोजन पक्ष के कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाने के बावजूद निचली अदालत ने उन्हें दोषी क़रार देकर सज़ा सुनाई है.
बिलासपुर उच्च न्यायलय में उनके मामले की पैरवी मशहूर वकील राम जेठमलानी ने की थी.जेठमलानी भारतीय जनता पार्टी के सांसद भी हैं और छत्तीसगढ़ में उन्हीं की पार्टी की सरकार है.अदालत मे दाख़िल किए गए अपने हलफ़नामे में छत्तीसगढ़ सरकार ने दावा किया था कि बिनायक सेन ने देश में नक्सलवाद के विस्तार में समर्थन दिया है और इस काम में हर तरह की मदद मुहैया करवाई है.
बिनायक सेन की गिरफ़्तारी और सज़ा का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ा विरोध हुआ है और विश्व की जानी मानी हस्तियों ने भारतीय प्रधानमंत्री से उनकी रिहाई की अपील की थी.
बीबीसी से साभार