ओस्लो में 80 मासूमों का हत्यारा ब्रेविक, भारत में सक्रिय आक्रामक तथा सांप्रदायिक हिंदुत्ववादी शक्तियों से बहुत प्रभावित है। गुजरात दंगे तथा मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर देश में होने वाले हमले और राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित दंगे उसके प्रेरणा हैं...
तनवीर जाफरी
दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य अतिवादी विचारधारा के प्रसार की त्रासदी किसी एक देश या समुदाय तक सीमित नहीं है । इस समस्या का दंश दुनिया के कई प्रमुख एवं विश्व की बड़ी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले ईसाई,मुस्लिम, हिंदू,सिख और यहूदी जैसे समुदाय झेल रहे हैं।
इसका ताज़ा उदाहरण नार्वे की राजधानी ओस्लो में देखने को मिला. 22 जुलाई को एंडर्स बेरिंग ब्रेविक नामक एक कट्टरपंथी ईसाई युवक ने 80 से अधिक आम लोगों की गोलियों से सामूहिक रूप से हत्या कर दी । मारे गए लोग ओस्लो लेबर पार्टी से जुड़े थे और वे एक मीटिंग में शामिल थे. यह ईसाई युवक वैचारिक रूप से कट्टरपंथी ईसाई विचारधारा रखने वाला और इसका विश्वास बहु संस्कृतिवाद में नहीं है और वह इस व्यवस्था का विरोधी है।
ईसाईयत को जीवन मानने वाला यह व्यक्ति ईसा मसीह के अमन,शांति, प्रेम, सहयोग व परस्पर भाईचारा जैसे बताए गए मौलिक ईसाई सिद्धांतों को मानने के बजाए बहुसंस्कृतिवाद के विरोध में ही अपने परचम को बुलंद करने में अधिक विश्वास रखता है। उसके प्रेरणास्त्रोत ईसा मसीह अथवा ईसाईयत की वास्तविक राह पर चलने वाले वे लोग कतई नहीं हैं जो विश्व शांति की बातें करते हैं तथा सहिष्णुशीलता के साथ रहना पसंद करते हैं।
यही वजह है कि ब्रेविक ने अपने 1500 पृष्ठ के घोषणापत्र में 102 पृष्ठों में केवल भारत का ही उल्लेख किया है। ब्रेविक भारत में सक्रिय आक्रामक तथा सांप्रदायिक हिंदुत्ववादी शक्तियों से बहुत प्रभावित है। गुजरात दंगे तथा मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर देश में होने वाले हमले अथवा राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित दंगे उसके लिए कौतूहल का विषय हैं। वह अतिवादी हिंदुत्ववादियों के संघर्ष में अपना सहयोग भी देना चाहता है। तथा इन सांप्रदायिक ताकतों को सामरिक सहयोग भी देना चाहता है।
स्वयं को सच्चा ईसाई बताने वाला यह व्यक्ति अपने मिशन को इंतेहा तक पहुंचाने के लिए आतंकवादी गतिविधियों को विश्वव्यापी स्तर तक चलाने, इस मकसद के लिए पूरे विश्व में युद्ध छेडऩे यहां तक कि व्यापक विनाश के हथियारों के प्रयोग तक के हौसले रखता है।
आखिर कुछ न कुछ सफेदपोश लोग तो मानवता विरोधी विचारधारा के प्रचारक व प्रसारक ऐसे हैं जिन्होंने एक नवयुवक को इतना ज़हरीला इंसान बना दिया जिसके विचार इस कद्र विध्वंसक बन गए। इसी प्रकार इस्लाम धर्म में भी तमाम ऐसे तथाकथित रहनुमा मिल जाएंगे जो इस्लाम को कभी ईसाईयत से कभी यहुदियों से तो कभी हिंदुओं से सबसे बड़ा खतरा बताकर इन समुदायों के लोगों के विरुद्ध संघर्ष छेडऩे की पुरज़ोर वकालत करते हैं।
ओसामा बिन लाडेन,एमन अल जवाहिरी,मुल्ला उमर,अज़हर मसूद,हाफिज़ सईद आदि उन्हीं इस्लामी स्वयंभू ठेकेदारों में से हैं। इसी प्रकार भारत में भी आरएसएस व विश्व हिंदु परिषद द्वारा प्रेरित असीमानंद,प्रज्ञा ठाकुर व कर्नल पुरोहित आदि भी उसी श्रेणी के लोग हैं जो धर्म के नाम पर अपने समुदाय के लोगों को इस हद तक वरगला देते हैं कि उनके अनुयायी किसी न किसी लालच,भय तथा कथित धर्म प्रेम के चलते किसी की भी जान लेने पर आमादा हो जाते हैं।
परिणामस्वरूप कभी भारत में 6 दिसंबर 1992 जैसी बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना घटती है तो कभी गोधरा व गुजरात जैसे हिंसक सांप्रदायिक दंगे हो जाते हैं। कभी मक्का मस्जिद,अजमेर धमाके,मालेगांव व समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट की घटनाएं घटित होती हैं। कभी किसी एक ऐसी ही अतिवादी मानसिकता के जि़म्मेदार व्यक्ति की वजह से पुलिस सेना तथा प्रशासनिक व्यवस्था तक बदनाम हो जाती है।
और तो और अतिवादी विचारधारा कभी-कभी किसी शासक को उस हद तक भी ले जा सकती है जबकि उसके संरक्षण में समुदाय विशेष के लोगों का सामूहिक नरसंहार हो जाए। भारत के गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी फरवरी 2002 से कुछ ऐसे ही आरोपों से घिरे हुए हैं। परंतु उन्हें अपनी विचारधारा व अपनी पक्षपातपूर्ण करनी पर अ$फसोस या ग्लानि नहीं बल्कि गर्व महसूस होता है।
पिछले दिनों भारत में ही एक नेता रूपी स$फेदपोश व्यक्ति सुब्रमणयम स्वामी ने भी समाचार पत्र में प्रकाशित अपने एक आलेख के द्वारा ज़हरीले विचारों की अभिव्यकित कर डाली। हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के अध्यापक स्वामी का मत है कि भारत में रहने वाले जो मुसलमान अपने पूर्वजों को हिंदू नहीं मानते उनके मताधिकार समाप्त कर देने चाहिए।
देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को झकझोर कर रख देने वाली 6 दिसंबर 1992 की बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना जिसने भारत में हिंदुओं व मुसलमानों के मध्य दरार पैदा कर दी, स्वामी उस दुर्भाग्यपूर्ण हादसे के समर्थक हैं। वे भी हिंदुत्ववादी शक्तियों के सुर से अपना सुर मिलाते हुए इस्लामी आतंकवाद को ही भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बता रहे हैं।
परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद,अबुल कलाम आज़ाद,भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम, डा० ज़ाकिर हुसैन,तथा वर्तमान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के देश भारतवर्ष में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में असहिष्णुता तथा वैमनस्यपूर्ण विचारधारा के प्रचार का यह स्तर किसी साधारण व्यक्ति का नहीं बल्कि भारत के एक जाने-माने विवादित राजनेता सुब्रमणयम स्वामी का है।
यह और बात है कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों,पूर्व छात्रों, शिक्षकों तथा वहां पढऩे वाले बच्चों के अभिभावकों तक ने सुब्रमणयम स्वामी को हार्वर्ड विश्वविद्यालय से बर्खास्त करने तथा विश्वविद्यालय का संबंध उनसे तोड़ लेने व उनसे डिग्री वापस लेने तक की मांग कर दी है।
दरअसल ऐसे ही लोग सांप्रदायिकता,नफरत, विद्वेष तथा समाज को समुदाय के नाम पर विभाजित करने के सबसे बड़े जि़म्मेदार हैं तथा आतंकवाद को बढ़ाने में इनकी भूमिका आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने वाले लोगों से कहीं बड़ी व महत्वपूर्ण है। लिहाज़ा ज़रूरत है मानवता को बचाने के लिए ऐसी प्रदूषित विचारधारा के लोगों पर लगाम लगाने की।