विष्णु शर्मा
व्याख्यान प्रस्तुत करते सुमंथो बेनर्जी, साथ में भूपेन सिंह |
पहला हेम चंद्र पांडे स्मृति व्याख्यान 2 जुलाई 2011 को गाँधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में संपन्न हुआ. वरिष्ठ पत्रकार सुमंथो बेनर्जी ने ‘प्रोफेशनल एथिक, करियरिस्म एंड सोशियों-पोलिटिकल आब्लगैशन- कन्फ्लिक्ट कन्वर्जन्स इन इंडिया जर्नलिज़म’ शीर्षक के तहत व्याख्यान प्रस्तुत किया. उन्होंने बताया कि आज पत्रकार खोज करने और अपनी पसंद की राजनीति को चुनने की कीमत चुका रहे हैं. हेम को अलग से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि उन्हें एक लंबी परंपरा के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए.
इस अवसर पर कार्यक्रम के संचालक भूपेन ने कहा कि पत्रकार हेमचंद्र की शहादत को एक साल हो गया है, लेकिन उनके हत्यारों को सजा मिलेगी इसका भरोसा अब तक नहीं हो सका है. आज हम हेम के आदर्शों को याद करने के लिए जुटे हैं. यहाँ उपस्थित लोगों की मौजूदगी यह साबित करती है कि यह हत्या सत्ता के लाख प्रयासों के बावजूद गुम नहीं हो सकी है. उन्होंने आगे कहा कि सरकार हेम को माओवादी बता रही है, लेकिन तब भी क्या सरकार के पास उन्हें गोली मारने का अधिकार था? आज हमारे समाचार माध्यमों को कारपोरेट चला रहे हैं. समाचार माध्यमों उद्योग बन गए हैं और इसने सत्ता के साथ एक अनैतिक गठबंधन बना लिया है.
कार्यक्रम में विशेष अथिति राजेंद्र यादव ने कहा कि हेम को जिस तरह मारा गया, वह सत्ता के लिए नया नहीं है. बहुत पहले आपातकाल के समय ऐसा दौर आया था. तब वह बहुत थोड़े समय के लिए था, लेकिन आज यह लंबे समय से जारी है. आज हम जितने लोग यहाँ बैठे हैं, उनमे से कोई भी हेम हो सकता है. हम लगातार एक डर के साये में जीते हैं कि कब हमें पकड़ लिया जायेगा और हमारी मौत को मुठभेड़ करार दे दिया जायेगा. उन्होंने आगे कहा कि विचार जब सत्ता में बदलता है तो वह खतरनाक हो जाता है, क्योंकि सत्ता का स्वरूप ही दमनकारी होता है. सत्ता वर्चस्ववादी होती है.
बहुचर्चित लेखिका अरुंधती रॉय ने इस अवसर पर कहा कि हेम के साथ कामरेड आज़ाद को भी याद करना जरूरी है. हमें अपने आप से यह सवाल पूछना चाहिए कि क्यों एक साल पहले हेम और कामरेड आज़ाद की हत्या हुई? उन्हें इसलिए मारा गया था कि सरकार में शामिल कुछ लोग नहीं चाहते थे कि बातचीत के जरिये माओवाद की समस्या हल निकले. हम देख रहे हैं कि इस एक साल के अंतराल में बातचीत की कोई कोशिश नहीं की गयी है. उन्होंने कहा कि सत्ता ख़ामोशी से दमन करना चाहती है और मीडिया उनका साथ दे रहा है. अन्ना हजारे के आन्दोलन के शोर में दमन की आवाज़ को छिपाया जा रहा है.
वरिष्ठ कवि और पब्लिक एजेंडा के संपादक मंगलेश डबराल ने कहा कि आज के हालत में कोई भी चेतनावान व्यक्ति तटस्थ नहीं रह सकता और हेम ने भी ऐसा ही किया. जब तक सत्ता का दमन जारी रहेगा, हेम जैसे पत्रकार पैदा होते रहेंगे.
कवि और पत्रकार नीलाभ ने कहा कि भारत एक पुलिसिया राज्य बन चुका है. हमें जोर- शोर से आवाज़ उठानी होगी, नहीं तो बहुत देर हो जायेगी. आज भारत की जेलों में हजारों पत्रकार बंद हैं. हेम के बहाने हमें उनके बारे में भी बात करनी होगी. लेखकों को इस बारे में लगातार लिखना चाहिए. फिल्म निर्माता संजय काक ने कहा कि हमें मेनस्ट्रीम मीडिया को कोसना बंद करना चाहिए. हमें उनसे डरने की जरूरत नहीं है. हमे उनका सहयोग लेना आना चाहिए.
हेम के साथ अपने जुड़ाव के बारे में बताते हुए समयांतर पत्रिका के संपादक पंकज बिष्ट ने कहा कि हेम से उन्हें हौसला अफजाई मिली. वे हमेशा चर्चा करते थे कि पत्र में क्या होना चाहिए. हेम की लड़ाई में नए लोगों की बड़ी जिम्मेदारी है. इस लड़ाई में वैकल्पिक मीडिया की एक सीमा है. हमे बड़े समाचार घरानों पर दवाब बनाना चाहिए कि वे नियम से चलें. दवाब बनाना जरूरी है, नहीं तो इससे छोटे समाचार माध्यम भी प्रभावित होंगे. हमें बहुत सी बातें बड़े समाचार माध्यमों से ही पता चलती हैं. वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने कहा कि सच को सामने लाने में वैकल्पिक मीडिया की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है और यह उनका कर्त्तव्य भी है. पत्रकारों के पास उनकी यूनियन होना जरूरी है. और यूनियन लोकतान्त्रिक होना चाहिए. आज जो यूनियन है. लेकिन वे सत्ता की दलाली में लगे हैं और पत्रकारों के हितों की अनदेखी कर रहे हैं.
लेखक-पत्रकार आनंद प्रधान ने कहा कि समाचार माध्यम अपने पत्रकारों को संगठित नहीं होना देना चाहते. वे उनका जबरदस्त शोषण करते हैं और जब भी सरकार उनके बारे में सोचती है तब यह कहा जाता है कि सरकार उन्हें अपने पक्ष में करना चाहती है. इस अवसर पर वरिष्ठ लेखक पंकज सिंह ने भी अपनी बात रखी.
कार्यक्रम की शुरुआत में पत्रकार हेम चंद्र पांडे पर केन्द्रित एक किताब का भी विमोचन किया गया.