Apr 11, 2017

फांसी पर चढ़ने से पहले भगतसिंह ने खाई थी 'जमादार मां' के हाथ की रोटी

मां जिन हाथों से बच्चों का मल साफ करती है उन्हीं हाथों से तो खाना बनाती है। बेबे, तुम चिंता मत करो और मेरे लिए रोटी बनाओ..... 


उनकी काल—कोठरी में जो भंगी सफाई करने आता था, वे उसे बेबे कहा करते थे, जैसे कि अपनी मां को बेबे जी कहते थे। जब वह कोठरी में आता, तो भगतसिंह कुछ भी कर रहे हों उससे जरूरी बातचीत करते और लाड़ से बेबे—बेबे पुकारते रहते। उनके इस व्यवहार से जमादार का प्रभावित होना तो स्वाभाविक ही था।

'आप इसे बेबे क्यों कहते हैं?' एक दिन किसी जेल अधिकारी ने पूछा, तो भगतसिंह बोले, 'जीवन में दो को मेरी गंदगी उठाने का काम मिला है। एक मेरी बचपन की मां और एक यह जवानी की जमादार मां। इसलिए दोनों बेबे जी ही हैं मेरे लिए।'

फांसी से पहले जेलर खान बहादुर मुहम्मद अकबर अली ने उनसे पूछा, 'आपकी कोई खास इच्छा हो, तो बताइये। मैं उसे पूरी करने की कोशिश करूंगा।'

भगतसिंह का उत्तर था, 'हां मेरी एक खास इच्छा है और आप उसे पूरा कर सकते हैं।'

'बताइये।'

'मैं बेबे के हाथ की रोटी खाना चाहता हूं।' जेलर ने इसे उनके मातृ प्रेम समझा, पर उनकी मंशा भंगी भाई से थी। जेलर ने उसे बुलाकर भगतसिंह की बात कही, तो वह स्तब्ध रह गया,

'सरदार जी मेरे हाथ ऐसे नहीं हैं कि उनसे बनी रोटी आप खाएं।'

भगतसिंह ने प्यार से दोनों कंधे थपथपाते हुए कहा, 'मां जिन हाथों से बच्चों का मल साफ करती है उन्हीं हाथों से तो खाना बनाती है। बेबे, तुम चिंता मत करो और मेरे लिए रोटी बनाओ।'

भंगी भाई ने रोटी बनाई और भगतसिंह ने आनंद से, अपने स्वभाव के अनुसार उछलते—मटकते हुए खाई।


('युगद्रष्टा भगतसिंह' से साभार। भगतसिंह की अंतिम इच्छा का वर्णन वीरेंद्र सिंधु ने कुछ इस तरह किया है।)

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