बिहार के पटना शहर के रहने वाले छात्र योगेश की आत्महत्या से लेकर उसकी लाश परिजनों तक सौंपने के दौरान कॉलेज प्रशासन ने जो गैरजिम्मेदाराना रुख अख्तियार किया,उससे छात्र गुस्से में हैं...
जनज्वार टीम. इंजीनियर बनने का सपना सिर्फ योगेश रंजन पाण्डेय का ही नहीं था। सपने का साझीदार उसका पूरा परिवार था। परिवार के उसी साझे सपने को पूरा करने योगेश पंजाब के नवाशहर के आइआइटीटी कॉलेज पहुंचा था। जहां छह महीने की मेहनत के बाद आये रिजल्ट ने सपने को तो आगे नहीं बढ़ाया, अलबत्ता उसकी जिंदगी जरूर लील गया।
पंजाब के पोजेवाल कस्बे में पड़ने वाले आइआइटीटी कॉलेज के प्रथम वर्ष के छात्र योगेश रंजन के 4 मार्च को आत्महत्या करने के बाद कैंपस में तनाव का माहौल है। छात्र मान रहे हैं कि बीटेक कर रहे योगेश की आत्महत्या का मुख्य कारण पंजाब टैक्निकल यूनिवर्सिटी (पीटीयू) के रिजल्ट से उपजी निराशा है, जिसमें उसे पांच विषयों में से चार में फेल कर दिया गया था। गौरतलब है कि उसी दिन पंजाब के अमृतसर में भी एक छात्र की आत्महत्या का मामला सामने आया था।
नाम न छापने की शर्त पर योगेश के साथी कहते हैं कि,‘जो छात्र एमटीएस परीक्षाओं में पचहत्तर फीसदी तक अंक प्राप्त करता रहा हो, वह एकाएक प्रथम सेमेस्टर के रिजल्ट में चार विषयों में फेल करा दिया जाये तो उसे फ्रस्टेशन तो होगा ही।’ऐसे में कॉलेज प्रबंधन अपनी गलती मानने के बजाय अब गुस्साये छात्रों को चुप कराने की जुगत में लगा हुआ है। योगेश की लाश को उसके परिजनों तक सही तरीके से न पहुंचाये जाने से आहत छात्र जब शांतिपूर्वक कॉलेज गेट पर अपना प्रतिरोध व्यक्त कर रहे थे तो अकाउंटेंट जसविंदर सिंह सोदी ने पुलिस को बुला लिया।
बिहार के पटना शहर के रहने वाले छात्र योगेश की आत्महत्या से लेकर उसकी लाश परिजनों तक सौंपने के दौरान प्रशासन ने जो गैरजिम्मेदाराना रुख अख्तियार किया, उससे छात्र गुस्से में हैं। हालत यह है कि योगेश के आत्महत्या करने के दो दिन बाद 6तारीख की देर रात तक भी उसकी लाश उसके परिजनों तक नहीं पहुंच सकी है। योगेश के चाचा राम किंकर पांडेय कहते हैं,‘पहले तो कॉलेज प्रशासन ने योगेश को मारा और अब वे उसकी लाश सड़ा रहे हैं। पैसा बचाने के चक्कर में उन्होंने लाश को हवाई जहाज से भेजने की बजाय सड़क से भेजा है। हमारे साथ यह धूर्तता कॉलेज के एकाउंट आफिसर जसविंदर सिंह सोदी ने की है।’
बीटेक कर रहे योगेश के एक साथी का कहना है कि ‘जैसे ही हम लोगों को पता चला कि योगेश पंखे से लटक रहा है तो हमने उसे उतारने के साथ ही कॉलेज प्रबंधन को सूचित किया। मगर हालत यह है कि कॉलेज में फर्स्ट एड किट तक नहीं है। अगर कैंपस में फर्स्ट एड किट होता तो योगेश को बचाया जा सकता था।’
उल्लेखनीय है कि कॉलेज हॉस्टल में पंखे से फांसी पर लटके योगेश की अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में मौत हो गयी थी। उसका प्राथमिक ईलाज हॉस्टल में इसलिए संभव नहीं हो सका कि सैकड़ों छात्रों के इस हॉस्टल में एक भी डॉक्टर की व्यवस्था प्रबंधन ने नहीं की है। ऐसे में सवाल उठता है कि लाखों रुपये फीस वसूलने वाले इन निजी शिक्षा संस्थानों में डॉक्टरों की व्यवस्था क्यों नहीं की गयी है?
बीटेक द्वितीय वर्ष के एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पीटीयू और प्रबंधन दोनों उसे मारने में बराबर के दोषी हैं। छात्र के मुताबिक ‘पांच में से चार विषयों में फेल कर योगेश को जहां पीटीयू ने आत्महत्या के लिए उकसाया,वहीं कैंपस में शुरुआती इलाज के अभाव ने उसको मारने में कैटेलिस्ट का काम किया।’ छात्रों का आरोप है कि कॉलेज प्रबंधन और इसके कामकाज को देखने वाली नियामक संस्था पीटीयू दोनों की मिलीभगत से इतनी बड़ी संख्या में हर वर्ष छात्रों को बैक पेपर कराया जाता है।
सिर्फ बीटेक की बात की जाये तो पहले सेमेस्टर में आइआइटीटी के प्रथम वर्ष में प्रवेश पाये 150 में से दो को छोड़ सभी छात्र किसी न किसी विषय में फेल हैं। पीटीयू की व्यवस्था के मुताबिक यह छात्र फेल नहीं कराये जाते, बल्कि बैक पेपर देकर उन्हें पास होने की मोहलत दी जाती है। ऊपर से देखने में यह व्यवस्था छात्रों के हित में लगती है,मगर अंततः यह कुकुरमुत्तों की तरह उग आये कॉलेजों के प्रबंधन सेवा के लिए है।
एक सीनियर छात्र से हुई बातचीत में पता चला कि छात्रों का प्रथम पारी में फेल होना और फिर बैक पेपर देकर पास होना पीटीयू के कॉलेजों में एक परंपरा सी बन गयी है। दरअसल,बैक पेपर भरने पर एक छात्र को सात सौ रुपये भरने पड़ते हैं। इस तरह से ये कॉलेज हर वर्ष फेल विद्यार्थियों को पास होने का चांस देने के नाम पर लाखों रुपये पीटीयू के जरिये कमाते हैं।
छात्रों का कहना है यहां पढ़ने वाले ज्यादातर छात्र चूंकि दूसरे राज्यों से आते हैं इसलिए फेल होने से छात्र मकान मालिकों से लेकर दुकानदारों तक की कमाई का जरिया बने रहते हैं। यही जरिया बनना योगेश को स्वीकार नहीं था। शायद इसलिए कि बाकियों की तरह उसके पिता के पास आमदनी का कोई ठोस जरिया नहीं था। योगेश के चाचा राम किंकर पांडेय बताते हैं,‘योगेश के पिता गांव में यजमानी करके घर की रोटी चलाते हैं। उन्होंने जीवनभर की कमाई योगेश के सपने को पूरा करने में लगा दी थी। अब तो न बेटा बचा, न सपना।’
बहरहाल छात्रों और उनके परिजनों के इन गंभीर आरोपों को देखकर कतई इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह बात वे अपने अनुभवों के आधार पर कह रहे हैं।