Jun 1, 2011

अन्ना के खिलाफ सरकारी ब्रम्हास्त्र तो नहीं बाबा रामदेव ?

अनशन शुरू होने से पहले बाबा के उठाये मुद्दे जो चर्चा में आये हैं, उनपर गौर करें तो उनमें से कई मुद्दों पर वे सरकार की ज़बान बोल रहे हैं और असल टकराव  अन्ना हजारे से  दिखता है...
    
मुकुल सरल


पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का बाबा रामदेव से अनशन न करने का आग्रह और फिर चार-चार मंत्रियों का उन्हें  दिल्ली एअरपोर्ट पर  मनाने जाना, दर्शाता तो यही है कि बाबा से सरकार डर गयी है ?  लेकिन यहाँ तो बाबा ही डरे हुए नजर आते हैं।  तभी तो जंतर-मंतर पर सत्याग्रह के साथ रामलीला मैदान में अष्टांग योग शिविर भी रख लिया है,  जो इस बात की गारंटी करे कि बाबा के सत्याग्रह-अनशन में समर्थकों की कमी न होने  पाए।

पहले से तय है कि 4 जून से शुरू होने जा रहे योग शिविर में लोग बाबा के समर्थन में उपवास भी रखेंगे और सत्याग्रही के तौर पर बाबा के अनशन में जाएंगे। अब अगर अनशन शुरू होने से पहले बाबा के उठाये मुद्दे  जो चर्चा में आये हैं, उनपर गौर करें तो उनमें से कई मुद्दों पर वे  सरकार की  ज़बान बोल रहे हैं और असल टकराव लोकपाल मसौदा समिति बनवाने में सफल रहे अन्ना हजारे से  नजर आता है।   प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने का मामला   हो या मसौदे में भ्रष्टाचारियों को मृत्युदंड देने का प्रावधान शामिल कराने की मांग, अन्ना टीम के लोकपाल बिल के मसौदे के खिलाफ ही जाती है।

तभी तो रामलीला मैदान में अन्ना के नाम के पर्चे बांटना भी बाबा के समर्थकों को गंवारा नहीं हुआ। जब लड़ाई एक है और देशहित में है तो फिर खुद चैंपियन बनने की इतनी ललक क्यों? दरअसल  अन्ना के आंदोलन से खुद को लगभग बाहर या उपेक्षित कर दिए जाने से तो बाबा पर लगभग बिजली ही टूटी। बाबा की राजनीति और राजनीतिक महत्वकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। बाबा को लगा कि अरे उनके मुद्दों  को तो अन्ना ले उड़े और देश के हीरो हो गए। उन्हें कोई श्रेय नहीं, यहां तक कि कमेटी में भी जगह नहीं!

जानकार तो ये भी कहते हैं कि सरकार ने ही अन्ना के आंदोलन को हवा दी और बाबा को काट दिया। ऐन चुनाव के मौके पर भ्रष्टाचार के सारे मुद्दे को लोकपाल बिल के ड्राफ्ट तक सिमटा दिया और बेहतर परिणाम पाए। अन्ना से समझौते के अगले दिन से ही सरकार के मंत्रियों ने बयान देने शुरू कर दिए कि केवल लोकपाल से क्या होगा। फिर सीडी के साथ अमर सिंह को खड़ा कर दिया गया। इस बीच दूसरे खेल भी खेले गए और अब बाबा रामदेव को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि अन्ना और उनकी टीम को निपटाया जा सके। सरकार ये भी दिखा सके कि हम भ्रष्टाचार के खिलाफ कितना गंभीर हैं। और ये पूरी मुहिम ही आपसी लड़ाई, आरोप-प्रत्यारोप, बंटवारा, संशोधन इस सबमें फंसकर खटाई में पड़ जाए।

...सही भी है सरकार बाबा से क्या डरेगी..क्यों डरेगी? जानकार कहते हैं कि बाबा के इतिहास, वर्तमान, कारोबार और संपत्ति को लेकर सरकार के पास ऐसी कई गोट हैं जिनका वह बाबा के खिलाफ जब चाहे इस्तेमाल कर सकती है।   सारे दांव-पेच और समीकरण तो यही बता रहे हैं कि बाबा रामदेव का सत्याग्रह भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आंदोलन को आगे बढ़ाने की बजाय उसे पंक्चर करने का ही काम करेगा। देखिए भविष्य में क्या होता है क्योंकि आज ही बाबा निहाल हो गए हैं कि चार-चार मंत्री उन्हें मनाने आए...इसके बात उन्होंने बयान दिया कि
"पहले दौर की बात सकारात्मक रही है. बातचीत आगे भी होगी. कुछ मुद्दों पर सहमति भी बनी है । "

अपना सुर बदलते हुए बाबा रामदेव ने किसी पार्टी या नेता का नाम लेकर आलोचना करने से मना कर दिया. उनका कहना है , " हमारी लड़ाई किसी पार्टी या व्यक्ति के ख़िलाफ़ नहीं है,  जनहित में है।  किसी की निंदा करना हमारा मकसद नहीं है." अब देखना है कि इस सबमें कितना जनहित है और कितना सरकार के साथ बाबा का हित। 



पत्रकार और कवि . हाल ही में  कविता संग्रह  'उजाले का अँधेरा ' प्रकाशित हुआ है.



पत्रकार को सच बोलने की सजा दी सरकार ने


ह्युमन राईट वाच  के पाकिस्तान प्रतिनिधि अली दयान हसन ने अल जजीरा को बताया कि शहजाद ने उन्हें हाल में बताया था कि 'रिपोर्ट के बाद से आईएसआई से उन्हें लगातार धमकी मिल रही थी...

विष्णु शर्मा

पाकिस्तान के पंजाब राज्य  की पुलिस ने मंगलवार को पत्रकार सईद सलीम शहजाद की हत्या की पुष्टि कर दी है. शव की शिनाख्त शहजाद के परिवार ने की. एशिया टाइम्स ऑनलाइन और इटली की समाचार एजेंसी एंडक्रोनोस इंटरनेशनल  के पाकिस्तान संवाददाता शहजाद पिछले रविवार से लापता थे. गौरतलब है कि  40 वर्षीय  खोजी पत्रकार शहजाद की गिनती  पाकिस्तान के उन  साहसी पत्रकारों में की जाती रही है जो सरकारी तंत्र और आतंकवादी संगठनों के गठजोड़ को सरेआम करते रहे हैं. 
  
आतंकवाद के  शिकार : पत्रकार सईद सलीम  शहजाद  
उनके लापता होने की खबर 29  मई को सामने आयी जब वे तय कार्यक्रम में नहीं पहुँच सके थे.माना जा रहा है कि उनकी हत्या में पाकिस्तानी नौसेना के उन अफसरों का हाथ होगा, जिनके सम्बन्ध तालिबान से होने की खबर शहजाद ने लिखी थी. 27  मई को एशिया टाइम्स में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में शहजाद ने खुलासा किया था कि पाकिस्तानी नौसेना के कुछ बड़े अफसर आतंकवादियों को सूचना पहुंचाते है. शहजाद पाकिस्तान में तालिबान पर विशेष जानकारी रखने वाले पत्रकार माने जाते थे. उनकी पुस्तक 'इनसाइड अल कायेदा एंड तालिबान: बियोंड बिन लादेन एंड 9/11' खासी सुर्ख़ियों में रही.

जानकारों का कहना है कि हाल में प्रकाशित उनकी रिपोर्ट के कारण पाकिस्तानी नौसेना में पड़े अंतरराष्ट्रीय  दवाब का बदला लेने के लिए उनकी हत्या की गई है.ह्युमन राईट वाच  के पाकिस्तान प्रतिनिधि अली दयान हसन ने अल जजीरा को बताया कि शहजाद ने उन्हें हाल में बताया था कि 'रिपोर्ट के बाद से आईएसआई से उन्हें लगातार धमकी मिल रही थी.' आईएसआई इस आरोप को बेबुनियाद बता रही है. उसके एक अधिकारी का कहना है कि आरोप लगाने वालों को इसका सबूत देना चाहिए.पकिस्तान के प्रधानमंत्री सईद युसूफ रज़ा गिलानी ने हत्या पर दुख प्रकट करते हुए कहा है कि उनकी सरकार दोषियों को जरूर सजा दिलाएगी.

हत्या की जाँच के लिए सरकार ने कमिटी का गठन कर दिया है. संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने शहजाद की हत्या को निंदनीय करार देते हुए इस की निष्पक्ष जांच की मांग की है. संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता के कहा है कि महासचिव आशा करते है कि पाकिस्तानी सरकार दोषियों को दंड देगी.रिपोर्टर विदाउट  बोर्डर और इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को मंगलवार को भेजे अपने संयुक्त पत्र में कहा है कि 'हत्या से पत्रकार बिरादरी ठगा हुआ महसूस कर रही है.हम मांग करते है कि पकिस्तान सरकार हत्या की पुर जोर निंदा करे और इसके लिए जिम्मेदार लोगो को सजा दिलाये.'

पकिस्तान के अंग्रेजी दैनिक डेली टाईम्स ने आज अपने संपादकीय 'सलीम शहजाद: सच की कीमत' में लिखा है,'यह घटना उन सभी लोगों के लिए आखें खोलने वाली है जो यहाँ की सेना और उग्रवादी संगठनों से सहानुभूति रखते है.इस बात को समझने के लिए कि हमारा देश एक युद्ध क्षेत्र है जहाँ उग्रवादी और उनसे जो खुद को हमारा रखवाला कहते हैं, कोई भी सुरक्षित नहीं है.  हमें  बाहरी देशों को अपनी हर तकलीफ का दोषी कहना बंद करना होगा.जिस देश में आतंकवादी,हत्यारे,बलात्कारी और अपराधी सुरक्षित महसूस करते हों उस देश में निर्दोषों की हत्या एक सामान्य परिघटना है.'

इससे पहले भी 19नवम्बर 2006में अफगानिस्तान के हेलमंड में रिपोर्टिंग के दौरान तालिबानी लड़ाकों  ने शहजाद का अपहरण कर लिया था.तालिबान को उन पर जासूसी करने का शक था. 26 नवम्बर 2006को तहकीकात के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया था. कैद के अपने अनुभवों को शहजाद ने 'इन दी लैंड ऑफ दी तालिबान' शीर्षक से एक लेख श्रृंखला भी लिखी थी.


जमीन के बदले जमीन ही सही पुनर्वास नीति


जनज्वार. उत्तर  प्रदेश  के इलाहबाद जिले के करछना में कचरी विद्युत संयंत्र के लिए  भूमि  अधिग्रहण किया जा रहा है. इस परियोजना से विस्थापित  होने वाले किसानों को रु. 3  लाख प्रति बीघा दिया जा रहा है. किसानों को उनकी जमीन के बदले दी जा रही ये कीमत वहां के  सर्किल रेट से तीन गुना  है. लेकिन सामाजिक कार्यकर्त्ता और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पाण्डेय का कहना है कि 'सही पुनर्वास नीति जमीन के बदले जमीन ही  है.

 आखिर रातों-रात अपना जीने कर तरीका या आजीविका का माध्यम बदल देने के लिए कौन तैयार होगा,  चाहे मुआवजा कितना  ही क्यों न हो' ?  अगर नकद से ही काम चल जाता तो सभी सरकारी अधिकारी स्वैच्छिक सेवा निवृति कर लाभ क्यों नहीं उठाते? इलाहबाद के जिलाधिकारी अलोक कुमार और मंडलायुक्त  मुकेश मेश्राम को लिखे अपने पत्र में संदीप पाण्डेय ने आगे कहा कि  जमीन के बदले सिर्फ  पैसे की अदायगी को किसानों के साथ न्याय नहीं कहा जा सकता। किसान परिवार के लिए जमीन ही उसकी जीविका व जीवन का साधन है और न्यायपूर्ण मुआवजा जमीन के बदले जमीन ही है।

इसलिए प्रसाशन को  अधिग्रहण वाले जिले में ही जमीन तलाश कर विस्थापित किसानों का पुनर्वास करना चाहिए. अगर  किसानों से ली गयी जमीन के बदले   में दी जाने वाली जमीन की गुणवत्ता में अंतर हो  तो जमीन के मूल्य के मुताबिक अधिग्रहित जमीन के अनुपात में दूसरी जगह जमीन दी जा सकती है। अगर पूरे किसान परिवार को ध्यान में रखकर निर्णय लिया जाएगा तो जमीन के बदले जमीन ही सही नीति प्रतीत होगी। हलांकि नकद मुआवजे का विकल्प,जो चाहें उनके लिए,खुला रखा जा सकता है। परन्तु इस पर परिवार की प्रमुख महिला की सहमति भी अनिवार्य होनी चाहिए।



चीन की उलझाऊ कूटनीति और भारत

चीन, भारत के खिलाफ एक राजनीतिक युद्ध में सीधा न उलझ कर, किसी न किसी बहाने भारत को उलझाकर रखना चाहता है . नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार में उसके हस्तक्षेप इसी योजना का एक अंग है...

घनश्याम वत्स

आज कल सभी न्यूज़ चैनल और पत्र-पत्रिकाएं जब चीन के विषय में बाते करतें हैं तो उनका निष्कर्ष यही होता है कि चीन भारत के हितों के खिलाफ कार्य कर रहा है और भारत के खिलाफ युद्ध की तैयारी में लगा हुआ है.लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या कभी चीन भारत पर आक्रमण करेगा ?

चीन इस दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला एक जिम्मेदार   देश है . उस पर अपने नागरिकों के भरण पोषण और उनके हितों की रक्षा की जिम्मेदारी है .जिस प्रकार हर देश को अपने नागरिकों के सुखद ओर स्वर्णिम भविष्य की कामना होती है उसी प्रकार चीन को भी अपने देश के नागरिकों के लिए सम्पन्नता और दुनिया में सम्मानजनक स्थान चाहिए . उसे अपने 140 करोड़ लोगों के लिए यूरोपीय देशों और अमेरिका  के नागरिकों के समान सुविधाएँ और संसाधन चाहिये. वह वैश्विक महाशक्ति बनना चाहता है . जिसके लिए वह प्रयासरत भी है . पिछले कुछ वर्षों में चीन एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरा है किन्तु उसे पता है कि केवल आर्थिक महाशक्ति बन कर वह यह सब हासिल नहीं कर सकता,उसे आर्थिक के साथ-साथ राजनीतिक महाशक्ति भी बनना होगा .

उसे वर्तमान महाशक्ति अमेरिका  से यह ताज हासिल करने के लिए सबसे पहले दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव को बढ़ाना पड़ेगा क्योंकि जिस देश का अपने पड़ोसियों में ही दबदबा न हो उसे दुनिया का सिरमौर कौन मानेगा .दक्षिण एशिया में भारत सबसे बड़ा देश है .सबसे पहले उसे दक्षिण एशिया में भारत के बढ़ते क़दमों को रोकना होगा . उसे विश्व में एक महाशक्ति बनना है तो उसे हर अड़ोसी-पडोसी देश ख़ास तौर पर भारत से बीस रहना ही पड़ेगा . भारत अन्य दक्षिण एशियाई देशों के साथ जितना घुलमिल कर रहेगा भारत का प्रभाव उतना ही बढेगा जो कि चीन के लिए एक राजनीतिक चुनौती पेश करेगा और चीन के महाशक्ति बनने के सपने में एक बड़ी अड़चन साबित होगा .
इसलिए अन्य दक्षिण एशियाई देशों से भारत को दूर करने के लिए एवं भारत के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए चीन ने नेपाल में माओवादिओं को बढ़ावा दिया और नेपाल को आर्थिक सहायता बढ़ाकर वहां कि राजनीति में अपना हस्तक्षेप बढाकर भारत के प्रभाव को कम कर दिया . इसी कड़ी में चीन ने परोक्ष रूप से पकिस्तान को दोस्ती के बहाने आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक मदद देना आरम्भ किया जिसका दुरूपयोग भारत के खिलाफ हो रहा है और अब एक कदम आगे बढ़कर एक तीर से दो निशाने साधते हुए चीन ने बिखरते हुए पाकिस्तान का खुलकर साथ देना प्रारंभ कर दिया है और पाकिस्तान में अमरीकी प्रभाव को भी कमज़ोर करना प्रारंभ कर दिया है . भारत के खिलाफ अपने इस अभियान में चीन ने श्रीलंका में भी अपने पैर जमाकर भारत को चारों ओर से घेरने की कोशिश की है .

लेकिन चीन दुविधा में भी है .वर्तमान महाशक्ति अमरीका के साथ G-8,नाटो देश एवं अन्य कई देश हैं,  जो समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे विश्व मंचों पर अमेरिका  के निर्णयों को सही ठहराने में और उन्हें लागू करवाने में अमेरिका कि सहायता करते है . चीन के साथ ऐसा कोई गुट नहीं है . महाशक्ति बनने के लिए उसे भी कुछ देशों का साथ चाहिए ताकि जब वह महाशक्ति बने तो उसके भी कुछ सहयोगी हों और वह भी अमरीका कि तरह अपने सभी फैसले दुनिया पर लागू करवा कर राज कर सके . इसलिए उसे G-5 और ब्रिक्स जैसे संगठनों में भारत कि भागीदारी भी चाहिए क्योंकि भारत को नज़रंदाज़ करके विश्व के विषय में कोई नीति बनाना किसी बेवकूफी से कम नहीं है . दूसरा भारत चीनी सामान का एक बहुत बड़ा खरीदार है चीन इतने बड़े बाज़ार को भी खोना नहीं चाहेगा.

इतना ही नहीं चीन को भारत की सैन्य  क्षमता का ज्ञान है.उसे पता है कि भारत के लिए अब 1962 वाला समय नहीं है, इसलिए वह भारत के खिलाफ प्रत्यक्ष युद्ध नहीं करना चाहेगा. चीन, भारत के खिलाफ एक राजनीतिक युद्ध में सीधा न उलझ कर,किसी न किसी बहाने भारत को उलझाकर रखना चाहता है  नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार में उसके हस्तक्षेप इसी योजना का एक अंग है,ताकि भारत इन्ही मुद्दों में उलझकर रह जाए और चीन निश्चिन्त होकर दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाते हुए अपने लक्ष्य कि और बढ़ सके है.  


पेशे से डॉक्टर और सामाजिक-राजनितिक विषयों पर लिखने में दिलचस्पी.