अनशन शुरू होने से पहले बाबा के उठाये मुद्दे जो चर्चा में आये हैं, उनपर गौर करें तो उनमें से कई मुद्दों पर वे सरकार की ज़बान बोल रहे हैं और असल टकराव अन्ना हजारे से दिखता है...
मुकुल सरल
पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का बाबा रामदेव से अनशन न करने का आग्रह और फिर चार-चार मंत्रियों का उन्हें दिल्ली एअरपोर्ट पर मनाने जाना, दर्शाता तो यही है कि बाबा से सरकार डर गयी है ? लेकिन यहाँ तो बाबा ही डरे हुए नजर आते हैं। तभी तो जंतर-मंतर पर सत्याग्रह के साथ रामलीला मैदान में अष्टांग योग शिविर भी रख लिया है, जो इस बात की गारंटी करे कि बाबा के सत्याग्रह-अनशन में समर्थकों की कमी न होने पाए।
पहले से तय है कि 4 जून से शुरू होने जा रहे योग शिविर में लोग बाबा के समर्थन में उपवास भी रखेंगे और सत्याग्रही के तौर पर बाबा के अनशन में जाएंगे। अब अगर अनशन शुरू होने से पहले बाबा के उठाये मुद्दे जो चर्चा में आये हैं, उनपर गौर करें तो उनमें से कई मुद्दों पर वे सरकार की ज़बान बोल रहे हैं और असल टकराव लोकपाल मसौदा समिति बनवाने में सफल रहे अन्ना हजारे से नजर आता है। प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने का मामला हो या मसौदे में भ्रष्टाचारियों को मृत्युदंड देने का प्रावधान शामिल कराने की मांग, अन्ना टीम के लोकपाल बिल के मसौदे के खिलाफ ही जाती है।
तभी तो रामलीला मैदान में अन्ना के नाम के पर्चे बांटना भी बाबा के समर्थकों को गंवारा नहीं हुआ। जब लड़ाई एक है और देशहित में है तो फिर खुद चैंपियन बनने की इतनी ललक क्यों? दरअसल अन्ना के आंदोलन से खुद को लगभग बाहर या उपेक्षित कर दिए जाने से तो बाबा पर लगभग बिजली ही टूटी। बाबा की राजनीति और राजनीतिक महत्वकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। बाबा को लगा कि अरे उनके मुद्दों को तो अन्ना ले उड़े और देश के हीरो हो गए। उन्हें कोई श्रेय नहीं, यहां तक कि कमेटी में भी जगह नहीं!
जानकार तो ये भी कहते हैं कि सरकार ने ही अन्ना के आंदोलन को हवा दी और बाबा को काट दिया। ऐन चुनाव के मौके पर भ्रष्टाचार के सारे मुद्दे को लोकपाल बिल के ड्राफ्ट तक सिमटा दिया और बेहतर परिणाम पाए। अन्ना से समझौते के अगले दिन से ही सरकार के मंत्रियों ने बयान देने शुरू कर दिए कि केवल लोकपाल से क्या होगा। फिर सीडी के साथ अमर सिंह को खड़ा कर दिया गया। इस बीच दूसरे खेल भी खेले गए और अब बाबा रामदेव को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि अन्ना और उनकी टीम को निपटाया जा सके। सरकार ये भी दिखा सके कि हम भ्रष्टाचार के खिलाफ कितना गंभीर हैं। और ये पूरी मुहिम ही आपसी लड़ाई, आरोप-प्रत्यारोप, बंटवारा, संशोधन इस सबमें फंसकर खटाई में पड़ जाए।
...सही भी है सरकार बाबा से क्या डरेगी..क्यों डरेगी? जानकार कहते हैं कि बाबा के इतिहास, वर्तमान, कारोबार और संपत्ति को लेकर सरकार के पास ऐसी कई गोट हैं जिनका वह बाबा के खिलाफ जब चाहे इस्तेमाल कर सकती है। सारे दांव-पेच और समीकरण तो यही बता रहे हैं कि बाबा रामदेव का सत्याग्रह भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आंदोलन को आगे बढ़ाने की बजाय उसे पंक्चर करने का ही काम करेगा। देखिए भविष्य में क्या होता है क्योंकि आज ही बाबा निहाल हो गए हैं कि चार-चार मंत्री उन्हें मनाने आए...इसके बात उन्होंने बयान दिया कि
"पहले दौर की बात सकारात्मक रही है. बातचीत आगे भी होगी. कुछ मुद्दों पर सहमति भी बनी है । "
अपना सुर बदलते हुए बाबा रामदेव ने किसी पार्टी या नेता का नाम लेकर आलोचना करने से मना कर दिया. उनका कहना है , " हमारी लड़ाई किसी पार्टी या व्यक्ति के ख़िलाफ़ नहीं है, जनहित में है। किसी की निंदा करना हमारा मकसद नहीं है." अब देखना है कि इस सबमें कितना जनहित है और कितना सरकार के साथ बाबा का हित।
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