सलाम सहेलियों
अजय प्रकाश
हजारों करोड़ रूपये की योजनाएं लागू करने वाली जो सरकारें बुंदेलखंड में भुखमरी से होने वाली मौतों और आत्महत्याओं के सिलसिले को नहीं रोक पायीं, उसका हल नीतू, गुड़िया और रीना नाम की तीन लड़कियों ने निकाल लिया। महोबा जिले के पहाड़िया गांव की रहने वाली हैं इन लड़कियों न सिर्फ अपने पिता को आत्महत्या करने की मानसिकता से उबारा, बल्कि दादरा नाच आयोजित कर जो अनाज इकट्ठा हुआ, उससे कई दलितों को भूखों मरने से भी बचाया।
नीतू सक्सेना, गुड़िया परिहार और रीना परिहार नाम की इन लड़कियों को साल भर पहले तक गांव के लोग भी ठीक से नहीं जानता थे। लेकिन अब क्षेत्र के लोग उनके प्रयास का गुणगान करने से नहीं थकते। नीतू सक्सेना और गुड़िया परिहार के घर आमने-सामने हैं और वह अच्छी सहेलियां हैं। रीना परिहार गुड़िया की छोटी बहन है। गुड़िया के पिता रामकुमार सिंह परिहार चार लाख के कर्ज में थे। बैंकों की धमकी से खौफजदा रामकुमार सिंह परिहार कई दिनों से खाना पीना छोड़ पड़े हुए थे। गुड़िया और रीना ने पिता को समझाने की हर कोषिष की, पर हल नहीं निकला। गुड़िया ने पिता की हालत सहेली नीतु सक्सेना को बतायी तो नीतु ने भी अपने पिता के बारे में कुछ ऐसा ही बयान किया।
कोई उपाय सूझता न देखकर लड़कियों ने तय किया कि क्यों न पूरे गांव की हालत देखी जाये, षायद कोई रास्ता मिले। जाने की षुरूआत कैसी हुई के बारे में ये नीतू सक्सेना कहती हैं, 'हमने पहले दलित बस्ती में जाने का तय किया। हमने सोचा कि जो लोग हमलोगों के खेतों-घरों में मजूरी कर जीते हैं उनकी हालत कितनी दयनीय होगी जब हमारे खेतों में कुछ पैदा नहीं हो रहा है, कुएं-नल सूखे पड़े हैं।' दूसरे लोगों की स्थिति देखकर इन लड़कियों को अपने परिवारों के दुख कमतर जान पड़े। नीतू बताती हैं कि 'मैंने दलित परिवारों में भूख से बिलबिलाते लोगों को देखा जिनके पास कई दिन से अनाज नहीं था।'
पहाड़िया गांव की तीन हजार की आबादी में लगभग आधी से अधिक आबादी दलित और पिछड़ी जाति के लोगों की है। गुड़िया कहती हैं, 'जीवन के इस नर्क को देख हमारी आत्मा रो पड़ी थी और अगले दिन हम कॉपी-कलम के साथ निकले। फिर हम लोगों ने गांव के कुओं, नलकूपों, कर्ज और कमाई का सर्वे किया तो पाया कि गांव लगभग एक करोड़ रूपये के सरकारी-गैर सरकारी कर्ज में डूबा हुआ है। 108 में से मात्र तीन कुएं बचे हुए हैं और पंद्रह नलों में से सिर्फ स्कूल का एक नल ही पानी दे रहा है।' रीना के षब्दों में कहें तो 'अब हमारे सामने पहली चुनौती थी, भूख से मरने वालों को बचाना। लेकिन इतना अन्न किसी के घर में नहीं था जो दानदाता बनता। इसलिए पारंपरिक दादरा नाच का आयोजन हर सोमवार को कराने की ठानी गयी जो आज भी चल रहा है।'
बुंदेलखंड में दादरा नाच परंपरा का हिस्सा रहा है जिसमें सिर्फ महिलाएं ही षिरकत करती हैं। जो भी महिलाएं भाग लेने आती हैं वे एक कटोरा अन्न लेकर आती हैं। पहाड़िया गांव में यह आयोजन षुरू हुआ तो इससे मिले अनाज को दलित बस्ती में बांटना षुरू किया गया जिससे भूखों मरने की हालत में जी रहे दलित परिवारों को राहत मिली। नीतू के पिता हंसते हुए कहते हैं कि 'ये काम और बेहतर तरीके से हो इसके लिए तो नीतू और गुड़िया ने सामाजिक कामों के लिए ही अपना पूरा जीवन लगाने की तैयारी कर ली है।'
दूसरी तरफ इन लड़कियों ने सोख्ता बनाकर गांव के चार नलों को ठीक कर दिया। इन प्रयासों की जब इलाके में चर्चा हुई तो रामकुमार सिंह परिहार का कुछ कर्ज बैंक ने माफ कर दिया और बाकी वे जमा कर चुके हैं। इस बीच स्थानीय प्रषासन ने भी गांव पर ध्यान देना षुरू कर दिया है। गुड़िया और रीना के पिता रामकुमार सिंह बताते हैं, 'मुझे लड़कियों ने जीवनदान दिया है और गांव को जीने का उत्साह।'
समाजषास्त्र में एमए कर चुकीं नीतू सक्सेना, आठवीं पास गुड़िया और ग्यारहवीं की पढ़ाई कर रही रीना की तैयारी है कि गांव में महिलाओं की बदहाली दूर करने के लिए काम करेंगी। नीतू का मानना है कि 'षहरों में जैसे वृध्दों के लिए आश्रमों की व्यवस्था होती है वैसी जरूरत आज देहातों में भी है। नौकरी की तलाष में ज्यादातर नौजवान बीवी-बच्चों को लेकर महानगरों में जा चुके हैं और बूढ़े मां-बाप किसी के भरोसे जी रहे हैं नहीं तो भीख मांगकर गुजारे के लिए अभिषप्त हैं।'