नेपाल के राजनीतिक हालात और एकीकृत नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी ) की भूमिका पर आयोजित यह बहस ऐसे समय में चल रही है जब वहां संविधान सभा के चुनाव का कार्यकाल 28 मई को खत्म होने जा रहा है. एक दशक के जनयुद्ध के बाद शांति प्रक्रिया में शामिल होकर नया जनपक्षधर संविधान बनाने का सपना लिए सत्ता में भागीदारी की माओवादी पार्टी, अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो सकी है.इसे लेकर पार्टी के भीतर और बाहर मत-मतान्तर हैं, नयी तैयारियां हैं. इसके मद्देनजर जनज्वार ने नौ लेख अब तक प्रकाशित किये हैं.
इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए एनेकपा (माओवादी) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोहन वैद्य किरण से अजय प्रकाश ने साक्षात्कार किया है , पेश है मुख्य अंश ...
संविधान सभा का कार्यकाल 28 मई खत्म हो रहा है, पार्टी की अगली रणनीति क्या होगी ?
वैसे तो हमारी रणनीति पहले से ही निर्धारित है। फिर भी 28 मई तक की स्थिति देख लें, तब आगे की रणनीति तय की जायेगी ।
बाबुराम, प्रचण्ड और आपकी लाइन में असल फर्क क्या है? आपको क्यों लगता है कि आपकी बात मौजुदा नेपाली और विश्व राजनीतिक परिस्थिति में सही है ?
लाइन के बीच हमारे मतभेद क्या क्या हैं, सामान्य रूप से दस्तावेज सार्वजनिक हो चुके हैं और इस अर्थ में आप भी हमारे बीच के लाइन सम्बन्धी मतभेद से परिचित रहे होगें । विशेष रूप में बात यह है कि हम तीनों एक ही पार्टी में हैं, इसलिए इस बारे में मूर्त रूप से बताना उपयुक्त नहीं होगा । फिर भी मैं इतना कह सकता हूँ कि जनगणतन्त्र, राष्ट्रीय स्वाधीनता और जनविद्रोह की जो बात मैंने उठायी है, वह वर्तमान राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिवेश में बिलकुल सही और वैज्ञानिक हैं ।
आपकी निगाह में नेतृत्वका आपसी मतभेद इतना गहरा चुका है की पार्टी टुट सकती है, अगर नहीं तो वह कौन से बिंदु होंगें जिन पर सहमति बनाते हुए आगे बढा जा सकता है ?
मतभेद तो बहुत गहरे हैं, लेकिन मैं यह नहीं कह सकता हूँ कि पार्टी अभी टुटेगी । आगे हमारी सहमति या एकता का आधार देश और जनता के पक्ष में शान्ति व संविधान, जनगणतन्त्र और राष्ट्रीय स्वाधीनता को लेकर संघर्ष करना ही है ।
पिछले पांच वर्षो में नेपाली माओवादी पार्टी जहाँ पहुंची है, उसमें आप बराबर के भागीदार हैं. आपलोग यही हासिल होना है,सोचकर आगे बढे थे या कहीं चूक गए ?
इस अवधि में मेरी तरफ से भी कुछ कमजोरियां रही हैं, फिर भी मैं समान रूप से पार्टी को यहाँ पहुँचाने में भागीदार नहीं हूँ. कार्यदिशा के क्षेत्र जो गलती, कमी और कमजोरियां हुई हैं, इन सबको करेक्शन करने और उनसे मुक्त होने के लिए हम लोंगों ने पार्टी में अलग राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया, पार्टी के अन्दर भिन्न मत दर्ज किये और स्पष्ट रूप से जनगणतन्त्र, राष्ट्रीय स्वाधीनता और जनविद्रोह की लाइन पर डटे रहे ।
कार्यकर्ता निराश हैं, पीएलए अब उस रूप में बची नही , संगठन में फुट है, वैसे में जनयुद्ध में वापस लौट जाने या शान्ति प्रक्रिया में बने रहने के अलावा कोई तीसरा विकल्प भी हैं ?
स्थिति निश्चय ही जटिल हैं । विकल्प बहुत से हैं, इनमें से हम क्रान्तिकारी विकल्प के पक्ष में हैं । हमलोग सुधारवाद,संसदवाद, राष्ट्रीय आत्मसपर्णवाद और दक्षिणपन्थी संशोधनवाद के दलदल नही फसेंगे । हम क्रान्ति का झण्डा हमेशा ऊंचा उठाते रहेंगे ।
भारतीय शासक वर्ग को लेकर जो आलोचनात्मक रणनीति नेपाली माओवादी पार्टी को रखनी चाहिए थी, उसमें कहीं चूक हुई?
बदली हुई परिस्थिति को ध्यान में रखकर हम लोगों ने राष्ट्रीय स्वाधीनता और जनगणतन्त्र दोनों मुद्दों को प्राथमिक स्थान में रखा और उसी आधार पर आज का प्रधान अन्तर्विरोध निर्धारण किया गया । परन्तु, इस कार्य दिशा को कार्यान्वन करनेमें हम लोग कमजोर पडें हैं । यहाँ पर अवश्य चूक हुई है.
नेपाल में दो बार माओवादी सरकार में रहे लेकिन आप एक बार भी सरकार में शामिल नहीं हुए, ऐसा क्यों ?
मैं संविधान सभा के सदस्य पद से इस्तीफा दे चुका हूँ. इस तरह की सरकार में बने रहने में मेरी कोई रुचि भी नहीं है ।
सत्ता में रहते हुए प्रचण्ड और वाद में बाबुराम दिल्ली आये, कभी आपका नहीं हुआ, यह भी पार्टी की कोई रणनीति थी या आपका फैसला?
यह संयोग की बात है.
नेपाली माओवादी नेतृत्व खासकर प्रचण्ड पर आर्थिक भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं, कितनी सच्चाई है ?
हमको पता नहीं ।
नेपाली माओवादी पार्टी से सहानुभूति रखने वाले भारतीय पत्रकार आनन्द स्वरुप वर्मा ने नेपाल की क्रांति को लेकर अपने हालिया लेख में जो टिप्पणी की है, उसपर आपकी राय ?
मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि आनन्द स्वरुप वर्मा हमारे पार्टी के दो लाइन के संघर्ष बारे में और नेपाल की राजनीति के बारे में इस तरह पेश आयेंगें । कुछ भी हो वर्मा जी ने 'क्या माओवादी क्रांति की उलटी गिनती शुरू हो गयी ' लेख में जो लिखा है, उससे अपनी गरिमा को स्वयं ही बहुत धूमिल बना दिया।
आपकी पार्टी को लेकर भारतीय माओवादीयों की क्या आलोचना हैं, आप उनकी आलोचना को कितना सही मानते हैं ?
उनलोगों की हमारे ऊपर सामान्यत: यह आलोचना है कि हम दक्षिणपन्थी संशोधनवादी दलदल में फंस रहें हैं । हमको लगता है कि उनकी आलोचना सकारात्मक है ।
नेपाल के राजनीतिक हालात और नेपाली माओवादी पार्टी की भूमिका को लेकर आयोजित इस बहस में अबतक आपने पढ़ा -
1-क्या माओवादी क्रांति की उल्टी गिनती शुरू हो गयी है? 2-क्रांतिकारी लफ्फाजी या अवसरवादी राजनीति 3- दो नावों पर सवार हैं प्रचंड 4- 'प्रचंड' आत्मसमर्पणवाद के बीच उभरती एक धुंधली 'किरण'5- प्रचंड मुग्धता नहीं, शीर्ष को बचाने की कोशिश 6- संक्रमण काल की जलेबी अब सड़ने लगी है कामरेड7- संशोधनवादियों को जनयुद्ध का ब्याज मत खाने दो ! 8- संसदीय दलदल में धंसती नेपाली क्रांति 9- संविधान निर्माण ही प्राथमिक