Nov 13, 2009

संस्कृतिकर्मियों ने मांगा शशि भूषण की मौत का हिसाब

शशि भूषण  प्रगतिशील मुल्यों के एक सजग युवा संस्कृतिकर्मी थे जो सामंती-साम्राज्यवादी अपसंस्कृति के खिलाफ जनसंस्कृति के लिए प्रतिबद्धता के साथ रंगमंच पर आजीवन डटे रहे.......



राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रथम वर्ष के छात्र शशि भूषण  हमारे बीच नहीं रहे। उनकी मौत 4नवंबर को नोएडा के नोएडा मेडिकेयर सेंटर (एनएमसी) अस्पताल में डेंगू के कारण हो गयी थी। उनकी याद में दोस्तों-शुभचिंतकों की ओर से 12 नवंबर की शाम  चार बजे ललित कला अकादमी के कौस्तुभ सभागार में एक शोकसभा का आयोजन किया गया था। शशि आज रंगमंच और दोस्तों के बीच नहीं हैं। फिर भी उनकी जीवंतता और कम समय में रंगमंच में व्यापक शाख गदगद कर देने वाली है।

शोकसभा में शशि भूषण से जुड़े संस्कृतिकर्मियों और पत्रकारों ने बड़ी हिस्सेदारी की। हिंदी आलोचक सुधीर सुमन ने कहा कि ‘शशिभूषण नहीं रहा, इसका मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है। बहुत समय बाद दिल्ली के श्रीराम सेंटर के पास एक दिन मुझे अचानक मिला था। एनएसडी के पूर्व छात्र विजय कुमार के साथ 1999में ‘रेणु के रंग’लेकर पूरे देश के भ्रमण पर निकला था,तबसे उससे कभी-कभार ही मुलाकात हो पाती थी। इस बीच वह उषा गांगुली की टीम में एक साल रहा, गोवा नाट्य अकादमी से डिप्लोमा कोर्स किया। संजय सहाय के रेनेसां के लिए वर्कशाप किए। बंबई में रहा और वहां भी सेंटजेवियर के छात्रों के लिए वर्कशॉप करता था। बंबई के रास्ते ही वह एनएसडी में पहुंचा था। शशि द्वारा किए गए नाटकों को उसको जानने वाले याद कर रहे हैं। किसी को हाल ही में मिर्जा हादी रुस्वा के उमरावजान अदा के उसके निर्देशन की याद आ रही है तो किसी को बाकी इतिहास और वेटिंग फॉर गोदो में उसके अभिनय की। कोई रेणु की प्रसिद्ध कहानी रसप्रिया में उसकी अविस्मरणीय भूमिका को याद कर रहा है तो कोई हजार चैरासीवें की मां और महाभोज में निभाए गए उसके चरित्रों को।’

कौस्तुभ सभागार ऐसे दर्जनों सस्कृतिकर्मी और उनके सहपाठी-सहकर्मी मौजूद थे जिनके पास षषि से जुड़ी ढेरों यादें थीं,संस्मरण थे। दोस्तों से ही पता चला कि शशि भूषण ने बचपन में ही पटना से रंगकर्म की शुरुआत की थी। अपने उम्र के तीसवें साल में दस्तक दे रहे शशि का रंगमंचीय कॅरिअर 22 साल का रहा। उन्होंने निर्देशक, अभिनेता और थियेटर म्यूजिक के क्षेत्र में जमकर काम किया और वह देशभर में इसके लिए जाने जाते हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय आने के पहले उन्होंने बंगाल में उषा गांगुली के साथ एक वर्ष तक काम किया और उन्होंने गोवा नाट्य एकेडमी से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया था।

वामपंथी सांस्कृतिक संगठन ‘हिरावल’ के साथ रंगमंच के समाज में प्रवेश करने वाले शशि जन संस्कृति की मशाल थामे रहे। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्राध्यापक सुरेश शेट्टी ने उसकी मौत को सदमा बताते हुए कहा कि इस मामले में अस्पताल की लापरवाही साफ नजर आती है। लापरवाही की जांच के लिए राश्ट्रीय नाट्य विद्यालय (रानावि) ने एक कमिटी गठित की है। कमेटी में रानावि के छात्र, कर्मचारी, प्राध्यापक और डाक्टर शामिल हैं। शशि के साथ पिछले पंद्रह वर्षों से जुड़कर काम करने वाले रानावि स्नातक विजय कुमार ने कहा कि अगर स्कूल मामले को सही तरीके से नहीं उठाता है तो वह रानावि की डिग्री भी ठुकराने से नहीं हिचकेंगे। उन्होंने नोएडा मेडिकेयर सेंटर (एनएमसी) हास्पीटल के बारे में कहा कि जो अस्पताल किडनी रैकेट और दूसरे कई संगीन आरोपों में फंसा है उनसे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का संपर्क क्यूं है, यह समझ से परे है। उन्होंने कहा की सारी बातें साफ होनी चाहिए नहीं तो कल रानावि के किसी और छात्र की भी जान जा सकती है।

शोकसभा में शशि से जुड़े कई लोगों ने उनके परिवार वालों को न्याय दिलाने का भरोसा दिलाया। शोकसभा का संचालन मृत्युंजय प्रभाकर ने किया।