May 1, 2017

जाटों ने किया दलित बस्ती पर हमला, किसी हाथ का तोड़ा तो किसी का पैर

दलितों पर हमले  के लिए चर्चित हरियाणा फिर  एक बार सुर्ख़ियों में है. लाठी—डंडों और धारदार हथियारों से लैस 100 से ज्यादा जाट हमलावर दलितों पर टूट पड़, महिलाओं,  ल​ड़कियों के साथ की बदसलूकी।

बालू गांव  से लौटकर राजेश कापड़ो
हरियाणा के जिला कैथल के गांव बालू में मई दिवस की सुबह गुस्साए जाटों ने बाल्मीकि बस्ती पर हमला कर दिया। लाठी, डंडों व तेजधार हथियारों से लैश 100 से ज्यादा हमलावर दलित बस्ती पर टूट पड़े और बस्ती के बाहर खड़े दलित युवकों को ताबड़तोड़ पीटना शुरू कर दिया। घरों के दरवाजे तोड़ डाले, जमकर पथराव किया और म​हिलाओं—लड़कियों के साथ बदसलूकी की।

हमलावर गाड़ी ही ईंट—पत्थर डालकर लाए थे। इस हमले में दर्जनभर से ज्यादा दलित युवकों को चोट लगी है। दलितों के 20-25 घरों में तोड़फोड़ की गई है। मकानों के दरवाजे तोड़ डाले। घरों से निकाल—निकालकर दलितों को पीटा गया। हमलावर एक मोटरसाईकिल भी उठा कर ले गए। 

चार-पांच दलित युवकों को कलायत सरकारी अस्पताल में स्थानीय पुलिस ने भर्ती करवाया था, जिन्हें बाद में हालत गम्भीर होने के कारण कैथल शहर के अस्पताल में रैफर कर दिया गया। हमले में घायल संजीव व संदीप दोनों का इलाज फिलहाल यहीं चल रहा है। गांव में दहशत का वातावरण व्याप्त है। लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे। कैथल में दाखिल घायलों ने बताया कि कई घायल लोग अभी भी गांव में ही हैं जो डर के मारे नहीं आ पा रहे। उन्हें भी डाक्टरी सहायता की आवश्यकता है।

क्या कहते हैं घायल

घायलों ने बताया कि हमला सुबह आठ बजे ही हो गया था, लेकिन पुलिस साढे नौ बजे गांव में पहुंची और फिर भी हमलावरों की तरफ ही बैठी रही। बड़ी मुश्किल से चार-पांच घायलों को अस्पताल में दाखिल करवाया और अभी तक कोई मुकदमा पुलिस ने दर्ज नहीं किया । एस एच ओ कलायत  से जब यह पूछा कि इस वारदात में अब तक कितने हमलावरों को गिरफ्तार किया गया है तो उनका जवाब था कि अभी तक इस घटना के संबंध में उनके पास कोई शिकायत नहीं आई है इसलिए कोई केस अभी तक दर्ज नहीं किया गया है। जबकि पूरे घटनाक्रम की जानकारी पुलिस को सुबह से ही है ।

पुलिस खुद घायलों को उठाकर अस्पताल लाई थी। जिला पुलिस कप्तान के रीडर के अनुसार एक डीएसपी रैंक का अधिकारी भारी पुलिस बल के साथ गांव में डटा हुआ है। रात नौ बजे तक भी कोई पुलिस अधिकारी घायलों के ब्यान दर्ज करने कैथल के सरकारी अस्पताल नहीं पहुंचा था।

यह जानना महत्वपूर्ण है कि तीन महीने पहले भी दलित समाज के युवकों ने एससी/एसटी आयोग को एक लिखित शिकायत दी थी कि जाट जाति के कुछ बदमाश किस्म के लोग दलित बस्ती में आकर रौब जमाते है और दलित महिलाओं पर बूरी नियत रखते हैं । यह शिकायत पुलिस थाना कलायत ने यह कह कर वापस करवा दी कि तकनीकी आधार पर यह एक कमजोर शिकायत है । दलितों ने पुलिस के दबाव में उक्त शिकायत वापस ले ली ।

डीएसपी से मिले दलित,  सरपंच सहित 90 से ज्यादा के खिलाफ एफआई दर्ज
आज सुबह ही गांव बालू के 50 से ज्यादा दलित समाज के बुजुर्ग व नौजवान जिला मुख्यालय पर आए । 1 मई को हुई दलित उत्पीड़न की घटना में जिला पुलिस ने आज सुबह तक कोई गिरफ्रतारी नहीं की थी । दलित समाज के लोगों ने डीएसपी सतीश गौतम से मिल कर अपनी समस्या बताई । डीएसपी ने बताया कि 90 से ज्यादा लोगों के खिलाफ एस सी/एस टी अधिनियम तथा 148/149 आईपीसी आदि धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है । यह डीएसपी इस मुकदमें का जांच अधिकारी भी हैं । घायलों के बयान पुलिस ने लिख लिए है । घायल संजीव और संदीप के एक्स-रे आज सुबह ही हो पाए हैं । इनको लगी चोटों पर डाक्टरों की राय अभी नही आई है ।

सरपंच की फर्जी डिग्री से उठा विवाद
हाल ही में दो दलित युवकों संजीव व मोहन लाल ने वर्तमान सरपंच के खिलाफ एक लिखित शिकायत सीएम विन्डो के माध्यम से मुख्यमंत्री कार्यालय को दी जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि ग्राम सरपंच रमेश कुमार का दसवीं का प्रमाण-पत्र फर्जी है । इसकी जांच का जिम्मा जिला शिक्षा अधिकारी कैथल को सौंपा गया। जांच अभी चल रही है । 27 अप्रैल के पंजाब केसरी के स्थानीय संस्करण में इसी शिकायत के संबंध में एक समाचार छपा जिसमें सरपंच के दसवीं के प्रमाण-पत्र पर उंगली उठाई गई थी । दलित युवकों की यह हिम्मत जाट सरपंच बरदाश्त नही कर सका । इसलिए अल सुबह लाठी,डंडों व तेजधार हथियारों से लैश उन्मादी बदमासों को लेकर दलित बस्ती पर टूट पड़ा । दो गंभीर रूप से घायलों में एक शिकायत कर्ता संजीव है जिसकी दोनों बाजूओं की हड्डियां तोड़ डाली गई है । घायलों ने बताया कि हमलावर उसको मरा हुआ समझकर छोड़ कर गए हैं ।

गांव में अभी भी दहशत का माहौल
कई दलित परिवार गांव छोड़कर सुरक्षित जगहों पर चले गए हैं । दलित समुदाय के रमेश, हरिकेश पुत्र महाली तथा रामपाल पुत्र धूला राम का परिवार कल हुए हमले से भयभीत होकर गांव छोड़कर चले गए हैं । कल हुए हमले में हुए नुकसान की जानकारी भी दलित संमाज के लोगों ने दी । एक युवक नरेश ने बताया कि हमलावरों कुर्सी, मेज, दरवाजे, खिड़कियां सब कुछ तहस नहस कर दिया । रमेश पुत्र महालि राम के चौबारे की खिड़की उखाड़ दी । बलराज के घर का लोहे का मेन गेट तोड़ दिया । 6-7 साईकिल भी तोड़ डाले । बालू गांव की इस बस्ती के ज्यादातर बाल्मीकि दलित साईकिलों पर पंजाब में फेरी लगा कर बाल खरीदते हैं । इस कार्य में साईकिल की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है,  इसलिए सोच समझ कर साईकिलों को निशाना बनाया गया।

जो यूनियन मजदूर विरोधी उसी की सदस्यता सबसे ज्यादा

देश की सबसे ज्यादा सदस्य संख्या वाली वह ट्रेड यूनियन है जो लगातार मजदूर हकों के खत्म होते का दशकों से तमाशा देखती रही है। 

कृपा शंकर, आंदोलनकारी 

अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर सभी मजदूरों को मुबारकवाद।

आज हम मई दिवस को एक परम्परा की तरह मनाते हैं। परन्तु आज विश्वपरिस्थिति कैसी है? 

मजदूर वर्ग के लिए कार्ल मार्क्स ने नारा दिया था, 'दुनिया के मेहनतकशो एक हो। तुम्हारे पास खोने के लिए बेड़ी के अलावे कुछ नहीं है और पाने को पूरी दुनिया है।'



परन्तु आज हम क्या पाते हैं, मार्क्स के नारे को किस रूप में अमल होते देखते हैं?  

दुनियाभर के पूँजीपति इस फिराक में जुटे हैं कि पूंजी​पतियों एक हो। लूटने के लिए पूरी दुनिया को एक करो। मेहनतकशों को लड़ाओ और मेहनत कर दो जून की रोटी खाने वालों में अंधराष्ट्रवाद फैलाओ।

धनपशु जानते हैं कि मेहनतकशों की एकता और उनके जीवन की बुनियादी जरूरतों की हकबंदी से ही पूंजीपतियों की लूट का रास्ता बंद होता है। 

ऐसे हमें यह गंभीरता से सोचना चाहिए कि वह कौन सी परिस्थितियां हैं जिनकी वजह से मजदूर तेजी से प्रतिक्रियावादी यूनियनों में शामिल हो रहे हैं। हालांकि ये हालात अकेले भारत के नहीं हैं। दुनिया में हर कहीं ऐसी ताकतों के पीछे मजदूर और किसान गोलबंद हो रहे हैं जो स्वयं उनकी विरोधी हैं, जो मजदूर और किसान हकों को दीमक की तरह चट कर रही हैं। 

भारत में सबसे प्रतिक्रियावादी, नग्न पूँजीवाद की पोषक, अमरीकी पूँजीवाद की चाकरी के लिये लालायित, हिन्दू ब्राह्मणिक सामंतवाद की पैरोकार आरएसएस और भाजपा के नेतृत्व वाली ट्रेड यूनियन 'भारतीय मजदूर संघ' की सदस्य संख्या सबसे ज्यादा है। 

भारतीय मजदूर संघ जैसी ट्रेड यूनियनें मेहनतकशों के ऊपर दमन बढ़ने पर कुछ कवायदें कर चुप्पी मार जाती हैं। उनकी ही सरकारें मजदूर विरोधी नीतियां ला रही हैं और वह तमाशा देख रही हैं। ये ट्रेन यूनियनें खुलेतौर पर पूँजीवाद का हित पोषण कर रही हैं, मेहनतकशों को आपस मे बांटकर लड़ा रही है, जनता में युद्धोउन्माद फैला रही हैं, फिर भी मेहनतकश इनकी ही शरण में मुक्ति का रास्ता तलाश रहा है, आखिर ऐसा क्यों है?

आज मेहनतकशों की एकता को शोषक वर्ग तोड़ने में सफल क्यों हो रहा है? 

जाहिर है हमारी फूट, हमारा बिखराव और हमारा हो असंगगित हो संघर्षों की अगुवाई करना पूंजीपतियों की ताकत बनता जा रहा है। इसलिए मई दिवस पर हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि अपने बीच के भेदों को मित्रवत हल करते हुए शासकवर्ग के अंधराष्ट्रवादी बटवारे में नहीं फंसना है। ब्राह्मणवादी जातिभेद से पीड़ित सभी तबकों,  अल्पसंख्यकों, मजदूर किसान वर्गों, महिलाओं और बुद्धिजीवी समुदायों की एकता पर बल देना है। 
नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।