देश की सबसे ज्यादा सदस्य संख्या वाली वह ट्रेड यूनियन है जो लगातार मजदूर हकों के खत्म होते का दशकों से तमाशा देखती रही है।
कृपा शंकर, आंदोलनकारी
अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर सभी मजदूरों को मुबारकवाद।
आज हम मई दिवस को एक परम्परा की तरह मनाते हैं। परन्तु आज विश्वपरिस्थिति कैसी है?
मजदूर वर्ग के लिए कार्ल मार्क्स ने नारा दिया था, 'दुनिया के मेहनतकशो एक हो। तुम्हारे पास खोने के लिए बेड़ी के अलावे कुछ नहीं है और पाने को पूरी दुनिया है।'
परन्तु आज हम क्या पाते हैं, मार्क्स के नारे को किस रूप में अमल होते देखते हैं?
दुनियाभर के पूँजीपति इस फिराक में जुटे हैं कि पूंजीपतियों एक हो। लूटने के लिए पूरी दुनिया को एक करो। मेहनतकशों को लड़ाओ और मेहनत कर दो जून की रोटी खाने वालों में अंधराष्ट्रवाद फैलाओ।
धनपशु जानते हैं कि मेहनतकशों की एकता और उनके जीवन की बुनियादी जरूरतों की हकबंदी से ही पूंजीपतियों की लूट का रास्ता बंद होता है।
ऐसे हमें यह गंभीरता से सोचना चाहिए कि वह कौन सी परिस्थितियां हैं जिनकी वजह से मजदूर तेजी से प्रतिक्रियावादी यूनियनों में शामिल हो रहे हैं। हालांकि ये हालात अकेले भारत के नहीं हैं। दुनिया में हर कहीं ऐसी ताकतों के पीछे मजदूर और किसान गोलबंद हो रहे हैं जो स्वयं उनकी विरोधी हैं, जो मजदूर और किसान हकों को दीमक की तरह चट कर रही हैं।
भारत में सबसे प्रतिक्रियावादी, नग्न पूँजीवाद की पोषक, अमरीकी पूँजीवाद की चाकरी के लिये लालायित, हिन्दू ब्राह्मणिक सामंतवाद की पैरोकार आरएसएस और भाजपा के नेतृत्व वाली ट्रेड यूनियन 'भारतीय मजदूर संघ' की सदस्य संख्या सबसे ज्यादा है।
भारतीय मजदूर संघ जैसी ट्रेड यूनियनें मेहनतकशों के ऊपर दमन बढ़ने पर कुछ कवायदें कर चुप्पी मार जाती हैं। उनकी ही सरकारें मजदूर विरोधी नीतियां ला रही हैं और वह तमाशा देख रही हैं। ये ट्रेन यूनियनें खुलेतौर पर पूँजीवाद का हित पोषण कर रही हैं, मेहनतकशों को आपस मे बांटकर लड़ा रही है, जनता में युद्धोउन्माद फैला रही हैं, फिर भी मेहनतकश इनकी ही शरण में मुक्ति का रास्ता तलाश रहा है, आखिर ऐसा क्यों है?
आज मेहनतकशों की एकता को शोषक वर्ग तोड़ने में सफल क्यों हो रहा है?
जाहिर है हमारी फूट, हमारा बिखराव और हमारा हो असंगगित हो संघर्षों की अगुवाई करना पूंजीपतियों की ताकत बनता जा रहा है। इसलिए मई दिवस पर हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि अपने बीच के भेदों को मित्रवत हल करते हुए शासकवर्ग के अंधराष्ट्रवादी बटवारे में नहीं फंसना है। ब्राह्मणवादी जातिभेद से पीड़ित सभी तबकों, अल्पसंख्यकों, मजदूर किसान वर्गों, महिलाओं और बुद्धिजीवी समुदायों की एकता पर बल देना है।
नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।
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