Jul 18, 2011

यूपी का पत्रकार मतलब डिक्टेशन ब्वाय

हद तो यहां तक है कि मुख्यमंत्री मायावती की प्रेस कांफ्रेस का पूर्वाभ्यास किया जाता है और माननीया से पूर्व निर्धारित और रटाए गये प्रश्न ही पूछे जाते हैं। प्रेस कांफ्रेस में बड़े से बड़ा पत्रकार अपनी मर्जी से सवाल पूछने की हिमातक नहीं करता...

आशीष वशिष्ठ

बात 25अक्टूबर 1996की है। बसपा के संस्थापक कांशीराम के दिल्ली स्थित आवास के बाहर मीडिया का जमावड़ा था। असल में देशभर का मीडिया कांशीराम से यूपी में त्रिषंकु विधानसभा चुने जाने पर बसपा की भावी योजना और तमाम दूसरे सवालों के जवाब जानने के लिए जमा हुआ था। लेकिन पत्रकारों के प्रश्नों से झुंझलाए और तमतमाए कांशीराम और उनके सर्मथकों और सुरक्षाकर्मियों ने पत्रकारों पर हमला बोल दिया। इस हमले में आज तक चैनल के पत्रकार आशुतोष गुप्ता और बीआई टीवी के पत्रकार इसार अहमद को छाती पर गहरी चोटें आई और उन्हें अस्पताल भर्ती कराना पड़ा। मौजूदा समय में भी उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता के कुछ ऐसे ही हालात दिखने लगे हैं.


डिक्टेशन पर उठा सवाल तो लो मैं उठ गयी


हालिया घटना में राजधानी लखनऊ से प्रकाशित हिन्दी दैनिक डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट के चेयरमैन प्रो० निशीथ राय के साथ घटी है। प्रो.राय के इलाहाबाद स्थित पैतृक निवास में सरकार के इशारे पर कई थानो की पुलिस ये कहकर कि उनके घर में धड़धड़ाते हुये घुसी कि उनके घर में अपराधी छिपे होने की खबर है। यूपी पुलिस को वहां कोई अपराधी नहीं मिला। गौरतलब है कि इस घर में प्रो. राय की वृद्व माताजी रहती हैं। प्रो0राय जनहित से जुड़े मुद्दों और मसलों पर पूरी ईमानदारी और सच्चाई से अपनी आवाज मुखर करते हैं।

असल में मायावती अपनी बुराई और आलोचना सुनने की क्षमता ही खो चुकी है। इसीलिए उनके षासन में प्रेस पर हमले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं और मायावती पार्टी जनों और नौकरशाहों के आचरण और व्यवहार को बदलने की कोशिश करने के स्थान पर अपने विरोध में उठने वाली हर एक आवाज को डंडे के डर से चुप कराने के अलोकतांत्रिक तरीके का प्रयोग खुलकर कर रही हैं। जेल में बंद डा0 सचान की हत्या से जुड़े खुलासे प्रेस ने करने शुरू किये तो मायावती सरकार पूरी तरह से बौखला गई।

प्रेस के खुलासों और खोज से डा0सचान की आत्महत्या वाली थ्योरी झूठी साबित होने लगी तो सरकार के इशारे पर एएसपी और सीओ स्तर के अधिकारी ने आईबीएन 7चैनल के पत्रकार शलभमणि त्रिपाठी और मनोज राजन त्रिपाठी से दुर्व्यवहार और मारपीट की। मनोज तो किसी तरह से पुलिस की चंगुल से भाग निकले पर शलभ को पुलिस अधिकारी हजरतगंज थाने में ले आये और अपने मातहतों को उन्हें पीटने और झूठे आरोपों में बंद करने का हुक्म दिया। लेकिन पत्रकार बिरादरी के मुखर विरोध और प्रदर्शन से घबराई पुलिस ने शलभ को छोड़ दिया और मजबूरन सरकार को आरोपी पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर मुकदमा दर्ज करना पड़ा।

यूपी में पत्रकारिता दिनों-दिन जोखिम का काम साबित हो रहा है। 2007में बसपा सरकार बनने के बाद से ही प्रदेश में गिने-चुने चम्मच पत्रकारों को छोड़ अधिकतर पत्रकारों को सरकारी मकान से बेदखल करने और मान्यता समाप्त करने कार्यवाही चल री है। प्रदेश से छपने वाले बड़े-बड़े बैनर के अखबार सरकार की चम्मचागिरी और चरणवंदना में लगे हैं। चंद चंपू टाइप चाटुकार पत्रकारों के अलावा बसपा सरकार का मीडिया से मधुर संबंध नहीं है। हद तो यहां तक है कि सीएम की प्रेस कांफ्रेस का पूर्वाभ्यास किया जाता है और माननीया मुख्यमंत्री पूर्व निर्धारित और रटाए गये प्रष्न पूछे जाते है। प्रेस कांफ्रेस में बड़े से बड़ा पत्रकार हिमाकत करके अपनी मर्जी से सवाल पूछने का आजाद नहीं है।

एक तरह से मायावती पत्रकारों को जो डिक्टेट करती हैं और पत्रकार बंधु सुनते,समझते और छापते हैं। असल में मायावती हर काम को डंडे के जोर पर कराने की आदी है। ऐसे में वो प्रेस को अपने मनमुताबिक चलाना और हांकना चाहती है,और जो कलम या आवाज सच को जनता के सामने लाने का साहस करती है उसको प्रो0राय और शलभ की तरह सरकारी गुस्से का शिकार होना पड़ता है।

आंकड़ों का खंगाला जाय तो पूरे देश में ही पत्रकारों पर हमलों का आंकड़ा दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। जेडे हत्याकाण्ड ने पूरे देश और पत्रकार बिरादरी को हिला कर रख दिया था। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो साल 2008 से लेकर जून 2011 तक देश में लगभग 181 पत्रकारों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। दिसंबर 2010 में छत्तीसगढ़ में दैनिक भास्कर के पत्रकार सुशील पाठक और जनवरी 2011 में नई दुनिया के पत्रकार उमे राजपूत, जुलाई 2010 में इलाहाबाद में इण्डियन एक्सप्रेस के पत्रकार विजय प्रताप सिंह, जुलाई 2010 में ही स्वतंत्र पत्रकार हेम चंद्र पाण्डेय की आंध्र प्रदेश में हुयी हत्याओं ने पूरे देश को यह सोचने को विवश कर दिया था कि क्या वास्तव में हम लोकतांत्रिक व्यवस्था और देश का हिस्सा हैं।

प्रदेश में पत्रकारों का बोलना तो मायावती को अखर ही रहा है वहीं सरकार के विरोध में उठने वाले स्वर को दबाने के लिए सरकार ने सूबे में धरना,प्रदर्शन और आंदोलन की नियमावली बनाकर आम आदमी की आवाज को दबाने का कुत्सित प्रयास किया है। आज प्रदेश में सत्ताधारी दल के कई नेता अपना अखबार और पत्रिकाएं और चैनल चला रहे हैं।

राजधानी में पिछले दिनों शुरू हुये एक हिन्दी दैनिक को भी सत्ताधारी दल से जुड़ा बताया जा रहा है। सत्ताधारी दल से जुड़े अनेक प्रकाशन सरकारी विज्ञापनों के जरिये हर माह लाखो-करोड़ो की कमाई कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि सूबे में नयी-नवेली पत्र पत्रिकाओं की बाढ़ पिछले चार साल में आई है,लेकिन इन सब के बीच में पत्रकारिता कहीं खो या दब चुकी है।



स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक- सामाजिक मसलों के टिप्पणीकार.




 

 

आतंक की राजनीति की जद में फिर आया आजमगढ़


मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL)ने 13जुलाई को हुए मुंबई बम धमाकों की जांच पर मुंबई आतंकवाद निरोधी दस्ते के प्रमुख राकेश मारिया और उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक बृजलाल के अंर्तविरोधी बयानों पर सवाल उठाया है। पीयूसीएल ने के प्रदेश संगठन सचिव शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि एक तरफ राकेश मारिया कह रहे हैं कि मुंबई एटीएस उत्तर प्रदेश भेजी जा चुकी है,वहीं बृजलाल कह रहे हैं कि मुंबई एटीएस नहीं आई है।


2007 धमाकों के आरोपी  का घर : ना जाने और कितने


 पीयूसीएल के मुताबिक अगर बृजलाल कहते हैं कि मुंबई एटीएस की कोई टीम यूपी नहीं आई है और मुंबई धमाकों का यूपी कनेक्सन नहीं मिला है,तब उन्हें मुंबई आतंकवाद निरोधी दस्ते के प्रमुख मारिया द्वारा लगातार आ रहे बयानों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। क्योंकि मुंबई एटीएस के यूपी आने और उसके द्वारा युवकों से पूछताछ और उठाने की खबर लगातार छापी जा रही है और इन खबरों का आधार मुंबई एटीएस और यूपी पुलिस और खूफिया विभाग हैं।

इसके साथ पीयूसीएल ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि वो तत्काल कथित पुलिसिया और खूफिया स्रोतों द्वारा अखबारों में सांप्रदायिक मंशा से प्लांट की जा रही खबरों पर रोक लगाए। संगठन के मुताबिक दैनिक जागरण में आजमगढ़ से छपी खबर ‘एटीएस पहुंची आजमगढ़, एक को उठाया’ की सत्यता पर सवाल उठाया है। पीयूसीएल के मसीहुद्दीन संजरी,और तारिक शफीक ने कहा कि इस खबर के माध्यम से जिले में डर व दहशत का माहौल बनाने की कोशिश की गई है। संगठन  के  मुताबिक  हिंदी दैनिक अमर उजाला लखनऊ ने अपने १६ जुलाई के अंक में पहली लीड स्टोरी ‘‘संजरपुर के सैकड़ों मोबाइल फोन पर खूफिया निगाहें’’लगायी है,यह खबर न सिर्फ आजमगढ़ को बदनाम करने की शातिर कोशिश है बल्कि कई पहलुओं से तो हास्यास्पद भी बन गई है।

मसलन यह खबर अपने राजनीतिक और सांप्रदायिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए यहां तक कहती है ‘‘लखनऊ जेल में बद आईएम के आंतकी सलमान व तारिक कासमी से भी पूछताछ की गई है।’’ जबकि सच्चाई तो यह है कि सलमान जिसे कुछ महीनों पहले ही दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली विस्फोटों के आरोप से बरी कर दिया है और वह अब दूसरे आरोप में जयपुर की जेल में बंद है और जहां तक तारिक कासमी से पूछताछ की बात है तो उसकी सच्चाई यह है कि बकौल तारिक के ही उससे किसी ने इस मामले में पूछताछ नहीं की है। यह बात खुद तारिक कासमी से मिलकर आए उनके वकील और चर्चित मानवाधिकार नेता मो. शोएब ने इस झूठी खबर को पढ़ने के बाद पीयूसीएल की तरफ से जारी प्रेस नोट में कहा।

दरअसल कोर्ट ने यह पाया कि सलमान जिसे एटीएस ने उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर से गिरफ्तार करने का दावा किया था, के साथ पुलिस ने जिस नेपाली पासपोर्ट के बरामद होने का दावा किया था उसे वह कभी पेश नहीं कर पाई। दूसरे, पुलिस ने एक फर्जी फोटो स्टेट जिसमें सलमान की उम्र 27 साल दिखाई गई थी जबकि उसकी वास्तविक उम्र पन्द्रह साल थी को कोर्ट में पेश किया और तीसरे पुलिस ने सलमान के पास से जो सउदी अरब का हेल्थ कार्ड बरामद होने का दावा किया था वो भी फर्जी निकला।

कोर्ट ने पुलिस और एटीएस पर सलमान जैसे निर्दोष को फसाने के लिए पुलिसिया करतूतों की काफी आलोचना की और सख्त हिदायत दी कि पुलिस अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाए। यहां दिलचस्प बात है कि सलमान की गिरफ्तारी के वक्त भी मीडिया द्वारा इन्हीं झूठे सुबूतों का पुलिंदा बनाकर उसकी एक खतरनाक छवि बनाने का प्रयास किया गया था। दरअसल सलमान के सहारे पुलिस और खूफिया एक मीडिया ट्रायल कर रहे हैं कि सलमान भले ही सुबूतों के आभाव में बरी हो गया है लेकिन वह आतंकवादी है।

यह राज्य की नीति  है कि वह अपने द्वारा अपने हितों के लिए पकड़े गए लोग जो न्यायालय से बरी भी हो गए हैं,उनको समाज में अस्वीकार बना दें। इसी खबर में कहा गया है कि सलमान जो की छोटी उम्र का है इसलिए उससे छोटी उम्र के लड़कों के बारे में जानकारी इकट्ठी की जा रही है के सहारे छोटी उम्र के आजमगढ़ के लड़कों पर जहां एक ओर मनोवैज्ञानिक रुप से दबाव बनाया जा रहा है। वहीं समाज के नजर में उन्हें एक संदिग्ध मुस्लिम पीढ़ी के बतौर स्थापित करने की कोशिश की जा रही है।

आजमगढ़ के मुसलमानों के खिलाफ यह ऐसी साजिश बाटला हाउस के वक्त भी की गई थी जब 16साल के साजिद को बाटला हाउस (बाटला हाउस कांड को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी वेब साइट पर फर्जी मुठभेड़ो की लिस्ट में रखा है।)फर्जी मुठभेड़ में मारकर कांग्रेस ने आजमगढ़ के बच्चों पर यह आरोप मढ़ा कि वह आतंकवादी होते हैं। इस रणनीति से फायदा यह है कि हिंदुत्वादी दिशा अख्तियार कर चुके राजनीतिक माहौल में टेरर पालिटिक्स को लंबे समय तक जिन्दा रखा जा सकता है.

हरियाणा से लौटे दर्जनभर मजदूरों की मौत



उत्तर प्रदेश के सोनभद्रसे काम की तलाश में हरियाणा गए दर्जनों मजदूर अपने शरीर में मौत लेकर लौटें हैं.इनमें से करीब एक दर्जन से भी ज्यादा मजदूरों की विगत एक वर्ष में टीबी से मौत हो चुकी है और दो दर्जन से भी ज्यादा टीबी की बीमारी से ग्रसित है।यह जानकारी जन संघर्ष मोर्चा के जांच दल ने प्रेस को दी। गौरतलब है कि सोनभद्र के चोपन ब्लाक के कोन क्षेत्र के गिधिया गांव सैकड़ों मजदूर हरियाणा के फरीदाबाद जिले में पाली पहाड़ पर पत्थर खदान और क्रशर में काम करने पिछले वर्ष काम करने गए थे।

बारह घंटे के काम की मजदूरी इन मजदूरों को सौ रूप्ए प्रतिदिन के हिसाब से मिलती थी। काम के दौरान ही इन मजदूरों के सीने में दर्द,बुखार और खांसी की शिकायत होने पर खदान मालिक ने इन मजदूरों को वापस भेज दिया। यहां वापस आने पर इन मजदूरों ने जांच करायी तो टीबी निकला। इनमें से करीब दर्जनभर से ज्यादा मजदूरों की दवा के अभाव में अब तक मौत हो चुकी है।

मरने वाले मजदूरों में बीरबल चेरो पुत्र रूपचंद उम्र 18वर्ष,संजय कुमार गोड़ पुत्र बसंत 30वर्ष, उदय कुमार पुत्र बसंत 25 वर्ष, अजय कुमार कलवार पुत्र मिश्रीलाल 30 वर्ष, शिवभजन गोड़ पुत्र रामलाल उम्र 42 वर्ष, जोगेन्द्रर चेरो पुत्र मुन्नीलाल उम्र 28 वर्ष, जयनाथ गोड़ पुत्र करीमन उम्र 35 वर्ष, जगरनाथ गोड़ पुत्र करीमन उम्र 25 वर्ष, धनेश्वर चेरो पुत्र बरसावन उम्र 28 वर्ष, देवकुमार चेरो पुत्र रामभरोस उम्र 25 वर्ष, भगवान दास चेरो पुत्र बुटाई उम्र 45 वर्ष, रामविचार चेरो पुत्र श्री 22 वर्ष, सुनरदेव चेरो पुत्र श्री 20 वर्ष, शिवप्रसाद चेरो पुत्र विश्वनाथ उम्र 45 वर्ष, कृपाशंकर चेरो पुत्र बैजनाथ उम्र 20 वर्ष है।

इसी प्रकार गांव में करीब दो दर्जन से ज्यादा मजदूर अभी भी टीबी के मरीज है। जिसमें से आनंद गोड़, देवकुमार गोड, मंगरू चेरों, नागेष्वर गोड़, संजय कुमार गोड़, अक्षय कुमार गोड़, राजकुमार गोड़, अशोक चेरो, कुन्त बिहारी गोड़, प्रमोद कलवार, मोहनदास चेरो, सुखराज, आषीष कलवार, गोपी चेरो, रामधनी चेरो, इन्द्रदेव गोड़, संजय गोड़, विद्यानाथ गोड़ की हालत तो बेहद गम्भीर है। जसमों जांच दल को ग्रामीणों ने बताया कि चोपन ब्लाक के 23 ग्रामसभाओं वाले इस कोन क्षेत्र में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है जिसमें आयुर्वेदिक के एक डाक्टर नियुक्त है वह भी आमतौर पर केन्द्र पर नहीं रहते परिणामतःह दवा के लिए हमें झारखण्ड़ के नगरउटांरी में जाना पड़ता है और यहां इलाज कराना इतना महंगा पड़ता है कि हम लोग इलाज नहीं करा पाते।

ग्रामीणों ने बताया कि गाँव में मनरेगा में यदि हमें साल में सौ दिन काम मिलता तो हमें हरियाणा में काम के लिए गांव से पलायन करने की जरूरत ही न पड़ती लेकिन यहां तो स्थिति यह है कि काम तो मिलता नहीं और जो काम हम करते भी है उसकी भी मजदूरी सालों बकाया रहती है। ग्रामीणों ने उदाहरण देते हुए बताया कि वर्ष 2006में ब्लाक द्वारा बंधी का निर्माण कराया गया पर आज तक उसकी मजदूरी नहीं मिली।

इसी प्रकार विगत वर्ष ग्रामसभा के परसहीया और चिवटहीया टोला में आरईएस विभाग द्वारा कराए गए खंडजा निर्माण,पीडब्लूडी द्वारा बनवायी गयी सड़क और वनविभाग द्वारा खोदवाएं गए ट्रेच व गड्डों की मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है। इसलिए अपने परिवार के जीवनयापन के लिए मजबूरी में हमें पलायन करना पड़ता है। काम की तलाश में हम हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र जाते है। जहां पर काम करन से हमें बीमारी मिलती है।

जन संघर्ष मोर्चा के जिलाध्यक्ष और गांव के प्रधान सोहराब ने बताया कि इस क्षेत्र के अस्पताल में डाक्टरों की समुचित व्यवस्था और ग्रामीणों के इलाज के लिए हमने बार-बार पत्रक दिए,मजदूरों का पलायन न हो इसके लिए मनरेगा में काम और बकाया मजदूरी के भुगतान के संदर्भ में आंदोलन किया गया पर प्रशासनिक अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेगी। जांच दल का नेतृत्व करते हुए जन संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता दिनकर कपूर ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलायी जा रही सचल चिकित्सा दल योजना इस जनपद में हाथी का दिखाने वाला दांत साबित हो रही है।

इस जिले के लिए दी गयी सचल चिकित्सा दल की गाड़ियां शहरों में धूमते हुए सरकार का प्रचार करते तो मिल जायेगी लेकिन कोन,भाठ जैसे सदूर इलाकों में जहां इसकी सर्वाधिक आवश्यकता आदिवासियों और ग्रामीणों को है वहां इसका दर्शन तक दुर्लभ है। उन्होनें कहा कि इस इलाके के बसपा और सपा के चुने गए विधायक और सांसद ने अपनी भूमिका अदा नहीं कि अन्यथा न तो इस इलाके के  लोगों को काम की तलाष में पलायन करना पड़ता और न ही उन्हे दवा के अभाव में दम तोड़ना पड़ता। जन संघर्ष मोर्चा ग्रामीणों और आदिवासी नौजवानों की मौत के इस मामले को राजनीतिक मुद्दा बनायेगा और मानवाधिकार आयोग को पत्र भेजा जायेगा।