Jun 4, 2011

बाबा रामदेव पर भ्रष्टाचार का नवग्रह

भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबा रामदेव के जंग -ए- ऐलान ने सरकार को बैकफुट  पर ला दिया है. दिल्ली एअरपोर्ट पर बाबा को मनाने  के लिए  प्रणब मुखर्जी समेत चार - चार मंत्रियों का पहुंचना इसका प्रमाण है. लेकिन असलियत यह है कि  बाबा अपने आश्रम में मजदूरों के शोषण, दवाओं में मिलावट और रेवेन्यु चोरी से गुजरते हुए देश में भर्ष्टाचार के सबसे बुलंद आवाज के रूप में उभरते हैं, हतप्रभ करता है.... अंतिम किस्त

आकाश नागर


बाबा पर लगे भ्रष्टाचार के  आरोपों में से  नौ को यहाँ  प्रस्तुत किया जा रहा है....

1. हरिद्वार कोतवाली में हुआ मामला दर्ज-  यह वर्ष 2002-2003 की बात है जब स्वामी रामदेव का हरिद्वार के अधिवक्ता से विवाद हो गया था। यह विवाद शंकर देव आश्रम में कब्जे को लेकर हुआ था। जिसमें स्वामी रामदेव ने बाली नामक एक अधिवक्ता के सर पर भारी प्रहार कर दिया था। बाद में लहूलुहान अधिवक्ता ने कोतवाली हरिद्वार में स्वामी रामदेव पर जान से मारने की नीयत से हमला करने का मामला दर्ज कराया।

2. श्रमिकों का शोषण -हरिद्वार स्थित दिव्य योग ट्रस्ट जिसके सर्वेसर्वा स्वामी रामदेव हैं, उन दिनों चर्चा में आई जब दिव्य योग फार्मेसी में श्रमिकों को बाहर का रास्ता दिखाया गया । इस प्रकरण की शुरूआत 5 मई 2005 में जब हुई तब स्वामी रामदेव के भाई राम भारत ने दिव्य फार्मेसी के उन 90 श्रमिकों को सेवामुक्त कर दिया जो न्यूनतम वेतन की मांग कर रहे थे। मजदूरों का 16 दिन तक हरिद्वार स्थित कलक्ट्रेट परिसर में धरना प्रदर्शन चला। 21 मई 2005 को श्रमिकों से समझौता कर धरना खत्म करवा दिया गया। समझौते के तहत फार्मेसी में 5 मई 2005 से पूर्व की स्थिति बहाल कर दी जायेगी। साथ ही किसी भी कर्माचरी के खिलाफ बदले की भावना के अंतर्गत कोई कार्रवाही नहीं की जायेगी। लेकिन मजदूर तब सकते में आ गए जब अगले ही दिन उन्होंने फार्मेसी के गेट पर ताला जड़ा देखा। इसके बाद वर्षों तक कई बार मजदूरों ने आंदोलन किया लेकिन उन्हें आज तक दिव्य योग फार्मेसी में नौकरी पर बहाल नहीं किया गया। कई मजदूरों की हालत बेहद खस्ता हाल हो गई और वे सड़कों पर आ गए। अपने जीवनयापन के लिए वे सब्जी की ठेलियां लगाने पर मजबूर हुए।

3. सुधीर के परिवार का उत्पीड़न -मजदूर हितों की बात करने वाले तथा आश्रम संबंधी सच को कहने वाले सुधीर के विरुद्ध झूठे आरोप लगाकर उसे तथा उसके परिवार को उत्पीड़ित किया गया। सुधीर का कसूर यह भी था कि वह दिव्य योग ट्रस्ट के संस्थापकों में से एक रहे आचार्य करमवीर का रिश्तेदार था। जिसका खामियाजा उसे झूठे मुकदमे और पुलिस तथा गुण्डों के खौफ से भुगतना पड़ा। दिव्य योग  फार्मेसी के मैनेजर पद पर रहे सुधीर पर स्वामी रामदेव की हत्या का षड्यंत्र जैसे संगीन आरोप लगाए गए जो बाद में सिद्ध नहीं हो सके। स्वामी रामदेव पर आरोप हैं कि उन्होंने गुंडों को  पुलिसवर्दी में सुधीर के घर तोड़फोड़ करने के लिए भेजा। भयभीत सुधीर और उसके परिजनों को घर छोड़कर भागना पड़ा था।

4. दवाओं में मानव खोपड़ी का इस्तेमाल -स्वामी रामदेव की दिव्य योग फार्मेसी में कई सनसनीखेज खुलासे हुए। जिनमें मिर्गी के इलाज के लिये तैयार होने वाली कुल्या भस्म में मानव खोपड़ी के चूर्ण के इस्तेमाल सहित वन्य जीव उदबिलाव के अण्डकोष को यौन शक्ति बढ़ाने वाली दवाई यॉवनावृत वटी में मिलाया जाता था। इसके अलावा दमा की बीमारी में काम आने वाली  शृंगभस्म में हिरण और बारहसिंगा के सींग का चूर्ण मिलाए जाने की भी चर्चा रही। दिव्य योग  फार्मेसी के मजदूरों ने केवल इसका खुलास किया बल्कि उन्होंने फार्मेसी से हिरण के सींग और  उदबिलाव के अण्डकोष तक मीडिया के समक्ष प्रस्तुत किए। बाद में इस मुद्दे को लेकर वन्य जीव प्रेमी मेनका गांधी और माकपा सांसद वृंदा करात सामने आई। लेकिन वोट बैंक की राजनीति के बाद में दोनों इस मामले के प्रति उदासीन हो गई।

 5. भाई-भतीजावाद  -हरिद्वार में दिव्य योग ट्रस्ट के तत्कालीन उपाध्यक्ष आचार्य करमवीर ने जब दिव्य योग  फार्मेसी में हो रही अवैध गतिविधियों और परिवारवाद के खिलाफ आवाज उठाई तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। 28 मार्च 2005 को जारी एलआईयू हरिद्वार की एक रिपोर्ट में बाकायदा इसका खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार ‘स्वामी रामदेव ने अपने भाई रामभारत को फार्मेसी प्रमुख बनाया तथा बहनोई डॉ  यशदेव शास्त्री को ऋषि आफसेट प्रिंटिंग प्रेस बनाकर दी। रामदेव अपने परिजनों को दिव्य योग फार्मेसी तथा अन्य संस्थानों में लाकर स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। इससे आश्रम के अन्य लोगों खासकर आचार्य करमवीर में खासा रोष है।’

6. ‘दि संडे पोस्ट’ पर मुकदमा - आश्रम संबंधी सच सामने लाने से नाराज होकर दिव्य योग ट्रस्ट की तरफ से वर्ष 2005 में ‘दि संडे पोस्ट’ के खिलाफ भारतीय प्रेस परिषद में मामला दर्ज कराया गया था। इसके चलते 14 सितंबर 2005 को भारतीय प्रेस परिषद की सचिव विभा भार्गव ने दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट बनाम ‘दि संडे पोस्ट’ का नोटिस भिजवाया। जिसमें समाचार पत्र पर आरोप लगाए गए कि स्वामी रामदेव और दिव्य योग  फार्मेसी से संबंधित खबरें तथ्य विहीन तथा प्रेस काउंसिल एक्ट 1978 एवं प्रेस काउंसिल रेगुलेशन 1979 में निहित नियमों और उद्देश्यों के विपरीत हैं। इसके जवाब में बताया गया कि समाचार पत्र में जो खबरें  प्रकाशित की गई वे पूरी खोजबीन एवं आश्रम में कार्यरत मजदूरों के बयानों तथा तथ्यों पर आधारित थी। बाद में भारतीय प्रेस परिषद ने इस मामले पर ‘दि संडे पोस्ट’ का पक्ष लिया।

7. सुरक्षा लेने के मामले में - मई 2006 में हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में स्वामी रामदेव के साथ हेलिकॉप्टर में सवार होकर पहुंचे  गौरव  अग्रवाल से क्या वाकई स्वामी रामदेव की जान को खतरा था या जेड प्लस की सुरक्षा पाने के लिए किया गया एक और ड्रामा। इस ड्रामे में अब तक सुधीर कुमार, दीपु भट्ट और आंदोलनरत श्रमिकों के अलावा ई-मेल के धमकी भरे पत्रों को इस्तेमाल करने की असफल कोशिश की गई। भले ही रामदेव यह ऐलान कर चुके कि उन्होंने जेड श्रेणी की सुरक्षा के लिए सरकार से मांग नहीं की। मगर वास्तविकता यह है कि वे पहले भी यह मांग कर चुके हैं और इसके लिए साजिश रचने की बातें भी सामने आई हैं। इस संबंध में गृह मंत्रालय ने उत्तराखण्ड सरकार से जवाब तलब किया कि क्या वाकई स्वामी रामदेव को जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा की जरूरत  है। इसके तहत सरकार ने हरिद्वार की एलआईयू को जांच करने के आदेश दिए। एलआईयू की 17/05, 28 मार्च 2005 को जारी की गई जिसमें स्पष्ट कहा गया कि स्वामी रामदेव को परोक्ष रूप से कोई भय होना ज्ञात नहीं हुआ है उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों से कथित प्रतिस्पर्धा के चलते एवं अपने निजी कार्यों से जीवन भय की आशंका प्रकट की थी।

 8. शंकर देव का रहस्य - स्वामी शंकर देव महाराज वह साधु थे जिन्होंने स्वामी रामदेव को न केवल अपने आश्रम में आश्रय दिया बल्कि आश्रम की संपत्ति भी उनके ट्रस्ट के नाम कर दी। लेकिन बाद में शंकर देव की स्थिति ऐसी हो गई कि उनके दुखों तक को स्वामी रामदेव को देखने की फुर्सत नहीं मिली। यह चौंकाने वाली बात है कि एक तरफ श्ंकर देव महाराज की देन आश्रम को करोड़ों की दवाइयों का कारोबार हो रहा था वहीं दूसरी तरफ वे इलाज के लिए तरसते रहे और लोगों से उधार लेकर काम चलाते रहे। दो साल पूर्व आहत होकर उन्होंने आचार्य करमवीर से स्वामी रामदेव की शिकायत की थी। तब करमवीर ने उनका इलाज कराया। इसके बाद शंकर देव का कोई अता-पता नहीं है। शंकर देव कहां गए? इस संबंध में हरिद्वार के कई साधु संतों ने स्वामी रामदेव पर आरोप लगाए कि उन्होंने संपत्ति के लालच में उनकी हत्या करा दी।

 9. रेवन्यू चोरी - एक तरफ तो वे देश के धन्नासेठों द्वारा कर चोरी करके अरबों रुपये का काला धन विदेशी बैंकों में जमा कराने की बात करते हैं वहीं दूसरी तरफ उनके पंतजलि योगपीठ के खिलाफ भी रेवन्यू चोरी के मामले दर्ज हैं। इस बाबत राजस्व विभाग ने पतंजलि योगपीठ और आचार्य बालकृष्ण पर मामले दर्ज किए हैं। राजस्व विभाग का कहना है कि बाबा और उसके सहयोगी बालकृष्ण ने रेवन्यू चोरी करके करीब 60 लाख का चूना सरकार को लगाया है।




खोजी पत्रकारिता कर कई महत्वपूर्ण मामले उजागर करने वाले आकाश नागर इस समय द  सन्डे पोस्ट के रोमिंग असोसिएट एडिटर हैं. यह लेख वहीँ  से साभार प्रकाशित किया जा रहा है.




बाबा रामदेव के रंग हजार


बाबा रामदेव अपनी सवारी बदलते रहे हैं और सफल भी रहे हैं। एक दशक पहले साइकिल पर सवार होकर भजन-कीर्तन गाने वाले बाबा ने ‘योग’ की सवारी की। वे देश-दुनिया के योग गुरु हो गए। अब वे एक बार फिर नई सवारी की ओर व्यग्रतापूर्ण ढंग से मुखातिब हैं। इस बार वे राजनीति की सवारी कर ‘सत्ता’  तक पहुंचना चाहते हैं। लेकिन बाबा की अब तक की यात्रा में कुछ ऐसे पड़ाव भी हैं जो उनकी धवल  छवि को कठघरे में खड़ा करते हैं....

अहसान अंसारी

मजदूरों का शोषण,दवाओं में मिलावट,अपनी सुरक्षा के लिए गलत बयानी और रेवेन्यू चोरी तो बाबा रामदेव मामले में  पुरानी बात हो गई है। नई बात यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग-ए-ऐलान करते हुए अनशन पर जाने की जिद करने वाले बाबा ने हरिद्वार के निकट एक ग्राम सभा की जमीन पर कब्जा जमाया है। स्कॉटलैंड में टापू खरीदने वाले एक संन्यासी को ग्रामसभा की जमीन कब्जाने की जरूरत क्यों पड़ गई यह एक बड़ा सवाल है.

बाबा रामदेव की छवि के भीतर कई छवियां हैं। निदा फाजली के अंदाज में कहें तो-‘हर आदमी के भीतर होते हैं दो-चार आदमी’। एक वो चेहरा जो दिखाई देता है यानी योग गुरु का-संन्यासी के लिबास में। लेकिन यह अधूरा सच है। पूरा सच यह है कि बाबा के भीतर वो तत्व भी छिपा है जिसका वे निरंतर विरोध करते हैं। मसलन भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर अलख जगाने और अब आमरण अनशन करने जा रहे बाबा और उनके सहयोगियों ने ऐसे कई कारनामों को अंजाम दिया है जो भ्रष्टाचार की परिधि में ही आते हैं।

ताजा मामला हरिद्वार के निकट औरंगाबाद में ग्रामसभा की जमीन कब्जाने का है। यहां वे भू-माफिया की भूमिका में हैं। लेकिन यह बात उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ी जा रही जंग में दब कर रह गईं। इस पर कहीं कोई चर्चा नहीं है। मजदूरों का शोषण,दवाओं में जानवरों की हड्डियां मिलाना, कर चोरी जैसे न जाने कितने ही मामलों के बाद अब बाबा के खिलाफ एक और नया मामला सामने आया है। मामला पैसे और पहुंच की धमक से ग्रामसभा की भूमि पर कब्जा करने का है। बात तब सामने आयी जब पिछले दिनों उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’द्वारा चलाये जा रहे बहुद्देशीय शिविर में इस कब्जे की शिकायत की गयी।

चरण सिंह नाम के एक व्यक्ति ने कहा कि हरिद्वार के निकट औरंगाबाद में योग ग्राम की स्थापना के दौरान रामदेव के पतंजलि ट्रस्ट ने कुछ जमीन तो वहां के काश्तकारों से खरीदी,लेकिन खरीदी गयी जमीन से कहीं ज्यादा भूमि पर (लगभग 42 बीघा) ट्रस्ट ने कब्जा जमा लिया। शिकायत के बाद जब हरिद्वार के उपजिलाधिकारी हरवीर सिंह और तहसीलदार पूर्ण सिंह की अगुवाई में जांच टीम ने उस जगह का निरीक्षण किया तो कब्जे का मामला सच निकला। यहां बाबा के ट्रस्ट का बड़े-बड़े बाड़ लगाकर सिर्फ जमीन ही नहीं नदी में भी पक्की दीवार बनवाकर कब्जा पाया गया। प्रशासन ने तत्काल ही वहां चल रहे सभी निर्माण कार्य रुकवा दिये।

बाद में पतंजलि योग पीठ ट्रस्ट ने मामले की नजाकत को समझते हुए अपनी गलती स्वीकार कर जिलाधिकारी के समक्ष एक निवेदन किया। निवेदन में इस आशय को स्पष्ट किया गया कि पतंजलि ट्रस्ट ने जितनी जमीन पर कब्जा कर रखा है दूसरी तरफ स्थित उतनी ही जमीन वह ग्रामसभा को देने को तैयार है। उसने यह भी कहा कि उक्त जमीन खेती योग्य है और ग्रामसभा की अन्य भूमि के साथ है। लिहाजा जमीन की अदला-बदली कर ली जाये। रामदेव अब सिर्फ योग गुरु नहीं रह गये हैं। आयुर्वेदिक औषधि से लेकर सत्तू तक बाबा द्वारा स्थापित फैक्ट्रियों में बनाया जाता है। जो बाजार में अच्छे दामों में बेचा जाता है।

हमने कोई कब्जा नहीं किया है। औरंगाबाद में योगग्राम के लिए हमने कई वर्ष पहले जमीन खरीदी थी। हम ग्रामसभा की जमीन से अपनी जमीन का बदला भी करने को तैयार हैं,और अधिक मैं कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि जो ‘दि संडे पोस्ट’को लिखना है वह लिखेगा ही।
आचार्य बालकृष्ण,महामंत्री पतंजलि ट्रस्ट रामदेव
हमारी टीम राजस्व विभाग की भूमि पर कब्जा के संबंध में जांच करने के लिए औरंगाबाद गई थी जिसमें 43बीघा भूमि पर तत्काल ही कब्जा हटा दिया गया था,बाकी 43बीघे भूमि के संबंध में जिलाधिकारी महोदय को जांच रिपोर्ट प्रेषित की जा चुकी है।हरवीर सिंह, उपजिलाधिकारी, हरिद्वार

 
हाल ही में बाबा ने एक अंग्रेजी अखबार को दिये गये साक्षात्कार में बताया कि वर्ष 1995से स्थापित उनके ट्रस्ट के पास वर्तमान में लगभग एक हजार एक सौ करोड़ की संपत्ति है। अगस्त 2009 में ‘दि संडे पोस्ट’के टॉक-ऑन टेबल कार्यक्रम में बाबा रामदेव ने अपनी संपत्ति 775करोड़ बताई थी। तकरीबन पौने दो साल में बाबा की संपत्ति में चार सौ करोड़ की बढ़ोतरी हुई। करोड़ों की संपत्ति के मालिक होने के बाद भी जब बाबा और उनका ट्रस्ट सरकार को चूना लगाने से पीछे नहीं हटता तो ये समझना आम इंसान की सोच से परे है कि वही बाबा बार-बार किस भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए विश्व का सबसे बड़ा सत्याग्रह आंदोलन शुरू करने जा रहे हैं।

उनकी नई जंग की तह में जाएं तो जो संकेत उभरते हैं उसका सार तत्व यही है कि संन्यासी के परिधान को धारण किये काया के भीतर सियासी महत्वाकांक्षाएं उछाल मारती हैं। सियासत माने सत्ता मोह। वह सत्ता पाने का ही मोह है जो उनको राजनीति की राह पर चलने के लिए बाध्य करता है। वे राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी बनाते हैं। 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान भी करते हैं। यहां तक कि जंतर-मंतर से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई शुरू कर नायक बनने वाले अन्ना हजारे उनको रास नहीं आते उनको लगता है कि अन्ना ने उनके मुद्दों को हाईजेक कर लिया। अन्ना से उनका मतभेद अब ज्यादा साफ हुआ है जब उन्होंने बयान दिया कि जनलोकपाल विधेयक के दायरे में प्रधानमंत्री नहीं आने चाहिए।

दरअसल,इस बयान के पीछे भी सियासी गलियारों में कई तरह की सरगोशियां चल रही हैं। अटकलें हैं कि बाबा का सुर बदल गया है। कुछ हफ्ते पहले तक कांग्रेस और उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रति आग उगलने वाले बाबा को कांग्रेस ने साध लिया है। बहुत संभव है दोनों के बीच ‘सेटिंग’ हो गयी है। अब बाबा को सोनिया और मनमोहन सिंह नेक और गरिमामय प्रतीत होने लगे हैं। कल तक दिल्ली में बाबा को शिविर के लिए जगह तक मुहैया नहीं कराने वाली कांग्रेस सरकार ने भी रामलीला मैदान में योग शिविर के लिये शर्तपूर्ण अनुमति दे दी। इस पूरी प्रक्रिया में लोकपाल विधेयक को लेकर जिस तरह से बाबा ने स्टंड बदला है उससे अन्ना की टीम सकते में है। वो इसे सत्ता की चाल मान रही है जो अन्ना-रामदेव के बीच मोटी विभाजक रेखा खींचने में कामयाब रही है।

क्या यह महज संयोग है कि जिन चीजों को मुद्दा बनाकर बाबा रामदेव विरोध करते हैं,व्यक्तिगत जीवन में वे उसके पोषक हैं। मसलन बाबा शोषण के खिलाफ हैं। मानवीयता की बात करते हैं। मगर अपने दिव्य फार्मेसी से मजदूरों को इसलिए निकाल देते हैं क्योंकि वो वाजिब हक की मांग कर रहे थे। वे कोका कोला में मिलावट की बात करते हैं। लेकिन उनकी दवाइयों में भी आपत्ति जनक मिलावट है। जानवरों की हड्डियों से लेकर मानव खोपड़ी तक मिलायी जाती। कांग्रेस में परिवारवाद का विरोध करते हैं मगर उन्होंने अपने आश्रम में भाई-भतीजावाद का ऐसा माहौल रचा कि उनके सहयोगी आचार्य कर्मवीर आजिज आकर पलायन कर गए।

गुरु-शिष्य परंपरा पर ढेरों प्रवचन दिए। लेकिन खुद अपने गुरु-स्वामी शंकरदेव का दुख नहीं दूर कर पाए। उनको इलाज तक के लिए पैसे नहीं दिए। जिस भ्रष्टाचार की पूंछ पकड़कर वे सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं,उससे अछूते वह खुद भी नहीं हैं। पहले रेवन्यू की चोरी और अब ग्रामसभा की जमीन पर कब्जा। ये सब बाबा का अंतर्विरोध नहीं अलबत्ता वह सच है जो यह साबित करता है कि बाबा के रंग हजार हैं और इनमें सबसे गहरा रंग उसका है जिसे ‘राजनीति’ कहते हैं। अब पाठक ही तय करें कि बाबा की बहुत सारी छवियों में कौन सी छवि सच है।



(अहसान अंसारी हिंदी साप्ताहिक ' द सन्डे पोस्ट' से जुड़े हुए हैं और खोजी पत्रकार हैं. उनकी यह रिपोर्ट द सन्डे पोस्ट से साभार यहाँ प्रकाशित की जा रही है. रिपोर्ट की  दूसरी किस्त जनज्वार शीघ्र ही प्रकाशित करेगा.)



कांग्रेस का किसान प्रेम मध्यप्रदेश में क्यों नहीं ?

आन्दोलन चलता रहा, लेकिन प्रशासन किसान नेताओं से कोई बातचीत नही की गई। केवल अदानी कंपनी द्वारा किसान आन्दोलन के नेतृत्व को खरीदने की कोशिश किसानों का की गई...

 डॉ0 सुनीलम्

मध्य प्रदेश   के छिन्दवाडा जिले में जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर 22 मई की शाम साढ़े पांच बजे अदानी पॉवर प्रोजेक्ट लिमिटेड और पेंच पावर लिमिटेड के ठेकेदार गुंडों ने मुझपर हमला किया। हमला केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के इशारे पर हुआ। करीब पंद्रह की संख्या में पहुंचे कांग्रेसी नेता कमलनाथ के गुंडों  ने मेरी जीप को तोड़ दिया, लाठियों से मेरे दोनों हाथ भी तोड़ दिए और सिर में चोट आई। अदानी प्रोजेक्ट तथा पेंच परियोजना से प्रभावित हो रहे किसानों के आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे वकील आराधना भार्गव को पीटे जाने के चलते सिर में 10 टांके लगे तथा एक हाथ फैक्चर हो गया। यह हमला तब किया गया जब हम छिन्दवाड़ा जिले के भूलामोहगांव से 28 से 31 मई के बीच दोनों प्रोजेक्ट के विरोध में पद्यात्रा के कार्यक्रम को अंतिम रूप देकर लौट रहे थे।
अदानी ग्रुप चेयरमैन : मुनाफे के लिए सब कुछ  

हमले के बाद आराधना भार्गव ने पुलिस अधीक्षक छिंदवाडा को फोन कर हमला करने वालों तथा गाड़ियों के नम्बर की जानकारी दी, लेकिन मध्य प्रदेष पुलिस को 14 किलोमीटर की दूरी तय करने में ढाई घंटे का समय लगा। इसके बाद पुलिस ने हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज करने की बजाय धारा 323 के तहत साधारण मारपीट का मुकदमा दर्ज कर खानापूर्ती कर दी। इस बीच मैंने हमले के विरोध में दो दिनों तक छिन्दवाड़ा जिला चिकित्सालय में अनषन किया। अदानी के काम रोके जाने और हमलावरों पर कार्यवाही के प्रषासन से मिले आष्वासन के बाद मैंने ग्रामवासियों के हाथों अनषन तोड़ा और पदयात्रा के लिए वापस छिंदवाडा पहुंच गया। 28 से 31 मई की चिलचिलाती धूप में पदयात्रा की।

यात्रा के छिंदवाडा पहुंचने पर 5 हजार से अधिक किसान, जमीन बचाओ खेती बचाओ, रैली में शामिल हुए। डॉक्टर बीडी शर्मा, किशोर तिवारी तथा अन्य संगठनों  के नेताओ ने रैली को सम्बोधित किया तथा मुख्यमंत्री एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश  को जिलाधीश  के माध्यम से ज्ञापन सौंपा। आष्चर्यजनक तौर पर मध्य प्रदेश  के दोनों मुख्य दलों भाजपा और कांग्रेस की ओर से न तो इस घटना की निन्दा की गई न ही अदानी पावर प्रोजेक्ट लिमिटेट तथा पेंच पावर प्रोजेक्ट को लेकर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। जबकि उत्तर प्रदेश कांग्रेस की ओर से राहुल बाबा तथा दिग्विजयसिंह मैदान में डटे हुए हैं तो भाजपा की ओर से राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र किसान यात्रा निकाल रहे है। ऐसे में साफ है कि दोनों पार्टियों की भूअधिग्रहण तथा औद्योगिकरण के सम्बन्ध में कोई एक राष्ट्रीय नीति नहीं है।

अदानी पावर प्रोजेक्ट लिमिटेट तथा पेंच पावर प्रोजेक्ट को लेकर मध्य प्रदेश  में शुरू हुए विरोध की जड़ें करीब 25 वर्श पुरानी हैं। मध्य प्रदेष बिजली बोर्ड (एमपीईबी) ने 1986-87 में 5 गांव के किसानों की जमीनें ढेड़ हजार रूपए के हिसाब से 10 हजार प्रति एकड़ की दर पर जमीनें अधिग्रहित कीं। किसानों के हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने, निषुल्क बिजली देने तथा पूरे मध्य प्रदेश  के किसानों को लागत मुल्य पर बिजली उपलब्ध कराने और 3 वर्ष में ताप विद्युत गृह निर्माण का वायदा, तत्कालिन कांग्रेसी मुख्यमंत्री दिग्विज सिंह की ओर से हुआ। लेकिन न तो थर्मल पावर बना न ही किसान परिवारों को रोजगार। जमीनें किसानों के पास ही रहीं और वे उसपर खेती करते रहे।

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अब मध्य प्रदेष सरकार ने किसानों से सहमति लिये बगैर ही उनकी जमीनें 13.50 लाख रूपए प्रति एकड़ की दर से अदानी और पेंच  पावर लिमिटेड कंपनी को बेच दी हैं। मगर किसान जमीन देने को तैयार नहीं हैं। जाहिर है किसानों ने भी कब्जा नहीं छोड़ा है। 6 नवम्बर 2010 को चौसरा में पर्यावरण मंत्रालय की ओर आयोजीत जनसुनवाई में किसानों ने किसी भी कीमत पर जमीन न देने तथा कब्जा नहीं छोड़ने का ऐलान किया। कुछ कांग्रेसी नेताओं ने बाहर के किसानों को लाकर जनसुनवाई की खानापूर्ति करनी चाही, लेकिन क्षेत्र के किसानों ने उन्हें खदेड़ दिया। खदेड़ देने के बाद पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने अदानी के कार्यालय में जनसुनवाई करने का नाटक किया, लेकिन उसे किसान मानने को तैयार नहीं हैं।

किसानों का आन्दोलन चलता रहा, लेकिन प्रषासन किसान नेताओं से कोई बातचीत नही की गई। केवल अदानी कंपनी द्वारा किसान आन्दोलन के नेतृत्व को खरीदने की कोषिष की गई। मुझसे भी अदानी के एक उच्च अधिकारी ने अलग-अलग तरीके से बिना समय लिए या जानकारी दिए, मुलाकात की और किसानों के साथ समझौता कराने के लिए 10 करोड़ रूपए देने की पेशकश की। शायद उसी दिन से अदानी ग्रुप  ने हमला कराने की योजना बनानी शुरू कर दी थी, जिसका क्रियान्वयन 22 मई को हुआ।

अदानी पेंच पावर प्रोजेक्ट के लिए पानी पेंच परियोजना के अन्तर्गत बन रहे दो बांधों से दिया जाने वाला है, जबकि 31 गांवो की जमीनांे का अधिग्रहण जनहित के बहाने किसानों को सिंचाई का पानी देने के उद्देष्य से किया जा रहा है। क्षेत्र के किसानों को यह तथ्य हाल ही में तब पता चला जब अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों ने फर्जी एफडीआर पर माचागोरा बांध निर्माण का ठेका लेने वाले एसके जैन का ठेका निरस्त कराया, जो अब अदानी ने अपनी हैदराबाद स्थित कम्पनी को दिलवा दिया है। नई परिस्थिति में पेंच परियोजना में अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों तथा अदानी पेंच पावर प्रोजेक्ट से अपनी जमीन वापस लेने की लड़ाई लड़ रहे किसानों में एकता बन गयी है। किसानों के लिए विरोध ही विकल्प तक कि समझ तक पहुंचाने में विषेशज्ञों की टीम से मिली जानकारियां महत्वपर्ण रहीं। हालांकि इस बीच अदानी कम्पनी द्वारा बिना पर्यावरण मंजूरी के बाऊण्ड्रीवाल बना ली गई, जमीनों पर कब्जा प्राप्त हुए जगह जगह पर गढ्ढे करा लिए गए। जिलाधीश के आष्वासन के बावजूद निर्माण कार्य जारी रहा और पर्यावरण मंत्रालय चुप रहा।

यानी अब किसानों  के सामने तीन विकल्प हैं ? किसान न्यायालय का दरवाजा खटखटायें और  उम्मीद करें कि जिस तरह दादरी में उच्च न्यायालय ने किसानों की जमीनें वापस करने के निर्देष दिए, वैसे ही निर्देष किसान न्यायालय के माध्यम से हासिल कर सकेंगे। दुसरे विकल्प के तौर पर किसान पर्यावरण मंत्रालय पर दबाव बनाकर किसी भी परिस्थिति में पावर प्लांट बनाने की अनुमति न देने तथा अब तक किए गए निर्माण कार्य को ध्वस्त करने का निर्देष मंत्री जयराम रमेष से कराने की कोशिश  कर सकते है ? और तीसरा विकल्प है कि वे स्वंय आगे बढ़कर अब तक किए गए निर्माण कार्या को खुद ध्वस्त कर दें और खेती करें।

तीसरे विकल्प में भीषण टकराव की स्थिति बन सकती है। अदानी के गुण्डे या पुलिस किसानों को लाठी या गोली की दम पर रोकने की कोषिष कर सकते हैं। बड़े पैमाने पर किसानों पर फर्जी मुकदमे लगाये जा सकते हैं और अदानी पर फना हो रहा प्रषासन किसान नेताओं की गिरफ्तारी भी कर सकता है।  कारण कि अदानी ने क्षेत्र के सभी दबंग परिवारों और नेताओं  प्रोजेक्ट के ठेकांे से जोड़कर उनके आर्थिक स्वार्थ पैदा कर दिए हैं।

लेकिन 31 मई को छिन्दवाड़ा खेती बचाओ जमीन बचाओ पदयात्रा में किसानों ने बडी संख्या में शामिल होकर यह तो साफ कर दिया है कि वे दबंगई से डरकर घर बैठने वाले नहीं है। 31 मई की सभा के दौरान किसानांे ने हाथ खडा कर अपनी जमीनो पर खेती करने तथा अदानी पावर प्रोजेक्ट रद्द करने की मांग को लेकर हजारों की संख्या में जेल भरो चलाने का ऐलान किया है। ऐसे में अगर सरकार समय रहते नहीं चेती तो किसानों को लड़ाई में जीत को ही अंतिम विकल्प के साथ संघर्ष हर रास्ता  अख्तियार करना पड़ेगा. 


समाजवादी पार्टी  नेता और  पूर्व विधायक. सामाजिक-राजनितिक आंदोलनों में भागीदारी का लम्बा सिलसिला.