May 3, 2017

किशन पटनायक को टाइम्स आॅफ इंडिया ने बताया माओवादी, लिखा एनजीओ करेंगे प्रदर्शन

जिन्हें लगता है हिंदी पत्रकारिता में ही हैं केवल बकलोल, सांप्रदायिक और लालबुझक्कड़, मन से बात बनाने, बाइट चिपकाने वाले, तो वे पढ़ लें इन अंग्रेजी सूरमाओं की रिपोर्ट, पता चल जाएगा कितने पानी में है अंग्रेजी मीडिया, कैसे बनाता है झूठ का पुलिंदा




जनज्वार। दो पत्रकारों अभिषेक चौधरी और सौमित्र बोस के संयुक्त प्रयास से छपी इस रिपोर्ट को पढ़कर आप हंसी नहीं रोक पाएंगे। साथ ही आप मानने को मजबूर होंगे कि हिट्स, मुनाफे और सबसे पहले आने की जल्दबाजी में बड़े मीडिया संस्थान कैसे गैरजिम्मेदार पत्रकारिता पर उतर आए हैं और उसे बढ़ावा दे रहे हैं। उन्हें पाठकों की कोई परवाह ही नहीं है।

गैर जिम्मेदारी के पहले पायदान पर रहा टाइम्स आॅफ इंडिया और दूसरे पर रहा नई दुनिया। नई दुनिया में छपी राजेश शुक्ला की रिपोर्ट में तो बकायदा एक्सक्लूसिव भी लिखा हुआ है और हेडिंग लगी है 'डेढ़ करोड़ के इनामी रहे नक्सली लीडर किशनजी सीबीएसई के पाठ्यक्रम में।'

अंग्रेजी अखबार टाइम्स आॅफ इंडिया में महाराष्ट्र के नागपुर से 3 मई को ‘NCERT textbook has chapter on Naxalite leader Kishenji'  के नाम से एक रिपोर्ट छपी। अभिषेक चौधरी और सौमित्र बोस की ओर से लिखी गयी इस रिपोर्ट में अफसोस जाहिर करते हुए बताया गया है कि 10वीं कक्षा के छात्रों को एनसीआरईटी एक माओवादी किशनजी को पढ़ा रही है, जो कि नवंबर 2011 में कोबरा बटालियन द्वारा जंगलों में मारा गया। वह भी सामाजिक विज्ञान की पुस्तक राजनीतिक दल के सबसेक्शन ‘राजनीति की नैतिकता’ के अंतर्गत। 

10वीं के लिए एनसीआरटी द्वारा प्रकाशित पुस्तक सामाजिक विज्ञान — 2 की मूल कॉपी

एनसीआरटी को दोषी करार देते हुए पत्रकार लिखते हैं, ‘किताब में बकायदा किशनजी को महिमामंडित किया जा रहा है।’  रिपोर्ट में पत्रकार जिक्र करते हैं कि इस बात की जानकारी टीओआई को नागरिकों के एक समूह ने दी है। समूह का कहना है कि किताब आप आॅनलाइन डाउनलोड कर सकते हैं। 

फिर पत्रकार विस्तार से बताते हैं कि बताइए भला किताब में हमारे देश के कर्णधारों को उस किशनजी को पढ़ाया जा रहा है जो माओवादी नेता थे और कोबरा पोस्ट ने उन्हें झारखंड-बंगाल के बाॅर्डर पर 24 नवंबर 2011 को मार डाला था। पत्रकार यहीं नहीं रुकते, किशनजी पर किताब छपने के गुनाह का इतिहास भी बताते हैं। वे बताते हैं कि 2007 से यह किताब बच्चों को पढ़ाई जाती है।  

रिपोर्ट में 2007 लिखते हुए भी पत्रकारों की भक्तांधता नहीं डिगती कि कैसे एक जीवित आदमी जो कि भारत सरकार की निगाह में आतंकवादी था, उसकी जीवनी पढ़ाई जाएगी। 

बहरहाल, जोश आगे बढ़ता है। और दो पत्रकारों की मेहनत से तैयार यह रिपार्ट उस परिणति तक पहुंचती जब सीबीएसई की 10वीं कि किताब में किशनजी यानी चर्चित समाजवादी नेता किशन पटनायक के राजनीति रणनीति, उसकी तैयारी और गलतियों पर चर्चा होती है।

नई दुनिया का कमाल : लिखने से पहले थोड़ा दीमाग भी लगा लिया होता
किशन पटनायक की चर्चा होने पर चैप्टर में बकायदा चार महिलाओं का जिक्र होता है कि किशनजी ने अपनी सर्वसमाहार वाली राजनीतिक परंपरा को कैसे आगे बढ़ाया। चारों महिलाएं अपना पक्ष रखती हैं और किशन पटनायक की उस चिंता को भी साझा करती हैं जब वह कहते हैं कि हमने पंचायतों में हमने प्रतिनिधि उतार कर चुनाव में भागीदारी का प्रयोग किया पर लोगों ने हमें वोट नहीं दिया। 

पर किताब में आई इन तमाम जिरहों से भी पत्रकारों को समझ में नहीं आता कि माओवादी किशनजी क्योंकर चुनाव लड़ने की बात करते, उनकी पार्टी कहां पंचायत चुनाव लड़ी है या फिर माओवादियों ने कहां कहा है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं को चुनाव में सीधे उतरना चाहिए। माओवादी तो मानते ही नहीं चुनावी राजनीति इस देश की तकदीर बदल सकती है, शोषणमुक्त समाज बना सकती है। वह क्रांतिकारी आंदोलनों के पक्षधर और गरीबों की सत्ता कायम करने को अपना ध्येय मानते हैं। 

और तो और रिपोर्टर किसी नक्सल अधिकारी का बयान भी फर्जी ढंग से गढ़के स्टोरी में चिपका देते हैं। वे किसी 'एएनओ' नाम के संगठन का जिक्र करते हैं जिसने महाराष्ट्र के माओवाद प्रभावित जिले गढ़चिरौली में 2 लाख छात्रों को नक्सलवादी विचारधारा से दूरी बनाने की बाबत कसम खिलवाई है। इस मौके पर पत्रकार यह बताना नहीं भूलते कि जल्दी ही कुछ एनजीओ सीबीएसई के खिलाफ तगड़ा विरोध दर्ज कराने वाले हैं। 

योगेंद्र यादव ने की टाइम्स आॅफ इंडिया से माफी की मांग


महिला नक्सली है या नहीं इसकी जांंच उसके स्तनों से दूध निचोड़ करती पुलिस

रायपुर जेल की डिप्टी जेलर वर्षा डोंगरे का फेसबुक स्टेटस, जिसकी वजह से भाजपा सरकार ने उन्हें नौकरी से किया निलंबित

वो नक्सलवाद का अंत तो चाहते हैं लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू-बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं, उन्हे फर्जी केसों में चारदिवारी में सड़ने भेजा जा रहा है। तो आखिर वो न्याय प्राप्ति के लिए कहां जाएं... 

पूंजीवादी व्यवस्था के शिकार जवान शहीदों को सत सत नमन्


मुझे लगता है कि एक बार हम सभी को अपना गिरेबान झांकना चाहिए, सच्चाई खुद-ब-खुद सामने आ जायेगी... घटना में दोनों तरफ मरने वाले अपने देशवासी हैं...भारतीय हैं। इसलिए कोई भी मरे तकलीफ हम सबको होती है। लेकिन पूँजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में जबरदस्ती लागू करवाना... उनके जल जंगल जमीन से बेदखल करने के लिए गांव का गांव जलवा देना, आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, आदिवासी महिलाएं नक्सली हैं या नहीं इसका प्रमाण देने के लिए उनका स्तन निचोड़कर दूध निकालकर देखा जाता है। टाईगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों  को जल, जंगल, जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है जबकि संविधान अनुसार 5वीं अनुसूची में शामिल होने के कारण सैनिक सरकार को कोई हक नहीं बनता आदिवासियों के जल जंगल और जमीन को हड़पने का.... 

आखिर ये सबकुछ क्यों हो रहा है। नक्सलवाद खत्म करने के लिए... लगता नहीं। सच तो यह है कि सारे प्राकृतिक खनिज संसाधन इन्ही जंगलों में है जिसे उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाना है। आदिवासी जल जंगल जमीन खाली नहीं करेंगे क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है। वो नक्सलवाद का अंत तो चाहते हैं लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं, उन्हे फर्जी केसों में चारदिवारी में सड़ने भेजा जा रहा है। तो आखिर वो न्याय प्राप्ति के लिए कहां जाएं... 

ये सब मैं नहीं कह रही CBI रिपोर्ट कहती है, सुप्रीम कोर्ट कहता है, जमीनी हकीकत  कहती है। जो भी आदिवासियों की समस्या समाधान का प्रयत्न करने की कोशिश करते हैं, चाहे वह मानव अधिकार कार्यकर्ता हो चाहे पत्रकार... उन्हे फर्जी नक्सली केसों में जेल में ठूस दिया जाता है। अगर आदिवासी क्षेत्रों में सबकुछ ठीक हो रहा है तो सरकार इतना डरती क्यों है। ऐसा क्या कारण है कि वहां किसी को भी सच्चाई जानने के लिए जाने नहीं दिया जाता।

मैनें स्वयं बस्तर में 14 से 16 वर्ष की मुड़िया माड़िया आदिवासी बच्चियों को देखा था जिनको थाने में महिला पुलिस को बाहर कर पूरा नग्न कर प्रताड़ित किया गया था। उनके दोनों हाथों की कलाईयों और स्तनों पर करेंट लगाया गया था जिसके निशान मैंने स्वयं देखे। मैं भीतर तक सिहर उठी थी...कि इन छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टार्चर किस लिए...मैंने डॉक्टर से उचित उपचार व आवश्यक कार्यवाही के लिए कहा।

हमारे देश का संविधान और कानून यह कतई हक नहीं देता कि किसी के साथ अत्याचार करें...

इसलिए सभी को जागना होगा... राज्य में 5वी अनुसूची लागू होनी चाहिए। आदिवासियों का विकास आदिवासियों के हिसाब से होना चाहिए। उन पर जबरदस्ती विकास ना थोपा जावे। आदिवासी प्रकृति के संरक्षक हैं। हमें भी प्रकृति का संरक्षक बनना चाहिए ना कि संहारक... पूँजीपतियों के दलालों की दोगली नीति को समझे ...किसान जवान सब भाई भाई हैं हैं. अतः एक दुसरे को मारकर न ही शांति स्थापित होगी और ना ही विकास होगा...। संविधान में न्याय सबके लिए है... इसलिए न्याय सबके साथ हो... 

हम भी इसी सिस्टम के शिकार हुए... लेकिन अन्याय के खिलाफ जंग लड़े, षडयंत्र रचकर तोड़ने की कोशिश की गई प्रलोभन रिश्वत का आफर भी दिया गया वह भी माननीय मुख्य न्यायाधीश बिलासपुर छ.ग. के समक्ष निर्णय दिनांक 26.08.2016 का para no. 69 स्वयं देख सकते हैं। लेकिन हमने इनके सारे इरादे नाकाम कर दिए और सत्य की विजय हुई... आगे भी होगी।

अब भी समय है...सच्चाई को समझे नहीं तो शतरंज की मोहरों की भांति इस्तेमाल कर पूंजीपतियों के दलाल इस देश से इन्सानियत ही खत्म कर देंगे।

ना हम अन्याय करेंगे और ना सहेंगे....
जय संविधान जय भारत