May 3, 2017

महिला नक्सली है या नहीं इसकी जांंच उसके स्तनों से दूध निचोड़ करती पुलिस

रायपुर जेल की डिप्टी जेलर वर्षा डोंगरे का फेसबुक स्टेटस, जिसकी वजह से भाजपा सरकार ने उन्हें नौकरी से किया निलंबित

वो नक्सलवाद का अंत तो चाहते हैं लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू-बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं, उन्हे फर्जी केसों में चारदिवारी में सड़ने भेजा जा रहा है। तो आखिर वो न्याय प्राप्ति के लिए कहां जाएं... 

पूंजीवादी व्यवस्था के शिकार जवान शहीदों को सत सत नमन्


मुझे लगता है कि एक बार हम सभी को अपना गिरेबान झांकना चाहिए, सच्चाई खुद-ब-खुद सामने आ जायेगी... घटना में दोनों तरफ मरने वाले अपने देशवासी हैं...भारतीय हैं। इसलिए कोई भी मरे तकलीफ हम सबको होती है। लेकिन पूँजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में जबरदस्ती लागू करवाना... उनके जल जंगल जमीन से बेदखल करने के लिए गांव का गांव जलवा देना, आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, आदिवासी महिलाएं नक्सली हैं या नहीं इसका प्रमाण देने के लिए उनका स्तन निचोड़कर दूध निकालकर देखा जाता है। टाईगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों  को जल, जंगल, जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है जबकि संविधान अनुसार 5वीं अनुसूची में शामिल होने के कारण सैनिक सरकार को कोई हक नहीं बनता आदिवासियों के जल जंगल और जमीन को हड़पने का.... 

आखिर ये सबकुछ क्यों हो रहा है। नक्सलवाद खत्म करने के लिए... लगता नहीं। सच तो यह है कि सारे प्राकृतिक खनिज संसाधन इन्ही जंगलों में है जिसे उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाना है। आदिवासी जल जंगल जमीन खाली नहीं करेंगे क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है। वो नक्सलवाद का अंत तो चाहते हैं लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं, उन्हे फर्जी केसों में चारदिवारी में सड़ने भेजा जा रहा है। तो आखिर वो न्याय प्राप्ति के लिए कहां जाएं... 

ये सब मैं नहीं कह रही CBI रिपोर्ट कहती है, सुप्रीम कोर्ट कहता है, जमीनी हकीकत  कहती है। जो भी आदिवासियों की समस्या समाधान का प्रयत्न करने की कोशिश करते हैं, चाहे वह मानव अधिकार कार्यकर्ता हो चाहे पत्रकार... उन्हे फर्जी नक्सली केसों में जेल में ठूस दिया जाता है। अगर आदिवासी क्षेत्रों में सबकुछ ठीक हो रहा है तो सरकार इतना डरती क्यों है। ऐसा क्या कारण है कि वहां किसी को भी सच्चाई जानने के लिए जाने नहीं दिया जाता।

मैनें स्वयं बस्तर में 14 से 16 वर्ष की मुड़िया माड़िया आदिवासी बच्चियों को देखा था जिनको थाने में महिला पुलिस को बाहर कर पूरा नग्न कर प्रताड़ित किया गया था। उनके दोनों हाथों की कलाईयों और स्तनों पर करेंट लगाया गया था जिसके निशान मैंने स्वयं देखे। मैं भीतर तक सिहर उठी थी...कि इन छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टार्चर किस लिए...मैंने डॉक्टर से उचित उपचार व आवश्यक कार्यवाही के लिए कहा।

हमारे देश का संविधान और कानून यह कतई हक नहीं देता कि किसी के साथ अत्याचार करें...

इसलिए सभी को जागना होगा... राज्य में 5वी अनुसूची लागू होनी चाहिए। आदिवासियों का विकास आदिवासियों के हिसाब से होना चाहिए। उन पर जबरदस्ती विकास ना थोपा जावे। आदिवासी प्रकृति के संरक्षक हैं। हमें भी प्रकृति का संरक्षक बनना चाहिए ना कि संहारक... पूँजीपतियों के दलालों की दोगली नीति को समझे ...किसान जवान सब भाई भाई हैं हैं. अतः एक दुसरे को मारकर न ही शांति स्थापित होगी और ना ही विकास होगा...। संविधान में न्याय सबके लिए है... इसलिए न्याय सबके साथ हो... 

हम भी इसी सिस्टम के शिकार हुए... लेकिन अन्याय के खिलाफ जंग लड़े, षडयंत्र रचकर तोड़ने की कोशिश की गई प्रलोभन रिश्वत का आफर भी दिया गया वह भी माननीय मुख्य न्यायाधीश बिलासपुर छ.ग. के समक्ष निर्णय दिनांक 26.08.2016 का para no. 69 स्वयं देख सकते हैं। लेकिन हमने इनके सारे इरादे नाकाम कर दिए और सत्य की विजय हुई... आगे भी होगी।

अब भी समय है...सच्चाई को समझे नहीं तो शतरंज की मोहरों की भांति इस्तेमाल कर पूंजीपतियों के दलाल इस देश से इन्सानियत ही खत्म कर देंगे।

ना हम अन्याय करेंगे और ना सहेंगे....
जय संविधान जय भारत

3 comments:

  1. हमारे देश का संविधान और कानून यह नहीं कहता कि किसी के साथ अत्याचार हो

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  2. यहाँ साहिर साहब की एक ग़ज़ल है बिलकुल सटीक है।
    औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
    जब जी चाहा मसला कुचला, जब जी चाहा धुत्कार दिया |.

    तुलती है कहीं दीनारों में, बिकती है कहीं बाज़ारों में
    नंगी नचवाई जाती है, ऐय्याशों के दरबारों में
    ये वो बेइज्ज़त चीज़ है जो, बंट जाती है इज्ज़तदारों में ।

    मर्दों के लिए हर ज़ुल्म रवां, औरत के लिए रोना भी खता
    मर्दों के लिए लाखों सेजें, औरत के लिए बस एक चिता
    मर्दों के लिए हर ऐश का हक, औरत के लिए जीना भी सज़ा ।
    जिन होठों ने इनको प्यार किया, उन होठों का व्योपार किया
    जिस कोख में इनका जिस्म ढला, उस कोख का कारोबार किया
    जिस तन से उगे कोपल बन कर, उस तन को ज़लील-ओ-खार किया ।

    मर्दों ने बनायीं जो रस्में, उनको हक का फरमान कहा
    औरत के ज़िंदा जलने को, कुर्बानी और बलिदान कहा
    किस्मत के बदले रोटी दी, और उसको भी एहसान कहा ।

    संसार की हर इक बेशर्मी, ग़ुरबत की गोद में पलती है
    चकलों ही में आ के रूकती है, फाकों से जो राह निकलती है
    मर्दों की हवस है जो अक्सर, औरत के पाप में ढलती है ।

    औरत संसार की इस्मत है, फिर भी तकदीर की हेटी है
    अवतार पयम्बर जनती है, फिर भी शैतान की बेटी है
    ये वो बदकिस्मत माँ है जो, बेटों की सेज पे लेटी है |

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  3. बहुत ही निंदनीय और अमानवीय कर्त्य है !

    क्या आदिवासी सिर्फ नक्सली ही होते है ?

    फिर भी

    आदिवासियो को आखिर नक्सली बनने को किसने मजबूर किया ?

    ये मनुवादी सरकार और समाज की रक्षा करने,न्याय करने आदि के ठेकेदार अपने फायदों के लिये कुछ भी कर गुजरने को तैयार है !

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