राज्य सरकारें रिश्वतखोरी को वैध कर दें,ताकि लोग एक निश्चित राशि देकर सरकारी विभागों में अपना काम करा लें। रिश्वतखोरी की दर तय होने से लोगों को भी रिश्वत देने में आसानी होगी तथा इससे हर आदमी को पता लग जाएगा कि अमुक काम के लिए उसे कितनी रिश्वत देनी है...
राजेन्द्र राठौर
छत्तीसगढ़ सहित देश के विभिन्न राज्यों में जिस तरह से घूसखोर अधिकारी-कर्मचारी और नेता एंटी करप्शन ब्यूरो के शिकंजे में फंसते जा रहे हैं, उससे ऐसा लगता है यहां घूसखोरी चरम पर है। हर विभाग में रिश्वत का बोलबाला है, रिश्वत के बिना कुछ भी काम होना संभव नहीं है। एक तरह से रिश्वतखोरी देश का सर्वमान्य धर्म बन गया है, जिसका पालन देश के अधिकांश लोग पूरी निष्ठा और ईमानदारी से कर रहे हैं।
रिश्वतखोरी आज एक ऐसा भयानक रूप धारण कर चुकी हैं, जिसने पूरे देश के विकास के अलावा यहां की अर्थव्यवस्था को भी तहस-नहस कर दिया है। भारत आज कहने भर को स्वतंत्र है। समझ से परे है कि यह कैसी आजादी है जहां टैक्स चोरी, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी तथा अन्य तमाम गलत तरींकों से कमाई गई नेताओं, अधिकारियों, भ्रष्टाचारियों तथा निजी कंपनियों के मालिकों की पूंजी अब इतनी बढ़ गई है कि वाशिंगटन के एक संस्था ग्लोबल फाईनेंशियल इंटिग्रिटी को इस विषय पर आंकड़े जारी करने पड़े हैं। जिसमें बताया गया है कि भारत में आजादी से लेकर अब तक कम से कम 450 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है।
अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार दिवस के मौके पर जारी रिपोर्ट की बात करें तो पिछले साल भारत में काम करवाने के लिए 54 फीसदी लोगों ने रिश्वत दी। जबकि पूरी दुनिया में सिर्फ चौथाई आबादी घूस देने को मजबूर है। यह बात ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में सामने आई है। जर्मनी के बर्लिन स्थित एनजीओ ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के सर्वे में दुनियाभर में घूसखोरी को लेकर आंकड़ें इकट्ठे किए गए। इसके लिए 86 देशों में 91,000 लोगों से बात की गई। भारत में 74 फीसदी का कहना है कि पिछले 3 सालों में रिश्वतखोरी बढ़ी है, जबकि दुनिया में यह बात स्वीकार करने वालों की संख्या 60 प्रतिशत है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे ज्यादा भ्रष्ट पुलिस विभाग है। पुलिस विभाग से सरोकार रखने वाले 29 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने रिश्वत दी है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल 2003 से भ्रष्टाचार पर रिपोर्ट जारी करती रही है। यह उसकी 7 वीं रिपोर्ट है, जिसमें पहली बार चीन, बांग्लादेश और फलीस्तीनी को शामिल किया गया है। वर्ष 2010 के ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर के मुताबिक, पिछले 12 महीनों में हर चौथे आदमी ने नौ संस्थानों में से एक में काम करवाने के लिए घूस दी, इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य और टैक्स अधिकारी शामिल हैं। सर्वे में भारत को इराक और अफगानिस्तान सहित सबसे भ्रष्ट देशों में गिना गया है। रिश्वतखोरी के आधार पर बनाए गए भ्रष्ट देशों की सूची में भारत, अफगानिस्तान, कंबोडिया, कैमरून, इराक, नाइजीरिया और सेनेगल जैसे देशों के साथ सबसे ऊपर है, जहां हर दूसरे व्यक्ति ने रिश्वत देने की बात मानी है।
यदि रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का दीमक हमारे देश के नेताओं और अधिकारियों के रूप में देश को न चट करता तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत अब तक विकास के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ चुका होता। एक तरह से देश की राजनीति का अधिकांश भाग इस समय भ्रष्टाचार के दलदल में सिर से पांव तक डूबे हुए हैं। मगर हमारे जनप्रतिनिधि और जनसेवक (अधिकारी वर्ग) खुद को भोलीभाली जनता के सामने पाक साफ जरूर बताते हैं।
वे सचमुच रिश्वतखोर नहीं हैं और अपने मेहनत की कमाई खाते हैं, तो यह भी स्पष्ट करें कि उनके पास करोड़ों-अरबों रूपए आखिर कहां से आते हैं। फैक्ट्री, आलीशान बंगला, कीमती वाहन और विदेशी सामान वे कैसे खरीद पाते हैं। एक कर्मचारी से लेकर विधायक और सांसद को सरकार जो वेतन देती है, उससे महज परिवार ही चल सकता है। एक अहम बात यह है कि वर्तमान दौर में रिश्वखोरी हमारे देश का सर्वमान्य धर्म है। यही एक मात्र ऐसा धर्म है जिसका पालन देशवासी बड़ी निष्ठा से करते हैं। एक भृत्य से लेकर कलेक्टर, कमिश्नर, सांसद, विधायक और मंत्री तक इस धर्म के पालन पर एकमत हैं। वे अपने धर्मों को लेकर आपस में चाहे जितना सिर फुटौवल करें, लेकिन रिश्वत धर्म निभाने में सभी एकमत हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी और असम से गुजरात तक हमें रिश्वतखोरी के मजबूत धागे ने ही एकमत होने पर विवश किया है।
हमारे देश की एकता और अखण्डता का सबसे बड़ा सबूत रिश्वतखोरी को ही माना जा सकता है। सोचने वाली बात यह है कि टाटा समूह के प्रमुख रतन टाटा 12 वर्ष बीत जाने के बाद कहते सुनाई दिए कि उनसे एक केन्द्रीय मंत्री ने टाटा समूह सिंगापुर एयरलाईंस के साथ मिलकर देश में एक निजी विमानन कंपनी स्थापित करने के लिए लाइसेंस स्वीकृत कराने 15 करोड़ रुपए की रिश्वत मांगी थी। इससे साफ हो गया कि उद्योगपति भी अपना काम चलाने के लिए रिश्वत देते हैं।
आश्चर्य तब ज्यादा होता है जब एक विभाग में कार्यरत कर्मचारी ही अपने स्टाफ के किसी व्यक्ति से काम करने के एवज में रिश्वत की मांग करता है और बिना लेनदेन के कलम भी नहीं चलाता। एक ऐसा ही मामला छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले में कुछ दिन पहले ही सामने आया। सहकारिता विभाग के हेड क्लर्क ने अपने रिटायर्ड अधिकारी से ही पेंशन प्रकरण स्वीकृत कराने के एवज में 2000 रूपए रिश्वत मांगे थे, लेकिन उसे रिटायर्ड अधिकारी ने अपनी चतुराई से एंटी करप्शन ब्यूरों के जाल में फंसा दिया। ऐसे मामले आए दिन सामने आ रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर चिंता जाहिर करते हुए बीते अक्टूबर माह में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि सरकारी विभागों, खासतौर पर आयकर, पुलिस, राजस्व, बिक्रीकर और आबकारी विभागों में कोई भी काम बिना पैसा दिए नहीं होता। न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की पीठ ने कहा भारत के लिए सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात ये है कि अब भ्रष्टाचार पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बनाई गई इकाईयां ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाई जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने खासतौर पर शासकीय विभागों में व्याप्त रिश्वतखोरी पर चिंता जाहिर की। साथ ही व्यंग्य करते हुए कहा बेहतर हो कि राज्य सरकारें रिश्वतखोरी को वैध कर दें, ताकि लोग एक निश्चित राशि देकर सरकारी विभागों में अपना काम करा लें। रिश्वतखोरी की दर तय होने से लोगों को भी रिश्वत देने में आसानी होगी तथा इससे हर आदमी को पता लग जाएगा कि अमुक काम के लिए उसे कितनी रिश्वत देनी है।
दूसरी तरफ सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है, वे देश में लोकपाल विधेयक लागू कराना चाहते है। वहीं रिश्वतखोरी और कालेधन के खिलाफ योगगुरू बाबा रामदेव छह माह पहले से ही लड़ाई लड़ रहे हैं। वे बड़े नोंटो को बंद कराने के पक्षधर हैं, साथ ही विदेशों में जमा कालेधन को वापस भारत लाने की जिद पर अड़े हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और बाबा रामदेव को आखिर ऐसे आंदोलन की जरूरत ही क्यों पड़ रही है। क्या सचमुच आज देश के शीर्षस्थ नेता बिक चुके हैं? वे सबकुछ जान-समझकर भी रिश्वतखोरी पर शिकंजा कसने कोई कदम नहीं उठना चाहते या फिर उन्हें खुद के अवैध कमाई बंद होने की चिंता है।
छत्तीसगढ़ के जांजगीर के राजेंद्र राठौर पत्रकारिता में 1999से जुड़े हैं और स्वतंत्र लेखन का शौक रखते हैं. लोगों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए 'जन-वाणी' ब्लॉग लिखते है.