पटना पुस्तक मेले में किन मजबूरियों और समझदारी के चलते हिंदी के साहित्यकार आलोक धन्वा,अरुण कमल और आलोचक खगेन्द्र ठाकुर छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन का पुस्तक विमोचन करने पहुंचे थे, इस बारे में इनलोगों ने अपनी सफाई जनज्वार को दे दी है. महा आलोचक नामवर सिंह से बात नहीं हो सकी है, उनका जवाब आते ही संलग्न कर दिया जायेगा...........
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यारी देख ली, अब ईमान खोजें : दाहिने से खगेन्द्र ठाकुर, नामवर सिंह, किताब विक्रेता अशोक महेश्वरी, डीजीपी विश्वरंजन और आलोक धन्वा : चचा आलोक आप गाय घाट पर माला जपते, तो भी अपने बुजुर्गों पर हम शर्मिंदा न होते.
अरूण कमल- बड़े दिनों बाद आपको याद आया । हमें इस बारे में कोई बात नहीं कहनी है, मैं कहता नहीं, लिखकर बात करता हूं।
यह कहने के थोड़ी देर बाद उनका दुबारा फोन आता है और वे कहते हैं-
विश्वरंजन हमारे बहुत पुराने दोस्त हैं। कॉलेज में साथ पढ़े हैं। उनकी पहली किताब का लोकार्पण हमने ही किया था। देखिये आदमी का जहां बहुत पुराना रिश्ता होता हैं वहां आदमी कई बार जाता है और नहीं भी जाता है। मै इतना कमजोर आदमी नहीं हूं कि किसी के छूने मात्र से अपवित्र हो जाउं, मुझे अपने को संभालने आता है। जिस कार्यक्रम की तस्वीर की आप जिक्र कर रहे हैं उसी में मैंने कुछ बातें कहीं थी जो सलवा जुडूम और विश्वरंजन के खिलाफ थीं। जिसके बाद मुझे बनारस विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे रामजी राय ने बधाई भी दी थी। विश्वरंजन के कार्यक्रम में शामिल होने से मैं सलवा जुडूम का समर्थक नहीं हो जाउंगा, और फिर आप विश्वरंजन को क्यों दोषी मानते हैं, सरकार पर बात कीजिए।
खगेंद्र ठाकुर- तो सलवा जुडूम के लिए वह दोषी कैसे हुआ। विश्वरंजन की जगह कोई भी अधिकारी होता तो वही करता,जो वह कर रहा है। पटना में एक लड़का था सुशील, जो अपने को नक्सल कहता था। बाद में वह डीएसपी हो गया और इस समय वह नीतीश कुमार की सुरक्षा में है। तो क्या हम उसके कार्यक्रमों में शामिल नहीं होंगे। आप समझिये कि हिंदी साहित्य पर अधिकारियों का बहुत दबाव है। अगर अशोक वाजपेयी,विभूति नारायण राय और तमाम इनकमटैक्स कमीश्नर साहित्कार हो सकते हैं तो विश्वरंजन क्यों नहीं। पिछले वर्ष भी जब विश्वरंजन ने प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान का आयोजन किया था तो कुछ लोगों ने विरोध का तमाशा किया था। अबकी भी रायपुर में शमशेर और अज्ञेय की जन्मशति पर एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है, इसमें जाने में क्या हर्ज है।
थोड़ी देर बाद फिर फोन आता है
देखिये जो लोग अपने को माओवादी कह रहे हैं वही तो सलवा जुडूम के असली कारण हैं। माओवादी कहीं स्कूल उड़ा रहे हैं,रेल ट्रैक तोड़ रहे हैं। अभी मैं हाल में टीवी देख रहा था तो बच्चे तख्तियां लेकर प्रदर्शन कर रहे थे कि माओवादी अंकल हमें पढ़ने दो। अच्छा एक बात और .........मैं तो वहां ‘लेखक से मिलिये’कार्यक्रम में नामवर सिंह से मिलने गया था। पहले से घोषित तो था नहीं कि विश्वरंजन की किताब का विमोचन है। अब वहां चले गये तो लोगों ने बैठा लिया तो क्या करें। फिर मैंने तो बोला भी नहीं था.......
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आलोक धन्वा- यार जानते नहीं हो, मैं गौरीनाथ की दूकान अंतिका प्रकाशन पर बैठा हुआ था। तभी मुझे बड़ी तेज पेशाब लगा। पेशाब करने का रास्ता नेशनल बुक ट्रस्ट( एनबीटी) की दुकान के सामने से होकर जाता था। इन सब झमेलों से बचकर,अभी मैं धीरे से वहां से निकलने की कोशिश कर ही रहा था कि एनबीटी के चेयरमैन ने मुझे देख लिया। उसने जो है कि विश्वरंजन को इशारा कर दिया। इतने में विश्वरंजन और उसके कमांडो हमको आकर चारो ओर से घेर लिये। विश्वरंजन कहने लगे कि अगर आप मेरे पुस्तक विमोचन में नहीं चलेंगे तो हम आपको घेरे रहेंगे।
अब बताओ मैं क्या करता। आखिर तुम होते तो क्या करते? ऐसा थोड़े ही है कि जो हत्याएं हमारे साथियों की कर रहे हैं उसे मुझे खुशी मिल रही है। हमारा उनसे विरोध हो सकता है,मगर ऐसे उनकी हत्या करना कैसे जायज है।