Aug 4, 2010

सरकार अत्याचार करै, तो रखावै कौन


जिस जमीन पर फसलें उगाते हुए किसानों की पीढ़ियां गुजर चुकी हों,जिन खेतों में उगी फसलों का नाता इन परिवारों की समृद्धि से रहा हो, उन खेतों का मालिकाना हक, कागज की एक चिट्ठी छीन ले तो किसान क्या करें?
अजय प्रकाश की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश  के अलीगढ़ जिले के टप्पल थाना क्षेत्र के छह गांवों में जेपी ग्रुप के मॉल और मकान बनाने के लिए सरकार ने जो जमीन निर्धारित की है,वह किसानों की खेती योग्य जमीन है। मगर उत्तर प्रदेश सरकार जेपी ग्रुप  के मकान-दूकान बनाने को देश  का विकास ठहराने पर आमादा है और हर कीमत पर जमीन कब्जाने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। 510 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इन सभी गांवों में पुलिस,प्रशासन और जेपी ग्रुप के लठैत भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं,जिसके खिलाफ किसान  भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं और हर रोज जोरदार प्रदर्शन  कर रहे हैं.
पश्चिमी  उत्तर प्रदेश में सरकार और जनता के बीच पिछले कई वर्षों  से सबसे बड़ी टकराहट मुआवजे और कब्जे को लेकर ही है। सरकार के पास बहाना विकास का है और किसान ज्यादा से ज्यादा मुआवजा पाने के संघर्ष  पर उतारू है। ग्रामीण हुकुम सिंह कहते हैं,हम पर जुल्म होता है तो न्याय की उम्मीद में प्रशासन,प्रतिनिधि या अदालत में जाते हैं। मगर हम लोगों के सामने यही संकट है कि सरकार ही अत्याचार करै, तो रखावै कौन।’

सरकारी-निजी मिलीभगत  से इन छह गांवों में खेती के जमीनों पर कब्जेदारी की कानूनी प्रक्रिया जेपी ग्रुप ने 2001 में ताज एक्सप्रेस-वे के बनने के दौरान ही पूरी कर ली थी। मगर यह जानकारी किसानों के बीच सरकार की ओर से पिछले वर्ष सार्वजनिक की गयी। गौरतलब है कि उस समय सरकार बसपा की ही थी और मौजूदा मुख्यमंत्री मायावती ही सत्ता पर काबिज थीं। सन् 2001 में किसानों ने बड़ी आसानी से ताज एक्सप्रेस वे के लिए जमीन दे दी कि इससे राज्य का विकास होगा। उस समय किसानों ने जमीन सवा तीन लाख रूपये बीघे के हिसाब से दी थी। लेकिन पिछले वर्श जब विकास प्राधिकरण ने किसानों को नोटिस भेजा कि अलीगढ़ जिले के छह गांवों टप्पल, उदयपुर, जहानगढ़, कृपालपुर, जीकरपुर और कंसेरा गांव के जमीन मालिक कोई नया निर्माण न करें, तो किसान हतप्रभ रह गये।

इसकी शुरुआअत उस समय हो गयी थी जब कॉमनवेल्थ खेलों के लिए दिल्ली से आगरा के बीच चौड़ी,सुंदर और चकमदार सड़क बनाने की योजना की मंजूरी ताज एक्सप्रेस-वे हाइवे प्राधिकरण को सरकार ने दी थी। जिसका नाम बाद में यमुना एक्सप्रेस-वे विकास प्राधिकरण हो गया। इसके लिए नोएडा,अलीगढ़ और आगरा के किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया गया और ठेका देने के लिए कई कंपनियां आमंत्रित की गयीं।

जेपी ग्रुप ने सरकार से कहा कि वह नोएडा से आगरा तक अपने खर्चे से सड़क बना देगा। शर्त  बस इतनी है कि सरकार कंपनी को अच्छे बाजार की संभावना वाली जगहों पर प्रदेश  में पांच जगह करीब 50 हजार हेक्टेयर जमीन उसे दे, जिसका भुगतान कंपनी कर देगी। मगर कंपनी ने दूसरी शर्त  यह रखी कि सड़कों के बनने के बाद, तीस वर्षों तक टोल टैक्स जेपी ग्रुप वसूल करेगा। जनता की सरकार मायावती ने इसे जनहित में मानते हुए जेपी ग्रुप  की सारी शर्तें स्वीकार कर लीं।

गौरतलब है कि यह सारी जानकारी किसानों से छिपायी गयी। जहानगढ़ गाँव के हुकुम सिंह इसे एक साजिश मानते हैं। हुकुम सिंह ने बताया कि ‘जिलाधिकारी ने सरकारी कर्मचारियों पर दबाव डालकर,तबादले की धमकी देकर कुछ ग्रामीणों से जमीन कब्जा वाले कागजों पर तो दस्तखत करा लिया है, मगर ज्यादातर लोगों को सरकार की यह षर्त मंजूर नहीं है।’यानी प्रशासन घोषित  कब्जेदारी के तरीकों के मुकाबले अभी तक अघोषित  ढंग ही बात मनवाने में सफल रहा है। ऐसा सरकार इसलिए कर रही है कि 2001में नोएडा एक्सप्रेस वे के लिए जिस कीमत (सवा तीन लाख रूपया बीघा) पर अधिग्रहण हुआ था, नौ साल बाद भी किसान उसी दर को स्वीकार कर लें।

किसानों के आंदोलन में शामिल राजू शर्मा  बताते हैं कि ‘सरकार की शर्त हमें मंजूर नहीं थी। इसलिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। किसानों ने अदालत के समक्ष अपनी मांगों को रखा। जैसे,किसानों की जमीन को सरकार साढे़ सैंतालीस सौ वर्गमीटर के हिसाब से बेच रही है तो उन्हें इन जमीनों का भुगतान बेची जा रही कीमत से बीस प्रतिशत  कम करके अदा करे। दूसरी मांग यह है कि कुल जमीन का दस प्रतिषत हिस्सा विकसित कर सरकार किसानों को दे जिससे कि वे देश  के विकास में अपनी भागीदारी कर सकें। मिले हुए मुआवजे से गर किसान प्रदेश में कहीं जमीन खरीदता है तो उसे स्टांप शुल्क न देना पड़े और हर प्रभावित परिवार के सदस्य को रोजगार मिले।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इन सभी मामलों के पक्ष-विपक्ष पर साल भर सुनवाई चली। किसानों को उम्मीद थी कि अदालत उनके पक्ष में फैसला देगी। मगर अदालत ने 2 जुलाई को जो फैसला दिया, उससे बीस हजार आबादी वाले इन छह गांवों के लोग सकते में आ गये। राजू शर्मा बताते हैं कि ‘सरकार और जेपीग्रुप  की तरफ से पेश हो रहे वकीलों ने उच्च न्यायालय में जो बातें रखीं वे सभी हवाई साबित हुईं। जैसे किसानों की खेती योग्य जमीनों को जेपी के वकील ने बंजर बताया तो किसान उसे उपजाउ साबित करने में सफल हुए। इतना ही नहीं किसानों अदालत में धारा -5ए का हवाला देते हुए सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया कि ग्रामीणों की सहमति की सरकार ने कोई जरूरत ही नहीं समझी।

सारी सुनवाइयों के बाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश  सुनील अंबानी और धीरेंद्र सिंह ने तीन जिलों आगरा, नोएडा और अलीगढ़ में किसानों के विरोध के औसत के आधार पर टप्पल क्षेत्र के प्रभावितों का मुकदमा खारिज कर दिया। किसानों के वकील आषीश पांडेय ने बताया कि ‘एक ही प्रोजेक्ट के उपयोग के लिए कब्जाई गयी जमीन को आधार बनाकर अदालत ने कहा कि जब अस्सी फीसदी किसानों को कोई ऐतराज नहीं है तो बीस प्रतिशत  का क्या मतलब?’दरअसल जजों ने इन तीनों जिलों में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ हो रहे विरोध और जमीन का औसत निकाला तो पाया कि टप्पल के किसानों की भागीदारी 20 प्रतिशत  है। इसी आधार पर दोनों जजों ने संयुक्त रूप से सुनवाई के दौरान मुकदमे को खारिज कर जेपी ग्रुप के पक्ष में फैसला दे दिया।

सरकार,प्रशासन और अंत में अदालती आदेश से हताश ग्रामीणों ने जीरकपुर गांव में किसान सभा के बैनर भूख हड़ताल शुरू कर दी है। मगर पुलिस लोकतान्त्रिक  विरोध के इस तरीके को लगातार असफल करने में लगी हुई है। कब्जेदारी से प्रभावित होने वाले सभी गांवों में धारा 144 लगा दी गयी है जिससे कि किसान इकट्ठे होकर आंदोलन को मजबूत न बना सकें। किसान सभा के धरने में सक्रिय भूमिका निभा रहे किशन  बघेल ने बताया कि ‘इन सभी गांवों के सर्वाधिक सक्रिय और जुझारू लोगों का पुलिस ने पहले से ही मुचलका कर रखा है ताकि संगठित आवाज उठाने वालों पर कानूनी कार्रवाई कर, कानून-व्यवस्था बनाये रखने के बहाने जेलों में डाला जा सके।’ किसान सभा नेता कल्लू बघेल को पुलिस ने 29 जुलाई को देर रात में घर से उठाकर जेल में डाल दिया था।

सरकार और जेपी के मिलीभगत में फंसे ग्रामीणों ने फिर एक बार अदालत का दरवाजा खटखटाया है। सर्वोच्च न्यायालय के वकील रामनिवास ने किसानों की ओर से उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अर्जी डाली है। मगर अब प्रष्न यह है कि देष की आर्थिकी में बड़ी भूमिका निभाने वाले किसानों के खिलाफ सरकार मुकदमा लड़ रही है, पूंजी बटोरने में लगी कंपनियों के लिए सुविधा मुहैया कराना ही जिम्मेदारी मान चुकी है।

(द पब्लिक एजेंडा में छपी रिपोर्ट का संपादित अंश)
टिप्पणी- ग्रेटर नोएडा  से छह किलोमीटर दूर  अलीगढ  जिला  के खैर रेलवे स्टेशन की ओर पड़ने वाले इन गांवों  में  तीखा आन्दोलन चल रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि मीडिया को पुलिस ओर जेपी कंपनी  के लोग जाने नहीं दे रहे हैं. जनपक्षधर पत्रकार और मीडिया संस्थान इस मसले को जानने के लिए इन नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं.
 
रमेश शर्मा -  09456668041
राजू  शर्मा - 09758659590
हुकुम सिंह - 09250111634