अलीगढ़ में जारी किसानों के आंदोलन को लेकर जनज्वार ने करीब दो सप्ताह पहले ‘सरकार ही अत्याचार करै,तो कौन रखावै’रिपोर्ट प्रकाशित की थी। रिपोर्ट के साथ जनपक्षधर पत्रकारों और मीडिया समूहों से अपील भी की गयी थी कि वह इस खबर को तवज्जो दें मगर ऐसा देखने को नहीं मिला। हमारा मानना है कि अगर समय रहते हस्तक्षेप हुआ होता तो किसान पहले सरकार को,फिर अदालत को और अंत में मीडिया को बिका हुआ नहीं मानते और न ही किसानों और सुरक्षाबलों के घरों में मातमी माहौल होता जो आज है। अलीगढ़ के टप्पल थाना क्षेत्र से उचित मुआवजे की मांग के साथ शुरू हुआ किसानों का शांतिपूर्ण धरना अब उग्र आंदोलन में तब्दील हो चुका है और धीरे-धीरे पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैल रहा है।
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जमीन अधिग्रहण के बदले उचित मुआवजे के लिए संघर्षरत किसानों पर कल शाम पुलिस ने गोलियां दागीं और आंसू गैस के गोल छोड़े। पुलिस की इस गोलीबारी में दो आंदोलनकारी किसानों और एक पीएसी के सब इंस्पेक्टर की मौत हो गयी। मरने वालों में जीरकपुर गांव के चंद्रपाल का 12 वर्षीय बेटा भोला और श्यारोल गांव का 24वर्षीय युवक धर्मेंद्र मारा गया। खबर लिखे जाने तक ग्रामीणों से पता चला कि आज भी पुलिस और सुरक्षा बलों के बीच जगह-जगह खूनी झड़प हुई है, जिसमें तीन किसान और सुरक्षा बल का एक जवान मारा गया है. आन्दोलनरत किसानों की मांग है कि उनके जमीनों का अधिग्रहण कर रही सरकार वही दर दे जो ग्रेटर नोएडा में अधिग्रहण के दौरान किसानों को दिया जा रहा है.
जमीन अधिग्रहण की सरकारी चालबाजी और जेपी ग्रुप की ज्यादती के खिलाफ पिछले 15दिनों से धरने पर बैठे टप्पल थाना क्षेत्र के छह गांवों के किसान 14 अगस्त को उस समय उग्र हो गये, जब स्थानीय थानाध्यक्ष मल्लिक ने आंदोलन के प्रमुख नेता बाबूराम कठेरिया को शाम करीब पांच बजे गाली-गलौज कर गिरफ्तार कर लिया। टप्पल, उदयपुर,जहानगढ़, कृपालपुर, जीरकपुर और कंसेरा गांव से शुरू हुआ यह आंदोलन सरकारी असंवेदनषीलता की वजह से तीन जिलों मथुरा,अलीगढ़ और आगरा के पूरे क्षेत्र में फैल गया है। हर जगह किसान घेराबंदी,पथराव और आगजनी कर रहे हैं।
किसानों का आक्रोश : कैसे समझेगी सरकार |
ग्रामीणों ने बताया कि थानाध्यक्ष मल्लिक ने धरने पर बैठे लोगों के साथ जबर्दस्ती की और लोगों ने जब नेता बाबूराम गठेरिया की गिरफ्तारी का विरोध किया तो थानाध्यक्ष ने गोलियां चला दीं जिसमें जीरकपुर गांव के दो लोग घायल हो गये। इसके बाद किसानों और पुलिस बल के बीच हुई झड़प में जीरकपुर गांव के चंद्रपाल का 12 वर्षीय बेटा भोला और ष्यारोल गांव का 24 वर्षीय युवक धर्मेंद्र मारा गया। पुलिस की तरफ से धड़ाधड़ चली गोलियों से एक पीएसी सब इंस्पेक्टर भी मारा गया। इस गोलीबारी में कई आंदोलनकारियों को गोलियां लगी हैं जिनका अलीगढ़,मुथरा और फरीदाबाद के अस्पतालों में इलाज चल रहा है। ग्रामीणों के अनुसार 14अगस्त को हुई झड़प में पचीस किसान गंभीर रूप से घायल हैं।
पुलिस की इस ज्यादती की जानकारी गांवों में फैलने में घंटे भर भी नहीं लगी। मात्र चालीस-पचास की संख्या में धरना दे रहे किसानों की संख्या बढ़ते ही आक्रोशित भीड़े ने दो पुलिस पोस्ट समेत कई गाड़ियां और जेपी ग्रुम का निर्माण को स्वाहा कर डाला। मौके पर मौजूद पूर्व मंत्री ठाकुर दलबीर सिंह की भी गाड़ी को आंदोलनकारियों ने आग के हवाले कर दिया। संयोग से उस वक्त क्षेत्र के विधायक सतपाल चौधरी और पूर्व मंत्री ठाकुर दलबीर सिंह भी मौजूद थे।
संयोग इतना ही नहीं था,बल्कि संयोग यह भी था कि आजादी के तिरसठ साल पूरे होने की पूर्व संध्या पर जब प्रधानमंत्री एक विकसित राष्ट्र के गुनगुनाते सपनों के साथ सोये होंगे तो राजधानी से मात्र 90किलोमीटर दूर अलीगढ़ जिला में में मारे गये किसानों के परिजन शमसान घाट पर जिंदगी की सबसे कड़वी हकीकत से रू-ब-रू हो रहे होंगे। मशहूर शायर फैज अहमद फैज के ‘दाग-दाग उजाला’की हकीकत से पीछा छुड़ाते हुए प्रधानमंत्री जब लाल किला की प्राचीर से किताब में झांककर देष की हकीकत ढुंढ रहे होंगे तो यकीनन पुलिस के हाथों मारे गये किसानों के लाश की गंध लिये धुआं उन तक जरूर पहुंचा होगा। कारण कि कश्मीर हो या, अलीगढ़, या फिर हो लालगढ़ हर जगह सरकार अमन और शांति की चाहत में धुआं उठाने में ही सफलता देख रही है और विरोध में उठी आवाजों का लाश बनाने में विकास।
बताया जाता है कि ग्रामीणों के उग्र होने का कारण रैपिड एक्शन फोर्स,पीएसी और स्थानीय पुलिस का जीरकपुर गांव के पास संघर्श के चिन्ह के तौर पर लगाये गये झंडे का पुल से उखाड़ना रहा। आंदोलनकारी राजू शर्मा ने बताया कि जीरकपुर गांव के नीचे बन रहे पुल पर ग्रामीणों ने हरे रंग का झंडा लगा रहा था जिसे सुरक्षा बलों ने उखाड़ दिया। सुरक्षा बलों के नेता बाबूराम कठेरिया की गिरफ्तारी के बाद सुरक्षा बलों का झंडा उखाड़ना आक्रोशित ग्रामीणों के लिए आग में घी का काम किया।
किसानों के जारी आंदोलन और पुलिस की दग रही गोलियों के बीच अब देखना यह है कि किसानों की मांग के आगे सरकार झुकती है या मायावती सरकार अपने प्रिय रियल स्टेट समूह जेपी ग्रुप की जय बोलती है।