राहुल ने लगभग 70किलोमीटर की अपनी पहली सबसे लंबी दूरी की पदयात्रा पूरी करने के बाद राज्य के किसानों से मिलकर यह एहसास कराना चाहा कि वे उनकी मांगों व समस्याओं के प्रति गंभीर हैं...
तनवीर जाफरी
कल अलीगढ में किसान महापंचायत करके कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े राज्य पर अपनी राजनीति केंद्रित करने का पुख्ता प्रमाण दे दिया है। गौरतलब है कि केंद्र में स्वतंत्रता के पश्चात चार दशकों तक लगातार शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश जैसे सबसे बड़े राज्य में हमेशा अपना पूरा प्रभाव रखती थी। परंतु उत्तर प्रदेश की सत्ता गैर कांग्रेसी दलों विशेषकर समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी के हाथों में जाने का सिलसिला शुरू होने के बाद कांग्रेस लडख़ड़ाती नज़र आने लगी। अब एक बार फिर राहुल गांधी ने केंद्र में कांग्रेस पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाए जाने के दृष्टिगत् उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से अपनी राजनीति केंद्रित कर दी है। और उत्तर प्रदेश में मृतप्राय हो चुकी कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी की सक्रियता ने पिछले पांच वर्षों में बड़ी तेज़ी से जो जान फूंकी है उसका राज्य के कांग्रेसजन भी अंदाज़ा नहीं लगा सकते थे।
ग़ौरतलब है कि 72 जि़लों वाला यह राज्य लोकसभा के लिए 80 सांसद निर्वाचित करता है। वर्ष 2004 में मात्र 4 लोकसभा सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने राहुल गांधी के उत्तर प्रदेश में किए गए तूफानी दौरों के बाद कांग्रेस पार्टी को इस स्थिति तक पहुंचा दिया कि पार्टी 2009 के लोकसभा चुनावों में 23 सीटों तक पहुंच गई। कांग्रेस की इस अप्रत्याशित सफलता ने एक ओर राज्य में जहां कांग्रेसियों के हौसले बुलंद किए, वहीं कांग्रेस विरोधी दलों विशेषकर राज्य की सत्तारुढ़ बहुजन समाज पार्टी की नींद हराम कर डाली। परंतु राहुल गांधी हैं कि अपने विशेष अंदाज़ से लोगों से मिलने, आम गरीब लोगों के बीच जाने तथा उन्हीं के घरों में खाना खाने व चारपाई पर सोकर रात बिताने का सिलसिला नहीं छोड़ रहे हैं। राहुल गांधी के इस धरातलीय ‘गांधी दर्शन’ से प्रदेश की मुख्यमंत्री इतना घबराई हुई हैं कि वे स्वयं प्रेस कांफ़्रेंस बुलाकर कई बार राहुल गांधी की ऐसी यात्राओं व जनसंपर्क को ‘नौटंकी’ कहकर संबोधित कर चुकी हैं।
भारतीय जनता पार्टी भी राहुल गांधी के इस धरातलीय राजनीतिक अंदाज़ से काफी घबराई हुई है। कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में जहां मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को पार्टी प्रभारी बनाया हुआ है, वहीं भारतीय जनता पार्टी ने भी दिग्विजय सिंह के बराबर का कार्ड खेलने के लिए मध्य प्रदेश की ही पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को पहले तो पुन: भाजपा में शामिल किया और बाद में उन्हीं को उत्तर प्रदेश का पार्टी प्रभारी भी बना दिया। यह और बात है कि मध्य प्रदेश की जनता द्वारा खारिज की जा चुकी उमा भारती के उत्तर प्रदेश भाजपा प्रभारी बनते ही भाजपा में भी ज़बरदस्त घमासान छिड़ गया है।
राहुल गांधी से जुड़ा ताज़ातरीन घटनाक्रम किसानों के ज़मीन अधिग्रहण मामले से जुड़ा है। उत्तर प्रदेश व दिल्ली की सीमा से सटे नोएडा के भट्टा-पारसौल नामक गांवों में इसी वर्ष 7 मई को उत्तर प्रदेश पुलिस और किसानों के मध्य भीषण संघर्ष हुआ था। इस संघर्ष में पांच व्यक्ति मारे गए थे। इस संघर्ष के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे क्षेत्र में धारा 144 लगा दी थी। इस घटना के चौथे दिना 11 मई को प्रात:काल लगभग 5 बजे राहुल गांधी पुलिस-प्रशासन को चकमा देकर भट्टा-पारसौल गांवों में पहुंच गए थे। वहां उन्होंने यह पाया कि पुलिस के भयवश पूरे गांव के मर्द,युवा व बुज़ुर्ग अधिकांशतया गांव को छोडक़र अन्यत्र चले गए थे।
राहुल गांधी ने 11 मई को भट्टा-पारसौल गांव में पहुंच कर राज्य सरकार के विरुद्ध धरना दिया तथा किसानों व उनके परिजनों को यह आश्वासन दिया कि वे राज्य सरकार द्वारा किसानों की भूमि जबरन अधिग्रहण किए जाने के विरुद्ध हैं। वे अंत तक किसानों की लड़ाई लड़ेंगे तथा उनके साथ खड़े रहेंगे। अभी इस घटना को मात्र दो महीने ही बीते थे कि 4जुलाई को राहुल गांधी पुन: भट्टा-पारसौल गांव जा पहुंचे तथा उन्होंने भट्टा-पारसौल से अलीगढ़ तक का पैदल मार्च भी कर डाला। राहुल गांधी की इस पदयात्रा को कांग्रेस द्वारा किसान संदेश यात्रा का नाम दिया गया जो 9 जुलाई को अलीगढ़ के नुमाईश मैदान में किसान महापंचायत में पहुंचने पर समाप्त हुई।
राहुल ने लगभग 70किलोमीटर की अपनी पहली सबसे लंबी दूरी की पदयात्रा पूरी करने के बाद राज्य के किसानों से मिलकर यह एहसास कराना चाहा कि वे उनकी मांगों व समस्याओं के प्रति गंभीर हैं। राहुल ने किसान महापंचायत में जहां प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती पर यह कहते हुए सीधा आक्रमण किया कि ‘अपना हक मांगने पर किसानों को उत्तर प्रदेश सरकार गोली मार देती है। वहीं उन्होंने किसानों को यह आश्वासन भी दिया कि भूमि अधिग्रहण कानून में आवश्यक संशोधन की सिफारिश की जाएगी।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम नि:संदेह केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून है तथा इसमें संशोधन के भी सभी अधिकार केंद्र सरकार के ही पास हैं। लिहाज़ा इसमें कोई शक नहीं कि भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों को होने वाली परेशानियों का समाधान केंद्र सरकार ही कर सकती है। परंतु जिस प्रकार राहुल गांधी किसानों के बीच स्वयं जाकर बार-बार किसानों से यह कह रहे थे कि 'भूमि अधिग्रहण किस प्रकार हो रहा है इसे मैं समझना चाहता हूं और भूमि अधिग्रहण पर बने नए कानून के बारे में लोगों की राय जानना चाहता हूं।' इससे यह ज़ाहिर हो रहा है कि राहुल गांधी एक तीर से कई शिकार खेल रहे हैं। अर्थात् अपने ही कथनानुसार जहां वे भूमि अधिग्रहण संबंधी कानून के वास्तविक प्रभाव तथा इस कानून से किसानों को होने वाले नफे-नुकसान,उनकी शिकायतों व परेशानियों के बारे में जान व समझ रहे हैं, वहीं वे अपने अत्यंत धरातलीय जनसंपर्क के माध्यम से किसानों के दिलों में अपनी गहरी छाप भी छोड़ रहे हैं। यही वजह है कि 2012 में विधानसभा चुनावों का सामना करने जा रहे कांग्रेस विरोधी दल राहुल गांधी के इस प्रकार के आश्चर्यचकित कर देने वाले दौरों से काफी भयभीत नज़र आ रहे हैं।
राहुल गांधी कभी बुंदेलखंड में किसी दलित परिवार में जाकर उसका हालचाल पूछते हैं और रात वहीं बिताते हैं। और कभी बहराईच जैसे दूर-दराज़ इलाकों में गरीबों व दलितों के घर जाकर उन्हें अपनत्व का एहसास कराते हैं। बलात्कार के लिए पिछले दिनों चर्चा में रहे उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी कभी बांदा के बीएसपी विधायक द्वारा किए गए बलात्कार की पीडि़ता से संपर्क करते हैं, तो कभी लखीमपुर के निघासन में अचानक पहुंचकर उस कन्या के परिजनों को ढाढ़स बंधाते हैं जिसे पुलिसवालों ने कथित रूप से मारकर पेड़ पर लटका दिया था।
और अब राहुल ने किसानों के बीच जाकर उनके दु:ख-दर्द को समझने और उसमें शरीक होने तथा समय आने पर उसका समाधान करने का संकल्प लिया है। वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ साधारण किसानों के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलकर उन्हें किसानों की समस्याओं से भी अवगत करा चुके हैं। गोया राहुल गांधी जैसे कांग्रेस के शीर्ष नेता एवं पार्टी महासचिव जिस ज़मीनी स्तर पर आकर राजनीति में ज़ोर-आज़माईश कर रहे हैं, उसे देखकर यही अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि कांग्रेस राहुल गांधी के कठोर परिश्रम और उनकी ‘गांधी दर्शन’ का आभास कराती धरातलीय राजनीतिक शैली के बलबूते पर केंद्र में पूर्ण बहुमत में आने की दूरगामी रणनीति पर काम कर रही है।
लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी के भूतपूर्व सदस्य और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मसलों के प्रखर टिप्पणीकार हैं.