Jun 13, 2011

कैसे रुकेगा इन रजनियों का शोषण!


कुछ समय तक तो रजनी के करनाल निवासी ससुरालियों ने भरपूर मान-सम्मान दिया। पति भी उससे प्यार करता था। इस बीच रजनी के दो बच्चे हो गए। फिर अचानक न जाने क्यों रजनी से परिवार वालों का मन भर गया और ससुराली वाले आए दिन मारपीट करने लगे...


जगमोहन रौतेला

उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के सपने लगातार दरकते जा रहे हैं। राज्य से रोजगार की तलाश में पलायन करने वाले लोगों की संख्या पहले के मुकाबले लगातार बढ़ती जा रही है। राज्य के पानी और जवानी का उपयोग राज्य हित में करने की रणनीति आज भी नहीं बन पायी है। इस सबके बीच एक दु:खद और शर्मनाक बात यह है कि महिला सशक्तीकरण के नारों के बीच यहां की बेटियां भी सुरक्षित नहीं हैं।

एक अनुमानित आंकड़े के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग दो हजार लड़कियां ऐसी हैं जिन्हें गृहस्थ जीवन की खुशहाल जिंदगी के नाम पर आज भी दूसरे राज्यों में बदहाल और जिल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर किया जा रहा है। इनमें से अधिकतर लड़कियों को हरियाणा, मुजफ्फरनगर,  मेरठ और गाजियाबाद आदि स्थानों में ब्याह कर ले जाया जा रहा है।

कुछ को शादी के बहाने ले जाकर जिस्म के धंधे में धकेला जा रहा है, तो कुछ जो थोड़ी किस्मत वाली होती हैं किसी की रखैल बनकर रह जाती हैं। यह सिलसिला पिछले कई दशकों से जारी है। राज्य बनने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि महिला सशक्तीकरण के चलते यहां की स्थिति में सुधार होगा, मगर हालात जस के तस बने हुए हैं।

राज्य में ताजा मामला उत्तरकाशी जिले के नौगांव का सामने आया है। इस गांव की रजनी को लगभग चार साल पहले ब्याह कर करनाल (हरियाणा) ले जाया गया। कुछ समय तक तो रजनी के करनाल निवासी ससुरालियों ने भरपूर मान-सम्मान दिया। पति भी उससे प्यार करता था। इस बीच रजनी के दो बच्चे हो गए। फिर अचानक न जाने क्यों रजनी से परिवार वालों का मन भर गया और ससुराली वाले आए दिन मारपीट करने लगे। पांच अप्रैल 2011  का दिन रजनी के जीवन में तूफान लेकर आया, जब उसके ससुरालियों ने रात के अंधेरे में उसे मारपीट कर घर से बाहर निकाल दिया।

अपने सात माह के मासूम बच्चे के साथ रजनी ने काली अंधेरी रात खुले आसमान के नीचे बितायी। दो साल के बड़े लडक़े को ससुरालियों ने अपने ही पास रख लिया। अपने साथ हुए अन्याय की शिकायत रजनी ने करनाल के जिला लघु सचिवालय के अधिकारियों से की, जिन्होंने उसे जिला महिला संरक्षण अधिकारी सविता राणा के पास भेजा, जिन्होंने रजनी को सुरक्षा के लिहाज से एम.डी.डी. अनाथ आश्रम में भेज दिया और उसके ससुरालियों को सम्मन जारी किया।

करनाल के शिव कॉलोनी निवासी सत्यपाल सिंह ने अपने पुत्र पवन कुमार का विवाह चार साल पहले रजनी से किया था। ससुराल में कुछ दिन की इज्जत के बाद जब रजनी से मारपीट होने लगी तो एक दिन गुस्से में उसके ससुर सतपाल सिंह ने उसे एक ऐसी कड़वी सच्चाई से अवगत कराया, जिसे सुन कर रजनी के पैरों तले की जमीन खिसक गई।

रजनी के ससुर ने बताया कि उसे ब्याह कर नहीं, बल्कि बीस हजार रुपये में उसके मां-बाप से खरीद कर लाया गया था। रजनी को अपने ससुर की बातों पर यकीन नहीं हुआ। जब उसने अपने पति पवन कुमार से सच्चाई जाननी चाही तो अपने पिता की बात के विपरीत पवन ने कहा कि उसे ब्याह कर ही लाया गया है, लेकिन जिस तरह रजनी को अकारण घर से मारपीट कर निकाल दिया गया, उससे इस बात को बल मिलता है कि रजनी को खरीदकर ही ले जाया गया था।

यह एक कटु सत्य है कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नवजात लड़कियों की संख्या में लगातार कमी हो रही है। इसका एक बड़ा और शर्मनाक कारण कन्या भ्रूण हत्या भी है। लड़कियों को जन्म देने से रोकने वाला यहां का समाज अपने परिवार के तथाकथित वंश को चलाने के लिए उत्तराखण्ड, पश्चिमी बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और बिहार से गरीब परिवारों की गरीब लड़कियों को कथित शादी करके ले जाता है। इन लड़कियों से शादी करने के एवज में वह लडक़ी के मां-बाप और बातचीत करवाने वाले परिवार के नजदीकी लोगों को पैसा भी देता है, ताकि भविष्य में कोई कानूनी अड़चन आने पर वह अपना मुंह बंद रखें।

अपना कथित वंश चलाने के लिए तथाकथित शादी करके लायी जाने वाली लड़कियों में से अधिकांश को लडक़े पैदा और उसके कुछ बड़ा होने पर रजनी की तरह ही ठोकर खाने को घर से बाहर कर दिया जाता है। ये लड़कियां आर्थिक तंगी और अपने मायके के रास्तों के बारे में अनजान होने से मायके भी नहीं लौट पाती हैं। कुछ मायके लौट भी गयी तो गरीब मां-बाप उसके कथित ससुरालियों के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं कर पाते।

लड़कियों को कथित ब्याह के लिए खरीदने में मदद करने वाले कई गिरोह भी सक्रिय हैं। ऐसे ही कुछ गिरोहों के लोगों को पिछले दिनों टिहरी, पौड़ी, अल्मोड़ा और चम्पावत में पकड़ा भी जा चुका है, लेकिन रजनी जैसे शर्मनाक घटनाक्रम रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं।



पाक्षिक पत्रिका 'जनपक्ष आजकल' से साभार.  



‘ऐन्टीक’ वस्तुओं के नाम पर हो रहा ठगी का कारोबार

मोबाईल व इंटरनेट के माध्यम से ठगी करने वाला नेटवर्क तो इतना शातिर है कि किसी व्यक्ति से मिले बिना केवल फोन या ई-मेल के माध्यम से ही उसे केवल अपनी बातों से या अपनी झूठी कथा-कहानी सुनाकर अपने बैंक खाते में पैसे तक जमा करवा लेता है...

निर्मल रानी

ठगों द्वारा आम लोगों की जेब से पैसे निकलवाने के तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। कभी कोई ठग ज़मीन में दबे सोने और चांदी के प्राचीन सिक्के या अशरफी सस्ते दामों में बेचे जाने के नाम पर किसी लालची व्यक्ति को ठग लेता है तो कभी नोट दुगने करने की लालच में कोई व्यक्ति ठगी का शिकार हो जाता है। कभी कोई ठग लोगों के घरों में जाकर सोने-चांदी के ज़ेवरों की सफाई के बहाने किसी का ज़ेवर उड़ा ले जाते हैं तो कभी कोई तांत्रिक के वेष में किसी के घर के भीतर ज़मीन में दबा हुआ धन निकालने के बहाने किसी परिवार को ठग ले है।


आमतौर पर ठग उनको ही अपना निशाना बनाते हैं जो या तो अधिक लालची होते हैं या फिर बहुत जल्दी धनवान बनना चाहते हैं या कम से कम समय में अधिक से अधिक धन कमाने की इच्छा पाले होते हैं। ऐसे ही लोग आजकल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मोबाईल फोन के माध्यम से चल रही ठगी का शिकार हो जाते हैं या फिर इंटरनेट व ई-मेल के माध्यम से ठगों द्वारा दी गई पुरस्कार तथा लाटरी का ईनाम निकलने जैसी झूठी सूचना के झांसे में आ जाते हैं।

मोबाईलऔर इंटरनेट के माध्यम से ठगी करने वाला नेटवर्क तो इतना शातिर है कि किसी व्यक्ति से मिले बिना केवल फोन या ई-मेल के माध्यम से ही उसे केवल अपनी बातों से या अपनी झूठी कहानी सुनाकर अपने बैंक खाते में पैसे तक जमा करवा लेता है!

हमारे देश में पिछले कई वर्षों से इसी प्रकार के ठगों का एक बहुत सक्रिय नेटवर्क विशेष रूप से हरियाणापंजाब,चंडीगढ़दिल्ली तथा राजस्थान के क्षेत्रों में काम कर रहा है। इससे जुड़े लोग कुछ गिनी-चुनी (ऐंटीक) वस्तुओं के नाम पर लोगों को ठगने का प्रयास करते हैं। प्राचीन वस्तुओं या एंटीक के नाम पर जिन वस्तुओं को खरीदने-बेचने के जाल में लोगों को फंसाया जाता है उनमें कई वस्तुएं तो ऐसी हैं जिनका जि़क्र या तो हमारे प्राचीन ग्रंथों या शास्त्रों में कहीं मिलता है या फिर उन वस्तुओं का कोई धार्मिक महत्व होता है।

वहीं ठगों द्वारा अपने शिकारको कुछ प्राचीन वस्तुएं ऐसी भी बताई जाती हैं जिनका जिक्र इतिहास में भी मिलता है। ठगों के यह नेटवर्क इन वस्तुओं को बहुमूल्य वस्तु बताकर इनकी कीमत करोड़ों में बताते हैं। तथाकथित ऐंटीक वस्तुओं के इस कारोबार में अधिकतर तो ऐसा सुना गया है कि ठगों द्वारा किसी शरीफ और भोले-भाले परंतु लालची व्यक्ति से किसी ऐंटीक वस्तु को दिखाए बिना ही पैसे ऐंठ लिए जाते हैं। यानी जिस प्राचीन वस्तु के नाम पर सौदे की बात की जाती है उसका कहीं दर्शन ही नहीं होते। सारी कहानी अगर और मगरमें उलझाकर शिकार व्यक्ति से पैसे ठग लिए जाते हैं।

आइएआपको कुछ ऐसी ही वस्तुओं से परिचित कराते हैं जिनके नाम पर आजकल ठग रोज़ नए मुर्गों की तलाश में फिर रहे हैं। भगवान कृष्ण का काल्पनिक चित्र तो सभी ने देखा है। यह भी भगवान श्री कृष्ण के उस चित्र में दिखाई देता है कि उनके मुकुट में एक मोरपंखी लगी हुई है। बस इसी मोरपंखी के नाम पर ठगों का एक बड़ा नेटवर्क इन दिनों लोगों से पैसे वसूल रहा है।

इस मोरपंखी नेटवर्क से जुड़े ठगों द्वारा यह बताया जा रहा है कि कृष्ण के मुकुट में जो पंख लगा था वही वास्तविक तथा एकमात्र पंख अमुक व्यक्ति के पास है। उसे देखने तथा उसका सौदा करने-कराने के नाम पर शुरुआती दौर में दस-बीस हज़ार या ठगी का शिकार होने वाले व्यक्ति की हैसियत के अनुसार इससे भी अधिक पैसे ऐंठ लिए जाते हैं।

इसके पश्चात उसे खरीदने वाले लोग भी, जो इसी नेटवर्क का हिस्सा हैं, बीच के व्यक्ति को करोड़ों में वही मोरपंखी खरीदने का आश्वासन दे देते हैं। अब बिचौलिए के रूप में सौदे में शरीक किए गए व्यक्ति को यह नज़र आने लगता है कि वह जल्दी ही दलाली के रूप में मोटी रकम कमाने वाला है। खरीददार पार्टी इस प्राचीन वस्तु को खरीदने के लिए कीमत तो करोड़ों में ज़रूर लगाती है लेकिन इसे खरीदने में जानबूझ कर आनाकानी करती है और केवल समय गुज़ारती है।

दूसरी तरफ इस तथाकथित प्राचीन वस्तु को बेचने वाला इसे जल्दी बेचने का दबाव डाल कर बिचौलिए बने व्यक्ति से बार-बार मनचाही रकम वसूलता रहता है। इस दौरान वह बिचौलिया बने व्यक्ति को यह भी धमकाता है कि यदि तुम्हारे ग्राहक ने इसे नहीं खरीदा तो हमारे पास और भी कई ग्राहक हैं जिनके हाथों हम इसे बेच देंगे। और तुम्हारे साथ चल रहा सौदा निरस्त हो जाएगा। इसी बहाने वह बिचौलिया बना कर फंसाए गए शिकार से यथासंभव रकम वसूल लेता है। और आखिरकार इसे खरीदने वाला अपनी ज़ुबान से मुकर जाता है। उधर बेचने वाला भी सौदे की समय सीमा पूरी हो जाने का बहाना बना कर अग्रिम भुगतान के रूप में आए पैसों को हज़म कर जाता है।

इसी मोरपंखी की महत्ता को बढ़ाने के लिए ठगों द्वारा स्वयंभू रूप से इसकी तमाम विशेषताएं भी निर्धारित की गई हैं। उदाहरण के तौर पर यह ठग बताते हैं कि इस मोरपंखी का प्रतिबिंब दर्पण में दिखाई नहीं देता। ठगों द्वारा इसकी दूसरी विशेषता यह बताई जाती है कि इस मोरपंखी की जड़ में द्रव्य पदार्थ भी भरा हुआ है जो भगवान कृष्ण के समय से अब तक उस मोरपंखी में कायम है। यह मोरपंखी बुलेटप्रूफ भी बताई जाती है,वग़ैरह-वग़ैरह।

इसी प्रकार की प्राचीन वस्तुओं के नाम पर ठगी करने वाले सौदागर गजमुक्ता नाम की किसी वस्तु का व्यापार करते हुए भी देखे जाते हैं। इसके विषय में भी इन ठगों द्वारा यह बताया जाता है कि गजमुक्ता हज़ारों हाथियों में से किसी एक हाथी के मस्तिष्क के भीतर से निकली हुई कोई विशेष सामग्री है। भगवान कृष्ण के मुकुट की कथित मोरपंखी की ही तरह गजमुक्ता नाम की वस्तु को भी विचित्रचमत्कारिक तथा धार्मिक सरोकारों से जुड़ी वस्तु बताकर तथा इसके नाम पर भी करोड़पति बनने का सपना दिखाकर लालची लोगों को ठगा जा रहा है।

ऐसे ही प्राचीन वस्तु (एंटीक) के नाम पर पिछले दिनों ठगी की एक घटना प्रकाश में आई। इतिहास में इस बात का जि़क्र है कि दारा शिकोह एक धर्मनिरपेक्ष विचारों का शासक था तथा हिंदू संस्कृति और धर्मग्रंथों से वह बहुत प्रभावित था। इतिहास के अनुसार दारा शिकोह ने महाभारत को फारसी लिपि में लिपिबद्ध कराया था। अब यह तो नहीं पता कि दारा शिकोह द्वारा तैयार कराई गई फारसी में लिपिबद्ध महाभारत वास्तव में इस समय किस स्थिति में, कहां और किसके कब्ज़े में है। लेकिन इतिहास में दर्ज इसी प्राचीन बहुमूल्य एवं ऐतिहासिक ग्रंथ के नाम पर ठगों का एक नेटवर्क आम लोगों को ठगता फिर रहा है।

इस तथाकथित प्राचीन ग्रंथ के खरीद-फरोख्त के झांसे में ज़्यादातर वही लोग आते हैं जो या तो इतिहास के उपरोक्त घटनाक्रम से परिचित हैं या साहित्यिक दिलचस्पी रखते हैं। साथ ही साथ उनके पास पैसा भी है व ऐसी प्राचीन पुस्तक को देखने व समझने का शौक़ भी। 

पिछले दिनों इत्तेफाक से मेरी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई, जिससे ठगों ने मात्र 25 हज़ार रुपये ठगने के बहाने उसे उस कथित प्राचीन ग्रंथ के दर्शन’ कराये। फारसी लिपि में हाथों से लिखा गया वह पूरा का पूरा ग्रंथ नि:संदेह किसी भी पढ़े-लिखे व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करने वाला था।

उसकी लिखाई, प्रत्येक पंक्ति के पीछे की विभिन्न रंगों की पृष्ठभूमि तथा उसमें स्वर्णयुक्त स्याही का किया गया प्रयोग निश्चित रूप से एक बार तो किसी भी पारखी व्यक्ति को भी यह सोचने के लिए मजबूर कर सकता है कि हो न हो यह वही महाभारत होगी जो दारा शिकोह ने फारसी में स्वयं लिखी है । लेकिन इस पुस्तक को भी ठगों ने मात्र दर्शनके लिए रखा हुआ है। दर्शनकरने में ही तमाम लोग अपनी आर्थिक गुंजाइश के अनुसार ठग लिए जाते हैं। इस पुस्तक के सौदे का भी अंत में वैसा ही हश्र होता है जैसाकि कथित मोरपंखी के सौदे में होता है। 

देश के पश्चिमी राज्यों में सक्रिय कथित ऐंटीक कारोबार के इस गिरोह से तमाम पढ़े-लिखे बुज़ुर्गज़मींदारराजनीतिज्ञ तथा समाज के तथाकथित प्रतिष्ठित लोग भी जुड़े हुए हैं। आम लोगों को एक बार सम्राट ठग नटवर लाल जी के उस महान एवं अकाट्य कथन को याद रखने की ज़रूरत है कि संसार में जब तक लालच जिन्दा है, तब तक ठग कभी भूखा नहीं मर सकता।लिहाज़ा आम लोग लालच से बचें तथा प्राचीन या एंटीक वस्तुओं के नाम पर फैले इस ठग नेटवर्क के झांसे में हरगिज़  न आएं।  


लेखिका उपभोक्ता मामलों की विशेषज्ञ हैं और सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर भी लिखती हैं.