Aug 2, 2010

लेखक की यह भाषा नहीं !


‘जसम’ की मांग, लेखिकाओं से माफी मांगे कुलपति और संपादक

संस्कृति में प्रगतिशील  मुल्यों के वाहक संगठनों में से एक ‘जन संस्कृति मंच'ने वर्धा स्थित महात्मा गांधी हिंदी विष्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय की उस टिप्पणी की सख्त आलोचना की है,जिसमें विभूति ने महिला लेखकों को ‘छिनाल’कहा है। मंच के महासचिव प्रणय कृष्ण  ने मीडिया को भेजे बयान में कहा है कि स्त्री लेखन और लेखिकाओं के बारे में दिए गए असम्मानजनक वक्तव्य की ‘जसम’ घोर निंदा करता है।

जसम का मुखपत्र
यह निंदनीय बयान विभूति ने हिंदी की साहित्यिक पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’के एक साक्षात्कार में दिया है। हमारी समझ से यह बयान न केवल हिंदी लेखिकाओं की गरिमा के खिलाफ है,बल्कि उसमें प्रयुक्त शब्द स्त्री के लिए भी अपमानजनक है। इतना ही नहीं बल्कि यह वक्तव्य हिंदी के स्त्री लेखन की एक सतही समझ को भी प्रदर्शित करता है। आश्चर्य यह है कि पूरे साक्षात्कार में यह वक्तव्य पैबंद की तरह अलग से दिखता है, क्योंकि बाकी कही गई बातों से उसका कोई संबंध नहीं है। अच्छा हो कि विभूति अपने वक्तव्य पर सफाई देने के बजाय उसे वापस लें और लेखिकाओं से माफी मांगे।

‘जसम’ मानता है कि ‘नया ज्ञानोदय’ के संपादक रवींद्र कालिया अगर चाहते तो इस वक्तव्य को अपने संपादकीय अधिकार का प्रयोग कर छपने से रोक सकते थे,लेकिन उन्होंने तो इसे पत्रिका के प्रमोशन और चर्चा के लिए उपयोगी समझा। आज के बाजारवादी,उपभोक्तावादी दौर में साहित्य के हलकों में भी सनसनी की तलाश में कई संपादक,लेखक बेचैन हैं। सनसनी ग्रस्त साहित्यिक पत्रकारिता का मुख्य निशाना स्त्री लेखिकाएं हैं। रवींद्र कालिया को भी इसके लिए माफी मांगनी चाहिए।

माफ़ी मांगे संपादक

मंच के मुताबिक जिन्हें स्त्री लेखन के व्यापक सरोकारों और स्त्री मुक्ति की चिंता है वे इस भाषा में बात नहीं करते। साठोत्तरी पीढ़ी के कुछ कहानीकारों ने जो स्त्री विरोधी अराजक भाषा ईजाद की,उस भाषा में न कोई मूल्यांकन संभव है और न विमर्श। जसम हिंदी की उन तमाम लेखिकाओं व प्रबुद्धजनों के साथ है जिन्होंने इस बयान पर अपना रोष व्यक्त किया है।

 

हँगामा क्यों है बरपा, गाली ही तो दी है

महिला लेखिकाओं के बारे में कुलपति वीएन राय ने अभद्रता से लबलबाती जो टिप्पणी  की थी उस पर मैत्रयी पुष्पा की प्रतिक्रिया 'वीएन राय से बड़ा लफंगा नहीं देखा'   आने के बाद अब युवा लेखिका विपिन चौधरी की टिप्पणी

विपिन चौधरी

इतना शोर क्यों है? एक पुरूष ने माहिलाओं को गाली ही तो दी है.यह तो लगभग हर झल्लाये पुरूष के मुंह से सुना जा सकता है.किसी भी महिला के चरित्र पर ऊँगली उठाना पुरूष के लिये सबसे सरल काम है। तो ऐसा क्या कह दिया विभूती नारायण राय ने। उन्होंने बस इतना किया है कि अपना नकाब खुद ही उतार दिया और अपने ही पैरों से चल कर उस पंक्ति में जा खडे हुए,जहाँ समाज के जड़ और पुरातनपंथी पुरूष खडे हैं.

विभूति  पूर्व पुलिस  अधिकारी हैं,एक विश्वविधालय के कुलपति हैं और सबसे बडी बात की वह तीन उपन्यास लिख कर साहित्यकारों की जमात में भी शामिल किये जा चुके है.इतना ही नहीं कई नामचीन पुरस्कारों के तमगे भी अपने सीने पर लगा चुके है. यानी दोहरी नहीं बल्कि उनकी समाज के प्रति तीन तरह से जिम्मेदारी बनती है।

बचपन में पढा था,विद्या विनय देती है और फल वाले वृक्ष व्  शालीन इन्सान विनम्र होकर झुक जाते हैं। पर घोर दुनियादारी में उतरते ही पता चाला कि बचपन में पढे-पढाये सारे वाक्यों पर काफी पहले से पानी पड़ा  हुआ है.विभूती नारायण सत्ता के नशे में है और पिछले काफी दिनों से यह नशा उनके सर चढ कर बोल रहा है और अब उसके मद में वे हिंदी लेखिकाओं को छिनाल कहने पर उतर आते है।

राह चलते किसी आदमी के मुँह से किसी महिला के प्रति अपमानजनक टिप्पणी सुनकर लोग जुते-चप्पल उतार लेते हैं. फिर  एक कुलपति जब महिला के लिये अपशब्द कहता है तो उसे क्योंकर बख्श दिया जाऐ? क्या सिर्फ इसीलिये की वे ऊँची कुर्सी पर हैं  या फिर उनकी पहुँच ऊपर तक है। इसी तरह से ऊँचे पायदान पर आसीन व्यक्तियों  के प्रति हमारी सरकारें और न्यायालय  तक नरम रहते हैं,जिसका फ़ायदा यह लोग उठाते हैं.ज़रा पिछले मामलों पर गौर करे तो पाएंगे की इन तथाकथित शालीन अपराधियों की सजा भी शालीन होती है.

महिलाएं जब अपने बारे में लिखती हैं तब वह इतनी जागरूक हो चुकी होती हैं कि वे जीवन के सच को समाज के सामने रख सकें.इसलिए वे साहस के साथ लिखती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो पुरुषों   की करतूतों को सरेआम करती हैं,जिससे पुरूष तिलमिला उठता है। यदि कोई औरत इस तरह के वाकये  लिखती है तो वह उसे शौकिया या सनसनी फैलाने के लिये नहीं लिखती। कहीं न कहीं वह आने वाले पीढी को जीवन के प्रति आगाह भी करती है। यहाँ मैं उन महिलाओं का जिक्र  नहीं कर रही जो पुरूष को अपने आगे बढने के लिये इस्तेमाल करती हैं.सच तो यह है कि बिना प्रतिभा के  कोई भी ज्यादा देर नहीं टिक सकता है, सबको अपनी बनाई राह पर ही चलना पड़ता है.
विभूति इस शब्द का इस्तेमाल कर समूची नारी जाति पर आरोप मढ़ते हैं.उन्होंने स्त्री पुरुष  के संबंधो के संदर्भ में महिलाओं को छिनाल कहा.तो कोई उनसे पूछे की उनके साथ वाले पुरूषों के लिये वे  शब्दकोश में से कौन सा शब्द चुनेंगें,आखिर बिस्तर पर महिला के साथ कोई न कोई तो होगा ही।

लेखिकाओं के हाथ में कलम रूपी औज़ार है जिस का इस्तेमाल करना वह  सीख गयी हैं.सदियों पुरानी पुरूष सत्ता  तले दबी हुई नारी जब लिखती है तो परत दर परत अपने को तराशती,तलाशती है.मगर  जब बेवफाई की बात आती है तो ऊँगली महिला पर उठती है.

भारी अफ़सोस है की विभूति नारायण राय को ना विद्या  विनय दे सकी,ना पुलिस का  अनुशासन ही वे ढंग से सीख सके और ना ही कुलपति जैसी शालीन कुर्सी की गरिमा को वे अपने भीतर समाहित कर सके। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति,हिंदी में लिखने वाली लेखिकाओं का पूरी दुनिया में महिमामंडन कर रहे हैं, यह संदेश देते हुए कि हमारे हिंदी में लेखिकाओं का एक तबका ऐसा है जो बेवफाई करता है  और उसे उजागर भी करती है.अपनी पहचान की कई महिलाओं के बारे में वे भीतरी तौर पर सब जानते होगें पर वे छिनाल नहीं है, छिनाल तो केवल हिंदी की लेखिकाऐं हैं  मतलब ढका छुपा  सब ठीक और सचाई प्रकट होने पर सब कुछ गलत।

कृष्णा  सोबती जब अपने उपन्यास मित्रो -मरजानी में जब अपनी शारीरिक इच्छाओं को उजागर करने वाली लड़की  की बात करती है तो उससे कोइ छिनाल नहीं कह सकता । साहित्य की एक गरिमा है उसी को ध्यान में रख कर लिखा-पढ़ा जाता है,उसी तरह साहित्य को समझने की भी एक व्यापक सोच है.पर जब सामंतवादी पुरुष नजरीये से विभूती नारायाण सोचते है तो पता लगता है की उनकी सोच का दायरा काफी तंग है.

जब हंस में कई पुरूषों ने अपनी बेवफाई उजागर की तो विभूती जी मौन क्यों रहे, तब क्यों नहीं पुरूषों की वफादरी पर उन्होनें ऊँगली ऊँठाई । अब तो उनके पुरे कार्यकाल पर संदेह होने लगा है। जिस तरह का माहौल उन्होनें अपने कुलपति बनने पर बनाया वह तो सबके सामने है ही और अब तो लगता है कि उनके ग्रहों की दशा  ही गडबडा गयी है.