बाबा अच्छा-भला योग क्रिया के क्षेत्र में मीडिया, विशेष कर टीवी चैनल, की कृपा से देश-विदेश में खूब नाम पैदा करने लगे थे। नाम कमाते-कमाते उन्होंने इसी योग के क्षेत्र से ‘दाम’ भी खूब पैदा किया...
तनवीर जाफरी
संतों की भारतीय राजनीति में सक्रियता कल भी थी, आज भी है और संभवत: भविष्य में भी रहेगी। भारतीय संविधान जब देश के किसी भी नागरिक को सक्रिय राजनीति में भाग लेने, मतदान करने तथा चुनाव लडऩे की इजाज़त देता है, तो साधु-संत समाज राजनीति से कैसे दूर रह सकता है। सत्ता सुख, सरकारी धन दौलत पर ऐशपरस्ती तथा सत्ता शक्ति की ताकत और इसके करिश्मे राजनीति जैसे पेशे से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं इसलिए अन्य कोई पेशा किसी को अपनी ओर आकर्षित करे या न करे, राजनीति और इसमें पाया जाने वाला 'ग्लैमर' निश्चित रूप से सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है।
भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य है कि उसमें शिक्षा-दीक्षा, पढ़ाई-लिखाई और किसी प्रकार के प्रशिक्षण की कोई आवश्यकता नहीं होती, इसलिए इसमें तमाम ऐसे लोग भी सक्रिय हो जाते हैं जो अनपढ़ तो होते ही हैं साथ ही कई क्षेत्रों में भाग्य आज़माने के बाद भी असफल रहे होते हैं, मगर राजनीति में ऐसे लोग भी सफल होने की उम्मीद रखते हैं। इस सोच का मुख्य कारण है भारतीय राजनीति का मतों पर आधारित होना।
राजनीतिज्ञ यह जानता है कि देश में साठ से लेकर सत्तर फीसदी आबादी अशिक्षित और भोली-भाली है। इस बहुसंख्यक वर्ग को तरह-तरह के प्रलोभन, वादों, आश्वासनों तथा जाति-धर्म, वर्ग या किसी अन्य ताने-बाने में उलझा कर अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है। यह सोच भी तमाम नाकारा किस्म के लोगों को न केवल राजनीति में पर्दापण के अवसर उपलब्ध कराती है बल्कि इस प्रवृति के लोग राजनीति के क्षेत्र में कदम रखते ही बड़े-बड़े सुनहरे सपने भी सजोने लग जाते हैं। बाबा रामदेव के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। बाबा अच्छा-भला योग क्रिया के क्षेत्र में मीडिया विशेषकर टीवी चैनलस की कृपा से देश-विदेश में खूब नाम पैदा करने लगे थे। नाम कमाते-कमाते उन्होंने इसी योग के क्षेत्र से दाम भी खूब पैदा किया। बताया जाता है कि रामदेव इसी योग के चमत्कारस्वरूप तथा योगा जगत से सम्पर्क में आने वाले धनपतियों की दान दक्षिणा से लगभग 11 सौ करोड़ की संपत्ति के स्वामी बन चुके हैं।
एक ओर रामदेव योग के क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए अपना जनाधार बढ़ाते गए, तो दूसरी ओर आम लोगों की ही तरह देश के लगभग सभी दलों के राजनेता भी रामदेव की ओर खिंच कर आने लगे। इसका कारण यह था कि उनके योग शिविरों में आने वाले सैकड़ों लोगों से राजनेता अपनी ‘हॉबी’ के मुताबिक रू-ब-रू होना चाहते थे। सर्वविदित है कि हमारे देश में नेताओं का भीड़ से बहुत गहरा रिश्ता है। भीड़ को संबोधित करने, उसे अपना चेहरा दिखाने तथा उससे संवाद स्थापित करने के लिए नेता तमाम प्रकार के हथकंडे अपना सकता है। ऐसे में किसी भी नेता को रामदेव के योगशिविर में जाने से आखिर क्या आपत्ति हो सकती थी, वहां तो भीड़ के दर्शन के साथ ‘हेल्थ केयर टिप्स’ तो बोनस में प्राप्त होने थे।
बाबा रामदेव ने भी राजनीतिज्ञों से अपने संबंधों का भरपूर लाभ उठाते हुए योग और आयुर्वेद संबंधी साम्राज्य का न केवल राष्ट्रीय, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक विस्तार किया। इसी दौरान उन्होंने धीरे-धीरे पतंजलि योगपीठ, दिव्य योग मंदिर, दिव्य फार्मेसी और आगे चलकर भारत स्वाभिमान ट्रस्ट नामक संस्थानों व संगठनों की स्थापना कर डाली। पर लगता है कि बाबा को लगभग ग्यारह सौ करोड़ रुपये का विशाल साम्राज्य स्थापित करने के बाद भी तसल्ली नहीं हुई और उन्हें ऐसी गलतफहमी पैदा होने लगी कि क्यों न देश की राजनीति को अपने नियंत्रण में लेकर इस देश की सत्ता पर भी नियंत्रण रखा जाए। उन्हें यह भी मुगालता होने लगा कि उनका खुद का व्यक्तित्व ही कुछ निराला है, तभी तो सत्ता और विपक्ष का बड़ा से बड़ा नेता उनके योग शिविर में उनके निमंत्रण पर खिंचा चला आता है।
इस मुगालते ने धीरे-धीरे अहंकार का वह रूप धारण कर लिया, जिसने बाबा रामदेव के मुंह से अहंकार में यह तक निकलवा दिया, 'जब देश के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री मेरे चरणों में बैठते हों, फिर आखिर मैं क्यों प्रधानमंत्री बनना चाहूंगा।' इतने अहंकार भरे शब्द शायद ही अब तक देश के किसी प्रमुख व्यक्ति या साधु-संत के मुख से निकले हों। शायद योग शिविर के नाम पर लाखों लोगों को इकट्ठा करने वाले इस योगगुरु को यह भ्रम भी हो गया होगा कि जो भीड़ उन्हें विश्वविख्यात योगऋषि बना सकती है, उसी के कन्धों पर सवार होकर वे देश की लोकतांत्रिक-राजनीतिक व्यवस्था पर भी कब्ज़ा जमा सकते हैं। हो सकता है इसीलिए बाबा रामदेव ने विदेशों से काला धन वापसी का मुद्दा कुछ इस अंदाज़ में उठाया गोया देश में वही अकेले ऐसे व्यक्ति हों जिन्हें विदेशों से काला धन वापस मंगाने की सबसे अधिक चिंता हो या देश की जनता ने उन्हें इस काम के लिए अधिकृत कर दिया हो।
दरअसल, रामदेव ने आम लोगों को भावनात्मक रूप से अपने साथ जोडऩे की गरज़ से मुद्दा तो काले धन की वापसी का उठाया, लेकिन धीरे-धीरे वे देश में अपनी राजनीतिक शक्ति को भी तौलने लगे। पिछले संसदीय चुनावों में स्वाभिमान ट्रस्ट द्वारा शत-प्रतिशत मतदान करने की अपील के साथ पूरे देश में तमाम जगहों पर रैलियां भी निकाली गईं। यह सब कार्रवाई केवल नवगठित ‘भारत स्वाभिमान संगठन’ की ज़मीनी हकीकत को मापने तथा इसे प्रचारित करने के लिए की गई थी। मगर राजनीतिक तिकड़मबाजि़यों से अनभिज्ञ रामदेव की भारतीय राजनीति के क्षितिज पर चमकने की मनोकामना आखिरकार उस समय धराशायी हो गई जब वे रामलीला मैदान से अपने समर्थकों और अनुयायियों को उनके हाल पर छोड़ कर स्वयं पुलिस से डर कर किसी महिला के कपड़े पहनकर भाग निकले। पुलिस ने इसी हालत में उनको गिरफ्तार कार लिया।
उनकी दूसरी बड़ी किरकिरी उस समय हुई जब वे नींबू-पानी व शहद ग्रहण करने के बावजूद स्वयं को ‘अनशनकारी’ बताते रहे। उन्हें सबसे अधिक मुंह की तब खानी पड़ी, जब इस तथाकथित अनशन को समाप्त करने के लिए भी केंद्र सरकार का कोई प्रतिनिधि उन्हें मनाने नहीं गया। उन्होंने कुछ संतों की गुज़ारिश पर अपनी कोई मांग पूरी हुए तथा किसी सरकारी आश्वासन के बिना अनशन तोड़ दिया। अब यही बाबा रामदेव राजनीति से ‘वास्तविक साक्षात्कार’ होने के पश्चात काले धन की वापसी पर तो कम बोलते दिखाई दे रहे हैं, मगर अब उन्हें लोगों को यह बताना पड़ रहा है कि वे रामलीला मैदान से क्यों भागे, उन्होंने औरतों के कपड़े किन परिस्थितियों में पहने तथा अपना तथाकथित अनशन उन्हें कैसे तोडऩा पड़ा।
उनकी दूसरी बड़ी किरकिरी उस समय हुई जब वे नींबू-पानी व शहद ग्रहण करने के बावजूद स्वयं को ‘अनशनकारी’ बताते रहे। उन्हें सबसे अधिक मुंह की तब खानी पड़ी, जब इस तथाकथित अनशन को समाप्त करने के लिए भी केंद्र सरकार का कोई प्रतिनिधि उन्हें मनाने नहीं गया। उन्होंने कुछ संतों की गुज़ारिश पर अपनी कोई मांग पूरी हुए तथा किसी सरकारी आश्वासन के बिना अनशन तोड़ दिया। अब यही बाबा रामदेव राजनीति से ‘वास्तविक साक्षात्कार’ होने के पश्चात काले धन की वापसी पर तो कम बोलते दिखाई दे रहे हैं, मगर अब उन्हें लोगों को यह बताना पड़ रहा है कि वे रामलीला मैदान से क्यों भागे, उन्होंने औरतों के कपड़े किन परिस्थितियों में पहने तथा अपना तथाकथित अनशन उन्हें कैसे तोडऩा पड़ा।
अब वे अपनी धन-सपत्ति तथा तमाम आरोपित अनियमितताओं का जवाब देते फिर रहे हैं। रामलीला मैदान से उनके भेष बदल कर पलायन करने की घटना को भी संत समाज कायरतापूर्ण कार्रवाई बता रहा है जबकि बाबा रामदेव और उनके समर्थक इसे वक्त की ज़रूरत तथा सूझबूझ भरा कदम बता रहे हैं। बहरहाल बाबा रामदेव की मुश्किलें निकट भविष्य में खत्म होती दिखाई नहीं दे रही हैं। प्रत्येक आने वाला दिन उनके लिए विशेषकर उनके महत्वाकांक्षी राजनीतिक अस्तित्व के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण होने जा रहा है।
कल तक जिस अहंकार से रामदेव ने अन्ना हज़ारे के लिए यह कहा था कि-अन्ना हज़ारे पहले महाराष्ट्र तक सीमित थे उन्हें अपने मंच पर लाकर राष्ट्रीय स्तर पर मैंने उनका परिचय देशवासियों से कराया। जिस अन्ना हज़ारे के जंतर-मंतर पर आयोजित अनशन को बौना करने की गरज़ से उन्होंने अपना ‘रामलीला मैदान का शो’ आयोजित किया था, अब वही अन्ना अपने भविष्य के कार्यक्रम में रामदेव को अपनी शर्तों के साथ शामिल करने की बात कह रहे हैं। खबर तो यह भी है कि 16 अगस्त के अन्ना हज़ारे प्रस्तावित अनशन में रामदेव से जनता के बीच में बैठ कर अनशन में शरीक होने की बात की जा रही है, न कि मंच सांझा करने की बात। उधर प्रवर्तन निदेशालय बाबा रामदेव द्वारा इकट्ठी की गई 1100 करोड़ की संपत्ति की जांच करने में इस संदेह के कारण लग गया है कि कहीं रामदेव द्वारा फेमा नियमों का उल्लंघन तो नहीं किया गया?
कल तक जिस अहंकार से रामदेव ने अन्ना हज़ारे के लिए यह कहा था कि-अन्ना हज़ारे पहले महाराष्ट्र तक सीमित थे उन्हें अपने मंच पर लाकर राष्ट्रीय स्तर पर मैंने उनका परिचय देशवासियों से कराया। जिस अन्ना हज़ारे के जंतर-मंतर पर आयोजित अनशन को बौना करने की गरज़ से उन्होंने अपना ‘रामलीला मैदान का शो’ आयोजित किया था, अब वही अन्ना अपने भविष्य के कार्यक्रम में रामदेव को अपनी शर्तों के साथ शामिल करने की बात कह रहे हैं। खबर तो यह भी है कि 16 अगस्त के अन्ना हज़ारे प्रस्तावित अनशन में रामदेव से जनता के बीच में बैठ कर अनशन में शरीक होने की बात की जा रही है, न कि मंच सांझा करने की बात। उधर प्रवर्तन निदेशालय बाबा रामदेव द्वारा इकट्ठी की गई 1100 करोड़ की संपत्ति की जांच करने में इस संदेह के कारण लग गया है कि कहीं रामदेव द्वारा फेमा नियमों का उल्लंघन तो नहीं किया गया?
रामदेव के परम सहयोगी बालकृष्ण पर दो पासपार्ट रखने तथा इन पासपोर्ट पर कई विदेशी यात्राएं करने जैसे आरोप लग रहे हैं। कुल मिला कर हम यह कह सकते हैं कि बाबा रामदेव को योग ने तो आसमान पर चढ़ा दिया लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा उन्हें ले डूबी।