भारत में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहर का तमगा हासिल कर चुकी दिल्ली में 25जून को आयोजित होने वाला स्लट वाक अर्थात बेशर्मी मोर्चा का पहला प्रदर्शन अब जुलाई के पहले सप्ताह में होने की संभावना है...
विभा सचदेव
लड़कियों के छोटे कपड़े मर्दों को उत्तेजित करते हैं और वह लड़कियां ऐसे कपड़े पहनकर खुद ही बलात्कार और छेड़छाड़ को आमंत्रित करती हैं,जैसे तर्क आमतौर पर सार्वजनिक स्थलों पर सुनने को मिल जाते हैं। हद तो तब हो जाती है जब बलात्कार के खिलाफ कार्यवाही करने वाली संस्थाएं भी इसी तरह का तर्क देती हैं। लेकिन अब इस एकतरफा मर्दाना समझ पर लगाम की तैयारी शुरू हो गयी। इस मर्दाना सोच को चुनौती देने के लिए अगले महीने दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की छात्रा उमंग सबरवाल के नेतृत्व में भारत में पहला बेशर्मी मोर्चा का प्रदर्शन दिल्ली के कनॉट प्लेस इलाके में होने वाला है। गौरतलब है कि स्लट शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर मर्द उन औरतों के लिए करते हैं, जिन्हें वह बदचलन मानते हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा अर्पणा शर्मा कहती हैं,‘आखिरकार इस असुरक्षित शहर में हमारी आजादी के लिए कुछ तो होने जा रहा है। मैंने तो 25 जून को दिल्ली के कनॉट प्लेस में आयोजित होने वाले बेशर्मी मार्चा में शामिल होने के लिए आलमारी से सबसे छोटे कपड़े विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिये निकाले थे, मगर वह टल गया है।’ क्यों टला होगा, के सवाल पर अर्पणा कहती हैं, ‘जहां तक मुझे पता है नैतिकता के चौधरियों, जिसमें सरकार भी शामिल है, उसी का दवाब है।’
जनवरी2011में कनाडा के एक पुलिस अधिकारी द्वारा लड़कियों को यौन उत्पीड़न से बचने के लिए ‘कुलटा की तरह कपड़े’ न पहनने के सुझाव से इस विरोध की शुरुआत इस वर्ष टोरंटों शहर से हुई। पुलिस अधिकारी के सुझाव के विरोध में कनाड़ा की सड़के ‘हमें नहीं बलात्कारी को सजा दो’, ‘हम चाहे जो पहने, हमारी न का मतलब न है’ नारों से गूंज उठी। उसके बाद लंदन में ी लगग 5000 महिलाओं ने कम कपड़े पहनकर सड़क पर उतर कर ‘स्लट वॉक’का आगाज किया गया। केवल कनाडा और लंदन नहीं दुनिया के सी बड़े शहरों में ‘स्लट वॉक’ की आग देखने को मिली रही है और अब भारत की बारी है। इस मार्च में शामिल लड़कियां और महिलाएं वह कपड़े पहनती हैं, जिन्हें समाज नैतिकता के आधार पर पहनने की इजाजत नहीं देता और पहनने वालों को बदचलन कहने से गुरेज नहीं करता।
अगर एक आम व्यक्ति इस स्लट वॉक के बारे में सुनेगा तो उसकी धारणा कुछ अलग ही होगी। लेकिन वह यह अनुमान कभी नहीं लगा पायेगा कि यह महिलाओं द्वारा छेड़ा गया एक सामाजिक आंदोलन है। भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए छेड़ा गया ‘फाइट अगेंस्ट करप्शन’, भूमि अधिग्रहण को रोकने के लिए चला भूमि अधिग्रहण प्रतिरोध आंदोलन’तो सुना है लेकिन बेशर्मो को सबक सिखाने के लिए खुद ही बेशर्म मोर्चा बना देना पहली बार देखा गया है।
देह का व्यापार करने वाली महिलाओं के लिए प्रयोग किया जाने वाला यह अपमानजनक शब्द ‘स्लट’ का प्रयोग इन संघर्ष में शामिल महिलाओं द्वारा उन पुरुषों के मुंह पर तमाचा मारने के लिए किया गया जो कभी किसी लड़की को स्लट कहने में नहीं हिचकिचाते। भारत में इस विरोध प्रदर्शन का नाम बदलकर ‘बेशर्मी मोर्चो’ कर दिया गया है, क्योंकि यहां पर बहुत से पुरुष ऐसे मौजूद है जो इस शब्द का मतलब तक नहीं जानते, लेकिन उनके शब्दकोष में और ऐसे कई अपमानजनक शब्द मौजूद है जो किसी भी महिला को अपमानित करने के लिए काफी हैं।
महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक माने गये देशों की सूची में देश की राजधानी दिल्ली को चौथा स्थान प्राप्त है और भारत के असुरक्षित शहरों में पहला. यह वही शहर है जहां बलात्कार की घटनाओं के बाद लोगों को कहते सुना जाता है कि ‘ताली एक हाथ से नहीं बजती,उस लड़की ने भी कुछ न कुछ जरूर किया होगा’। प्रदेश की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का ऐसी घटनाएं कैसे रूकें पर राय है कि ‘लड़कियों को रात में बाहर नहीं निकलना चाहिए।’ सवाल है की क्या यह उपाय स्त्रियों को दोयम नागरिक बनाये रखने की ही साजिश नहीं है.
उसके बाद बारी आती है कार्ट की। कोर्ट में लड़की के चरित्र को लेकर बहस होती है और अगर किसी कारणों से एक पक्ष लड़की के चरित्र के साथ बदचलन शब्द लगाने में कामयाब हो जाता है तो पूरे केस का रुख ही बदल जाता है और पुरुष द्वारा किया गया अपराध, अपराध नहीं रह जाता। इसका मतलब यह है कि अगर लड़की का चरित्र साफ नहीं है तो कोई भी उसके साथ कुछ ी कर सकता है। भारतीय मानसिकता के मुताबिक तो अगर लड़की छोटे कपड़े पहनकर घर से निकलती है तो उसका चरित्र ठीक होता।
दिल्ली की सड़कों का हाल तो कुछ इस तरह है कि अगर कोई लड़की छोटे कपड़े पहनकर निकलती है तो आस-पास चल रहे लोग उसको ऊपर से नीचे तक देखते हैं और झट से उनके मुंह से एक ही वाक्य निकलता है, ‘फिर कहेंगी हमारा रेप हो गया।’ ऐसे में शुक्र मनाना चाहिए कि आखिर किसी ने तो इसकी शुरूआत की और सड़ांध मार रही मानसिकता पर सवाल उठाया है। लेकिन इस विरोध आंदोलन की सफलता को लेकर एक सवाल अभी भी जेहन में है कि क्या भा रत में भी इस आंदोलन को उसी तरह समर्थन मिल पायेगा, जिस तरह विदेश में मिला है।
भारत की संस्कृति,मानसिकता और रहन-सहन सब कुछ बिलकुल अलग है। देश की सड़कों पर जब लड़कियां अर्धनग्न रूप में विरोध करते हुए उतरेगी तो यहां के लोगों का क्या रवैया होगा। क्योंकि यहां के मर्दो के इस ‘बेशर्मी मोर्चा’को लेकर अपमानजनक तर्क को अभी से आने शुरू हो गये हैं, और मर्द कहने लगे हैं कि ‘वी आर रेडी टू सी स्लटस ऑन दा रोड’।
पुणे स्थित इंटरनेशनल स्कूल ऑफ़ ब्रोडकास्टिंग एंड जर्नलिज्म से इसी वर्ष पत्रकारिता कर लेखन की शुरुआत. सामाजिक विषयों और फ़िल्मी लेखन में रूची.