Sep 1, 2010

सूखे पर सवार नीतीश सरकार


बिहार सरकार ने  चुनाव के मद्देनजर सभी जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है, लेकिन  मुख्यमंत्री की घोषणा भर से क्या किसानों का दर्द कम हो जायेगा.

पंकज कुमार

उत्तरी बिहार के कुछ इलाकों में आयी  बाढ़ के बारे में टीवी चैनल पर खबर देखने या फिर किसी सामाचार पत्र में खबर पढ़कर यह अंदाजा लगाना तथ्यगत रूप से ठीक नहीं कि  बिहार में बारिश हो रही है। नेपाल की नदियों से बहकर आये  पानी से बिहार के कुछ इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति  हो गई है, जिस कारण कुछ क्षेत्र जलमग्न हो गए हैं। लेकिन सवाल है कि क्या इस पानी से सूखाग्रस्त  किसानों का भला होने वाला है?

नीतीश सरकार ने बिहार के 28 जिलों को पहले सूखाग्रस्त घोषित किया। बाद में 64वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पटना के गांधी मैदान से राज्य के सभी 38 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया। लेकिन सिर्फ सूखा घोषित करने भर से ही सरकार का काम पूरा हो जाता है या जरूरत इस बात की है जो घोषणाएं की जा रही हैं  वह किसानों या जरूरतमंदों तक पहुंच रही है या नहीं।

मौसम विभाग के एक अनुमान के मुताबिक अगस्त के दूसरे सप्ताह तक राज्य में 32 फीसदी कम बारिश हुई है। ऐसे में सूखे से निपटना सरकार के लिए चुनौती है, वह भी ऐसे समय में जब राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। पहले से ही कई मोर्चों पर चुनौतियां झेल रही एनडीए सरकार किसी भी कीमत पर किसानों को नाराज करने का जोखिम उठाना नहीं चाह रही होगी। बिहार सरकार ने चुनाव को देखते हुए सभी जिलों को सूखाग्रस्त घोषित भले ही कर दिया हो, लेकिन पटना से मुख्यमंत्री की घोषणा भर से क्या किसानों का दर्द कम हो गया है? नीतीश कुमार भले ही खुद को सुशासन कुमार का तगमा दिए जाने से खुश हो रहे हों, लेकिन उनके प्रशासनिक तंत्र में कई झोल हैं। वह भी ऐसे झोल जिनकी वजह से पहले से ही कमर के बल झुक चुके किसानों के माथे पर बल पड़ रहे हैं।

चुनावी साल है तो मुख्यमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के दिन सूखाग्रस्त बिहार के लिए ग्रामीण बिहार के लिए घोषणाओं की झड़ी लगा दी। उन्होंने पंचायतों में अतिरिक्त अनाज रखने का निर्देश दिया है ताकि कोई अन्न की कमी से भूखा न मर सके। पेयजल आपूर्ति के बारे में लगातार समीक्षा की जा रही है। किसानों को तीन लाख रुपए तक का ऋण चार प्रतिशत ब्याज पर मुहैया कराने की घोषणा की गई। उन्होंने कहा कि पंचायतों में मजदूरों के हित में मनरेगा योजना चल रही है, लेकिन कोशिश है कि प्रत्येक पंचायत में रोजगार मुहैया कराने वाली दो योजनाएं और चलाई जाएं।

सूखे के हालात से निपटने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह  और केंद्रीय टीम को व्यापक रूप से जानकारी दी गई है और पांच हजार करोड़ रुपए की मांग की गई है। राज्य सरकार की ओर से सूखा पीड़ित किसानों के हित में उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि धान के बिचड़ें और फसल को बचाने के लिए डीजल अनुदान देने हेतु 570 करोड़ रूपये दिए गए हैं। इसके बाद भी सूखे से निबटने के लिए बिहार को 330 मेगावाट अतिरिक्त बिजली और बेरोजगार श्रमिकों हेतु रोजगार के लिए मनरेगा के तहत 13 हजार 456 करोड़ रुपए की सहायता राशि की मांग की गई है। 

भीषण सुखाड़ की स्थिति में पहले से ही इंद्रदेव की बेरुखी से परेशान किसान नीतीश सरकार की लालफीताशाही और अफसरशाही से परेशान हैं। नीतीश सरकार पर पहले से ही आरोप लगते रहे हैं कि इस सरकार में अफसरशाही हावी है, घूसखोरी बढ़ी है। जिला स्तर हो या ब्लॉक स्तर सभी जगह पर कमोबेश यही रामकहानी है। यही वजह है कि राज्य सरकार द्वारा जारी की गई राशि जरुरतमंद किसानों तक नही पहुंच रही हैं। सरकार की ओर से सूखाग्रस्त घोषित होने के बाद यह घोषणा की गई थी कि आपदा राहत राशि, राज्य आपदा रिस्पांस कोष, राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता निधि और राष्ट्रीय आपदा रिस्पांस कोष से दिए जाने वाले सहायता प्रावधान तत्काल प्रभाव से लागू होंगे, लेकिन यह राशि किसानों तक पहुंच ही नहीं रही है।

जिन किसानों को कुछ सहायता राशि मिली भी है उन्हें कई दिक्कतों को सामना करना पड़ा है। इतना ही नहीं, किसानों को ठीक से पता भी नहीं है कि उनके लिए पटना से जो सहायता राशि या अनुदान की घोषणा की गई है, वह कब और कैसे मिलेगी? मधुबनी जिले के लक्ष्मीपुर गांव के रहने वाले किसान मदन गुप्ता का कहना है कि अखबारों में मैने भी काफी कुछ पढ़ रखा है, लेकिन हाथ कुछ भी नहीं आया है। उनका कहना है कि कुछ दिनों में हल्की-फुलकी बारिश तो हुई है, लेकिन इससे खेती  नहीं हो सकती है। खेती पर निर्भर रहने वाले किसान मदन गुप्ता सरकारी योजनाओं को लेकर काफी नाउम्मीद नजर आये। गरीब किसान जानकारी के अभाव में सरकारी मदद की टकटकी लगाए बैठा है, लेकिन स्थानीय प्रशासन  इन चुनौतियों को निपटाने में नकारा साबित हो रहा है।

बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है। यहां की 90 फीसदी आबादी गांवों में और 77 फीसदी जनसंख्या कृषि एवं उससे संबंधित कार्यों से जुड़े हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में औद्योगिकीकरण का आधार भी कृषि है, लेकिन पूर्वी भारत में मानसून के दगा देने से हालात खराब होने लगे हैं। बिहार धान की रोपाई में काफी पिछड़ गया है, इसके अलावा दूसरी  फसलें भी सूख रही हैं। इससे खरीफ की कुल पैदावार के घटने का अंदेशा है। एक अनुमान के मुताबिक बिहार में धान की  रोपाई का रकबा 28.44 लाख हेक्टेयर है, मगर खेती  सिर्फ 15.80 लाख हेक्टेयर हो सकी है। यह राज्य लगातार दूसरे साल सूखे की चपेट में है। लगातार दूसरे साल सूखे की वजह से पशुओं के लिए चारे और पेयजल की किल्लत शुरू हो गई है, जो नीतीश सरकार के लिए बड़ी चुनौती है और प्रशासन का इस ओर ध्यान ही नहीं जा रहा।

15 अगस्त को नीतीश सरकार ने घोषणा करते हुए कहा कि सूखे से उत्पन्न हुए हालात के बाद भी राज्य में किसी को भूख से मरने नहीं दिया जाएगा, लेकिन नीतीश कुमार को ग्रामीण इलाके की स्थिति का अहसास नहीं है। किसान इस चिंता में डूबा है कि आखिर महंगाई की इस दौर में और कुदरत के बेरुखी के बाद उनका सालभर का खर्चा-पानी कैसे चलेगा। नीतीश कुमार सिर्फ घोषणाएं कर रहे हैं, लेकिन सूखे से उत्पन्न दूसरे संकटों पर ध्यान नहीं जा रहा। बिहार से दिल्ली, पंजाब, मुंबई जैसे दूसरे राज्यों में पलायन कम नहीं था, लेकिन अब पेट की आग और परिवार को दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में लोग पलायन कर रहे हैं। सहायता राशि पीड़ितों तक कैसे पहुंचे ताकि पलायन को रोका जाए। इस बात पर राज्य के मुखिया का ध्यान नहीं जा रहा। दिल्ली के इंडिया इस्लामिक सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार से लोगों का पलायन करना कोई नहीं बात नहीं है। यह पहले से होता आ रहा है।

सुशासन कुमार इतिहास की दुहाई देकर वर्तमान में अपनी सरकार की कमियों को छिपाते नजर आए। वह इस बात को भूल गए कि कोई भी घर से दूर-परदेस जाने को तभी मजबूर होता है जब उसके सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो जाए। हालांकि केंद्र सरकार की ओर से सूखे की स्थिति का जायजा लेने के लिए आई केंद्रीय टीम ने राज्य सरकार के सूखे से संबंधित रिपोर्ट पर अपनी मुहर लगा दी है। लेकिन सूखे की मार झेल रहे लोगों का कहना है कि जब खरीफ फसल के बुआई का समय सीमा खत्म हो जाएगी, खेतों की हरियाली सूख चुकी होगी और जीने का संकट हो जाएगा- क्या सरकार उस वक्त तक का इंतजार कर रही है?