अजय प्रकाश
जंजीर से बंधा आदमी बुन्देलखंड के मटौंध गाँव का है. गाँव के किसी आदमी को इसके बंधे रहने से कोई ऐतराज नहीं है. लोग कहते हैं जिंदगी व्यहार से चलती है, आदर्श से नहीं. इसलिए बंधे आदमी को खुला क्यों नहीं कर देते, जैसे सवालों को लोग अव्यावहारिकता कहतें हैं और इस पर बहस करने को फ़िज़ूल का आदर्शवाद.
जंजीर में बंधे आदमी के पास घुरिया रहे बच्चे बतातें हैं जबतक यह पागल बंधा रहता है, इसकी पत्नी चैन से काम कर पाती है, गाँव में भी हो हल्ला नहीं होता. जंजीर में बंधे आदमी के घर में पत्नी के सिवा कोई और नहीं है. संयोग से उस वक्त घर पर वह अकेले था. उसने बताया कि उसकी बीवी खाने का जुगाड़ करने गयी है. फिर उसने नज़दीक बुलाकर कहा, 'जंजीर खुलवा दो गुरु, जरा चौराहे से हम भी हो आयें.'
आसपास खड़े बच्चों से ही पता चला कि मटौंध के दुसरे छोर पर एक और पागल है जो इसी तरह जंजीरों में बंधा रहता है. बच्चों की बात पर गाँव के बड़े भी हामी भरते हैं. लेकिन वे लोग इन पागलों को जंजीरों में बांधे जाने को बेहद जरूरी मानते हैं. परिवार वाले गाँव वालों की तू-तू ,मैं-मैं से बचने के लिए दिमागी रूप से असंतुलित अपने लोगों को जंजीरों में बांधे रखना ही अंतिम माकूल दवा मानते हैं.
इलाज़ के लिए क्या प्रयास हुआ के जवाब में पड़ोसियों में एक ने बताया कि , 'गरीब आदमी है, भरपेट खाना मिल जाये वही बड़ी बात है. ' जबकि दुसरे का कहना था, ' गया था एक बार पागल खाने. मगर वहां से भी भागने लगा तो दरबानों ने इतना मारा कि कई महीनों तक चम्मच से पानी पिया. इसलिए अब इसकी पत्नी बांधने को ही इलाज मान चुकी है. '
मटौंध, गाँव से ऊपर उठकर कई साल पहले नगर पंचायत की श्रेणी में आ चुका है. मटौंध बुन्देलखंड के अन्य गावों की तरह दरिद्र नहीं लगता. हर तरफ सड़कों का जाल फैला हुआ है. यहाँ पुलिस, प्रशासन और नेताओं का आना जाना आम है.
गाँव वाले कहतें हैं, ' इस पागल को किसी के सिफारिश की जरूरत नहीं है. खुद ही फर्राटेदार हिंदी- अंग्रेजी बोलता है, भैया बीएसी पास है. गाँव में जो भी आता है उससे गुटखा के लिए एक रुपया मांगता है और जंजीर खोलने के लिए कहता है. लोग रूपया पकड़ा कर, जंजीर खुलवा देंगे का वादा कर चले जातें हैं. यह आज से तो है नहीं. आप भी एकाध रूपया दे कर निकलिए कि.........................'!