Jun 20, 2011

पड़ोस के लुटेरे

बासो और बासो जैसी कितनी हजारो की दास्तान सुनकर सवाल उठता है आखिर हमने कैसा सामाज बनाया है। अपने ही माँ, पड़ोस, भाई-बहन को लूट रहे हैं। बाहरी लूटेरों से तो लड़ सकते हैं-लेकिन अपने बनाये समाज से कैसे लड़गें...

दयामनी  बारला 

जिस माँ से आशीर्वाद  की उम्मीद में हम उनका चरण स्पर्श  करते हैं, धन की लोलूपता उसी माँ को लूटने में भी कोई कसर नहीं छोड़ती है। ये हैं बासो देवी, विधवा माँ । घर है झारखण्ड के गुमला जिला के बसिया प्रखंड के पोकट गांव में। रहने के लिए छत  नहीं है। पड़ासियों ने अपने घर में पनाह  दिया है। देश के बाकि हिस्सों की तरह यहाँ भी बेघरों को इंदिरा गांधी आवास योजना के तहत आवास दिया जाता  है। बासो देवी को भी सरकार की ओर से इंदिरा आवास स्वीकृत हुआ है और माकन बनाने के लिए उन्हें  45,000 रूपये भी सरकार की और से मिले हैं. 

बासो देवी : लूट में अपनों का हाथ
इन रुपयों में से  20,000  बसों देवी ने निकाला कि माकन बनाने का काम शुरू हो सके । 6 जून 2011 को पोकटा पंचायत में मनरेगा योजना में काम किये मजदूरों को मजदूरी का भूगतान नहीं किया गया , इस संबंध में मजदूरों की बैठक में बासो देवी ने हमें अपना दुखड़ा सुनाया कि कैसे माकन का सपना अधुरा रह गया और वह बेघर हालत मेंवह दूसरे के यहाँ शरण ली हुई हैं। उम्र इतना हो गया है कि अब बासो  बिना डंडा के खड़ी भी नहीं हो पाती हैं । एक तरफ उनमें माँ की ममता  छलकती है, तो दूसरी ओर सामाज द्वारा छल -कपट की शिकार पीड़ित वृद्ध  औरत का दर्द भी छलक रहा है।

कहती है-इंदिरा आवास बना थों-नवीण कहलक पत्थल-इंटा गिराय देबु पैसा दे (इंदिरा आवास के लिए नवीन ने कहा कि पैसा दो तो माकन के लिए ईंट-पत्थर गिरा दूंगा) । ९००० (नौ हजार) लेईगेलक आज तक न तो इंटा गिरायेल ना तो पत्थर । कई धर गेलों कहेकले-कि गिराय दे-कहते रहाई गेलक हां गिराय देबु-आईज तक कोनो नंखे (नौ हजार ले गया, लेकिन ईंट गिराया न पत्थर. कई बार कही भी तो आजकल करता रहा)। बासो आगे कहती हैं -अब हम मिटटी का ही दिवाल उठा रहे है। घर तो किसी तरह तैयार करना ही है -इसलिए कि दूसरों के घर में हुं।

बासो और बासो जैसी  कितनी हजारो की दास्तान सुनकर सवाल उठता है आखिर हमने कैसा सामाज बनाया है। अपने ही माँ, पड़ोस, भाई-बहन को लूट रहे हैं। बाहरी लूटेरों से तो लड़ सकते हैं-लेकिन अपने बनाये समाज से कैसे  लड़गें, शुरुआत कहां से हो-यह अपने समाज के भीतर और बाहर सबसे बड़ा सवाल  है। इस लड़ाई को आसानी से जीता जा सकता है-यदि सरकारी मशीनरी, प्रशासन इस लूट तंत्र को रोकने के प्रति कटिबद्व हो। साथ ही समाज को भी सोचना होगा की..क्या हम इसी  तरह के माहौल  में रहना चाहते हैं...




झारखण्ड की प्रमुख और सशक्त सामाजिक कार्यकर्त्ता. देश के विभिन्न जनांदोलनों से गहरा जुड़ाव. संघर्षों के बीच वह अपनी बात पहुँचाने के लिए लगातार लिखती रहती हैं. लोकतंत्र की सच्ची दास्तानगोई  दयामनी बारला के जरिये अब आपके बीच होगी.