बीजेपी चुनाव से बहुत पहले ही उत्तर प्रदेश में लव जेहाद, गो हत्या, घर वापसी जैसे सारे बम फोड़ चुकी है। भाजपा कार्यकारिणी इस समय मुश्किल में है। कोई मुद्दा नहीं मिल रहा कि भाजपा प्रदेश स्तर पर बीच बहस में सबसे उपर दिखे या टीवी वाले यह भी बोल सकें कि जी, भाजपा की लहर है।
कल परचा दाखिला का पहला दिन है। 11 फरवरी को 73 सीटों पर चुनाव है लेकिन मोदी जी ने जैसी हवा का बहाने का टार्गेट संघ और पार्टी को दिया है, उसकी हवा निकल चुकी है। कार्यकर्ताओं को बुस्टअप करने की सारी तरकीबें बेकार जा रही हैं।
ऐसे में मुद्दा बनाने के लिए भाजपा को अपने पार्टनर चैनल 'जी न्यूज' का सहारा लेना पड़ रहा है।
संघ के एक छुटभैया नेता 'भाईजी' के शब्दों में, 'कार्यकारिणी को क्या समझ में आता है? वह तो बस विधायक—सांसद बनने की तेजी में रहते हैं, अपनी गोट सेट करते हैं। आइडिया तो हमलोग देते हैं भाई जी। और हमने दिया भी। अब आप देखिएगा कैसे कल से यूपी चुनाव के बहस की दिशा बदलते हैं।'
करीब सप्ताह भर पहले मैं अपने एक नेता मित्र के साथ था, 'मैंने पूछा किया क्या? दंगा कराएंगे क्या?'
संघ के नेता मेरा हाथ थामते हुए, 'भाई जी दंगा नहीं अबकी विमर्श होगा, बहस होगा और जो उचित होगा उसपर फैसला होगा। हां, वे दंगा चाहेंगे तो दंगा भी होगा। पर हम हिंसा विरोधी हैं।'
फिर मैंने अपना सवाल दोहराया, 'किया क्या?'
संघ के नेता, 'तारेक फतेह को खड़ा कर दिया? अब जवाब दें मुसलमान। अब देखें कौन पार्टी है जो हिंदुओं को एकजुट होने से रोक पाती है।'
मैं, 'लेकिन वह तो भारत का नागरिक ही नहीं। फिर कैसे आपने खड़ा किया?'
संघ के नेता, 'चुनाव में नहीं भाई जी। टीवी में। उसमें कोई नागरिकता की जरूरत नहीं।'
मैं, 'मतलब गेस्ट बनाया। किस चैनल पर। क्या डिबेट है, कब है।'
संघ के नेता, 'देख लीजिएगा, खुद की पता चल जाएगा?'
फिर भी, 'क्या जी न्यूज पर।'
फिर वह और नेता मित्र हंस पड़े। तो मुझे समझ में आ गया कि तारेक फतेह जी न्यूज पर मसला बदलने आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने आ रहे हैं।
मैंने खुद से सवाल किया कि क्या कोई चैनल या मीडिया माध्यम ऐसा हो सकता है कि वह एक पार्टी का मुखपत्र ही माना जाने लगे। क्या इस प्रवृत्ति के रहते कल को वह अपने व्यावसायिक रूप बनाए रख पाएगा या उसे लोग मीडिया मानने को तैयार होंगे?
फिर याद आया कि जी न्यूज कर भी और क्या सकता है। आखिर भाजपा सरकार ने जो 7770 करोड़ को जो अहसान लादा है, आखिर उसको उतारने का और कोई क्या तरीका हो सकता है।
आप सबको याद होगा कि जी न्यूज की मालिक कंपनी 'एस्सेल ग्रुप' को हरियाणा और केंद्र सरकार ने मिलकर 7750 हजार करोड़ रुपए का ठेका दिया है। यह ठेका केेंद्रीय परिवहन मंत्रालय और हरियाणा सरकार ने दिया है।
ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि उत्तर प्रदेश की जनता एक मीडिया ग्रुप के व्यावसायिक लाभ के चक्रव्यूह और पार्टी के शातिराना तैयारी में फंसती है या इनको नोटिस ही नहीं करती!!!
कल परचा दाखिला का पहला दिन है। 11 फरवरी को 73 सीटों पर चुनाव है लेकिन मोदी जी ने जैसी हवा का बहाने का टार्गेट संघ और पार्टी को दिया है, उसकी हवा निकल चुकी है। कार्यकर्ताओं को बुस्टअप करने की सारी तरकीबें बेकार जा रही हैं।
ऐसे में मुद्दा बनाने के लिए भाजपा को अपने पार्टनर चैनल 'जी न्यूज' का सहारा लेना पड़ रहा है।
संघ के एक छुटभैया नेता 'भाईजी' के शब्दों में, 'कार्यकारिणी को क्या समझ में आता है? वह तो बस विधायक—सांसद बनने की तेजी में रहते हैं, अपनी गोट सेट करते हैं। आइडिया तो हमलोग देते हैं भाई जी। और हमने दिया भी। अब आप देखिएगा कैसे कल से यूपी चुनाव के बहस की दिशा बदलते हैं।'
करीब सप्ताह भर पहले मैं अपने एक नेता मित्र के साथ था, 'मैंने पूछा किया क्या? दंगा कराएंगे क्या?'
संघ के नेता मेरा हाथ थामते हुए, 'भाई जी दंगा नहीं अबकी विमर्श होगा, बहस होगा और जो उचित होगा उसपर फैसला होगा। हां, वे दंगा चाहेंगे तो दंगा भी होगा। पर हम हिंसा विरोधी हैं।'
फिर मैंने अपना सवाल दोहराया, 'किया क्या?'
संघ के नेता, 'तारेक फतेह को खड़ा कर दिया? अब जवाब दें मुसलमान। अब देखें कौन पार्टी है जो हिंदुओं को एकजुट होने से रोक पाती है।'
मैं, 'लेकिन वह तो भारत का नागरिक ही नहीं। फिर कैसे आपने खड़ा किया?'
संघ के नेता, 'चुनाव में नहीं भाई जी। टीवी में। उसमें कोई नागरिकता की जरूरत नहीं।'
मैं, 'मतलब गेस्ट बनाया। किस चैनल पर। क्या डिबेट है, कब है।'
संघ के नेता, 'देख लीजिएगा, खुद की पता चल जाएगा?'
फिर भी, 'क्या जी न्यूज पर।'
फिर वह और नेता मित्र हंस पड़े। तो मुझे समझ में आ गया कि तारेक फतेह जी न्यूज पर मसला बदलने आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने आ रहे हैं।
मैंने खुद से सवाल किया कि क्या कोई चैनल या मीडिया माध्यम ऐसा हो सकता है कि वह एक पार्टी का मुखपत्र ही माना जाने लगे। क्या इस प्रवृत्ति के रहते कल को वह अपने व्यावसायिक रूप बनाए रख पाएगा या उसे लोग मीडिया मानने को तैयार होंगे?
फिर याद आया कि जी न्यूज कर भी और क्या सकता है। आखिर भाजपा सरकार ने जो 7770 करोड़ को जो अहसान लादा है, आखिर उसको उतारने का और कोई क्या तरीका हो सकता है।
आप सबको याद होगा कि जी न्यूज की मालिक कंपनी 'एस्सेल ग्रुप' को हरियाणा और केंद्र सरकार ने मिलकर 7750 हजार करोड़ रुपए का ठेका दिया है। यह ठेका केेंद्रीय परिवहन मंत्रालय और हरियाणा सरकार ने दिया है।
ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि उत्तर प्रदेश की जनता एक मीडिया ग्रुप के व्यावसायिक लाभ के चक्रव्यूह और पार्टी के शातिराना तैयारी में फंसती है या इनको नोटिस ही नहीं करती!!!