Apr 11, 2017

जानिए कुलभूषण जाधव के बारे में पाकिस्तानी मीडिया की राय

हम यहां पाठकों की सुविधा के लिए एक बातचीत का यूट्यूब वीडियो पेश कर रहे हैं जो पाकिस्तान में फांसी की सजा पाए भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के बारे में है। बातचीत में पाकिस्तान के प्रसिद्ध पत्रकार नज़म सेठी ने भागीदारी की है।

कुलभूषण को  पिछले साल मार्च में पाकिस्तान में गिरफ्तार किया गया था। 

पाकिस्तान स्थित डेली न्यूज चैनल के इस वीडियो में विस्तार से पाकिस्तान सरकार का पक्ष रखा गया है। वीडियो में यह भी बताया गया है कि पाकिस्तान ने अबतक कितने भारतीय नागरिकों को जासूस होने के आधार पर गिरफ्तार किया है और कब—कब उन्हें फांसी दी गयी है। 

वीडियो के दावे के मुताबिक अबतक पाकिस्तान ने कुल 13 भारतीय नागरिकों को जासूसी के मामले में गिरफ्तार किया जिसमें से ज्यादातर को फांसी की सजा नहीं हुई। 

पर पाकिस्तानी मीडिया की निगाह में कुलभूषण जाधव का मामला अलग है। वहां की मीडिया और जानकारों के अनुसार जाधव पर पाकिस्तान में बम धमाके कराने का आरोप है। वहां की मीडिया का यह भी कहना है कि कुलभूषण को सजा मिलिट्री कोर्ट ने नहीं ​बल्कि एक सामान्य न्यायिक अदालत ने दिया है।

हालांकि भारत सरकार ने कहा है कि कुलभूषण ईरान से क़ानूनी तरीके से अपना कारोबार चला रहे थे और पाकिस्तानी एजेंसियों द्वारा उनके अपहरण की आशंका है।

पाकिस्तानी न्यूज चैनल 'डेली न्यूज' के साथ नज़म सेठी की बातचीत  

महिला नेता के खिलाफ दुष्प्रचार को क्यों नहीं रोक रहे गूगल और फेसबुक

असल सवाल यह है कि क्या भाजपा की किसी महिला या पुरुष नेता के खिलाफ ऐसे ही दुष्प्रचार किया जाता और फेसबुक व गूगल तमाशा देखते रहते...

जनज्वार। गूगल और फेसबुक कई बार सत्ता और सरकार की असलियत उजागर करने वाली वेबसाइट्स की खबरों को तत्काल रोक देते हैं। उनका तकनीकी विंग इतनी सक्रियता दिखाता है कि उसे रोकने में वह कई बार उन्हें कुछ ​मिनट भी नहीं लगते। और तो और वे विज्ञापन अधिकार छीन लेते है, रैंकिंग घटा देते हैं। 

फिर यहां देरी का क्या मतलब है, जबकि खुद पीड़िता कविता कृष्णन ने फेसबुक पर इस न्यूज को रोकने की अपील कर रखी है। बताया है कि मैंने कभी मोदी को न तो नपुंसक कहा और न ही इस भाषा में मैं कोई बात करती हूं।  बावजूद इसके इस फर्जी खबर को शेयर करने वालों संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

 गौरतलब है कि वामपंथी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णन के खिलाफ पिछले एक सप्ताह से लगातार अपमानजक टिप्पणियां और उनका फर्जी बयान दर्जनों वेबसाइट और ग्रुप में शेयर हो रहा है लेकिन उनको अबतक गूगल और फेसबुक ने रोका नहीं है।  

जनज्वार तथ्य के तौर पर चार वेबसाइट का प्रिंट शॉट दे रहा है जिससे कविता कृष्णन के समर्थक सक्रिय हों और ऐसी गलत खबरों के प्रसारण को रूकवाने की तत्काल कोशिश करें।  

कविता कृष्णन की फेसबुक अपील

'मेरे बारे में एक फेक न्यूज कई वेबसाइट्स पर चलाई जा रही हैं। यह फेक न्यूज़ हिंदी में है और कहता है कि मैंने मोदी को नपुंसक कहा और 'फ्री सेक्स' की वकालत की। इस फेक न्यूज़ को चलाने वाले कुछ साइट तो अन्य अश्लील वीडियो भी चलाते हैं। ऐसा फेक न्यूज़ मेरे खिलाफ यौन उत्पीड़न है, मेरे सम्मान पर हमला है, और इससे मेरे लिये और यौन उत्पीडन का खतरा भी पैदा किया जा रहा है। ये सब सोचे समझे साजिश के तहत हो रहा है। मेरा अपील है कि कृपया ऐसे न्यूज़ को न खोजें और इन लिंक्स पर क्लिक न करें। यहां में सिर्फ इसलिए सबको सचेत कर रही हूं कि कोई मित्र बिना पढ़े गलती से ऐसे न्यूज़ शेयर न कर बैठे ये समझ कर कि मेरा बयान होगा तो ठीक ही होगा। मेरा इन वेबसाइट्स के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने का पूरा इरादा है।'

नीतीश गांधी पर देते रहे भाषण और मजदूर नेता आग के हवाले हो गए


पिछले 15 वर्षों से बकाये के लिए मजदूर—किसान 4 दिनों से दे रहे थे धरना, दो ने किया आत्मदाह का प्रयास और एक को लगी गोली, दर्जनों हुए घायल और सरकार गांधी के सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर पड़ोस में मना रही थी महोत्सव...

बिहार की राजधानी पटना से करीब 155 किमी दूर पूर्वी चंपारण से 1917 में महात्मा गांधी ने सत्याग्रह की शुरुआत की थी। यह उनका पहला अहिंसात्मक आंदोलन था। कल गांधी की उसी धरती पर किसान और मजदूर पुलिस की लाठियां, गोलियां खाते रहे, औरतें और बच्चे दौड़ा—दौड़ाकर मारे जाते रहे, लेकिन गांधी के सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर उत्सव मना रही सरकार और उसके मुखिया के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।

मोतिहारी शुगर मिल लेबर यूनियन पिछले चार दिनों से 15 वर्षों से मिल पर बकाया भुगतान के लिए धरना—प्रदर्शन कर रहे थे। इस मुद्दे पर सरकार की बेपरवाही से तंग दो मजदूर नेताओं नरेश श्रीवास्तव और सूरज बैठा ने खुद पर मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा ली। ये दोनों मजदूर नेता 60—70 फीसदी तक जल चुके हैं और फिलहाल पटना मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए कल से भर्ती हैं। 

गौरतलब है कि कल 10 अप्रैल, 2017 को गांधीजी के पोते गोपाल गांधी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों ही चंपारण शताब्दी समारोह के दौरान ज्ञानभवन में उस वक्त मौजूद थे, जब मजदूर और किसान पुलिसिया ज्यादती के शिकार हो रहे थे। इस दौरान एक को लगी गोली और 24 लोग घायल हो गए।

गौरतलब है कि जिस मामले को लेकर पिछले कई दिन से मजदूर—किसान धरना—प्रदर्शन कर रहे थे वह मामला 15 साल पुराना है। 2002 में मोतिहारी शुगर मिल बंद हो गई थी। तभी से मजदूरों का पैसा फैक्टरी में बकाया है, वहीं किसानों के 18 करोड़ रुपए कंपनी ​मालिकों से सरकार नहीं दिलवा पायी है। 

संयोग से भारत के कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह भी इसी क्षेत्र से सांसद हैं और यहां के किसानों का ही इतना बुरा हाल है। ऐसे में नेता चाहे गांधी को याद कर लें या सुभाष चंद्र बोस को पर उनके मूल्यों पर कितना चल पाते हैं यह घटना साबित करने के लिए काफी है। 

फांसी पर चढ़ने से पहले भगतसिंह ने खाई थी 'जमादार मां' के हाथ की रोटी

मां जिन हाथों से बच्चों का मल साफ करती है उन्हीं हाथों से तो खाना बनाती है। बेबे, तुम चिंता मत करो और मेरे लिए रोटी बनाओ..... 


उनकी काल—कोठरी में जो भंगी सफाई करने आता था, वे उसे बेबे कहा करते थे, जैसे कि अपनी मां को बेबे जी कहते थे। जब वह कोठरी में आता, तो भगतसिंह कुछ भी कर रहे हों उससे जरूरी बातचीत करते और लाड़ से बेबे—बेबे पुकारते रहते। उनके इस व्यवहार से जमादार का प्रभावित होना तो स्वाभाविक ही था।

'आप इसे बेबे क्यों कहते हैं?' एक दिन किसी जेल अधिकारी ने पूछा, तो भगतसिंह बोले, 'जीवन में दो को मेरी गंदगी उठाने का काम मिला है। एक मेरी बचपन की मां और एक यह जवानी की जमादार मां। इसलिए दोनों बेबे जी ही हैं मेरे लिए।'

फांसी से पहले जेलर खान बहादुर मुहम्मद अकबर अली ने उनसे पूछा, 'आपकी कोई खास इच्छा हो, तो बताइये। मैं उसे पूरी करने की कोशिश करूंगा।'

भगतसिंह का उत्तर था, 'हां मेरी एक खास इच्छा है और आप उसे पूरा कर सकते हैं।'

'बताइये।'

'मैं बेबे के हाथ की रोटी खाना चाहता हूं।' जेलर ने इसे उनके मातृ प्रेम समझा, पर उनकी मंशा भंगी भाई से थी। जेलर ने उसे बुलाकर भगतसिंह की बात कही, तो वह स्तब्ध रह गया,

'सरदार जी मेरे हाथ ऐसे नहीं हैं कि उनसे बनी रोटी आप खाएं।'

भगतसिंह ने प्यार से दोनों कंधे थपथपाते हुए कहा, 'मां जिन हाथों से बच्चों का मल साफ करती है उन्हीं हाथों से तो खाना बनाती है। बेबे, तुम चिंता मत करो और मेरे लिए रोटी बनाओ।'

भंगी भाई ने रोटी बनाई और भगतसिंह ने आनंद से, अपने स्वभाव के अनुसार उछलते—मटकते हुए खाई।


('युगद्रष्टा भगतसिंह' से साभार। भगतसिंह की अंतिम इच्छा का वर्णन वीरेंद्र सिंधु ने कुछ इस तरह किया है।)