Oct 28, 2016

'कलम कसाई' को अब बर्दाश्त नहीं करेंगे दलित

राजस्थान हाईकोर्ट में लगी मनु की मूर्ति के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आन्दोलन का ऐलान

25 दिसम्बर को गांव—गांव जलाई जायेगी मनुस्मृति और 3 जनवरी को जयपुर में होगा मनु मूर्ति हटाने का आन्दोलन

दलित अधिकार कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने प्रेस विज्ञप्ती में कहा है कि जिस मनु ने असमानता की क्रूर व्यवस्था को संहिताबद्ध किया, जिसने शूद्रों और महिलाओं को सारे मानवीय अधिकारों से वंचित करने का दुष्कर्म करते हुये एक स्मृति रची,जिसके प्रभाव से करोडों लोगों की जिन्दगी नरक में तब्दील हो गई, यह महाभियान उसके खिलाफ है।

मनुस्मृति के र​​चयिता मनु ने वर्ण और जाति नामक सर्वथा अवैज्ञानिक, अतार्किक और वाहियात व्यवस्था को अमलीजामा पहनाया. उन्होंने सामाजिक व्यवस्था एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था दी जिसने किसी को कलम पकड़ाई तो किसी को झाड़ू थामने को मजबूर कर दिया.

ऐसे कलम कसाई द्वारा लिखी गई मनुस्मृति को आग के हवाले करने में कैसी झिझक ? कैसा डर ? हां, मैं संविधान का समर्थक हूं , इसलिये मनुस्मृति का विरोधी हूं. इस काली किताब को मैं राख में बदल देना चाहता हूं.

मैं इस शैतानी किताब को सरेआम जलाना चाहता हूं ,ठीक उसी तरह, जैसे बाबा भीम ने उसे अग्नि के हवाले किया था.

मेरा तमाम मानवता पसंद नागरिकों से भी अनुरोध है कि वे मनु, मनुवृति और मनुस्मृति सबके खिलाफ अपनी पूरी ताकत से उठ खड़े हो.राजस्थान के जयपुर उच्च न्यायालय में मनु की मूर्ति शान से खड़ी है,जबकि संविधाननिर्माता को हाई कोर्ट के बाहर एक कोने में धकेल दिया गया है.

पूरे देश में ऐसा एकमात्र उदाहरण है ,जहां न्याय के मंदिर में ही अन्याय के देवता की प्रतिमा प्रस्थापित है. यह मूर्ति सिर्फ मूर्ति नहीं है ,यह अन्याय ,अत्याचार और भेदभाव के प्रतीक को स्वीकारने जैसा है. यह राष्ट्रीय शर्म की बात है.

26 अक्टूबर 2016 को गुजरात उना दलित अत्याचार लड़त समिति के संयोजक जिग्नेश मेवानी की मौजूदगी में जयपुर में जुटे मानवतावादी लोगों ने एक आर—पार की लड़ाई का ऐलान किया है कि या तो मनुवाद रहेगा या मानवतावाद.हम मनु की मूर्ति को हटाने का प्रचण्ड आन्दोलन करेंगे. यह आन्दोलन जयपुर में केन्द्रित होगा, लेकिन यह एक राष्ट्रव्यापी आन्दोलन का आगाज है.

आगामी 25 दिसम्बर 2016 मनुस्मृति दहन दिवस से राजस्थान के विभिन्न हिस्सों से मनुवाद विरोधी यात्राएं प्रारम्भ होकर  3 जनवरी 2017 सावित्री बाई फुले जयंती के मौके पर जयपुर पहुंचेगी, जहां पर मनु मूर्ति के विरोध में महासम्मेलन और आक्रोश रैली आयोजित होगी.

मैंने पापा को ऐसे रोते कभी नहीं देखा था, वो भयावह मंजर आज भी मैं भूल नहीं पाती

 एक गांव का दफन हो जाना

रिम्मी 
 
कल 17 साल बाद सेनारी हत्याकांड का फैसला आया. 38 आरोपियों में से 15 को अदालत ने दोषी पाया और 23 के रिहा होने का फैसला दिया. आप में से अधिकतम लोगों को पता भी नहीं होगा ये कौन सा हत्याकांड था, कब हुआ था, क्यों हुआ था और मरने वाले कौन थे. जैसा की अमूमन हर घटना के बाद होता है. जब तक वो सुर्खियों मेें रहती है हमें याद रहता है और खबर ठंडी होने के साथ ही हम भी उसे भूल जाते हैं. ये भयावह मंजर अगर किसी को नहीं भूलता तो सिर्फ उनलोगों को जो अपनों को खोते हैं. जिनका घर उजड़ जाता है, संसार तबाह हो जाता है.

ऐसे ही ये बिहार का चर्चित हत्याकांड मेरे जेहन में हमेशा ताजा रहती है क्योंकि मैं इसकी भुक्तभोगीं हूं. इस नरसंहार में मैने अपनों को खोया था वो भी एक- दो नहीं बल्कि छह लोग! जीवन की कभी ना भूलने वाली घटनाओं में से एक थी ये घटना. सबकुछ मेरे दिमाग में ऐसे छपा है जैसे कल की ही बात हो.

वो 18 मार्च 1999 की सुबह थी. मेरे 10वीं के बोर्ड एक्जाम चल रहे थे. तीन पेपर हो चुके थे 20 मार्च को मैथ्स का और 23 मार्च को सोशल साइंस का एक्जाम बचा हुआ था. घर में केबल टीवी नहीं था इसलिए रोजाना हम सुबह सात बजे का दूरदर्शन पर आने वाले समाचार को देख बीती रात में देश-दुनिया की बड़ी खबरों से रु-ब-रु होते थे. हर रोज की तरह उस रोज भी पापा ने टीवी चलाया. टीवी पर हेडलाइन चल रही थी. पहली ही हेडलाइन को एंकर ने पढ़ा- बिहार के जहानाबाद जिले स्थित सेनारी गांव में 35 लोगों की नृशंस हत्या!

हम टीवी देखते नहीं सुनते थे. वो सुबह भी हमारी आम दिनों की ही सुबह थी. मम्मी आंगन में चूल्हे पर नाश्ता बना रही थी. पापा बाहर क्यारियों में पानी दे रहे थे, मैं पढ़ रही थी. सभी अपने काम में मग्न टीवी सुन रहे थे. पर इस हेडलाइन को सिर्फ मैने सुना. मैं पापा के पास भागी, मम्मी आंगन से दौड़ी आई. हम सब अब टीवी के आगे चिपक गए. किसी को भरोसा नहीं हो रहा था कि ये मेरे ही घर आंगन को मीडिया कवर कर रही है. ये बात मेरे ही आंगन की हो रही है. समाचार खत्म हुआ. फोन की कोई सुविधा नहीं थी और दूरदर्शन के उस समाचार से हम ये मान ही नहीं पाए की नरसंहार का गवाह हमारा ही गांव बना है.

पड़ोस में रहमान अंकल के घर केबल लगा था. हम सभी भागे-भागे उनके घर इस न्यूज को कन्फर्म करने पहुंचे. कई बार एक ही खबर को देखने के बाद यकीन हो गया कि 'शायद' ये हमारा ही सेनारी गांव है! हर तरफ कोहराम मच गया. मोहल्ले की आंटियां हमारे घर आकर मम्मी के पास सांत्वना देने बैठ गयीं. पापा आनन-फानन में घर से तीन किलोमीटर दूर के एसटीडी बूथ पर फोन करने गए. किसी को कुछ समझ नहीं आया कि हो क्या रहा है और आखिर ये सब हुआ कैसे.

जैसे तैसे दिन बीता. शाम को फिर पापा एसटीडी बूथ पर गए. उधर से जो खबर आई वो बस दिल को हिला देने के लिए काफी थी, हालांकि हम सभी इस सच्चाई को कहीं ना कहीं मान चुके थे कि खबरों का हिस्सा हम बन चुके हैं. पर फिर भी दिल के किसी कोने में ये आस लगाए बैठे थे कि हमारा सोचना गलत हो जाए. पापा घर आए और उनका रो-रोकर बुरा हाल. मैने पापा को उस तरह से रोते उसके पहले कभी नहीं देखा था. बच्चों की तरह चिंघाड़े मार, छातियां पीट-पीट रोना. जमीन में रोते रोते गिर पड़ना. कभी ना भूलने वाला ये मंजर मेरी आंखों के सामने चल रहा था. मम्मी एक कोने में रो रही थी, मैं और मेरा छोटा भाई कभी मम्मी से लिपटते तो कभी पापा से.

बदहवासी का वो पहला मंजर था मेरी याद में. अगले दिन सुबह पापा पटना निकल गए. वहां जाकर पता चला कि पापा के एक चचेरे भाई इस घटना को सहन ही नहीं कर पाए और गांव में अपनी आंखों के सामने इतनी लाशें उसमें से परिवार के चार लोगों को ढ़ेर देख हार्ट-अटैक के शिकार हो गए. मौके पर उनकी मौत हो गई और हमारे खानदान से एक और नाम मिट गया.

इन मौतों पर राजनीति भी खूब हुई और बाजार भी भरपूर लगा. पर हमने जो खोया वो सिर्फ और सिर्फ राजनीति की ही देन थी. सवर्ण बनाम दलित कार्ड खेलकर सरकारें बनीं, राबड़ी देवी ने कहा सेनारी से हमें वोट नहीं आता इसलिए हम उस गांव का दौरा नहीं करेंगे! सेनारी हत्याकांड का बदला लेने के नाम पर सवर्णों ने पास के ही मियांपुर गांव में कत्लेआम मचाया.

इस खूनी खेल में मुझे नहीं पता किसी को मिला क्या, पर इतना पता है कि खोया बहुतों ने. कई बच्चे अनाथ हो गए. गांव के गांव का भविष्य खत्म हो गया जो आज भी पिछड़ेपन में ही जी रहे हैं. आत्मा की शांति तो आज बहुतों को मिली होगी पर सबसे ज्यादा खुशी मुझे उस दिन होगी जब इस तरह के तमाम कत्लेआम और घटनाओं को करने वाले नहीं बल्कि करवाने वाले सूलियों पर चढ़ाए जाएंगे.

रिम्मी दिल्ली में पत्रकार हैं और सेनारी हत्याकांड में उनके परिवार के लोगों की हत्या हुई थी। वह
गुफ़्तगू नाम से ब्लॉग लिखती हैं। यह संस्मरण उसी ब्लॉग से।