Mar 15, 2011

नौकरशाहों को बचाने में जुटा सूचना आयोग


बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर इन लोक सूचना अधिकारियों एवं प्रथम अपील अधिकारियों का इतना साहस कैसे बढ़ गया कि वे उपलब्ध एवं वांछित सूचना को आवेदकों को उपलब्ध नहीं करवा रहे हैं...

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश में राज्य सूचना आयोग ने एक तरह से अपने हाथ खड़े करते हुए सार्वजनिक रूप से कहा कि ‘अब हम इन लोक सूचना अधिकारियों का कुछ नहीं कर सकते.' यह निराशापूर्ण बयान   उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्त वीरेन्द्र सक्सेना ने बनारस में सूचना अधिकार पर आधारित एक कार्यक्रम में दिया. उन्होंने कहा कि   'उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में हरेक आयुक्त 30 से 100 अपील रोज़ाना सुनता है, लेकिन इसके बावजूद लम्बित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती ही चली जा रही है.'

उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि ‘राज्य में सूचना का अधिकार कानून का इस्तेमाल करने वाले 90 प्रतिशत लोगों को राज्य सूचना आयोग में अपील दायर करनी पड़ती है, जिससे आयोग का काम लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसा  लोगों को इसलिए करना पड़ता है कि जिम्मेदार विभाग के अधिकारी सुचना ही मुहैया नहीं कराते और थककर लोग आयोग में अपील करने को मजबूर होते हैं.

अकेले   यह स्थिति उत्तर प्रदेश की नहीं है, बल्कि देश के सभी राज्यों और केन्द्रीय सूचना आयोग में भी यही हालात हैं. यहाँ पर प्रतिदिन अपीलों का अम्बार लगातार बढ़ता जा रहा है, लेकिन दु:खद बात यह है कि अपीलों के इस  बढ़ते अम्बार के लिये सूचना आयोगों के आयुक्त अपील करने वाले आवेदकों को जिम्मेदार ठहराकर असल बात से मीडिया एवं लोगों को भटकाने का प्रयास कर रहे हैं और अपनी कानूनी जिम्मेदारी से मुक्त होते हुए दिखने का प्रयास कर रहे हैं.


सच्चाई इससे उलट  है.  बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर इन लोक सूचना अधिकारियों एवं प्रथम अपील अधिकारियों का इतना साहस कैसे बढ गया कि वे उपलब्ध एवं वांछित सूचना को आवेदकों को उपलब्ध नहीं करवा रहे है, जिसके कारण व्यथित होकर 90प्रतिशत आवेदकों को सूचना आयोग के समक्ष अपील पेश करने को विवश होना पड़ रहा है.

इन सबकी हिम्मत किसने बढ़ाई है?सूचना न देने वाले अधिकारियों और प्रथम अपील अधिकारियों की बदनीयत का पता लग जाने एवं जानबूझकर आवेदकों को उपलब्ध सूचना,उपलब्ध नहीं करवाने का अवैधानिक कृत्य प्रमाणित हो जाने के बाद भी उनके विरुद्ध सूचना आयोगों द्वारा जुर्माना न लगाना या नाम-मात्र का जुर्माना लगाना तथा जुर्माने की तत्काल वसूली को सुनिश्‍चित नहीं करना, क्या सूचना नहीं देने वाले अफसरों को, स्वयं सूचना आयोग द्वारा प्रोत्साहित करना नहीं है

इसके अलावा अपील पेश करके और अपना किराया-भाड़ा खर्च करके सूचना आयोग के समक्ष उपस्थित होने वाले आवेदकों को स्वयं सूचना आयुक्तों द्वारा सार्वजनिक रूप से डांटना-डपटना क्या सूचना नहीं देने वाली ब्यूरोक्रसी को सूचना नहीं देने को प्रोत्साहित नहीं करता है?सूचना आयोग निर्धारित अधिकतम पच्चीस हजार रुपये के जुर्माने के स्थान पर मात्र दो से पॉंच हजार का जुर्माना अदा करने के आदेश करते हैं और जानबूझकर सूचना नहीं देना प्रमाणित होने के बाद भी सूचना अधिकारियों के विरुद्ध विभागीय अनुशासनिक कार्यवाही के बारे में सम्बद्ध विभाग को निर्देश नहीं देते हैं.

ऐसे हालात में अगर अपीलों का अम्बार बढ रहा है तो इसके लिये केवल और केवल सूचना आयोग ही जिम्मेदार हैं. उसे सूचना अधिकार कानून का उपयोग करने वाले लोगों पर जिम्मेदारी डालने के बजाय,स्वयं का आत्मालोचना करना होगा और अपनी वैधानिक जिम्मेदारी का कानून के अनुसार निर्वाह करना होगा. दूसरा सूचना उपलब्ध होने पर भी कोई अधिकारी निर्धारित तीस दिन की अवधि में सूचना नहीं देता है, तो उस पर अधिकतम आर्थिक दण्ड अधिरोपित करने के साथ-साथ ऐसे अफसरों के विरुद्ध तत्काल अनुशासनिक कार्यवाही करके दण्ड की सूचना प्राप्त कराने के लिये भी उनके विभाग को सूचना आयोग द्वारा निर्देशित करना होगा


सूचना आयोग अफसरशाही के प्रति इस प्रकार का रुख अपनाने लगे तो एक साल के अन्दर दूसरी अपीलों में 90 प्रतिशत कमी लायी जा सकती है . साथ ही सूचना का अधिकार कानून के अनुसार सभी सूचनाओं को जनता के लिये सार्वजनिक कर दिया जावे तो सूचना चाहने वालों की संख्या में भी भारी कमी लायी जा सकती है.



(लेखक राजस्थान के सामाजिक कार्यकर्ता हैं, उनसे  dr.purushottammeena@yahoo.in  पर संपर्क किया  जा सकता है.)  

गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल 23 मार्च से


गोरखपुर.प्रतिरोध का सिनेमा अभियान का सोलहवां और गोरखपुर का छठा फिल्म फेस्टिवल इस बार आधी दुनिया के संघर्षों की शताब्दी और लेखक-पत्रकार अनिल सिन्हा की स्मृति को समर्पित होगा. २३ मार्च की शाम को ५ बजे प्रमुख नारीवादी चिन्तक उमा चक्रवर्ती के भाषण से फेस्टिवल की शुरुआत होगी.


चौथे फिल्म फेस्टिवल में पहुंची लेखिका अरुंधती राय

यह वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का शताब्दी वर्ष है.इस मौके बहाने इस बार गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल में महिला फिल्मकारों और महिला मुद्दों को ही प्रमुखता दी जा रही है.इसके अलावा जन संस्कृति मंच के संस्थापक सदस्य और लेखक-पत्रकार अनिल सिन्हा सिन्हा स्मृति को भी छठा फेस्टिवल समर्पित है.गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल से ही पहले अनिल सिन्हा स्मृति व्याख्यान की शुरुआत होगी.पहला अनिल सिन्हा स्मृति व्याख्यान फेस्टिवल के दूसरे दिन २४ मार्च को शाम मशहूर भारतीय चित्रकार अशोक भौमिक "चित्तप्रसाद और भारतीय चित्रकला की प्रगतिशीलधारा" पर देंगे.

पांच दिन तक चलने वाले छठे गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल में इस बार १६ भारतीय महिला फिल्मकारों की फिल्मों को जगह दी गयी है. इन फिल्मकारों में से इफ़त फातिमा, शाजिया इल्मी, पारोमिता वोहरा और बेला नेगी समारोह में शामिल भी होंगी.छठे गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल को पिछले फेस्टिवल की तरह ही इस बार फिर दो नयी फिल्मों के पहले प्रदर्शन का गौरव हासिल हुआ है. ये फिल्में हैं - नितिन के की "मैं तुम्हारा कवि हूँ "और दिल्ली शहर और एक औरत के रिश्ते की खोज करती समीरा जैन की फिल्म "मेरा अपना शहर".बेला नेगी की चर्चित कथा फिल्म "दायें या बाएं" से फेस्टिवल का समापन होगा.

इस बार के फेस्टिवल के साथ-साथ दूसरी कला विधाओं को भी प्रमुखता दी गयी है. अशोक भौमिक के व्याख्यान के अलावा उदघाटन वाले दिन उमा चक्रवर्ती पोस्टरों के अपने निजी संग्रह के हवाले महिला आन्दोलनों और राजनैतिक इतिहास के पहलुओं को खोलेंगी.मशहूर कवि बल्ली सिंह चीमा और विद्रोही का एकल काव्य पाठ फेस्टिवल का प्रमुख आकर्षण होगा.

पटना और बलिया की सांस्कृतिक मंडलियाँ हिरावल और संकल्प के गीतों का आनंद भी दर्शक ले सकेंगे.महिला शताब्दी वर्ष के खास मौके पर हमारे विशेष अनुरोध पर संकल्प की टीम ने भिखारी ठाकुर के ख्यात नाटक बिदेशिया के गीतों की एक घंटे की प्रस्तुति तैयार की है.बच्चों के सत्र में रविवार के दिन उषा श्रीनिवासन बच्चों को चाँद -तारों की सैर करवाएंगी.

फिल्म फेस्टिवल में ताजा मुद्दों पर बहस शुरू करने के इरादे से इस बार भोजपुरी सिनेमा के ५० साल और समकालीन मीडिया की चुनौती पर बहस के दो सत्र संचालित किये जायेंगे. इन बहसों में देश भर से पत्रकारों के भाग लेने की उम्मीद है.

गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल से ही 2006 में प्रतिरोध का सिनेमाका अभियान शुरू हुआ था.पांच वर्ष फिर से गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल ने ही इस बार एक महत्वपुर्ण पहलकदमी ली है. यह पहल है देश भर में स्वंतंत्र रूप से काम कर रही फिल्म सोसाइटियों के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन की.फेस्टिवल के दूसरे दिन इन सोसाइटियों का पहल सम्मेलन होगा जिसमे प्रतिरोध का सिनेमा अभियान के बारे में महत्वपूर्ण विचार विमर्श होगा और के राष्ट्रीय नेटवर्क का निर्माण भी होगा.

इरानी फिल्मकार जफ़र पनाही के संघर्ष को सलाम करते हुए उनकी दो महत्वपूर्ण कथा फिल्मों ऑफ़साइड और द व्हाइट बैलून को फेस्टिवल में शामिल किया गया है.गौरतलब है कि इरान की निरंकुश सरकार ने जफ़र पनाही के राजनैतिक मतभेद के चलते उन्हें ६ साल की कैद और २० साल तक किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति पर पाबंदी लगा दी है.

प्रतिरोध का सिनेमा की मूल भावना का सम्मान करते हुए इस बार का फेस्टिवल भी स्पांसरशिप से परे है और पूरी तरह जन सहयोग के आधार पर संचालित किया जा रहा है.आयोजन गोकुल अतिथि भवन,सिविल लाइंस, गोरखपुर में सम्पन्न होगा. आयोजन में शामिल होने के लिए किसी भी तरह के प्रवेश पत्र या औपचारिकता की जरुरत नही है.आप सब सपरिवार सादर आमंत्रित हैं.सलंग्न फ़ाइल में फेस्टिवल का विस्तृत विवरण देखें.


आजादी के सफ़र में रोहिंगा


अराकान को स्वतंत्र कराने के लिए पाकिस्तान से मिलने वाली मदद के लिए रोहिंगा उसके इशारे पर भारत के खिलाफ गतिविधियों में शामिल होने को मजबूर हैं, तो वहीं अराकान में म्‍यांमारी जुंटा सैनिकों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों के खिलाफ वे लड़ रहे हैं...


श्रीराजेश

म्यांमार में उत्तरी अराकान प्रदेश को स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के लिए दो दशक से संघर्ष कर रहे सुन्नी मुस्लिम संप्रदाय के रोहिंगा अब भारत के लिए खतरा बनते जा रहे हैं. म्यांमार की सेना की सख्त कार्रवाई से रोहिंगाओं को म्यांमार से पलायन के लिए बाध्य होना पड़ा है. कई रोहिंगा नेता यूरोपीय देशों में तो भारी संख्या में रोहिंगा लड़ाके बांग्लादेश में शरण लिए हुए हैं. बांग्लादेश सरकार ने 'काक्स बाजार' जिले में इन शरणार्थियों के लिए दो शिविर भी लगाए हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इन शिविरों में करीब 28 हजार रोहिंगा सपरिवार रह रहे हैं.


म्यामार सैनिकों के कब्जे में रोहिंगा मुसलमान : चाहें  आज़ादी 
 हाल में ही संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी की गयी रिपोर्ट में बांग्लादेश में तकरीबन तीन लाख रोहिंगा शरण लिए हुए हैं. अराकान की स्वतंत्रता की लड़ाई में इन्‍हें पाकिस्तान की ओर से भी मदद मिलती रही है. अपनी इस मदद के एवज में अब वह इनसे 'कीमत वसूलने' की तैयारी में है. पाकिस्‍तान अब इन रोहिंगाओं को भारत के खिलाफ इस्‍तेमाल करने में जुट गया है. पाक खुफिया एजेंसी आइएसआइ  इन छापामार लड़ाकों को प्रशिक्षण देकर बांग्‍लादेश के रास्‍ते भारतीय सीमा में घुसपैठ करा रही है.

भारतीय खुफिया एजेंसियों  ने यह खुलासा किया है कि बांग्लादेश सीमा से सटे पश्चिम बंगाल और असम से सीमावर्ती मुस्लिम बहुल इलाकों में तकरीबन डेढ़ हजार रोहिंगा लड़ाके छुपे हैं. खुफिया एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इनके पास विमान और युद्धपोतों को छोड़कर लगभग सभी प्रकार के अत्याधुनिक हथियार उपलब्ध हैं.

खुफिया एजेंसियों  ने पश्चिम बंगाल एवं असम पुलिस को जो सूचना उपलब्ध करायी है उसके अनुसार पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ इन रोहिंगा छापामारों को पाकिस्तान में छापामार युद्ध का प्रशिक्षण देकर बांग्लादेश के रास्ते भारत में घुसपैठ करा रही है.

पिछली  4 मार्च को त्रिपुरा पुलिस ने राजधानी अगरतला से तीन महिलाओं समेत दस रोहिंगाओं को गिरफ्तार किया. ये सभी लोग गैरकानूनी रूप से भारत में घुसे थे. इसके पहले 22जनवरी को अंडमान-निकोबार द्वीप समूह से 700 किलोमीटर दूर समुद्र में थाईलैंड की समुद्री सुरक्षा बल ने भी 91 रोहिंगाओं को गिरफ्तार किया है. इनके पास भी थाई क्षेत्र में प्रवेश के लिए कोई वैध कागजात नहीं थे.

वर्ष 2008 में क्रिसमस की पूर्व संध्या को हावड़ा रेलवे स्टेशन से 32 म्‍यामारी रोहिंगा को बगैर वैध दस्तावेजों के गिरफ्तार किया गया. इनमें महिलाएं और बच्‍चे भी शामिल थे. इसके बाद हिंद महासागर से पांच मई 2010 को भारतीय तटरक्षकों ने 72 छोटी नौकाओं के साथ इन्हें गिरफ्तार किया.

इन गिरफ्तार म्‍यामारी रोहिंगाओं से पूछताछ में खुफिया विभाग को कई चौंकाने वाले तथ्य मिले हैं. खुफिया विभाग के मुताबिक ये रोहिंगा दो मोर्चे पर अपनी लड़ाई एक साथ लड़ रहे हैं. एक तरफ ये अराकान को स्वतंत्र कराने के लिए पाकिस्तान से मिलने वाली मदद के लिए उसके इशारे पर भारत के खिलाफ गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं, वहीं अराकान में म्‍यांमारी जुंटा सैनिकों द्वारा रोहिंगाओं पर किये जा रहे कथित अत्याचारों के खिलाफ लड़ रहे हैं.


रोहिंगा मुस्लिमों का जीवन : रैन बसेरों में पल रही पीढियां
 अराकान नेशनल रोहिंगा आर्गेनाइजेशन की ओर से 14 फरवरी, 2011 को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गयी जिसमें कहा गया, 'ये सभी रोहिंगा गलती से थाई जल क्षेत्र में चले गये थे.थाई सुरक्षा बलों को उनकी मजबूरी को समझना चाहिए.'

यूनियन रोहिंगा कम्यूनिटी ऑफ यूरोप के महासचिव हमदान क्याव नैंग का कहना है कि म्यांमार में रोहिंगाओं पर जुंटा सैनिक दमन नीति चला रहे हैं. वहां खुलेआम मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की रोकथाम के लिए उन्होंने विश्व समुदाय से खासकर भारत से एमनेस्टी इंटरनेशनल पर दबाव बनाने का आग्रह किया है. उन्होंने तीन सितंबर 2008 को बांग्लादेशी अखबार दैनिक युगांतर, पूर्वकोण में प्रकाशित खबर और फोटो को सभी देशों को भेजा था.

इस रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि म्‍यांमार में किस तरह रोहिंगाओं को मस्जिद में नमाज अदा करने से जुटां सैनिकों द्वारा रोका जा रहा है. इसी तरह मांगदोव शहर से सटे रियांगचन गांव के मेई मोहमद रेदान नामक युवक को मानवाधिकार की रक्षा से संबंधित एक पत्रिका का प्रकाशन करने के आरोप में गिरतार किया गया. जुंटा सैनिकों की सहयोगी नसाका फोर्स ने उसे देकीबुनिया शिविर से गिरफ्तार किया और टार्चर किया.  इस क्रम में उसकी जीभ काट ली गई.

इसी तरह यूनियन रोहिंगा कम्यूनिटी ऑफ यूरोप की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में बताया गया था कि पिछले दो वर्षों में जुंटा सैनिकों द्वारा 17 रोहिंगा समुदाय के धार्मिक नेताओं को गिरफ्तार किया गया, लेकिन अब वह कहां और कैसे हैं? इसकी जानकारी किसी को नहीं है. इन 17 धार्मिक नेताओं में मौलाना मोहमद सोहाब, मौलाना मोहमद नूर हसन, नैमुल हक भी शामिल हैं.


वर्ष 1991से म्यांमार में रोहिंगा और जुंटा सैनिकों के बीच छापामार युद्ध चल रहा है, लेकिन बीते तीन वर्षों से जुंटा सैनिकों ने रोहिंगाओं के आंदोलन को दमन करने का अभियान छेड़ दिया है.सेना के खिलाफ अपने अभियान के लिए वे अब मुस्लिम राष्‍ट्रों की ओर मदद के लिए देख रहे हैं.

बांग्‍लादेश सरकार अपने उस वादे पर भी अमल करती नजर नहीं आ रही जिसमें उसने यह कहा था कि उनके देश की जमीन का इस्‍तेमाल भारत विरोधी कार्यों के लिए नहीं किया जाएगा. जानकारी के अनुसार बांग्‍लोदशी जमीन पर उन्‍हें हर तरह की मदद मुहैया कराई जा रही है, वहीं आईएसआई भी उन्‍हें हथियार चलाने से लेकर अन्‍य सभी तरह के सैन्य प्रशिक्षण देकर भारत में घुसपैठ कराने में जुटी है.

ख़ुफ़िया अधिकारियों के मुताबिक पश्चिम बंगाल के सुंदर वन के जलमार्ग से बांग्लादेश के खुलना और सतखिरा होकर भारत में घुसपैठ कर रहे हैं. गुप्त सूचना के अनुसार कुछ छापामारों के उत्तर चौबीस परगना के बांग्लादेश सीमा से सटे इलाकों और दक्षिण चौबीस परगना के कैनिन, घुटियारी शरीफ, मगराहाट, संग्रामपुर, देउला, मल्लिकपुर और सोनारपुर में बांग्लादेशी घुसपैठियों के बीच छिपे होने की आशंका है. इनमें भारी संख्या में महिलाएं भी शामिल हैं.



 
लेखक हिंदी  साप्ताहिक  पत्रिका  'द  संडे इंडियन' से जुड़े  हैं, उनसे  rajesh06sri@gmail.com  पर संपर्क किया जा सकता है.