Nov 6, 2007

मैं नक्सली कवि हूं: वरवर राव



वरवर राव से अजय प्रकाश की बातचीत

आपकी साहित्यिक यात्रा की शुरूआत कैसे हुयी?

मैं एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखता हूं जिसने आंध्र प्रदेश के निजाम विरोधी संघर्ष में भागीदारी की आगे चलकर मेरा परिवार कांग्रेसी हो गया इसलिये मैं इस भ्रम में भी रहा कि जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में चल रही कांग्रसी सरकार समाजवाद की स्थापना करेगी १९६०-६२ में श्रीकाकुलम के दमन के बाद मेरा भ्रम क्रमश्: छंटता गया और नेहरू के बारे में मेरी राय १९६४ तक स्पष्ट हो गयी इसी बीच मुझे जनकवि पाणीग्रही ने बेहद प्रभावित किया उन्हीं के प्रभाव में 'सृजना' नाम की साहित्यिक पत्रिका भी निकली उसी दौरान हमने 'विरसम' का गठन किया

किस कविता के पात्र ने आपको अधिक प्रभावित किया है?

आंध्रा के निजामाबाद में एक लोमहर्षक घटना हुई थी। उस पर मैंने 'कसाई' नाम की एक कविता लिखी १९८४ में निजामाबाद के कामारेड्डा कस्बे मे बंद का आहवान किया गया थाजिसमे १९ वर्षीय अमरेंद्र रेड्डी मांस की दुकान बंद कराने पहुंचा बात उलझ गयी और कसाई ने पुलिस को फ़ोन कर दिया पुलिस ने बंद समर्थक को इतना मारा कि उसने मौके पर दम तोड दिया जांच करने गयी कमेटी से कसाई ने बयान किया था कि 'मैंने सोचा पुलिस आयेगी तो उसे पकड ले जायेगी हमें क्या पता था कि उसे गोली मार देंगे मैने कितनी बकरियों का जिबह किया होगा,पर मुझे बकरियों की जात से नफरत नहीं हैलेकिन पुलिसवालों ने बंद समर्थक को जिस वहशियाने अन्दाज मे मारा मुझे लगा असली कसाई मैं नहीं उनकी जमात है'

आप जैसा लिखते हैं वैसा जीते हैं ,क्या एक रचानाकार के लिये यह जरूरी होता है.

रचनाकर्म में रचनायें प्रधान पहलू हैं,उसका व्यक्तिगत जीवन गौण हम रचनाओं से वाकिफ़ हैं और पीढियां भी उसी से वास्ता रखेंगी


आपकी कविताओं से सरकार परेशान हो जाती है, क्या इसलिये कि आप माओवादी कवि हैं?

मैं माओवादी नहीं हूं, रचनाकार हूं बेशक आप मुझे नक्सली कवि कह सकतें हैं

साल भर पहले बनी पीडीएफ़आई {पीपुल्स डेमोक्रेटिक फेडेरेशन ऑफ इंडिया} का क्या
लक्ष्य था.

लोकतांत्रिक हकों को बहाल करने और नये जनवादी अधिकारों को हासिल करने का पीडीएफ़आई एक खुला मोर्चा है सामंती उत्पीडन एव साम्राज्यवादी लूट के खिलाफ़ हमारी एकता ऐतिहासिक है जो 'मुंबई प्रतिरोध मंच' के दो सालों के गंभीर प्रयासों की देन है १७५ संगठनों का यह मोर्चा हमेशा कायम रहेगा या नहीं यह बाद की बात है परंतु आज दरकार इसकी है कि हम सत्ता दमन के खिलाफ़ एक व्यापक एकजुटता कायम करें पीडीएफ़आई आम जनों के शोषण, देशी-विदेशी कंपनियों की लूट, जल-जंगल- ज़मीन पर हक और अर्जित की गयी पूंजी देश में रहे, ऐसे तमाम मौलिक मांगों पर एक आम सहमति रखता है जहां तक इसके भविष्य का प्रश्न है तो यह कहा जा सकता है कि संघर्ष के एक मुकाम के बाद 'वर्ग संघर्ष' के सवाल पर मतभेद उभर सकते हैं

पीडीएफ़आई में आप जैसे संस्कृतिकर्मियों की भागीदारी का औचित्य ?

समानांतर जनसंस्कृति का एक नाम 'विरसम' है विप्लवी रचयिता संग्रामी मंच जनता की संघर्षशील चेतना को उन्नत कर रहा हैइसलिये यह जरूरी नहीं कि हम जहां जायें वे कम्यूनिष्ट ही हों जैसे चिली में १९७३ में एलएनडी के नेतृत्व में संघर्ष हुआ लेकिन वह शुरुआती राजनितिक जीवन में कम्युनिस्ट नहीं था फिर भी उसके रचे गीतों ने जनता की विद्रोही चेतना को सघर्षों से एकरूप किया विशाल गोखले को ही देखें तो उन्होने जो विद्रोही गीत गाये, उन गीतों का गोखले की रजनितिक समझ से कोई तालमेल ही नहीं है इसलिये संस्कृतिकर्मी किसी पार्टी का नहीं बल्कि संघर्षशील सर्वहारा का हरावल होता हैविश्व के कई देशों में इस तरह के उदाहरण देखे जा सकते है

लेकिन सरकार ने 'विरसम' पर यह कहकर प्रतिबंध लगा दिया कि यह नक्सलवादियों का एक मंच है?

सरकार का रवैया फासीवादी है हम नक्सलवादी फ़्रंट नहीं है,परंतु नक्सलबाडी की विरासत को आगे बढाने वाले ज़रूर है

साम्राज्यवाद विरोधी सघर्षों में मुसलमान जनता की भागीदारी न के बराबर है?

'मुंबई प्रतिरोध मंच'२००४ के आयोजन में कम्युनिस्टों के बाद सबसे बडी भागीदारी साम्राज्यवाद विरोधी मुस्लिम सगठनों की थी पीडीएफ़आई मे उनकी भागीदारी नहीं हो सकी हैबेशक यह हमारी कमी है


क्या वजह रही कि 'मुंबई प्रतिरोध मंच' में जहां ३५० संगठन थे वह संख्या पीडीएफ़आई में घटकर १७५ हो गयी है?

यह लोकसंघ्रर्ष का एक मोर्चा हैपीडीएफ़आई जितने संगठनों को फिलहाल अपने साथ ला सकता था उनका उसने साथ लियाभारत जैसे बडे देश मे हज़ारों संगठन छोटे स्तर पर ही सही मगर सम्राज्यवाद-सामंतवाद के खिलाफ़ मुहिम चला रहे है इसलिये सारे संगठनों से पीडीएफ़आई का संपर्क अभी भी होना बाकी है

राष्ट्रीयताओं के सघर्ष यानी 'अलगाववाद' को किस रूप में देखते हैं?

राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रहे राष्ट्रीयताओं के संघर्षों का क्रांतिकारी समर्थन करते हैं राष्ट्रीयताओं की मांगों को सरकार को फौरी तौर पर मान लेना चाहिये इतिहास का उदाहरण रूस से लिया जा सकता है जहां लेनिन ने छोटे-छोटे राज्यों को राष्ट्रीयता का दर्जा दे दिया था आगे चलकर हुआ यह कि वे सभी देश फिर रूस में शामिल हो गये और सोवियत संघ का निर्माण हुआ मगर वे अपनी स्वेच्छा से शामिल हुए हैं

आंध्र प्रदेश सरकार से नक्सलवादियों की बातचीत में आप वार्ताकार थे, उसका कोई हल नहीं निकला?

हल निकलता भी कैसे? एक तरफ़ सरकार हमसे शांति वार्ता कर रही थी और दूसरी तरफ़ सरकार इनकाउंटर कर रही थी हम कांबिंग बंद करने तथा फ़र्जी इनकाउंटर पर केस दर्ज करने की मांग कर रहे थे और पुलिस बल अपनी कार्रवाइयां ज़ारी रखे हुए था मेरा स्पष्ट मानना है कि नक्सली नेताओं का फर्जी इनकाउंटर पुलिसिया कार्रवाई मात्र नहीं है बल्कि राज्य प्रयोजित अभियान है १९९० में कांग्रेस मुख्यमंत्री चन्द्रा रेड्डी के कार्यकाल में जनवरी से सितम्बर तक आंध्र प्रदेश में एक भी इनकाउंटर नहीं हुआ ऐसा पुलिस के चलते नहीं राज्य सरकार के चलते हुआ था

प्रमुख मांगें क्या थीं?

जितने भी इनकाउंटर हुए हैं उसमें पुलिस वालों के खिलाफ़ ३०२ और ३०७ द्क मुकदमा दायर किया जाये साथ ही पुलिस बल यह साबित करे कि उसने जो कत्ल किये हैं वह आत्मरक्षा में हुए हैं इस मांग को सरकार ने सिरे से नकार दिया हमारी दूसरी मांग भूमि सुधार की थी आंध्र प्रदेश में लगभग ३५ प्रतिशत ज़मीन सरकार की है पूरी योजना के साथ हमने सरकार को बताया की आंध्र की भूमिहीन जनता को तीन-तीन एकड ज़मीन दी जाये

तो फिर आपकी गिरफ्तारी क्यों हुई?

वही पुराना बहाना कि मैं नक्सलियों का वर्ताकार था वारंगल में चल रहे 'विरसम' की दो दिनी कांफ़्रेंस पर भी हमला हुआ और १७ अगस्त को विरसम पर प्रतिबंध लगा १९ अगस्त को मुझे गिरफ्तार कर लिया गया


( बातचीत पहले की है, कुच्छ सन्दर्भ पुराने लग सकते हैं)
















तबाही की बुनियाद पर बांध
टिहरी तथा नर्मदा के बाद अब एक और बडे बांध को बनाने की तैयारी हो गयी है जो पोल्‍लावरम बांध परियोजना के रूप में जाना जायेगा़। आंध प्रदेश के तेलंगाना क्षेृ में बनने वाला 150 मीटर की ऊंचाई का यह दुनिया का तीसरा सबसे बडा बांध होगा। यहां गोदावरी नदी बहती है। इस बांध के बन जाने पर तेलंगाना ही नहीं छत्‍तीसगढ का दंतेवाडा जिला और उडीसा के भी दर्जनों गांव जल समाधि ले लेंगे। डूबने वाले 276 गांवों में 150 फीसदी आदिवासी तथा 15 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोग होंगे। अजीब है कि नर्मदा या टिहरी की तरह इसका विरोध नहीं हो रहा है, न कहीं आंदोलन की सुगबुगाहट है। स्‍थानीय तौर पर कुछ संगठन जरूर इसकी खिलाफत कर रहे हैं जो नाकाफी है। पोल्‍लावरम बांध बनने से होने वाली तबाही का जायजा लेने एक फैक्‍ट फाईडिंग कमेटी ने प्रभावित क्षेतरों का दौरा किया जिसमें दि संडे पोस्‍ट संवाददाता अजय प्रकाश भी शामिल थे। वहां से लौटकर पेश है उनकी यह रिपोर्ट


किसान विद्रोह और अब अलग राज्‍य की मांग के लिए आंदोलन तेलंगाना वह क्षेत्र है जहां की मिटटी में पैदा हुआ यूके‍लिप्‍टस का कागज देश को साक्षर बनाता है, कोयले से पैदा हुयी बिजली भारत को रोशन करती है और उस मिटटी में उपजा कपास,धान,मिर्च तथा तम्‍बाकू तन ढकने के साथ-साथ जीने की खुराक देता है। विस्‍तार में जायें तो प्राकतिक प्रचुरता की बदौलत जो एहसान बाकि देश पर तेलंगाना ने किया है उसेकी भरपाई के रूप में वह तबाही,गैर बराबरी और विनाश का दंश वर्षों से झेलता रहा है। इस बार आन्‍ध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र के जिलों और जमीनों के वास्‍ते जिस पोल्‍लावरम बांध को बनाने की तैयारी केन्‍द्र और प्रदेश सरकारें कर रहीं हैं उससे तेलंगाना की आदिवासी जनता की ऐतिहासिक और सांस्‍ककितिक धरोहरें तो नष्‍ट होगी ही यहां के सामातिक'आर्थिक ढांचे को भी भारी नुकसान होगा। इसकी भरपाई किसी भी तरह के कितने भी संसाधन उपलब्‍ध्‍ा कराकर या पुनर्वास योजना लागू कर सरकारी मशीनरी नहीं कर सकती। बाल एवं महिला विकास मंतरी रेणुका चौधरी के संसदीय क्षेतर खम्‍मम के कुल सात मंडलों के पूरी तरह डूब जाने या फिर जीवन जीने की परिस्थितियां समाप्‍त हो जाने की प्रबल संभावना है। इसके अलावा पूर्वी एवं पश्‍िचमी गोदावरी जिला के एक'एक मंडल भी जलमग्‍न हो जायेंगे। आंध्र प्रदेश का विशाखापटनम, करष्‍णना जिला तथा कुछ अन्‍य क्षेतरों में पानी पहुंचाने लिए यह बांध बनाया जा रहा है। जिसके बाद खम्‍मम जिले के सातों आदिवासी मंडल डूब जायेंगे। मंडल के नजदीक गोदावरी नदी पर बनाया जा रहा पोल्‍लावरम बांध जिन लोगों को पानी में डूबो देगा उसमें ज्‍यादातर कोया और कोयारेडिडस आदिवासी हैं।
150 मीटर ऊंचाई के दुनिया के तीसरे सबसे बडे बांध के रूप में बनने को तैयार पोल्‍लावरम बांध पर सरकार ने निशानदेहीयां कर दी हैं। बताया जाता है कि अगले कुछ महीनों में इसे बनाने की शुरूआत कर दी जायेगी। बांध के निर्काण में लगने वाली लागत का ठीक'ठाक अनुमान लगाना मुश्‍िकल है इसलिए 20 हजार करोड से 50 हजार करोड तक के बजट की संभावना विशेषज्ञ जता रहे हैं।
बहरहाल, बांध बनाने की तैयारियां सरकार ने तब पूरी कर ली हैं जबकि अभी तक ज्‍यादातर संस्‍तुति देने वाले मंतरालयों और विभागों ने अनुमति भी नहीं दी है। केन्‍द्रीय जल आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में राज्‍य सरकार को पार्टी बनाते हुए पोल्‍लावरम प्रोजैक्‍ट के खिलाफ केस कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इसके लिए वन, पर्यावरण, राष्‍टरीय अनुसूचित जनजाति आयोग तथा कुछ अन्‍य सरकारी आयोगों से भी अनुमति नहीं ली गयी है। इधर सुप्रीम कोर्ट के कारण बताओ नोटिस के जवाब में प्रदेश सरकार बांध बनाने को लेकर तमाम अंतविरोधी पहलुओं को अन्‍य सरकारी संस्‍थाओं की राय के तौर पर रख रही है।
आंकडों की जुबानी की बात करें तो सरकारी स्रोतों के अनुसार डूबने वाले 276 गांवाें में 50 प्रतिशत आदिवासी हैं तथा 95 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोग हैं। दो लाख छत्‍तीस हजार लोगों को उनकी संस्‍करति'सभ्‍यता से उजाडकर दूसरी जगह बसाने की बात करने वाला पोल्‍लावरम प्रोजेक्‍ट जिन कोया और कोयारेडिडस आदिवासियों को उजाडने की योजना पर अमल करने की तरु बढ रहा है। यह आदिवासी जमात जंगलों में रहती है। उनकी भाषा आंध्र प्रदेश की आम भाषा हेलगू भी नहीं बल्कि कोया बोलते हैं। ऐसे में यदि इलकों में पुनर्वास के लिए बनाये जा रहे घरों में उन्‍हें लाकर बसा दिया गया तो या फिर ये दर'बदर हो जायेंगे नहीं तो वे स्‍वत खत्‍म हो जायेंगे। आदिवासियों की इन तमाम सांस्‍करतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विविधताओं पर सरकार द्वारा ध्‍यान न दिया जाना स्‍पष्‍ट करता है कि आदिवासियों के हक'हकूक की चिंता न तो सरकार को है और न वहां काम कर रही राजनीतिक पार्टियों को।
आश्‍चर्यजनक तो यह है कि जिस बांध के बनने के बाद तेलंगाना का समरद मिर्च, धान और तम्‍बाकू का क्षेतर पानी में तिरोहित हो जायेगा उसका पानी भी इसके किसी जिले को नहीं मिलने वाला है। एक अनुमान के अनुसार सिर्फ खम्‍मम जिले में 50 लाख एकड जमीन खेती योग्‍य है किन्‍तु पानी के अभाव में यह बेकार पडी हुई है। इसके उलट सच्‍चाई ये है कि गंगा के बाद देश की दूसरी सबसे बडी नदी गोदावरी तेलंगाना के क्षेतर में 77 प्रतिशत तथा इसी क्षेतर में आंध्र प्रदेश की जीवन रेखा मानी जाने वाली नदी करष्‍णा भी 65 प्रतिशत बहती है। बावजूद इसके यहां का बहुतायात क्षेतर असिंचित रह जाता है क्‍योंकि आजादी के बाद से लेकर अब तक कोस्‍टल आंधरा के लिए जल वितरण की व्‍यवस्‍थाएं सरकार करती रही है और विकास भी।
1954 में न्‍यायाधीश फजल अली के नेतत्‍व में प्रथम राज्‍य पुनर्गठन कमेटी की जो सिफारिश आयी उसके बाद वरहत आंधरा के कई एक जिले केरल, कर्नाटक राज्‍य में चले गए तथा आंध प्रदेश के नौ जिले तेलंगाना के हिस्‍से में आये। महबूबनगर, नालागुण्‍डा, मेदक, हैदराबाद टवीन सिटी,निजामाबाद, अदीलाबाद, करीमनगर, वारंगल तथा खम्‍मम जिले वाले तेलंगाना के बारे में न्‍यायाधीश फजल अली ने भारत सरकार से स्‍पष्‍ट कहा कि भौगाेलिक, सांस्‍करतिक भाषायी फर्क के मददेनजर तेलंगाना को एक अलग राजय का दर्जा दिया जाना चाहिए। कभी सीपीआई के नेतत्‍व में अलग राज्‍य की मांग के साथ खडा हुआ तेलंगाना संघर्ष अब तेलंगाना राष्‍टर समिति के नेतत्‍व में चल रहा है। तेलंगाना राष्‍टर समिति के वारंगल विधायक विजय रामा राव ने बातचीत के दौरान बांध का विरोध इसलिए किया क्‍योंकि सरकार ने अधिकरत विभागों से अनुमति नहीं ली है। सवाल यह उठता है कि क्‍या यदि सरकार सभी विभागों से मंजूरी ले भी ले तो भी बांध बनाना जनता के हित में होगा। तेलंगाना क्षेतर के नालागुण्‍डा जिलेके लोग पिछले 25 30 वर्षों से पानी के अभाव में फलोरोसिस के शिकार हैं। इसके लिए बांध बनने से पुनर्वास के इलाकों में जल'स्‍तर के अत्‍यधिक ऊपर हो जाने के बाद कोई महामारी नहीं फैलेगी इसकी कोई गारंटी नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि बांध बनने के बाद जल स्‍तर इतना ऊपर आ जायेगा कि पीने योग्‍य पानी कई तरह के रोगों को पैदा करेगा। इतना ही नहीं तेलंगाना के क्षेतरों में बांध या छोअी नहरों के अभाव के चलते हर वर्ष लगभग 2000 से 3000 टीएमसी पानी बंगाल की खाडी में चला जाता है। तेलंगाना के साथ आंध्र प्रदेश सरकार कैसा व्‍यवहार करती है यह इन चंद उदाहरणो्रं के अलावा कोस्‍टल आंध्र के करष्‍णा जिले के बजट से भी समझा जा सकता है। हैदराबाद हाईकोर्ट के वकील चिकडू प्रभाकर बताते हैं कि करष्‍णा जिला का बजट पूरे तेलंगाना के बजट से अधिक है।
नर्मदा से भी उंचा बनने वाला यह बांध किसी जाति,धर्म या क्षेत्र को खत्‍म नहीं करेगा बल्कि इस इलाके की संरचना को खत्‍म कर दे्गा। इसको संरचनात्‍मक हिंसा कहा जाता है। गैर सरकारी सूत्रों के मुताबिक यहां 276 गांव ही नहीं लगभग 400 गांव डूब जायेंगे। डूबने वाले क्षेत्रों की तुलना उत्‍तर प्रदेश या बिहार के गांवों से नहीं की जानी चाहिये क्‍योंकि इन राज्‍यों में गांवों की बसावट सघन है। तेलंगाना के गांवों के बीच की दूरी उत्‍तर प्रदेश सरीखे राज्‍यों की दो तहसीलों के बीच की दूरी से भी अधिक होती है। इसलिये खेती योग्‍य भूमि, अकूत प्राकृतिक संसाधनों से भरे पडे जंगलों के जो परिक्षेत्र डूब जायेंगे वह लाखों-लाख हेक्‍टेयर में होगे। महत्‍वपूर्ण है कि बांध बनने से पहले भी खम्‍मम जिले के नौ मंडलों में से ज्‍यादातर मंडल हर साल बाढ में एक-दो हफ़ते के लिये डूब जाते हैं। कल्‍पना की जा सकती है कि जब बांध बन जायेगा तो जिसकी वजह से हजारों सालों से गोदावरी की गांद में बसी सभ्‍यतायें नष्‍ट हो जायेंगी।