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तबाही की बुनियाद पर बांध
टिहरी तथा नर्मदा के बाद अब एक और बडे बांध को बनाने की तैयारी हो गयी है जो पोल्लावरम बांध परियोजना के रूप में जाना जायेगा़। आंध प्रदेश के तेलंगाना क्षेृ में बनने वाला 150 मीटर की ऊंचाई का यह दुनिया का तीसरा सबसे बडा बांध होगा। यहां गोदावरी नदी बहती है। इस बांध के बन जाने पर तेलंगाना ही नहीं छत्तीसगढ का दंतेवाडा जिला और उडीसा के भी दर्जनों गांव जल समाधि ले लेंगे। डूबने वाले 276 गांवों में 150 फीसदी आदिवासी तथा 15 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोग होंगे। अजीब है कि नर्मदा या टिहरी की तरह इसका विरोध नहीं हो रहा है, न कहीं आंदोलन की सुगबुगाहट है। स्थानीय तौर पर कुछ संगठन जरूर इसकी खिलाफत कर रहे हैं जो नाकाफी है। पोल्लावरम बांध बनने से होने वाली तबाही का जायजा लेने एक फैक्ट फाईडिंग कमेटी ने प्रभावित क्षेतरों का दौरा किया जिसमें दि संडे पोस्ट संवाददाता अजय प्रकाश भी शामिल थे। वहां से लौटकर पेश है उनकी यह रिपोर्ट
किसान विद्रोह और अब अलग राज्य की मांग के लिए आंदोलन तेलंगाना वह क्षेत्र है जहां की मिटटी में पैदा हुआ यूकेलिप्टस का कागज देश को साक्षर बनाता है, कोयले से पैदा हुयी बिजली भारत को रोशन करती है और उस मिटटी में उपजा कपास,धान,मिर्च तथा तम्बाकू तन ढकने के साथ-साथ जीने की खुराक देता है। विस्तार में जायें तो प्राकतिक प्रचुरता की बदौलत जो एहसान बाकि देश पर तेलंगाना ने किया है उसेकी भरपाई के रूप में वह तबाही,गैर बराबरी और विनाश का दंश वर्षों से झेलता रहा है। इस बार आन्ध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र के जिलों और जमीनों के वास्ते जिस पोल्लावरम बांध को बनाने की तैयारी केन्द्र और प्रदेश सरकारें कर रहीं हैं उससे तेलंगाना की आदिवासी जनता की ऐतिहासिक और सांस्ककितिक धरोहरें तो नष्ट होगी ही यहां के सामातिक'आर्थिक ढांचे को भी भारी नुकसान होगा। इसकी भरपाई किसी भी तरह के कितने भी संसाधन उपलब्ध्ा कराकर या पुनर्वास योजना लागू कर सरकारी मशीनरी नहीं कर सकती। बाल एवं महिला विकास मंतरी रेणुका चौधरी के संसदीय क्षेतर खम्मम के कुल सात मंडलों के पूरी तरह डूब जाने या फिर जीवन जीने की परिस्थितियां समाप्त हो जाने की प्रबल संभावना है। इसके अलावा पूर्वी एवं पश्िचमी गोदावरी जिला के एक'एक मंडल भी जलमग्न हो जायेंगे। आंध्र प्रदेश का विशाखापटनम, करष्णना जिला तथा कुछ अन्य क्षेतरों में पानी पहुंचाने लिए यह बांध बनाया जा रहा है। जिसके बाद खम्मम जिले के सातों आदिवासी मंडल डूब जायेंगे। मंडल के नजदीक गोदावरी नदी पर बनाया जा रहा पोल्लावरम बांध जिन लोगों को पानी में डूबो देगा उसमें ज्यादातर कोया और कोयारेडिडस आदिवासी हैं।
150 मीटर ऊंचाई के दुनिया के तीसरे सबसे बडे बांध के रूप में बनने को तैयार पोल्लावरम बांध पर सरकार ने निशानदेहीयां कर दी हैं। बताया जाता है कि अगले कुछ महीनों में इसे बनाने की शुरूआत कर दी जायेगी। बांध के निर्काण में लगने वाली लागत का ठीक'ठाक अनुमान लगाना मुश्िकल है इसलिए 20 हजार करोड से 50 हजार करोड तक के बजट की संभावना विशेषज्ञ जता रहे हैं।
बहरहाल, बांध बनाने की तैयारियां सरकार ने तब पूरी कर ली हैं जबकि अभी तक ज्यादातर संस्तुति देने वाले मंतरालयों और विभागों ने अनुमति भी नहीं दी है। केन्द्रीय जल आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार को पार्टी बनाते हुए पोल्लावरम प्रोजैक्ट के खिलाफ केस कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इसके लिए वन, पर्यावरण, राष्टरीय अनुसूचित जनजाति आयोग तथा कुछ अन्य सरकारी आयोगों से भी अनुमति नहीं ली गयी है। इधर सुप्रीम कोर्ट के कारण बताओ नोटिस के जवाब में प्रदेश सरकार बांध बनाने को लेकर तमाम अंतविरोधी पहलुओं को अन्य सरकारी संस्थाओं की राय के तौर पर रख रही है।
आंकडों की जुबानी की बात करें तो सरकारी स्रोतों के अनुसार डूबने वाले 276 गांवाें में 50 प्रतिशत आदिवासी हैं तथा 95 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोग हैं। दो लाख छत्तीस हजार लोगों को उनकी संस्करति'सभ्यता से उजाडकर दूसरी जगह बसाने की बात करने वाला पोल्लावरम प्रोजेक्ट जिन कोया और कोयारेडिडस आदिवासियों को उजाडने की योजना पर अमल करने की तरु बढ रहा है। यह आदिवासी जमात जंगलों में रहती है। उनकी भाषा आंध्र प्रदेश की आम भाषा हेलगू भी नहीं बल्कि कोया बोलते हैं। ऐसे में यदि इलकों में पुनर्वास के लिए बनाये जा रहे घरों में उन्हें लाकर बसा दिया गया तो या फिर ये दर'बदर हो जायेंगे नहीं तो वे स्वत खत्म हो जायेंगे। आदिवासियों की इन तमाम सांस्करतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विविधताओं पर सरकार द्वारा ध्यान न दिया जाना स्पष्ट करता है कि आदिवासियों के हक'हकूक की चिंता न तो सरकार को है और न वहां काम कर रही राजनीतिक पार्टियों को।
आश्चर्यजनक तो यह है कि जिस बांध के बनने के बाद तेलंगाना का समरद मिर्च, धान और तम्बाकू का क्षेतर पानी में तिरोहित हो जायेगा उसका पानी भी इसके किसी जिले को नहीं मिलने वाला है। एक अनुमान के अनुसार सिर्फ खम्मम जिले में 50 लाख एकड जमीन खेती योग्य है किन्तु पानी के अभाव में यह बेकार पडी हुई है। इसके उलट सच्चाई ये है कि गंगा के बाद देश की दूसरी सबसे बडी नदी गोदावरी तेलंगाना के क्षेतर
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1954 में न्यायाधीश फजल अली के नेतत्व में प्रथम राज्य पुनर्गठन कमेटी की जो सिफारिश आयी उसके बाद वरहत आंधरा के कई एक जिले केरल, कर्नाटक राज्य में चले गए तथा आंध प्रदेश के नौ जिले तेलंगाना के हिस्से में आये। महबूबनगर, नालागुण्डा, मेदक, हैदराबाद टवीन सिटी,निजामाबाद, अदीलाबाद, करीमनगर, वारंगल तथा खम्मम जिले वाले तेलंगाना के बारे में न्यायाधीश फजल अली ने भारत सरकार से स्पष्ट कहा कि भौगाेलिक, सांस्करतिक भाषायी फर्क के मददेनजर तेलंगाना को एक अलग राजय का दर्जा दिया जाना चाहिए। कभी सीपीआई के नेतत्व में अलग राज्य की मांग के साथ खडा हुआ तेलंगाना संघर्ष अब तेलंगाना राष्टर समिति के नेतत्व में चल रहा है। तेलंगाना राष्टर समिति के वारंगल विधायक विजय रामा राव ने बातचीत के दौरान बांध का विरोध इसलिए किया क्योंकि सरकार ने अधिकरत विभागों से अनुमति नहीं ली है। सवाल यह उठता है कि क्या यदि सरकार सभी विभागों से मंजूरी ले भी ले तो भी बांध बनाना जनता के हित में होगा। तेलंगाना क्षेतर के नालागुण्डा जिलेके लोग पिछले 25 30 वर्षों से पानी के अभाव में फलोरोसिस के शिकार हैं। इसके लिए बांध बनने से पुनर्वास के इलाकों में जल'स्तर के अत्यधिक ऊपर हो जाने के बाद कोई महामारी नहीं फैलेगी इसकी कोई गारंटी नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि बांध बनने के बाद जल स्तर इतना ऊपर आ जायेगा कि पीने योग्य पानी कई तरह के रोगों को पैदा करेगा। इतना ही नहीं तेलंगाना के क्षेतरों में बांध या छोअी नहरों के अभाव के चलते हर वर्ष लगभग 2000 से 3000 टीएमसी पानी बंगाल की खाडी में चला जाता है। तेलंगाना के साथ आंध्र प्रदेश सरकार कैसा व्यवहार करती है यह इन चंद उदाहरणो्रं के अलावा कोस्टल आंध्र के करष्णा जिले के बजट से भी समझा जा सकता है। हैदराबाद हाईकोर्ट के वकील चिकडू प्रभाकर बताते हैं कि करष्णा जिला का बजट पूरे तेलंगाना के बजट से अधिक है।
नर्मदा से भी उंचा बनने वाला यह बांध किसी जाति,धर्म या क्षेत्र को खत्म नहीं करेगा बल्कि इस इलाके की संरचना को खत्म कर दे्गा। इसको संरचनात्मक हिंसा कहा जाता है। गैर सरकारी सूत्रों के मुताबिक यहां 276 गांव ही नहीं लगभग 400 गांव डूब जायेंगे। डूबने वाले क्षेत्रों की तुलना उत्तर प्रदेश या बिहार के गांवों से नहीं की जानी चाहिये क्योंकि इन राज्यों में गांवों की बसावट सघन है। तेलंगाना के गांवों के बीच की दूरी उत्तर प्रदेश सरीखे राज्यों की दो तहसीलों के बीच की दूरी से भी अधिक होती है। इसलिये खेती योग्य भूमि, अकूत प्राकृतिक संसाधनों से भरे पडे जंगलों के जो परिक्षेत्र डूब जायेंगे वह लाखों-लाख हेक्टेयर में होगे। महत्वपूर्ण है कि बांध बनने से पहले भी खम्मम जिले के नौ मंडलों में से ज्यादातर मंडल हर साल बाढ में एक-दो हफ़ते के लिये डूब जाते हैं। कल्पना की जा सकती है कि जब बांध बन जायेगा तो जिसकी वजह से हजारों सालों से गोदावरी की गांद में बसी सभ्यतायें नष्ट हो जायेंगी।
जनसेवा का हर प्रकार से दावा करने वाली ये सरकारें इस तरह का फैसला क्यों लेती जिसमें कई मानवीय दृष्टिकोणों को दरकिनार कर दिया जाता है। वजह पूछे जाने पर वही रटी-रटाई बातें ‘विकासपरक…....’ मगर ये विकास किसके लिए जब वहां के स्थायी मूल निवासी उस विकास से वंचित ही नहीं, अपने स्तित्व से वंचित हो जाएंगे....। यह भी क्या बिडंबना है कि हर बार इस तरह के प्रलयकारी फैसले पर सरकार की आंख खोलने के लिए आन्दोलन की जरूरत होती है......क्या सरकार अब बिना आंदोलन के कुछ देखने और सोंचने की स्थिति में नहीं है ..... पूरा प्रक्रम अत्यंत सोचनीय, चिंतनीय व चिंताजनक है।
ReplyDelete---विजय
जनसेवा का हर प्रकार से दावा करने वाली ये सरकारें इस तरह का फैसला क्यों लेती जिसमें कई मानवीय दृष्टिकोणों को दरकिनार कर दिया जाता है। वजह पूछे जाने पर वही रटी-रटाई बातें ‘विकासपरक…....’ मगर ये विकास किसके लिए जब वहां के स्थायी मूल निवासी उस विकास से वंचित ही नहीं, अपने स्तित्व से वंचित हो जाएंगे....। यह भी क्या बिडंबना है कि हर बार इस तरह के प्रलयकारी फैसले पर सरकार की आंख खोलने के लिए आन्दोलन की जरूरत होती है......क्या सरकार अब बिना आंदोलन के कुछ देखने और सोंचने की स्थिति में नहीं है ..... पूरा प्रक्रम अत्यंत सोचनीय, चिंतनीय व चिंताजनक है।
ReplyDeletekya yah interview kahin chhapa hai? agar nahin to kya ise prabhat khabar men diya ja sakta hun?
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