दिल्ली के मुखर्जी नगर में प्रमोद कुमार झा आईएएस की तैयारी करते हैं। हमारी उनसे मुलाकात दिल्ली के लक्ष्मीनगर में एक मित्र के यहां दावत पर हुई जिसमें कई लोग भागीदार थे। प्रमोद ने बताया कि वह दो बार प्री दे चुके हैं और अबकी उम्मीद है कि वह चुन लिए जाएंगें। चुने जाने को लेकर वह इसलिए भी आश्वस्त हैं कि उन्होंने परीक्षा और साक्षात्कार पास करने के सभी तरीकों को सीख लिया है और उनका सामान्य ज्ञान बहुत दुरुस्त है। वहां मौके पर मौजूद दूसरे मित्र भी बताने लगे कि प्रमोद का सामान्य ज्ञान वाकई कमाल का है।
हमने जानना चाहा कि अगर आप कल को देश के किसी महत्वपूर्ण पद पर काबिज हो जाएंगे तो पहला सुधार क्या करना चाहेंगे? प्रमोद ने तपाक से कहा, 'कल का पता नहीं पर अभी होता तो मुस्लिम धर्म में तीन तलाक का प्रावधान एक झटके में खत्म कर देता।' जब उनसे यह जानने की कोशिश की गयी, ऐसा क्यों, उनका जवाब था, 'ये तीन बार तलाक बोल के दूसरी औरत की जिंदगी बर्बाद करते हैं। एक से अधिक बीवियां ऐसे रखते हैं मानो औरत नहीं बकरी हों।'
बातचीत आगे बढ़ी तो हमने जानना चाहा कि आपके इस दावे का आधार? पहले तो हमारी बात को उन्होंने मजाक में लिया पर हमने आधार जानने पर जोर दिया तो वह कहने लगे कि इस तथ्य से सभी वाकिफ हैं, आधार का क्या मतलब है? मेरे साथ गए सहयोगी मित्र ने कहा कि आपको समुद्र तल की उंचाई जानने के लिए तथ्य की जरूरत पड़ती है पर इतने बड़े सामाजिक दावे के लिए कहते हैं, तथ्य का क्या मतलब है? कहीं तो कोई स्रोत होगा आपकी जानकारी का, कहीं आपने पढ़ा होगा, कहीं लिखा होगा।
वह और उनकी तरफदारी कर रहे मित्र सकते में आ गए। उनके सामान्य ज्ञान का आधार नहीं मिल रहा था। जो जानकारी इस देश के करोड़ों के लिए आम है, उसके पक्ष में वह सबूत नहीं दे पा रहे थे। जिरह होने लगी तो बात निकली कि यह आंकड़ा तो सेंसेक्स से पता चलेगा। फिर वह और उनके मित्र गूगल पर जुट गए। बड़ी देर तक जुटे रहने के बाद उन्होंने जो पाया, वह उनके सामान्य ज्ञान को बदल गया।
आप भी पढ़िए और देश को तथ्यों के साथ खड़ा कीजिए, पूर्वग्रहों के साथ नहीं।
हमारा पूर्वाग्रह इतना तगड़ा है कि हम लोग अपने ही सरकार के आंकड़े को एक बार झांक कर नहीं देखते कि एक से अधिक पत्नी रखने के मामले में मुस्लिम मर्द पांचवे नंबर पर आते हैं। पहले पर आदिवासी, दूसरे पर जैन, तीसरे पायदान पर बौद्ध, चौथे पर हिंदू हैं।
धर्म और समुदाय आधारित शादियों को लेकर भारत सरकार द्वारा आखिरी सर्वे 1961 में हुआ था। उसके बाद कोई सर्वे सरकार कराने का साहस नहीं करा सकी, क्योंकि इन आंकड़ों के परिणाम बहुसंख्यक आबादी को नाराज करने वाले थे। इसके अलावा कोई सर्वे कभी हुआ ही नहीं, इसलिए बहुपत्नी प्रथा को समझने का सबसे आधिकारिक तरीका यही हो सकता है।
आबादी के हिसाब से एक करोड़ हिंदुओं ने एक से अधिक पत्नी रखी तो मुस्लिमों में 12 लाख मर्दों ने। हिंदूवादी आदिवासियों को भी अपना ही मानते हैं। अगर उनको भी साथ ले लिया जाए फिर यह अनुपात दुगुना हो जाएगा।
बहुपत्नी प्रथा का चलन जातियों और समुदायों के हिसाब से
आदिवासी - 15.25 प्रतिशत
बौद्ध - 7.9 प्रतिशत
जैन - 6.7 प्रतिशत
हिंदू - 5.8 प्रतिशत
मुस्लिम - 5.7 प्रतिशत
हमने जानना चाहा कि अगर आप कल को देश के किसी महत्वपूर्ण पद पर काबिज हो जाएंगे तो पहला सुधार क्या करना चाहेंगे? प्रमोद ने तपाक से कहा, 'कल का पता नहीं पर अभी होता तो मुस्लिम धर्म में तीन तलाक का प्रावधान एक झटके में खत्म कर देता।' जब उनसे यह जानने की कोशिश की गयी, ऐसा क्यों, उनका जवाब था, 'ये तीन बार तलाक बोल के दूसरी औरत की जिंदगी बर्बाद करते हैं। एक से अधिक बीवियां ऐसे रखते हैं मानो औरत नहीं बकरी हों।'
बातचीत आगे बढ़ी तो हमने जानना चाहा कि आपके इस दावे का आधार? पहले तो हमारी बात को उन्होंने मजाक में लिया पर हमने आधार जानने पर जोर दिया तो वह कहने लगे कि इस तथ्य से सभी वाकिफ हैं, आधार का क्या मतलब है? मेरे साथ गए सहयोगी मित्र ने कहा कि आपको समुद्र तल की उंचाई जानने के लिए तथ्य की जरूरत पड़ती है पर इतने बड़े सामाजिक दावे के लिए कहते हैं, तथ्य का क्या मतलब है? कहीं तो कोई स्रोत होगा आपकी जानकारी का, कहीं आपने पढ़ा होगा, कहीं लिखा होगा।
वह और उनकी तरफदारी कर रहे मित्र सकते में आ गए। उनके सामान्य ज्ञान का आधार नहीं मिल रहा था। जो जानकारी इस देश के करोड़ों के लिए आम है, उसके पक्ष में वह सबूत नहीं दे पा रहे थे। जिरह होने लगी तो बात निकली कि यह आंकड़ा तो सेंसेक्स से पता चलेगा। फिर वह और उनके मित्र गूगल पर जुट गए। बड़ी देर तक जुटे रहने के बाद उन्होंने जो पाया, वह उनके सामान्य ज्ञान को बदल गया।
आप भी पढ़िए और देश को तथ्यों के साथ खड़ा कीजिए, पूर्वग्रहों के साथ नहीं।
हमारा पूर्वाग्रह इतना तगड़ा है कि हम लोग अपने ही सरकार के आंकड़े को एक बार झांक कर नहीं देखते कि एक से अधिक पत्नी रखने के मामले में मुस्लिम मर्द पांचवे नंबर पर आते हैं। पहले पर आदिवासी, दूसरे पर जैन, तीसरे पायदान पर बौद्ध, चौथे पर हिंदू हैं।
धर्म और समुदाय आधारित शादियों को लेकर भारत सरकार द्वारा आखिरी सर्वे 1961 में हुआ था। उसके बाद कोई सर्वे सरकार कराने का साहस नहीं करा सकी, क्योंकि इन आंकड़ों के परिणाम बहुसंख्यक आबादी को नाराज करने वाले थे। इसके अलावा कोई सर्वे कभी हुआ ही नहीं, इसलिए बहुपत्नी प्रथा को समझने का सबसे आधिकारिक तरीका यही हो सकता है।
आबादी के हिसाब से एक करोड़ हिंदुओं ने एक से अधिक पत्नी रखी तो मुस्लिमों में 12 लाख मर्दों ने। हिंदूवादी आदिवासियों को भी अपना ही मानते हैं। अगर उनको भी साथ ले लिया जाए फिर यह अनुपात दुगुना हो जाएगा।
बहुपत्नी प्रथा का चलन जातियों और समुदायों के हिसाब से
आदिवासी - 15.25 प्रतिशत
बौद्ध - 7.9 प्रतिशत
जैन - 6.7 प्रतिशत
हिंदू - 5.8 प्रतिशत
मुस्लिम - 5.7 प्रतिशत
स्रोत - सेंसस 1961