Dec 24, 2010

लोग बीमार हैं,चलो डाक्टर को छुड़ा लायें !


विनायक सेन की पहली गिरफ्तारी पर  बगरुमनाला स्वास्थ्य   केंद्र पर मिली   शांति  बाई ने रोते हुए कहा था 'डॉक्टर साहब की गिरफ्तारी के बाद न जाने कितने सौ मरीज लौटकर चले गये। मेरा दिल कहता है अगर हम लोग डॉक्टर को नहीं बचा सके तो अपने बच्चों को भी नहीं बचा पायेंगे।'

अजय प्रकाश

डॉक्टर विनायक सेन, शिशुरोग विशेषज्ञ अब  छत्तीसगढ़ में अपने अस्पताल बगरूमवाला में नहीं रायपुर केंद्रीय कारागार में मिलते हैं। जहां मरीज नहीं,बल्कि डॉक्टर सेन को जेल से मुक्त कराने में प्रयासरत वकील,बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्त्ता  और दो बेटियां एवं पत्नी इलिना  सेन पहुंचती हैं.

छत्तीसगढ़ सरकार की निगाह में विनायक सेन देशद्रोही हैं और अब कोर्ट ने भी कह दिया है.यह सजा उन्हें  इसलिए दी गयी है कि उन्होंने डॉक्टरी के साथ-साथ एक जागरूक नागरिक के बतौर सामाजिक कार्यकर्त्ता  की भी भूमिका निभायी है। विनायक सेन को राजद्रोह,छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा कानून 2005 और गैरकानूनी गतिविधि (निवारक) कानून जैसी संगीन धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया है और अब अदालत ने भी आजीवन कारावास की सजा मुकर्रर कर दी है.
 

बगरुमनाला स्वास्थ्य केंद्र पर डॉ  विनायक

डॉक्टर विनायक पीयूसीएल के छत्तीसगढ़ इकाई के महासचिव और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष से नक्सलियों के मास्टरमाइंड  उस समय हो गये जब रायपुर रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार पीयूष गुहा ने यह बताया कि उनसे जब्त तीनों चिट्ठियां (दो अंग्रेजी, एक बंग्ला) नक्सली कमाण्डर को सुपुर्द  करने के लिये थीं. मगर उसमें यह तथ्य नहीं है कि चिट्ठियां विनायक सेन से प्राप्त हुयीं। दूसरी बात जिसे कई बार कोर्ट में  पीयूष गुहा ने कहा भी है कि उसे एक मई को गिरफ्तार किया गया,जबकि एफआईआऱ छह मई को दर्ज  हुयी।

मतलब साफ है कि पुलिस ने पीयूष गुहा  को छह दिन अवैध हिरासत में रखा। पुलिस को पीयूष गुहा के बयान के अलावा और कोई भी पुख्ता सुबूत विनायक सेन के खिलाफ नहीं मिल सका। विनायक सेन कि गिरफ्तारी का आधार पुलिस ने बुजुर्ग  नक्सली नेता नारायण सन्याल से तैंतीस बार मिलने  तथा उन चिट्ठियों को ही बनाया जो नारायण ने जेल में मुलाकात के दौरान विनायक को सौंपी थी। हालांकि विनायक सेन के घर से प्राप्त हुईं इन सभी चिट्ठियों पर जेल प्रशासन  की मुहर थी और जेलर ने पत्र को अग्रसारित किया था।

पहली बार गिरफ्तारी के समय विनायक सेन के पदार्फाश  की कुछ उम्मीद पुलिस को उनके घर से जब्त सीडी से बंधी थी, लेकिन वह भी मददगार साबित न हो सकी। यही नहीं, सनसनीखेज सुबूत का दावा तब किया गया जब सेन के कम्प्यूटर को पुलिस उठा लायी। इसके अलावा नक्सली सहयोगी होने के प्रमाण के तौर पर उनके घर से जो सामग्री और स्टेशनरी जो जब्त की गयी थी, उस आधार पर देश के लाखों बुद्धिजीवियों और करोंड़ों नागरिकों को सरकार गिरफ्तार कर सकती है।

विनायक सेन की गिरफ्तारी को जायज ठहराने में लगा पुलिस बल सुबूतों को जुटाने के मामलों में मूर्खताओं की हदें पार कर गया था। पीपुल्स मार्च (अब प्रतिबंधित) पत्रिका की  एक प्रति, एक अन्य वामपंथी पत्रिका, अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ अंग्रेजी में लिखा गया हस्तलिखित पर्चा, साम्यवादी नेता लेनिन की पत्नी क्रुप्स्काया  द्वारा लिखित पुस्तक 'लेनिन',रायपुर जेन में सजायाफ्ता माओवादी मदनलाल का पत्र जिसमें उसने जेल को अराजकताओं-अनियमितताओं को उजागर किया तथा कल्पना कन्नावीरम का इपीडब्ल्यू (इकॉनोमिकल एण्ड पोलिटिकल वीकली) में छपे लेखों  को भी पुलिस ने जब्त किया था। जाहिर है इन सबूतों कि बिना पर कोई सजा नहीं बनती, मगर सत्र न्यायाधीश पी. बी. वर्मा ने विनायक सेन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. इससे आहत हो विनायक सेन की पत्नी इलिना सेन ने शुक्रवार 24 दिसम्बर 2010 को हुए फैसले को लोकतंत्र का काला दिन  कहा है.
 

विनायक सेन : देश के लिए देशद्रोही


बहरहाल, पहली गिरफ्तारी१६ मई २००७ के समय विनायक सेन के खिलाफ ढीले पड़ते सुबूतों के मद्देनजर पुलिस ने कुछ नये तथ्य भी कोर्ट  को बताये थे, जिसमें राजनादगांव और दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षकों ने नक्सलियों से ऐसा साहित्य बरामद किया  जिसमें विनायक सेन  की चर्चा थी. यानी कल   को माओवादियों के साहित्य या राजनीतिक   पुस्तकों में किसी साहित्यकार,इतिहासकार या सामाजिक  आन्दोलनों से जुड़े लोगों की चर्चा हो तो वे आतंकवाद निरोधक कानूनों के तहत गिरफ्तार किये जा सकते हैं।

विनायक देश के पहले ऐसे नागरिक हैं जिन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा चलाये जा रहे दमनकारी अभियान सलवा जुडूम का विरोध किया था। इतना ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर फैक्ट फाइडिंग टीम गठित कर दुनियाभर को इत्तला किया कि यह नक्सलवादियों के खिलाफ आदिवासियों  का स्वतः स्फूर्त  आंदोलन नहीं बल्कि टाटा, एस्सार, टेक्सास आदि  के लिये जल, जंगल, जमीनों को खाली कराना है, जिसपर कि माओवादियों के कारण साम्राज्यवादियों का कब्जा नहीं हो सका है।


माओवादी हथियारबंद हो जनता को गोलबंद किये हुये हैं इसलिये सरकार के लिये संभव ही नहीं है कि उनके आधार इलाकों मे कत्लेआम मचाये बिना कब्जा कर ले। खासकर, तब जब जनता भी अपने संसाधनो को देने से पहले अंतिम दम तक लड़ने के लिये तैयार है। दमनकारी हुजूम यानी 'सलवा जुडूम'की नंगी सच्चाई के सामने आने से राज्य सरकार तिलमिला गयी। जिसके ठीक बाद बस्तर क्षेत्र के तत्कालीन डीजीपी सवर्गीय  राठौर ने कहा था कि 'मैं विनायक सेन और पीयूसीएल  दोनों को देख लूंगा।''

यहां तक कि इलिना (विनायक सेन की पत्नी) पर भी पुलिस ने आरोप लगाया कि उन्होंने अनिता श्रीवास्तव नामक फरार नक्सली महिला की मदद की। यह सब चल ही रहा था कि इसी बीच विनायक सेन पर छत्तीसगढ़ के विलासपुर इलाके में काम कर रहे धर्मसेना  नाम के एक हिन्दू संगठन ने  धर्मान्तरण  का आरोप मढ़ना शुरू कर दिया। धर्मसेना के इस कुत्सा प्रचार का वहां  के दर्जनों गांवों के हजारों नागरिकों ने विरोध किया।

छत्तीसगढ़ के मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी के अनुभवों और अपनी वर्गीय  दृष्टि की ऊर्जा को झोंककर जो संस्थाएं  विनायक सेन ने खड़ी की, वह उदाहरणीय हैं। कहना गलत न होगा कि विनायक सेन नेता नहीं हैं, मगर जनता के आदमी हैं। वह इसलिए कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 150किलोमीटर दूर धमतरी जिले के बगरुमनाला और कुछ अन्य गांवों में विनायक आदिवासियों की सेवा में निस्वर्ट भाव से लगे रहे.

डॉ. सेन देश के दूसरे नम्बर के बड़े आयुविर्ज्ञान संस्थान सीएमसी वेल्लुर से एमडी, डीसीएच हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में दिये जाने वाले विश्व स्तर के पुरस्कार पॉल हैरिसन पुरस्कार और जोनाथन मैन अवार्ड  से वे नवाजे जा चुके हैं। वर्ष 1992से धमतरी जिले के बागरूमवाला गांव में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र संचालित करने वाले विनायक सेन ने सामान्तर सामुदायिक शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की। डॉक्टर को यह साहस और अनुभव छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के संस्थापक स्वर्गीय शंकर गुहा नियोगी से मिला। गौरतलब है कि डॉक्टर सेन इस क्षेत्र में १९७८ से कम कर रहे हैं.

सवाल उठता है कि क्या यह सब करते हुये विनायक सेन अपने डॉक्टरी कर्तव्य को भी बखूबी निभा पाये। बगरुमनाला के स्वस्थ्य  केंद्र की  पिछले बारह वर्षों से देखरेख कर रहीं शांतिबाई ने कहती हैं कि 'डॉक्टर साहब को चौदह साल से जानती हूं। उन्होंने हमलोगों के लिए अपनी जिंदगी लगा दी.हम अकेली नहीं हूं जो डॉक्टर साहब के बारे में ऐसा मानती हूं। यहां से तीन दिन पैदल चलकर जिन गांव-घरों में आप पहुंच सकते हैं उनसे पूछिये डॉक्टर साहब कैसा आदमी है,बगरूमनाला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कैसा इलाज होता है.'

विनायक सेन की पहली गिरफ़्तारी के बाद हुई मुलाकात में शांतिबाई ने रोते हुए कहा था 'डॉक्टर साहब की गिरफ्तारी के बाद न जाने कितने सौ मरीज लौटकर चले गये। मेरा दिल कहता है अगर हम लोग डॉक्टर को नहीं बचा सके तो अपने बच्चों को भी नहीं बचा पायेंगे।'


देश के लिए देशद्रोही


माओवादी नेता नारायण सान्याल से मुलाकातों को लेकर वह हमेशा कहते रहे हैं कि मैं इसे गुनाह नहीं मानता। एक डॉक्टर और मानवाधिकार कार्यकर्ता होने के नाते मेरा फर्ज है कि मैं कानून की सहायता चाहने वालों और अस्वस्थ्य लोगों से मिलूं...


जनज्वार टीमसामाजिक कार्यकर्ता डॉक्टर विनायक सेन को छत्तीसगढ़ की एक कोर्ट ने देशद्रोह का अपराधी बताते हुए शुक्रवार को आजीवन कारावास की सजा सुनायी है। विनायक सेन के साथ सीपीआइ(माओवादी)के बुजूर्ग नेता नारायण सान्याल और पीयूष गुहा को भी उम्रकैद की सजा हुई है। इन सभी पर आइपीसी की धारा 124ए,124बी और छत्तीसगढ़ जनसुरक्षा अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज है।

विनायक सेन को यह सजा जेल में बंद माओवादी नेता नारायण सान्याल की चिट्ठयां जेल से बाहर ले जाने, चिट्ठियां भूमिगत माओवादियों तक पहुंचाने और इन चिट्ठियों के जरिये माओवादी आधार क्षेत्रों का विस्तार किये जाने के अपराध में दी गयी है। नारायन सान्याल माओवादी पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य हैं और उनकी उम्र करीब 80 वर्ष है।
विनायक सेन : हार की जीत                          फोटो -शैलेन्द्र

मुकदमें की सुनवाई करते हुए जिला और सत्र न्यायधीश बीपी वर्मा ने इन सभी को षड़यंत्र और देशद्रोह का अभियुक्त माना है। अदालत ने नारायण सान्याल और पीयूष गुहा को माओवादी होने के नाते आजीवन कारावास की सजा मुकर्रर की है। विनायक सेन अदालत में नारायण सान्याल और पीयूष गुहा के साथ ही उपस्थित हुए थे।

डॉक्टर विनायक सेन गिरफ्तारी 14 मई 2007 को बिलासपुर में हुई थी। जेल में दो वर्ष की सजा काटने के बाद 58 वर्षीय विनायक सेन को सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद मई 2009 में स्वास्थ्य कारणों से छोड़ दिया गया था जिन्हें फिर एक बार छत्तीसगढ़ पुलिस ने हिरासत में ले लिया है।

विनायक सेन सरकार के आरोपों अब सजा मुकर्रर होने की प्रक्रिया को मनगढंत और मानवाधिकार के खिलाफ साजिश मानते हैं। पेशे से डॉक्टर विनायक सेन छत्तीसगढ़ में उस समय चर्चा में आये थे जब उन्होंने माओवादियों से निपटने के बहाने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को सलवा जुडूम अभियान के बहाने तबाह-बर्बाद किया जा रहा था।

विनायक देश के पहले शख्सियत थे जिन्होंने सलवा-जुडूम के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक अभियान चलाया था। उसी अभियान का असर रहा कि उसे सर्वोच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार को बंद करने का आदेश दिया था। विनायक सेन का कहना है कि ‘यह सजा सरकार के अत्याचारों के खिलाफ मुखर होने का प्रतिफल है।’माओवादी नेता नारायण सान्याल से मुलाकातों को लेकर वह हमेशा कहते रहे हैं कि ‘मैं इसे गुनाह नहीं मानता। एक डॉक्टर और मानवाधिकार कार्यकर्ता होने के नाते मेरा फर्ज है कि मैं कानून की सहायता चाहने वालों और अस्वस्थ्य लोगों से मिलूं। नारायण सान्याल से हुई मेरी मुलाकातें भी इन्हीं संदर्भों में हुई थीं।’

 
विनायक सेन के साथ नारायण सान्याल

जहां तक चिट्ठयों को जेल से बाहर ले जाने का सवाल है तो इस बारे में विनायक सेन कहते रहे हैं कि ‘मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल का पदाधिकारी होने के नाते मैं यह क्यों नहीं कर सकता था?जेल से नारायण सान्याल के लिखे जो भी पत्र मैं ले गया हूं उन सब पर जेल प्रशासन की मूहर है।’

प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षक इलीना सेन ने इसे लोकतंत्र का काला दिन कहा। इलीना सेन विनायक सेन की पत्नी हैं और गांधी हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में डीन हैं। उन्होंने पति की गिरफ्तारी पर कहा कि ‘देश में गुंडे खुलेआम घूमते हैं और आदिवासियों और गरीबों के बीच जीवन गुजार देने वाले विनायक सेन को देशद्रोही करार दिया जाता है।’इलीना ने कहा कि जिला और सत्र न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करेंगी।

विनायक सेन की स्वास्थ्य के क्षेत्र में की गयी सेवाओं की दुनिया भर में बेहद कद्र है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य और मानवाधिकार क्षेत्र में काम के लिए उन्हें जोनाथन मैन सम्मान और पॉल हैरिसन पुरस्कार से नवाजा गया है। छत्तीसगढ़ के श्रमिक नेता शंकर   गुहानी योगी के साथ सामाजिक कामों की शुरूआत करने वाले विनायक सेन दल्ली राजहरा स्थित अस्पताल के प्रमुख डाक्टरों में रहे हैं और वे बाद में मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने. गौरतलब है कि जब वे गिरफ्तार किये गए तो वह उपाध्यक्ष थे.  

छत्तीसगढ़  सरकार की निगाह में देशद्रोही और माओवादियों के शुभचिन्तक करार दिए गए विनायक सेन जब जेल से बाहर थे तब राज्य सरकार की सलाहकार समिति के सदस्य थे.सलाहकार रहने के दौरान उन्होंने छत्तीसगढ़ में गरीबों की बेहतर स्वस्थ सेवा के लिए जो सुझाव दिए थे बाद में उसी आधार पर सरकार ने वहां बहुचर्चित और सफल स्वस्थ सेवा 'मितानिन ' शुरू किया था. 

विनायक सेन डॉक्टरों की उस परंपरा से आते हैं जो सिर्फ दवा देना ही अपना कर्तव्य नहीं मानते बल्कि सामाजिक-आर्थिक हालात बदलने पर भी जोर देते हैं। यही वजह रही कि छत्तीसगढ़ में जब सलवा जुडूम के बहाने आदिवासियों के खिलाफ कॉरपोरेट और सरकारी साजिश शुरू हुई तो उन्होंने मुकम्मिल विरोध को सर्वाधिक बुलंदी के साथ राष्ट्रीय स्तर पर उठाया, जिसका खामियाजा उन्हें आज भूगतना पड़ रहा है।

राजा आज सीबीआइ से क्या कहेंगे !

विकास के नाम पर कॉरपोरेट को मुनाफा पहुंचा कर   मंत्रालय की उपलब्धि बताने के अलावे कोई दूसरा रास्ता मनमोहन इकनॉमिक्‍स में नहीं है।

पुण्य प्रसून बाजपेयी


सीबीआई के दरबार में ए.राजा आज (शुक्रवार)पेश होंगे। पूछताछ में ईडी और इन्कम टैक्स के अधिकारी समेत गृह मंत्रालय और आईबी के अधिकारी भी मौजूद होंगे। चूंकि छापों के बाद नौकरशाहों और कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया से पूछताछ में यह सवाल खुल कर सामने आया है कि 2जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंस जिन्हें बांटे गये उनके जरिये अफ्रीका, नार्वें, रुस, मलेशिया और यूएई के कंपनियों से तार जुडे। और हवाला रैकेट के जरिये ही करोड़ों के वारे-न्यारे महज छह महीने से एक साल के भीतर कर दिये गये।

जाहिर है ऐसे में सीबीआई उस सिरे को ही पकड़ना चाहेगी कि कहीं पूर्व टेलीकॉम मंत्री की भूमिका लाईसेंस के जरिये हवाला रैकेट में तो कुछ नहीं थी। क्योंकि यही सिरा राजा की गिरफ्तारी करवा सकता है और सीबीआई 90दिनों में ऐसी चार्जशीट दाखिल कर सकती है जिसमें 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला प्रधानमंत्री के हद से बाहर निकल कर सीधे हवाला रैकेट से जुड़ता दिखायी दे। और समूची जांच की दिशा ही देशी-बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उस खेल को पकड़ने में लग जाये जो देश में आर्थिक सुधार के साथ मनमोहन इकनॉमिक्‍स के जरिये विदेशी पूंजी की आवाजाही से शुरू हुआ।

लेकिन ए.राजा अगर स्पेक्ट्रम घोटाले के तार कॉरपोरेट संघर्ष की मुनाफाखोरी से जोड़कर उसमें राजनीति का तडका लगा देते हैं,तब क्या होगा। क्या तब यह सवाल खड़ा होगा कि टाटा या मुकेश अंबानी के लिये जो रास्ता नीरा राडिया मंत्रालयो में घूम-घूम कर बना रही थी उसके सामानांतर सुनील मित्तल या अनिल अंबानी के लिये कोई रास्ता बन नहीं पा रहा था।


इसलिये स्पेक्ट्रम का खेल बिगड़ा। और अगर स्पेक्ट्रम लाइसेंस के जरिये किसी कॉरपोरेट घराने को लाभ हुआ तो, जिसे घाटा हुआ उसने अदालत का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया। या फिर किसी भी कंपनी ने 2007-2009के दौर में अदालत जाकर यह सवाल क्यों खड़ा नहीं किया कि जिन कंपनियों ने कभी टेलीकॉम के क्षेत्र में कोई काम नहीं किया उन्‍हें स्‍पेक्‍ट्रम का आबंटन क्‍यों किया गया। फिर कैसे लाख टके में कंपनी बना कर एक झटके में करोड़ों का वारे-न्यारे स्पेक्ट्रम लाइसेंस पाते ही कर लिया। असल में अर्थव्यवस्था के सामने सरकार कैसे नतमस्तक होती चली गयी है। और कॉरपोरेट घरानों के मुनाफे में ही देश की चकाचौंध या देश की बदहाली सिमटती जा रही है। यह भी सरकार की आर्थिक नीतियों से ही समझा जा सकता है जिसके दायरे में राजा या राडिया महज प्यादे नजर आते हैं।

अगर राडिया देश के लिये खतरनाक है जैसा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने बताया है ,तो इसका जबाब कौन देगा कि जिन कंपनियों के लिये राडिया काम कर रही थी उनके मुनाफे के आधारों को क्या ईडी टोटलने की स्थिति में है। मुश्किल है। यह मुश्किल क्यों है इसे समझने से पहले जरा सरकार और कॉरपोरेट के संबंधों को समझना भी जरुरी है।

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी खुद कहते है कि वह अंबानी बंधुओं को आज से नहीं बचपन से जानते हैं। यानी राजीव गांधी के दौर में जब धीरुभाई अंबानी मुश्किल में थे तब प्रणव मुखर्जी की कितनी करीबी धीरुभाई अंबानी से थी यह कांग्रेस की राजनीति का खुला पन्ना है। लेकिन नयी परिस्थिति में देश के तेल-गैस मंत्री मुरली देवडा मुकेश अंबानी के कितने करीबी हैं और देश के गृहमंत्री पी. चिदबरंम अनिल अंबानी से कितने करीबी हैं यह भी राजनीतिक गलियारे में किसी से छुपा नहीं है।

दस  जनपथ से अनिल अंबानी की दूरी भी किसी से छुपी नहीं है और अनिल अंबानी के मुनाफे के लिये मुलायम सिंह ने समाजवादी राजनीति को कैसे हाशिये पर ढकेल दिया यह भी किसी से छुपा नहीं है। लेकिन मनमोहन की इकनॉमी में जब संसदीय राजनीति ही हाशिये पर है तो फिर सरकार से ऊपर कॉरपोरेट हो इससे इंकार कैसे किया जा सकता है।

हो सकता है ए.राजा सीबीआई को खुल्लम-खुल्ला यही कह दें कि सुनील मित्तल और अनिल आंबानी की लॉबी स्पेक्ट्रम लाईसेंस में नहीं चली इसलिये उन्हें बली का बकरा बनाया जा रहा है। या फिर सरकार में जब कामकाज का तरीका ही जब यही बना दिया गया है कि लॉबिस्टों के जरिये कॉरपोरेट काम करें और लॉबिस्टों को कॉरपोरेट का नुमाइंदा मानकर सरकार नीतियों को अमल में लाये,क्योंकि हर कॉरपोरेट से मंत्रियों के तार जुड़े हैं तो सीबीआई क्या करेगी। 

मनमोहन इकनॉमिक्‍स में तो नीरा राडिया सरीखे लॉबिस्टो को भी बकायदा मंत्रालयों में काम करने का लाइसेंस दिया जाता है। और 2008 में जब पहली बार नीरा राडिया को ब्लैकलिस्ट में डाला गया तो उस वक्त कुल 74 लॉबिस्ट काम कर रहे थे जिसमें ब्लैक लिस्ट के नाम में सिर्फ नीरा राडिया नहीं बल्कि 28 दूसरे लॉबिस्टो के भी नाम थे।

यह भी हो सकता है राजा सरकार के अलग अलग मंत्रालयों की उस पूरी भूमिका को लेकर चर्चा छेड़ दें कि कैसे मुंबई एयरपोर्ट के लिये अनिल अंबानी का नाम भी शॉर्टलिस्ट किया गया था,लेकिन आखिरी प्रक्रिया में इसे सुब्बीरामी रेड्डे के बेटे जीवीके रेड्डी को दे दिया गया। हो सकता है ए.राजा ऊर्जा मंत्रालय के जरिये बांटे जा रहे थर्मल पावर प्रोजेक्ट का कच्चा-चिट्टा देकर सवाल खडा करें कि लाइसेंस देने के लिये घूसखोरी तो एक कानूनी प्रक्रिया है। जैसे एनटीपीसी ने बीएचईएल को छत्तीसगढ़ में कितनी रकम लेकर पावर प्रोजेक्ट लगाने की इजाजत दी। और जो सवाल सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर उठाये हैं कि आखिर राष्ट्रीयकृत बैंकों ने भी कैसे स्पेक्ट्रम लाईसेंस के नाम पर टटपूंजिया कंपनियों को 10-10हजार करोड़ रुपये लोन दे दिये।

हो सकता है ए.राजा सीबीआई को वह पूरी प्रक्रिया ही समझाने लगें कि कैसे विकास के नाम पर देश में अब कॉरपोरेट घराने ऐसे-ऐसे प्रोजेक्ट पर सरकार से हरी झंडी ले चुके हैं जिनका कोई बेंच मार्क ही किसी को पता नहीं है। जैसे दस साल पहले पावर प्रोजेक्ट लगाने के नाम पर सरकार से लाईसेंस लेकर बैकों से कितनी भी उधारी ले ली जाती थी और पावर प्रोजेक्ट का लाईसेंस पाने वाली कंपनी का अपना टर्नओवर चंद लाख का होता था।

लेकिन देश में बिजली चाहिये और बिना उसके विकास अधूरा है तो ऊर्जा मंत्री की उपलब्धि भी जब यह होती कि उसके जरिये कितने पावर प्रोजेक्ट आ सकते है तो फिर लेन-देन कितने का हो रहा है। बैंक कितना लोन किस एवज में दे रहा है,इसकी ठौर तो आज भी नहीं ली जाती है। अब सरकार की तरफ से सिर्फ इतना ही किया गया है कि पावर प्रोजेक्ट लगाने वाली कंपनी से पूछा जा रहा है कि वह प्रति यूनिट बिजली बेचेगी कितने में। जिसका आश्वासन आज भी कोई पावर प्रोजेक्ट कंपनी नहीं दे रही है।

हो सकता है राजा स्पेक्ट्रम लाइसेंस के बंटवारे के दौर में एसईजेड के लाइसेंस के बंदर बांट का किस्सा भी छेड़ दें और बताने लगें कि कैसे राडिया एसईजेड को लेकर भी किस-किस कॉरपोरट के लिये किस-किस मंत्रालय में घूम-घूम कर लॉबिग कर रही थी। और कैसे निखिल गांधी जब सबसे पहले एसईजेड के प्रपोजल के साथ सरकार के दरवाजे पर पहुंचे थे,तो मुकेश अंबानी ने उस प्रपोजल को ही रुकवा कर सात सौ करोड़ में निखिल गांधी से एसईजेड का ब्लू-प्रिंट ही खरीद लिया था।

यानी कब,कैसे किस-किस कॉरपोरेट घराने की तूती सरकार और मंत्री से गठजोड कर चलती रही है और विकास के नाम पर कॉरपोरेट को मुनाफा पहुंचा कर मंत्रालय की उपलब्धि बताने के अलावे कोई दूसरा रास्ता भी मनमोहन इकनॉमिक्‍स में नहीं है। क्योंकि नार्थ-साउथ ब्‍लॉक के बीच दुनिया की सबसे खूबसूरत रायसीना हिल्स पर अगर रेड कारपेट किसी के लिये बिछी है तो वह कॉरपोरेट के लिये।

तो आज ए.राजा सीबीआई से पूछताछ में क्या कहेंगे जानना सभी यही चाहेगें। लेकिन हो सकता है कि सरकार ना चाहे कि राजा बहकें और फिर  सीबीआई राजा को पूछताछ के साथ गिरफ्तार कर फिलहाल 90दिनो के लिये स्पेक्ट्रम घोटाले का केस लाक कर दें। तो इंतजार कीजिये।


पुण्य प्रसून बाजपेयी ज़ी न्यूज़ में प्राइम टाइम एंकर और सम्पादक हैं। प्रसून देश के इकलौते ऐसे पत्रकार हैं,जिन्हें टीवी पत्रकारिता में बेहतरीन कार्य के लिए वर्ष २००५ का ‘इंडियन एक्सप्रेस गोयनका अवार्ड फ़ॉर एक्सिलेंस’और प्रिंट मीडिया में बेहतरीन रिपोर्ट के लिए 2007का रामनाथ गोयनका अवॉर्ड मिला। उनसे punyaprasun@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.यह लेख उनके ब्लॉग http://prasunbajpai.itzmyblog.com  से साभार लिया जा रहा है.