विनायक सेन की पहली गिरफ्तारी पर बगरुमनाला स्वास्थ्य केंद्र पर मिली शांति बाई ने रोते हुए कहा था 'डॉक्टर साहब की गिरफ्तारी के बाद न जाने कितने सौ मरीज लौटकर चले गये। मेरा दिल कहता है अगर हम लोग डॉक्टर को नहीं बचा सके तो अपने बच्चों को भी नहीं बचा पायेंगे।'
अजय प्रकाश
डॉक्टर विनायक सेन, शिशुरोग विशेषज्ञ अब छत्तीसगढ़ में अपने अस्पताल बगरूमवाला में नहीं रायपुर केंद्रीय कारागार में मिलते हैं। जहां मरीज नहीं,बल्कि डॉक्टर सेन को जेल से मुक्त कराने में प्रयासरत वकील,बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्त्ता और दो बेटियां एवं पत्नी इलिना सेन पहुंचती हैं.
छत्तीसगढ़ सरकार की निगाह में विनायक सेन देशद्रोही हैं और अब कोर्ट ने भी कह दिया है.यह सजा उन्हें इसलिए दी गयी है कि उन्होंने डॉक्टरी के साथ-साथ एक जागरूक नागरिक के बतौर सामाजिक कार्यकर्त्ता की भी भूमिका निभायी है। विनायक सेन को राजद्रोह,छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा कानून 2005 और गैरकानूनी गतिविधि (निवारक) कानून जैसी संगीन धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया है और अब अदालत ने भी आजीवन कारावास की सजा मुकर्रर कर दी है.
डॉक्टर विनायक पीयूसीएल के छत्तीसगढ़ इकाई के महासचिव और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष से नक्सलियों के मास्टरमाइंड उस समय हो गये जब रायपुर रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार पीयूष गुहा ने यह बताया कि उनसे जब्त तीनों चिट्ठियां (दो अंग्रेजी, एक बंग्ला) नक्सली कमाण्डर को सुपुर्द करने के लिये थीं. मगर उसमें यह तथ्य नहीं है कि चिट्ठियां विनायक सेन से प्राप्त हुयीं। दूसरी बात जिसे कई बार कोर्ट में पीयूष गुहा ने कहा भी है कि उसे एक मई को गिरफ्तार किया गया,जबकि एफआईआऱ छह मई को दर्ज हुयी।
बगरुमनाला स्वास्थ्य केंद्र पर डॉ विनायक |
डॉक्टर विनायक पीयूसीएल के छत्तीसगढ़ इकाई के महासचिव और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष से नक्सलियों के मास्टरमाइंड उस समय हो गये जब रायपुर रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार पीयूष गुहा ने यह बताया कि उनसे जब्त तीनों चिट्ठियां (दो अंग्रेजी, एक बंग्ला) नक्सली कमाण्डर को सुपुर्द करने के लिये थीं. मगर उसमें यह तथ्य नहीं है कि चिट्ठियां विनायक सेन से प्राप्त हुयीं। दूसरी बात जिसे कई बार कोर्ट में पीयूष गुहा ने कहा भी है कि उसे एक मई को गिरफ्तार किया गया,जबकि एफआईआऱ छह मई को दर्ज हुयी।
मतलब साफ है कि पुलिस ने पीयूष गुहा को छह दिन अवैध हिरासत में रखा। पुलिस को पीयूष गुहा के बयान के अलावा और कोई भी पुख्ता सुबूत विनायक सेन के खिलाफ नहीं मिल सका। विनायक सेन कि गिरफ्तारी का आधार पुलिस ने बुजुर्ग नक्सली नेता नारायण सन्याल से तैंतीस बार मिलने तथा उन चिट्ठियों को ही बनाया जो नारायण ने जेल में मुलाकात के दौरान विनायक को सौंपी थी। हालांकि विनायक सेन के घर से प्राप्त हुईं इन सभी चिट्ठियों पर जेल प्रशासन की मुहर थी और जेलर ने पत्र को अग्रसारित किया था।
पहली बार गिरफ्तारी के समय विनायक सेन के पदार्फाश की कुछ उम्मीद पुलिस को उनके घर से जब्त सीडी से बंधी थी, लेकिन वह भी मददगार साबित न हो सकी। यही नहीं, सनसनीखेज सुबूत का दावा तब किया गया जब सेन के कम्प्यूटर को पुलिस उठा लायी। इसके अलावा नक्सली सहयोगी होने के प्रमाण के तौर पर उनके घर से जो सामग्री और स्टेशनरी जो जब्त की गयी थी, उस आधार पर देश के लाखों बुद्धिजीवियों और करोंड़ों नागरिकों को सरकार गिरफ्तार कर सकती है।
विनायक सेन की गिरफ्तारी को जायज ठहराने में लगा पुलिस बल सुबूतों को जुटाने के मामलों में मूर्खताओं की हदें पार कर गया था। पीपुल्स मार्च (अब प्रतिबंधित) पत्रिका की एक प्रति, एक अन्य वामपंथी पत्रिका, अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ अंग्रेजी में लिखा गया हस्तलिखित पर्चा, साम्यवादी नेता लेनिन की पत्नी क्रुप्स्काया द्वारा लिखित पुस्तक 'लेनिन',रायपुर जेन में सजायाफ्ता माओवादी मदनलाल का पत्र जिसमें उसने जेल को अराजकताओं-अनियमितताओं को उजागर किया तथा कल्पना कन्नावीरम का इपीडब्ल्यू (इकॉनोमिकल एण्ड पोलिटिकल वीकली) में छपे लेखों को भी पुलिस ने जब्त किया था। जाहिर है इन सबूतों कि बिना पर कोई सजा नहीं बनती, मगर सत्र न्यायाधीश पी. बी. वर्मा ने विनायक सेन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. इससे आहत हो विनायक सेन की पत्नी इलिना सेन ने शुक्रवार 24 दिसम्बर 2010 को हुए फैसले को लोकतंत्र का काला दिन कहा है.
विनायक सेन : देश के लिए देशद्रोही |
बहरहाल, पहली गिरफ्तारी१६ मई २००७ के समय विनायक सेन के खिलाफ ढीले पड़ते सुबूतों के मद्देनजर पुलिस ने कुछ नये तथ्य भी कोर्ट को बताये थे, जिसमें राजनादगांव और दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षकों ने नक्सलियों से ऐसा साहित्य बरामद किया जिसमें विनायक सेन की चर्चा थी. यानी कल को माओवादियों के साहित्य या राजनीतिक पुस्तकों में किसी साहित्यकार,इतिहासकार या सामाजिक आन्दोलनों से जुड़े लोगों की चर्चा हो तो वे आतंकवाद निरोधक कानूनों के तहत गिरफ्तार किये जा सकते हैं।
विनायक देश के पहले ऐसे नागरिक हैं जिन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा चलाये जा रहे दमनकारी अभियान सलवा जुडूम का विरोध किया था। इतना ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर फैक्ट फाइडिंग टीम गठित कर दुनियाभर को इत्तला किया कि यह नक्सलवादियों के खिलाफ आदिवासियों का स्वतः स्फूर्त आंदोलन नहीं बल्कि टाटा, एस्सार, टेक्सास आदि के लिये जल, जंगल, जमीनों को खाली कराना है, जिसपर कि माओवादियों के कारण साम्राज्यवादियों का कब्जा नहीं हो सका है।
माओवादी हथियारबंद हो जनता को गोलबंद किये हुये हैं इसलिये सरकार के लिये संभव ही नहीं है कि उनके आधार इलाकों मे कत्लेआम मचाये बिना कब्जा कर ले। खासकर, तब जब जनता भी अपने संसाधनो को देने से पहले अंतिम दम तक लड़ने के लिये तैयार है। दमनकारी हुजूम यानी 'सलवा जुडूम'की नंगी सच्चाई के सामने आने से राज्य सरकार तिलमिला गयी। जिसके ठीक बाद बस्तर क्षेत्र के तत्कालीन डीजीपी सवर्गीय राठौर ने कहा था कि 'मैं विनायक सेन और पीयूसीएल दोनों को देख लूंगा।''
यहां तक कि इलिना (विनायक सेन की पत्नी) पर भी पुलिस ने आरोप लगाया कि उन्होंने अनिता श्रीवास्तव नामक फरार नक्सली महिला की मदद की। यह सब चल ही रहा था कि इसी बीच विनायक सेन पर छत्तीसगढ़ के विलासपुर इलाके में काम कर रहे धर्मसेना नाम के एक हिन्दू संगठन ने धर्मान्तरण का आरोप मढ़ना शुरू कर दिया। धर्मसेना के इस कुत्सा प्रचार का वहां के दर्जनों गांवों के हजारों नागरिकों ने विरोध किया।
छत्तीसगढ़ के मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी के अनुभवों और अपनी वर्गीय दृष्टि की ऊर्जा को झोंककर जो संस्थाएं विनायक सेन ने खड़ी की, वह उदाहरणीय हैं। कहना गलत न होगा कि विनायक सेन नेता नहीं हैं, मगर जनता के आदमी हैं। वह इसलिए कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 150किलोमीटर दूर धमतरी जिले के बगरुमनाला और कुछ अन्य गांवों में विनायक आदिवासियों की सेवा में निस्वर्ट भाव से लगे रहे.
डॉ. सेन देश के दूसरे नम्बर के बड़े आयुविर्ज्ञान संस्थान सीएमसी वेल्लुर से एमडी, डीसीएच हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में दिये जाने वाले विश्व स्तर के पुरस्कार पॉल हैरिसन पुरस्कार और जोनाथन मैन अवार्ड से वे नवाजे जा चुके हैं। वर्ष 1992से धमतरी जिले के बागरूमवाला गांव में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र संचालित करने वाले विनायक सेन ने सामान्तर सामुदायिक शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की। डॉक्टर को यह साहस और अनुभव छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के संस्थापक स्वर्गीय शंकर गुहा नियोगी से मिला। गौरतलब है कि डॉक्टर सेन इस क्षेत्र में १९७८ से कम कर रहे हैं.
सवाल उठता है कि क्या यह सब करते हुये विनायक सेन अपने डॉक्टरी कर्तव्य को भी बखूबी निभा पाये। बगरुमनाला के स्वस्थ्य केंद्र की पिछले बारह वर्षों से देखरेख कर रहीं शांतिबाई ने कहती हैं कि 'डॉक्टर साहब को चौदह साल से जानती हूं। उन्होंने हमलोगों के लिए अपनी जिंदगी लगा दी.हम अकेली नहीं हूं जो डॉक्टर साहब के बारे में ऐसा मानती हूं। यहां से तीन दिन पैदल चलकर जिन गांव-घरों में आप पहुंच सकते हैं उनसे पूछिये डॉक्टर साहब कैसा आदमी है,बगरूमनाला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कैसा इलाज होता है.'
विनायक सेन की पहली गिरफ़्तारी के बाद हुई मुलाकात में शांतिबाई ने रोते हुए कहा था 'डॉक्टर साहब की गिरफ्तारी के बाद न जाने कितने सौ मरीज लौटकर चले गये। मेरा दिल कहता है अगर हम लोग डॉक्टर को नहीं बचा सके तो अपने बच्चों को भी नहीं बचा पायेंगे।'