बारिश की मार ने राज्य के हर गांव में हाहाकार मचा रखा है। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं,किसान खेतों से महरूम हैं,बुजुर्ग घरों में जान बचाकर दुबके हैं जो कभी भी ध्वस्त हो सकते हैं। मुनाफाखोरी की चिंता से लकदक विकास ने पहाड़ के जनजीवन को किस कदर तबाह किया है,उन पहलुओं को उजागर करती उत्तराखंड से एक रिपोर्ट
सुनीता भट्ट
‘हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, अब हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।’ लोगों के दर्द को आवाज देने वाली ये पंक्तियां हिमालयवासियों के लिए अब अधिक पीर देने वाली साबित हो रही हैं। बंगाल की खाड़ी से इस साल उठे प्रचंड मानसून से लोग इतने दुखी हैं कि वे विकराल हो चुकी नदियों से थमने की प्रार्थना कर रहे हैं।
गंगा, यमुना, मंदाकिनी, पिंडर, सरयू, धौली, काली, कोसी, रामगंगा समेत तमाम नदियों ने प्रलयंकारी रूप धारण किया हुआ है। विद्युत परियोजनाएं ठप पड़ी हैं,जो बन रही थीं,वे मलबे के ढेर में तब्दील हो चुकी हैं। टिहरी झील का जलस्तर पहाड़ ही नहीं,मैदानों तक को आतंकित किए हुए है। गर्मी में ऊंचे पहाड़ों पर प्रवास के लिए लोग नीचे के गांवों में नहीं आ पा रहे हैं,जबकि सर्दी शुरू होने से वहां बर्फवारी होने वाली है और ऐसे परिवारों में बूढ़े, महिलाएं और जानवर भी हैं।
जगह-जगह टूटी जीवन की डोर फोटो- जनपक्ष |
कई दिनों से पहाड़ में अखबार नहीं पहुंच सके हैं और रेडियो- टीवी बंद पड़े हैं। सैकड़ों गाड़ियां रास्तों में अटकी हैं। परिवहन व्यवस्था लड़खड़ाने की वजह से लोग अपने परिजनों का हाल जानने नहीं पहुंच पा रहे हैं। राज्य की प्रतियोगी परीक्षाएं टालनी पड़ी हैं,जबकि बाहरी राज्यों में हुई परीक्षाओं से उत्तराखण्ड के कई अभ्यर्थी वंचित रह गये हैं। अधिकतर क्षेत्रों में लंबे समय से रसोई गैस की आपूर्ति नहीं हो सकी है,जबकि ईंधन की लकड़ी सूखने का नाम नहीं ले रही। छुट्टी का वारंट लेकर निकले सैकड़ों सैनिक स्टेषनों पर दिन काट रहे हैं।
उन्नीस सितंबर को हुई अतिवृश्टि से इस पहाड़ी राज्य के 60 लोगों की जान चली गई। बारिश से लगभग 175 लोग काल-कवलित हो चुके हैं,सैकड़ों लोग लापता हैं और 1200लोग गंभीर रूप से घायल हैं। एक अनुमान के मुताबिक राज्यभर में सात हजार से अधिक पशु मारे जा चुके हैं,जबकि राष्ट्रीय पार्कों में मारे गए वन्यजीवों की गणना नहीं की जा सकी है। आठ हजार परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाकर शिविरों और स्कूलों में ठहराया गया है। राज्य में 30 हजार हैक्टेअर कृषि भूमि नष्ट हुई है।
बारिश की मार ने पर्वतीय राज्य के हर गांव-तोक में हाहाकार मचा रखा है। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं,किसान खेतों से महरूम हैं,बच्चे-बुजुर्ग ऐसे घरों में जान बचाकर दुबके हैं जो कभी भी ध्वस्त हो सकते हैं। बीमारों को अस्पतालों तक नहीं ले जाया जा सकता। जिन गांवों में लोग हताहत हैं, उन्हें बाहर निकालना सेना के लिए मुश्किल है। कई गांवों में तो दर्जनों मृतकों की चिताएं साथ जलीं।
सड़कें ध्वस्त होने से गांवों के साथ कस्बों,नगरों तक में दाल-रोटी का संकट है। बड़े इलाके में दूध और राशन नहीं पहुंच रहा है। बिजली गायब है, जबकि दुकानों से डीजल, पैट्रोल, केरोसिन, सब्जियों, दालों का कोटा खत्म हो चुका है। अस्पतालों में दवाएं नहीं हैं। सैकड़ों मोबाइल टावर ध्वस्त हो गए हैं,जहां मोबाइल काम कर भी रहे हैं,वहां बैटरी जवाब दे चुकी है। ऊंचे पहाड़ों में पर्वतारोहण पर गए यात्रियों की कोई खबर नहीं है,जबकि हजारों तीर्थयात्री रास्तों में फंसे हुए हैं।
अतिक्रमण का परिणाम: सबकुछ तहस-नहस फोटो- जनपक्ष |
गेहूं-चावल लेकर सेना के जो हैलीकॉप्टर राहत कार्य में लगे हैं,बादलों की घनी चादर लगने से घूमकर वापस लौट रहे हैं। पूरे पहाड़ में पेयजल लाइनें ध्वस्त होने से पीने के पानी का संकट है। डाक सेवायें बाधित होने से मनीऑर्डर व्यवस्था ठप है। जिला मुख्यालयों समेत राजधानी के आसपास के गांवों का भी संपर्क आपस में कटा हुआ है। सेब की खेती को बाजार तक ले जाने वाले मार्ग टूटने से वह रास्ते में खडे ट्रकों में सड़ रही है। खड़ी फसलें और खेत पूरी तरह से चौपट हो चुके हैं। सिंचाई नहरें सिरे से गायब हैं। खेतों और पहाड़ों में जहां-तहां दरारें हैं। घोड़ों-खच्चरों पर लदकर पहुंच रहा महंगा सामान लोग खरीद नहीं पा रहे हैं। मुनस्यारी और मोरी जैसे पिछड़े क्षेत्रों में प्याज 150 तथा टमाटर 80 रुपए किलो बिक रहा है। अल्मोड़ा जैसी जगह में तो एक अंडे की कीमत 12रुपए तक वसूली जा रही है। आपदा से निबटने को केन्द्र से भेजी गई एनडीआरएफ की टीम हरिद्वार और ऋषिकेश से ऊपर जाने का साहस नहीं जुटा पा रही है।
अधिकतर जिलों में बारिश का पुराना रिकॉर्ड टूट गया है। राज्य में इस समय 1300से अधिक सड़कें पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हैं। इनमें राष्ट्रीय राजमार्गों समेत लोनिवि की सड़कें शामिल हैं। कोई सड़क ऐसी नहीं बची है जो कम से कम चार-पांच जगह से न टूटी हो। सड़कों की मरम्मत को गए 125बुलडोजर मलबे के बीच फंसे हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमाओं और हिमाचल को जोड़ने वाली सड़कों समेत चारधाम यात्रा मार्ग ठप पड़े हैं। सीमावर्ती जिलों में बने सैन्य
शिविर तक बारिश से नहीं बच पाए।
आपदा की मार
- आपदा से बागेश्वर के सुमगढ़ गांव में बादल फटने से 18 स्कूली बच्चों की मृत्यु
- प्रदेश भर में जनजीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त, अब तक 175 मौतें, 1200 घायल, सैकड़ों लापता
- अल्मोड़ा के बाल्टा और देवली गांव में एक ही दिन में 43 लोगों की बादल फटने से मौत
- पर्वतारोहण पर गए एक कर्नल और मेजर की एवलांस में मौत, एक गायब
- पर्वतारोहण पर गए अलग-अलग अभियानों में फ्रेंच, ऑस्ट्रियन, कजाक, ब्रिटिश दल मार्गों में फंसे
- चिन्यालीसौंड़ के 15 गांव टिहरी झील में समाए, सैकड़ों लोग बेघर हो गये
- चारधाम यात्रा को निकली 340 बसें जगह-जगह यात्रा रूट में अटकीं, हजारों यात्री फंसे
- श्रीनगर में आईटीबीपी के जवान शिविर ध्वस्त होने से फंसे, उन्हें मुश्किल से निकाला जा सका
- गौला में जीप गिरने से सात लोगों की मौत, अलकनंदा में एक टूरिस्ट बस और पुलिस जीप गिरी
- 11 पर्वतीय जिलों समेत 2 मैदानी जिलों हरिद्वार और उधमसिंहनर में भारी नुकसान
मानसरोवर में फंसे यात्री |
बारिश के नुकसान का वास्तविक आकलन होना अभी शेष है। लोगों को राहत देने के लिए मिले धन को मानवीय संवेदना और ईमानदारीपूर्वक खर्च करने की जरूरत है। साथ ही प्रदेश के विकास के लिए दूरगामी नीति बनाना आवश्यक है। तबाही बनकर आयी बारिश विवेकहीन रूप से बना दी गयीं तमाम सड़कों पर प्रश्नचिह्न तो लगाती ही है,वहीं बड़ी जलविद्युत परियोजनाओंके खतरे से भी आगाह करा रही है। एक तरफ नदियां अपने तट वापस मांग रही हैं, तो चोटियों में बसे सैकड़ों गांवों को सुरक्षित स्थानों पर बसाने की जिम्मेदारी सरकार के सामने है। जाहिर है ऐसे में आम नागरिकों का दायित्व भी सरकार और मशीनरी से कुछ कम नहीं है।
(लेखिका सामाजिक सरोकारों से जुड़ी पत्रकार हैं, उनसे sunitabhatt10@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)