Apr 6, 2017

अमेरिका में पहली बार हुआ दोनों हाथ का ट्रांसप्लांट

ट्रांसप्लांट हाथ से पी सकते हैं चाय, बजा सकते हैं तालियां और लिख सकते हैं पत्र 

अमेरिका में ऐसा पहली बार हुआ है। इससे पहले एक हाथ ट्रांसप्लांट होने का रिकॉर्ड तो था अमेरिका के पास, लेकिन दोनों हाथ ट्रांसप्लांट होना अमेरिकी चिकित्सा के विकास में एक महत्वपूर्ण बात मानी जा रही है। भारतीय डॉक्टरों के लिए यह एक उत्साहजनक खबर है। 

टेलीग्राफ यूके में छपी खबर के मुताबिक पिछली जुलाई से ​57 वर्षीय क्रिश किंग के हाथ आॅपरेशन चल रहा था। पहले एक हाथ का सफलतापूर्वक आॅपरेशन हुआ, फिर दूसरा हाथ भी ट्रांसप्लाट हुआ। आॅपरेशन लीड्स जनरल ईनफरमरी नाम के अस्पताल में संपन्न हुआ। 

अपने सर्जन प्रोफेसर सिमन का शुक्रिया करते हुए क्रिश किंग कहते हैं, 'मैं अपने सर्जन का बहुत शुक्रगुजार हूं। मैं हर हफ्ते अपने हाथ की मजबूती बढ़ते हुए पा रहे हूं। मैं किताबें पढ़ पा रहा हूं और बहुत आसानी से कप भी थाम लेता हूं। मेरी कोशिश है कि अगले कुछ हफ्तों में अपनी शर्ट की बटन खुद बंद कर सकूं।'

क्रिश किंग का चार साल पहले अंगूठा छोड़कर दोनों हाथ तब कट गये था जब वे प्रेशर कटिंग मशीन पर ड्यूटी पर थे। एंबुलेंस में ले जाते हुए उनके साथियों को लगा था उनकी मौत हो जाएगी। पर उन्हें बचा लिया गया था। 

क्रिश किंग के दोनों हाथों का ट्रांसप्लांट उसी प्लास्टिक सर्जन प्रोफेसर सिमन ने किया जिन्होंने पहली बार एक वाले मरीज का हाथ ट्रांसप्लांट किया था। 

केजरीवाल सरकार की कार्यशैली पर भ्रष्टाचार के 10 गंभीर आरोप

शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट पर पढ़िए टी शर्मा की विस्तृत पड़ताल 

उपराज्यपाल नजीब जंग द्वारा गठित 3 सदस्यीय शुंगलू जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में केजरीवाल सरकार पर नियमों और प्रक्रियाओं को ताक पर रख कर नियुक्तियां और स्थानांतरण करने, दिल्ली सरकार के सीमित अधिकारों के बावजूद अपने निर्णयों में जान-बूझकर संवैधानिक व कानूनी प्रक्रिया का पालन न करने, कानूनी तौर पर अयोग्य व्यक्तियों को आवास व अन्य सुविधाएं देने व कुछ ख़ास सरकारी और सेवानिवृत्त अधिकारियों की गैरकानूनी तरीके से मदद करने का आरोप है। 

101 पन्नों की रिपोर्ट ज्यादातर ऐसे मामलों से भरी हुई है, जहां ये जानते हुए भी कि उपराज्यपाल की अनुमति जरूरी है, लेकिन उपराज्यपाल को सम्बंधित फाइल ही नहीं भेजी गयी।


शुंगलू कमेटी  द्वारा पकड़ी केजरीवाल सरकार की मुख्य गड़बड़ियां 

1. सौम्या जैन को दिल्ली स्टेट हेल्थ मिशन निदेशक की सलाहकार नियुक्त करना। शुंगलू कमेटी ने इस नियुक्ति को पूरी तरह से गैरकानूनी बताया है। मजेदार बात यह है कि आधिकारिक रूप से उनकी न तो किसी ने नियुक्ति की, न ही उन्हें इसके लिए कोई नियुक्ति पत्र मिला। उनकी नियुक्ति के लिए बस सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण को ये लिख दिया गया कि चेयरमैन एस. एच. एस. इन्हें सलाहकार नियुक्त कर सकता है। यहां तक कि कोई नियुक्ति आदेश तक जारी नहीं किया गया। तीन महीने के कार्यकाल में उनके ऊपर 1.15 लाख का खर्च आया। पेशे से आर्किटेक्ट सौम्या जैन स्वास्थ्य सेवाओं के अध्ययन के लिए सरकारी खर्च पर चीन के दौरे पर गयीं। शुंगलू कमेटी ने आगे लिखा है कि इस सबकी एक ही वजह थी कि सौम्या दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री की बेटी थीं।
(पेज 13 पर)

2.  विधायक अखिलेश पति त्रिपाठी को 2000 वर्ग फुट का पूरी तरह सुसज्जित आवासीय घर कार्यालय के नाम पर देना। कार्यालय के नाम पर ऐसे 10 आवास 10 विधायकों को देने की बात सामने आई है। इस मामले की और विस्तृत जांच की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री ने हर विधायक को ऐसे कार्यालय देने की बात कही है। 
(पेज 15 -16) 

3. स्वाति मालीवाल जो दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष हैं,  को नियमों के विरुद्ध जाकर सरकारी आवास देना। यहां गौर देने वाली बात यह है कि वे आप के एक बड़े नेता नवीन जयहिंद की पत्नी हैं। 
(पेज 17) 

4. केजरीवाल का गोपाल मोहन को 1 रु. वेतन पर अपना सलाहकार नियुक्त करना, पर 4 महीने बाद ही उन्हें वहां से हटाकर एक अन्य खाली हुए पद पर जिसका वेतन 115000 मासिक है, पर स्थानांतरित कर देना। जांच आयोग इस सारी कार्यवाही को  सीधा व्यक्ति विशेष को गलत आचरण से फायदा पहुंचाने का मामला बताया है। (पेज 21 -22) 

5. बड़ी संख्या में ऐसे मामले हैं जहां नियुक्तियों में गलत तरीके से ख़ास लोगों की मदद की गयी।
(पेज 17 ,18 ,19 ,20) 

6. एलजी की बिना अनुमति और प्रक्रिया के सरकारी खर्च पर मंत्रियों और विधायकों के गैरजरुरी विदेशी दौरों पर धन की बर्बादी।
(पेज 30) 

7.  सरकारी कंपनियों BTL, DPCL, IGPCL, के निदेशक मंडल में नियमों के विरुद्ध निदेशकों की नियुक्ति।

8.  संवैधानिक संस्थाओ में भर्ती के नियमों के विरुद्ध अयोग्य व्यक्तियों की भर्ती। 
(पेज 40, 41, 42, 43, 46, 47, 48, 49, 50)

9. इसके अलावा जांच आयोग ने सरकारी पैनल पर रखे नए वकीलों और उनको दी जा रही फीस पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाए हैं। आयोग को ऐसी 46 फाइलों का पता चला है जहां वकीलों को स्पेशल काउंसलर नियुक्त किया गया है। ऐसे लगता है इतनी बड़ी संख्या में बिना किसी काम के वकीलों की नियुक्ति गलत आचरण से की गयी है। ऐसी ज्यादातर नियुक्तियों के समय कानून और वित्त विभाग से भी कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया। 
10. बहुत सारे ऐसे मामले हैं जहां एक ही केस 2 वकीलों को दिया गया। जांच आयोग ने वकीलों की इस गैरजरूरी नियुक्ति पर हाईकोर्ट के एक जज पीएस तेजी की एक तीखी टिप्पणी का भी हवाला दिया है, जहां लिपिका मित्रा vs स्टेट CRL .MC 48 92 /2015 के मामले में सुनवाई के दौरान कहा, 'आज फिर अदालत में तमाशा हुआ है, जहां 2 वकील अपने आप को सरकार का वकील कह रहे हैं। न तो यह न्याय व्यवस्था और अदालत की कार्यवाही के हित में है और न ही सरकार के लिए यह परिदृश्य सही हो सकता है। 
(पेज 68 ,69) 

प्रतिबंधित संगठनों से जुड़े बच्चों का एडमिशन नहीं होगा दिल्ली में

केजरीवाल सरकार ने जारी किया पहली बार ऐसा कोई फरमान, मानवाधिकार संगठनों ने उठाए सवाल, कहा यह नियम जीने के अधिकार के खिलाफ है 

जनज्वार। किसी प्रतिबंधित संगठन से जुड़े बच्चों को दिल्ली सरकार के स्कूलों में एडमिशन नहीं दिया जाएगा। यह आदेश दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय (डीओई) द्वारा सभी स्कूलों के प्रिंसिपल को भेज दिया गया है। केजरीवाल सरकार ने प्रवेश न देने का ऐसा कोई 'कोड आॅफ कंडक्ट' पहली बार लागू किया है।



गौरतलब है कि हाल ही में डीओई ने एक परिपत्र जारी किया है जिसमें दिल्ली सरकार के स्कूलों में किन कारणों से और कैसे बच्चों को एडमिशन नहीं दिया जाएगा, ऐसे 21 कारण क्रमवार गिनाए गए हैं।  

इसी में 21 वें नंबर पर प्रतिबंधित संगठन से किसी भी तरह से ताल्लुक रखने वाले बच्चों को एडमिशन न दिया जाना भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और शिक्षा अधिकार कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल ने इसे मूल अधिकारों से वंचित किया जाने वाला आदेश बताया है और मांग की है कि इसे तत्काल प्रभाव से खत्म किया जाए। 

इस बारे में कुछ भी पूछने पर दिल्ली सरकार के अधिकारी बचाव की मुद्रा अपना लेते हैं, साथ ही यह कहना नहीं भूलते कि यह निर्देश सिर्फ उन बच्चों पर लागू होते हैं जो ऐसे इलाकों से ताल्लुक रखते हैं, जहां प्रतिबंधित संगठन संचालित होते हैं। इस आदेश का असर दिल्ली में 6 से 12 तक पढ़ने वाले बच्चों पर सर्वाधिक पड़ेगा। 

यानी सिर्फ शक की बिनाह पर आरोपी किसी बच्चे को सिर्फ इसलिए प्रवेश नहीं दिया जायेगा कि वह प्रतिबंधित संगठन से जुड़ा हो सकता है, उसके प्रति वैचारिक रूप से जुड़ा है या समर्थक है। 

देश में कुल 37 प्रतिबंधित संगठन हैं। डीओई के इस दायरे में भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित संगठनों लश्कर—ए—तैयबा, जैश—ए—मोहम्मद, बब्बर खालसा इंटरनेशन, कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ इंडिया (माओवादी) और उत्तर पूर्व के कई प्रतिबंधित संगठन भी आते हैं।

मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की महासचिव कविता श्रीवास्तव ने इसे जीने के अधिकार पर हमला बताया और कहा कि इसे भूल मानते हुए तत्काल वापस लिया जाना चाहिए। साथ ही उन्होने यह भी कहा कि यह शिक्षा निदेशालय का यह सर्कुलर सर्वोच्च न्यायालय के उन आदेशों की भी अवहेलना है जिसमें अदालत ने कहा ​है कि प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने या समर्थक होने भर से कोई अपराधी नहीं हो जाता। 

​कविता श्रीवास्तव आगे कहती हैं, हर तरह के अतिवादियों के बच्चों को ज्यादा तरजीह के साथ मुख्यधारा में लाने की कोशिश करनी चाहिए, जबकि केजरीवाल सरकार इसके उलट कदम उठा रही है। बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने का सर्कुलर जाहिर करता है कि केजरीवाल सरकार खुद अतिवाद की ओर बढ़ रही है।

सर्कुलर में और क्या—क्या लिखा है विस्तार से देखें नीचे—