Apr 12, 2017

दलित लड़कियों का किया घर में घुसकर बलात्कार, 30 घंटे बाद दर्ज हुआ मुकदमा

ख़ामोशी तोड़ो दलितो, यह चुप्पी भयानक है...

आखिर राजस्थान में दो दलित छात्राओं से बलात्कार व आत्महत्या की नृशंस घटना पर इस देश में कोई मोमबत्ती क्यों नहीं जली.... 

भंवर मेघवंशी


राजस्थान के सीकर जिले के नीम का थाना क्षेत्र के भगेगा गाँव के एक दलित बलाई परिवार की बीए प्रथम वर्ष में पढ़ने वाली दो सगी बहनों के साथ तीन सवर्ण युवाओं बजरंग सिंह, पिंकू सिंह और एक अन्य ने घर में घुसकर  बलात्कार किया। बजरंग सिंह और पिंकू सिंह जहां जाति के राजपूत हैं, वहीं तीसरा बलात्कारी ब्राह्मण जाति से ताल्लुक रखता है।

पुलिस कर रही मेडिकल रिपोर्ट का इंतजार

पीड़िताओं के छोटे भाई के आ जाने के बाद बलात्कारी घटनास्थल से भाग गए। 17 व 18 साल की इन दोनों दलित छात्राओं ने घटना के एक घंटे के बाद पास के रेलवे लाइन पर रेवाड़ी से फुलैया जाने वाली ट्रेन के सामने दिन में 11:30 बजे कूदकर जान दे दी। इस मामले में पुलिस अब तक किसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकी है। नीमथाना के डीवाईएसपी कुशाल सिंह का कहना है कि पुलिस आरोपियों को तब तक गिरफ्तार नहीं करेगी, जब तक पीड़िताओं की मेडिकल रिपोर्ट जयपुर से आ नहीं जाती।

ये दर्दनाक और शर्मनाक घटना 5 अप्रैल, 2017 को दिन में 11 बजे घटी। घर में उस वक्त इन दो बहनों के अलावा कोई नहीं था। बड़ी बहन एमए की परीक्षा देने शहर गई थी, जबकि मां खेती के काम से बाहर गई थी और पिता लालचंद वर्मा भट्टे पर मजदूरी करने। छोटा भाई भी घर पर नहीं था।

सामाजिक कार्यकर्ता और एनएपीएम से जुड़े कैलाश मीणा के मुताबिक बड़ी जोर—जबर्दस्ती और प्रयासों के बाद पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ वारदात के लगभग 30 घंटे बाद 6 अप्रैल की शाम 5 बजे मुकदमा दर्ज किया।

मामला बलात्कार, दलित अत्याचार,नाबालिग के लैंगिक शोषण का होने के बावजूद भी जान-बूझकर सिर्फ आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण की धारा 306 में दर्ज किया गया। इस मामले में डीवाईएसपी कुशाल सिंह खुद जाति से राजपूत हैं और परिजनों का मानना है कि उनके रहते जांच सही दिशा में आगे नहीं बढ़ सकती। इतना ही नहीं इलाके के सरपंच और विधायक भी आरोपियों की जाति के हैं।

इस मामले में महिला दलित तथा मानव अधिकार संगठनों का संयुक्त दल भगेगा पहुंचा तथा पीड़ित परिवार, जाँच अधिकारी तथा ग्रामीणों से मुलाकात कर मामले की जानकारी ली। यह दल 15 अप्रैल तक अपनी रिपोर्ट जारी करेगा।

पंजाब विश्वविद्यालय के छात्रों पर से देशद्रोह का मुकदमा वापस, 58 छात्रों को भेजा 14 दिन की न्यायिक हिरासत में


पुलिस ने पहले दर्ज किया था 124ए के तहत देशद्रोह का मुकदमा पर दबाव बढ़ने पर सभी छात्रों पर से लिया वापस। लेकिन अब भी दंगा करने और सरकारी संपत्ति नुकसान करने के आरोप में 3 छात्राओं समेत 67 छात्रों पर है मुकदमा दर्ज। 67 में से 58 को कर चुकी है पुलिस गिरफ्तार। छात्राओं की जमानत पर अदालत करेगी 15 अप्रैल को सुनवाई

जनज्वार। चण्डीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय में कल हुई फीस वृद्धि के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर पुलिसिया हिंसा के बाद सैकड़ों छात्रों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। गिरफ्तारी के बाद 66 छात्रों पर पुलिस ने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, दंगा करने के साथ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया। पर छात्रों पर से देशद्रोह का मुकदमा 11 बजे रात  में वापस ले लिया गया।

आंदोलनकारी 3 छात्राओं की जमानत लेने पहुंचे वकील अंकित ने जनज्वार को बताया कि फीस वापसी की वाजिब मांग कर रहे छात्रों पर इतने संगीन मुक़दमें दर्ज करना बताता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार छात्रों को अपराधी बनाने पर तुली है। 

कितनी बढ़ी है फीस
फार्मा कोर्स की फीस 5080 रुपये से बढ़ाकर 50 हजार कर दी गई है । जर्नलिज्म कोर्स की फीस 5290 रुपये से बढ़ाकर 30 हजार रुपये कर दी गई है। डेंटल कोर्स  की फीस Rs 86,400 to Rs 1.5 लाख कर दी गई है ।

हिंसक कैसे हुआ आंदोलन 

चं​डीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय ने इस सत्र के ज्यादातर पाठ्यक्रमों की फी 11 गुना बढ़ा दी थी। इस फीसवृद्धि के खिलाफ तमाम संगठनों के छात्र पिछले 10 दिनों से एकजुट विरोध कर रहे थे। पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनकी मांग पर कोई सुनवाई नहीं।

ऐसे में छात्र संगठनों ने 11 मार्च को विश्वविद्यालय बंद का आह्वान किया था। छात्र विश्वविद्यालय में पहुंचते उससे पहले ही वहां पुलिस पहुंची हुई थी। सैकड़ों की संख्या में छात्र वीसी से मिलने पर अड़े हुए थे लेकिल पुलिस ने उनकी एक न सुनी।

छात्र जब रोष में आने लगे तो पुलिस ने पानी का बौछार किया। बौछार से एमफील प्रथम वर्ष की छात्रा जगजीत कौर घायल हो गयी और उसकी आंख पर गंभीर चोट आई। ऐसे में मामले को पुलिस संभालती उसने आंसू गैस के गोले छोड़ दिए। गोले में एक छात्र के चेहरे पर बुरी तरह झुलसा दिया।

उसके बाद फिर फिर क्या हुआ उसे पूरे देश ने ​देखा कि कैसे वाजिब मांग कर रहे छात्रों को पुलिस ने दौड़ा—दौड़ के मारा और गिरफ्तार किया। 

66 आंदोलनकारी छात्रों पर दर्ज किया देशद्रोह का मुकदमा, नहीं ली अबतक फीस वापस


तस्वीर में खून से लथपथ दिख रहा छात्र पंजाब यूनिव​र्सिटी का छात्र है जो फीस बढ़ोतरी के खिलाफ कल विश्वविद्यालय में कुलपति से मिलने का प्रयास कर रहे छात्रों में शामिल था। छात्र विश्वविद्यालय की बढ़ाई गयी 11 गुना फीस का विरोध कर रहे थे। 

पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ में कल 11 अप्रैल को छात्र 11 गुनी बढ़ाई गयी फीस के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। विरोध कर रहे छात्र अपनी बात का संज्ञान दिलाने के लिए कुलपित अरुण कुमार ग्रोवर से मिलने का प्रयास कर रहे थे। 

लेकिन कुलपति ने छात्रों से मिलने से इनकार कर दिया। फिर भी छात्र कुलपति से मिलने और फीस वापसी कराने की मांग पर अड़े रहे तो तनाव बढ़ा। 

कानून—व्यवस्था बहाल करने के नाम पर आई पुलिस ने छात्रों पर बर्बर लाठीचार्ज किया। आँसू गैस के गोले छोड़े। कई छात्र-छात्राएँ बुरी तरह घायल हुए हैं।

पुलिस ने सरकार के इशारे पर आंदोलनकारी छात्र-छात्राओं पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया है। इसके साथ ही दंगा फैलाने, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का भी मुकदमा दर्ज हुआ है। हालांकि पुलिस का कहना है कि छात्र एहतियात के तौर पर हिरासत में ले लिए गए हैं। 

आंदोलन में स्टूडेंट फार सोसायटी (एसएफएस), नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई), पंजाब यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन (पुसु) के सदस्योंं समेत दूसरे संगठनों के भी छात्र शामिल हैं। 

दिल्ली में सेना अधिकारियों के यहां काम करते हैं 143 बंधुआ मजदूर

न छुट्टी मिलती है न सैलरी, गर्भपात होने पर भी नहीं देते आराम का मौका, काम नहीं करने पर सेना अधिकारी और परिजन करते हैं पिटाई 

संबंधित अधिकारियों समेत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजी गयी शिकायत, पर नहीं हो रही है सुनवाई, संगठन ने की अब हाईकार्ट जाने की तैयारी.....

सेनाधिकारियों के यहां काम करे बंधुआ मजदूर, 143 ने जमा किया एफिडेविट
जनज्वार। आर्मी फोर्स ऑफिसर्स के घरों में बेगारी करते-करते मजदूर परिवारों की तीन पीढ़ियां गुजर गईं। एडवांस के रूप में मिलता है मजदूरों को केवल एक कमरा। मजदूर काम नहीं कर पाते तो उनके बच्चों से लिया जाता था जबरन काम। पहले अंग्रेजों के घरों में की गुलामी फिर हिंदुस्तानी ऑफिसरों के बने गुलाम।    

नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ़ बोंडेड लेबर ने दिल्ली के इंडिया गेट के समीप बसे प्रिंसेस पार्क में लगभग 3 एकड़ की जमीन पर बने 205 टूटे—फूटे घरों जिन्हें सर्वेंट रूम कहा जाता है, के मजदूरों  से बात की तब पता चला की दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों से आर्मी अफसरों के घरों में कई दशकों से गुलामी (बंधुआ मजदूरी) करवाई जा रही है। गुलाम मजदूरों की संख्या 143 है। 

काम करने वाले मजदूर बताते हैं कि आर्मी अफसरों के ऑफिस और घरों में इन मजदूरों से गुलामों की तरह काम कराया जाता है। मजदूर यहां घरेलू कामगार, सफाई मजदूर, माली और धोबी के रूप में काम करते हैं। 

हर परिवार का एक मेंबर अफसरों की गुलामी करता जिसे बेगारी कहते हैं, जबकि संविधान के आर्टिकल 23 में बेगारी एक गैरक़ानूनी अपराध है। काम के बदले मजदूरो को कोई भी दाम (वेतन, मजदूरी, तनख्वाह) नहीं मिलता है। मजदूरों के पास दिल्ली में रहने को घर न होने व गरीबी की वजह से मजदूर, मालिक और मेस कमेटी के चंगुल में फंसे हैं। इन मजदूरों की गुलामी का इतिहास आजादी के 2 साल पहले शुरू ही शुरू हो गया था। 

आजादी से पहले 1945 में कुछ दलित लोगों से प्रिंसेस पार्क में ही चौकीदारी का काम करवाया जाता था। गुलामी के शिकार हुए इन मजदूरों ने बताया की किसी समय में प्रिंसेस पार्क अंग्रेजों के घोड़े का अस्तबल हुआ करता था. धीरे-धीरे मजदूर काम की तलाश में आते गए और प्रिंसेस पार्क की मेस कमेटी के जाल में फंसते गए और बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम, 1976  के पारित होने पर भी उन्हें आजादी नहीं मिली। 

लाजू (बदला हुआ नाम) नामक एक महिला ने बताया की उसका जन्म ही गुलामी की चार दीवारों में हुआ। पहले उसने अपने नाना को फिर माता-पिता और अपने पड़ोस के कई लोगों को गुलामी करते हुए देखा है। अपनी बंधुआ बनने की कहानी कहते हुए लाजू कहती है, 'माँ की एवज में आये दिन मालिकों के घर बंधुआ मजदूरी करते करते—करते बचपन में ही घरेलु कामगार बन गई। 

लाजू गुलामी में ही ब्याही गई। पहली गुलामी मालिक और दूसरी गुलामी पति की करनी पड़ी। बंधुआ मजदूरी की शिकार लाजू तब फूट-फूट के रोने लगती है वह बताती है, 'गर्भपात के समय में भी मालिक और उनकी पत्नी ने मुझ पर रहम नहीं किया। पहले घर का पूरा काम कराया फिर उसे बड़ी मुश्किल से दवा लेने जाने दिया। कई बार मालिकों से परेशान होकर आत्महत्या का भी प्रयास किया।'

तीन पीढ़ियों से रह रहे हैं इस हालत में, इस एक छत के भरोसे
रेखा देवी (बदला हुआ नाम) के अनुसार वो एक एक सफाई कामगार है। रेखा की सास ने जिंदगीभर गुलामी करके अपनी बहू को विरासत में ये गुलामी की नौकरी दे दी। जब बेगारी का ठीकरा रेखा के सर फोड़ा गया तो उसने एक बार काम का मेहनताना मांगने की हिम्मत की, किन्तु उसको मेस कमेटी की ओर से मिली धमकी ने फिर से उसे उस उदास मौसम की तरफ धकेल दिया जहाँ दास बनकर ही जीना था। 

रेखा के मुताबिक, मालिकों द्वारा बताए काम को पूरा न करने और रेस्ट कर सो जाने की स्थिति में मालिकों द्वारा उसे इतना पीटा गया कि उसका हाथ ही  टूट गया। मेस कमेटी ने रेखा की कोई सहायता नहीं की, उल्टा रेखा को ही पुलिस कार्रवाही से यह कहके रोक लिया की तुम्हारे घर पर ताला लगाने जा रहे है। 

रेखा कहती हैं, एक छत की मज़बूरी गुलामी में जीने को मजबूर करती रही। आज भी रेखा एक गुलाम की भांति मेस कमेटी के आदेश पर सफाई के काम को कर रही है।

कपड़े धुलाई का काम करने वाली अनुमति देवी बताती हैं, हम मजदूर बाद में हैं, पहले मजबूर है और यही हमारी गुलामी का प्रमुख कारण है। हमारी पीढ़ियां गुजर गईं सेना मालिकों की गुलामी करते-करते। 

अनुमति उम्मीद जताते हुए कहती हैं, 'प्रधानमंत्री ने जब सबको आवास देने की बात की तो एकाएक हमें लगा की हमें जब घर मिल जायेगा तो शायद उस दिन हमारी मुक्ति होगी, लेकिन वो दिन आज तक नहीं आया। पता नहीं कौन सी योजना है जिससे बेघर और गरीबों को घर मिलता है।' 

अनु​मति देवी सेना अधिकारियों के कपड़े धोते और प्रेस करते करते बूढी हो चुकी हैं। अनुमति कहती हैं, 'पहले पति कमा के मेरा पेट भरता था अब बेटा भरता है। मैं आज भी बेगारिन हूँ और इन अमीरों की सेवा करती हूं। यदि पेट भरने के लिए मालिकों के भरोसे रह जाते तो अब तक भूख से मर जाते। हमें हमारे काम का आज तक कोई दाम नहीं मिला। एक टूटी छत देकर हमसे हमारी मज़बूरी का फायदा उठाकर काम लिया गया। अगर हमारे काम का हमें भी दाम मिलता तो आज हमारा भी महल जैसा घर बन गया होत।'

गौरतलब है कि हाल ही में रक्षा मंत्रालय की ओर से एक फरमान जारी कर बंधुआ मजदूरों को उनके घर खाली करवाकर उनको भगाया जा रहा है।

मोनिका नामक कामगार ने बताया कि प्रिंसेस पार्क में म्यूजियम बनने जा रहा है। मोनिका पूछती हैं, 'जिन्दा इंसानों को उजाड़कर सरकार शहीदों की याद में म्यूजियम बना रही है। यही है हम मजबूर कामगारों के जिंदगी की कीमत और यही है हमारे लिए सामाजिक न्याय।'

नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ़ बोंडेड लेबर के संयोजक ने बताया कि उन्होंने ईमेल करके उपायुक्त और चाणक्यपुरी उपखंड अधिकारी को शिकायत पत्र भेजा है और बंधुआ मजदूरों के मुक्ति एवं पुनर्वास की मांग की है। किन्तु प्रशासन की कान पर जूँ तक नहीं रेंगी। गोराना ने शिकायत की एक प्र​ति राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी भेजी है।

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