Jun 12, 2017

समोसा बेचे या चाय कोई काम मीडिया की निगाह में छोटा कैसे है

अगर गरीबों की तादाद ज्यादा है, तो उसके प्रतिनिधि क्‍यों तमाम अमीर लोग होते जा रहे हैं। अखि‍र इस करोड़पति तंत्र को लोकतंत्र लिखने की क्‍या मजबूरी है मीडिया की.... 

कुमार मुकुल

देश के तमाम छोटे—बड़े मीडिया समूह एक खबर चला रहे हैं कि 'आईआईटी में समोसे बेचने वाले का बेटा'। यह क्‍या तरीका है खबरें बनाने का। कल को अमित शाह जैसे राजनीतिज्ञ इसे 'बनिये का बेटा बना आईआईटीयन' कह सकते हैं। जब वे गांधी को बनिया कह सकते हैं, तो फिर उनसे और क्‍या उम्‍मीद की जा सकती है। 


आखिर यह मीडिया राजनीतिज्ञों की भ्रष्‍ट भाषा को अपना आधार क्यों बना रहा है। यह प्रवृत्ति इधर बढती जा रही है। किसी भी सफल युवा को उसके आर्थिक हालातों के लिए सार्वजनिक तौर पर शर्मिंदा करना, जैसे जरूरी हो गया है। समोसा बेचे या चाय कोई काम मीडिया की नजर में छोटा क्‍यों है। केवल पैसे वालों के ही बेटे क्‍यों बढ़ें आगे। 

जाति, पेशे, धर्म, गरीबी आदि के आधार पर बांटने की राजनीतिज्ञों की बीमारी को मीडिया आखिर क्‍यों हवा दे रहा। एक ओर गुड़, तेल, चूरन बेचने वाले रामदेव को मीडिया योगीराज बताता है, जबकि रामदेव खुद अपना टर्नओवर (मुनाफा) बताते हुए खुद को मुनाफाखोर घोषित करते हैं। 

अगर वाकई यह लोकतंत्र है तो यह सहज होना चाहिए कि गरीब आदमी जिसकी संख्‍या ज्‍यादा है, उसको हर जगह ज्‍यादा जगह मिलनी चाहिए। खबर तो यह होनी चाहिए कि इस बार भी मुट्ठीभर अमीरजादों ने तमाम पदों पर कब्‍जा कर लिया।

संसद में साढ़े चार सौ के आसपास करोड़पति हैं। यह सवाल बार-बार क्‍यों नहीं उठाया जाता कि भारत में अगर गरीबों की तादाद ज्यादा है, तो उसके प्रतिनिधि क्‍यों तमाम अमीर लोग होते जा रहे हैं। अखि‍र इस करोड़पति तंत्र को लोकतंत्र लिखने की क्‍या मजबूरी है मीडिया की।

सिसौदिया के साले ने विश्वास के पीए को कहा कायर, कुमार के पीए का आरोप आप नेता कराते हैं विश्वास के खिलाफ खबरें प्लांट

सबकुछ ठीक नहीं आप में, कपिल के बाद अब विश्वास को निपटाने की तैयारी में जुटे हैं अरविंद के अपने 

कपिल मिश्रा कुमार विश्वास के घर के बाहर बैठे करते रहे ट्वीट पर मिलना तो दूर, कुमार के घर के दरवाजे भी नहीं खुले कपिल के लिए.  लेकिन आप समर्थक कथित मीडिया ने करा दी मुलाकात 

आप की आंतरिक कहानी कहती, दिल्ली से स्वतंत्र कुमार की रिपोर्ट 

जिन लोगों को ये लग रहा है कि आम आदमी पार्टी में पड़ी फूट खत्म हो चुकी है तो उन्हें ये गलतफहमी हैं। कल आम आदमी पार्टी से निष्काषित मंत्री व विधायक कपिल मिश्रा जब कुमार विश्वास के घर धरना देने पहुँचे तो कुमार घर पर नहीं थे और कुमार के घर के दरवाजे कपिल के लिए नहीं खुले। 


हालांकि कभी कपिल हर दूसरे दिन कुमार के घर जाते थे। कुमार के ना होने पर उनका घर के अंदर बैठ कर इंतज़ार भी करते थे। लेकिन आज न दरवाजा खुला न मुलाकात हुई पर पार्टी के सूत्रों से किसी ने ये ख़बर प्लांट करा दी कुमार की कपिल के साथ मीटिंग हो गई है और अब दोनों मिलकर नया आंदोलन चलाएंगे। 

खास बात ये है कि यह खबर एक उस पोर्टेल पर चली जिसे प्रो आप माना जाता है और दूसरे ऐसे पोर्टल पर चली जिसकी पार्टी के कुछ लोग तारीफ कर रहे थे( इस तारीफ का दावा किसी ओर ने नहीं कुमार के एक खास शिष्य ने ट्वीट करके बताई)।

खबर के ब्रेक होते ही कुमार के साथ रहने वाले उनके प्राइवेट पी ए शैल ने ट्वीट कर तंज़ कसा कि हमें पता है किसने ये खबर प्लांट करवाई है और इसके पीछे कौन हैं। 

इस ट्वीट के आते ही पार्टी के नवनियुक्त खजांची दीपक वाजपेयी का ट्वीट आ गया बताओ कौन है वो। उसका नाम बताओ जिसने ये खबर प्लांट करवाई है। 

खैर शैल का जवाब तो नहीं आया पर सोशल मीडिया पर आप की चल रही इस लड़ाई में डिप्टी चीफ मिनिस्टर मनीष सिसौदिया के साले साहब संजय राघव भी कूद पड़े और बोलने लगे ये शैल तो कायर है, डरपोक है ये किसी का नाम नहीं ले सकता।

इसके अलावा कुमार को लेकर पार्टी में उठी चिंगारी अभी राख नही हुई है क्योंकि कल ही अमानतुल्ला खान के पार्टी द्वारा कई कमेटियों का चेयरमैन बनाने पर लगे पोस्टर औऱ उसमें अरविंद केजरीवाल की तारीफ इस बात का इशारा कर रहे हैं कि कुमार के विरोधियों को पार्टी में कितना मान सम्मान मिल रहा है। कल ही हुई राजस्थान के वालंटियर्स के साथ कुमार की मीटिंग ओर उसमे बैठे मनीष दोनों के चेहरे देख कर कोई भी पढ़ सकता था कि इन दोनों के बीच बचपन वाली दोस्ती कहीं नहीं दिख रही। 

कवि अक्सर लोगों की आंखें और चेहरे पढ़ कर अपनी कविता पढ़ते हैं। पर कुमार ये भूल गए कि उनका चेहरा भी पढा जा सकता है। कुमार के चेहरे पर तनाव और गुस्सा साफ देखा जा सकता था (एक फोटो को छोड़ कर जब वो मंच छोड़ कर वालंटियर्स के बीच बैठे हैं)। 

ऐसे में ये समझ रहे हैं कि कुमार को राजस्थान देकर लड़ाई को समाप्त कर दिया गया है तो वो भूल कर रहे हैं। दरअसल पार्टी का गुजरात का चुनाव लड़ना पक्का नहीं है तो कुमार को राजस्थान भेजकर वहां का चुनाव लड़वाने का मतलब कुमार के सर पर भी एक हार का ठिकरा फोड़ कर उन्हें पार्टी से किनारे लगाना हैं। 

इसकी जड़ पंजाब चुनाव ही है क्योंकि पंजाब की हार के बाद ही कुमार ने वहांचुनाव की कमान संभाल रहे दुर्गेश पाठक ओर संजय सिंह के ख़िलाफ बोलना शुरू किया था। और उन्हें हार की जिम्मेदारी लेने के लिए भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दवाब डाला था।