सड़क दुर्घटना में कमर के नीचे का पूरा हिस्सा खोया, जज्बा नहीं, 18 साल से पढ़ा रहे गरीब बच्चों को, नहीं मिली कोई सरकारी सहायता
गोपाल अपनी कक्षा में गरीब—बेसहारा बच्चों को पढ़ाते हुए |
वह मेरे जीवन का बहुत ही भयानक हादसा था बेहतर है कि मैं उसे भूल जाऊं. उसकी यादें व्यग्रता बढ़ाती हैं, हासिल कुछ नहीं होता. वैसे भी वह दौर उस हाथी की तरह था, जो कुछ अंधों से टकराता है। जिसके हाथ में हाथी की पूछ आती रस्सी समझ लेता. जिसके हाथ में पैर वह खंबा. जो टटोलकर पेट तक पहुंच जाता था वह उसे ढोल समझ बैठता था, ऐसा ही जीवन था. लोग अंधों की तरह टटोल रहे थे.'
यह कहानी है नोवल शिक्षा संस्थान चलाने वाले गोपाल सर जी की, जिनका एक सड़क दुर्घटना में कमर से नीचे का हिस्सा बेकार हो चुका है। 19 नवंबर 1996 को हुई एक सड़क दुर्घटना में गोपाल के कमर के नीचे का हिस्सा पूरी तरह से सुन्न हो गया. उस दिन से वह हमेशा के लिए बिस्तर पर आ गया। उसके बाद मेरे कदम जमीन पर नहीं पडे, मगर यह दुर्घटना उनके जज्बे को सुन्न नहीं कर पायी।
एक दोस्त के सहयोग से उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर स्थित एक कस्बे कछवां के पत्ती के पुरा गांव में आकर रहने लगे और वहीं उन्होंने निर्धन बच्चों को शिक्षित करना अपना उद्देश्य बना लिया। करीब 18 साल पहले एक गरीब बच्चे को पढाने से उन्होंने इस सिलसिले की शुरुआत की और यह यात्रा निरंतर जारी है।
गोपाल इस दुर्घटना के बाद बेहद तनाव में रहे। उनके परिवार की दो पीढ़ियां बिरला परिवार में कार्यरत रहीं और नाते—रिश्तेदार भी उच्च वर्ग से ताल्लुक रखते थे, बावजूद इसके वो एक भयानक तंगहाली के दौर से गुजरे। इस घटना ने उन्हें अपने—पराए का एहसास जरूर कराया। गोपाल कहते हैं, 'तंगहाली से उपजे तिरस्कार और उपेक्षा को उस समय भी बर्दाश्त किया है. और आज भी अपने लोगों द्वारा बोले गए शब्दों से आहत होने के बाद भी मुस्कुराकर जीना पड़ता है. मैंने वैभव के साथ विपन्नता को भी बहुत नजदीक से देखा है, जो जीवन को समझने में बहुत कारगार सिद्ध हो रहा है.'
प्रतिदिन गांव के सैकड़ों बच्चे गोपाल सर की कक्षा में निशुल्क ज्ञान प्राप्त करते हैं. इनमें से कुछ तो इतने गरीब परिवारों से ताल्लुक रखते हैं कि उनके पास कापी—पेंसिल—पेन के लिए तक पैसे नहीं होते। ऐसे में उन्हें अध्ययन सामग्री दिलवाने का काम भी गोपाल सर ही करते हैं।
गोपाल सर से यह पूछने पर कि वह यह व्यवस्था कहां से करते हैं, वह कहते हैं, 'लोगों से जो थोड़ी—बहुत मदद मुझे मिलती है, उन पैसों से मैं इन गरीब बच्चों को पढ़ने की सामग्री दिला देता हूं।'
'क्या सरकार से आज तक आपको किसी तरह की कोई मदद मिली है?' के जवाब में गोपाल सर थोड़ा निराश हो जाते हैं और कहते हैं, सत्ता में चाहे कोई दल आया हो, किसी की भी सरकार रही हो, मुझे कभी किसी तरह की सहायता नहीं मिली। इतना अच्छा कार्य करने के बावजूद ना तो मुझे आज तक पेंशन मिली, ना ही कोई और सरकारी सहायता.'
उनके पास पढ़ने आने वाले बच्चों के लिए पानी पीने तक की व्यवस्था नहींं है। उन्हें पानी पीने के लिए करीब 200 मीटर दूर जाना पड़ता है।। गोपाल चाहते हैं कि सरकार और समाज के सहयोग से इन गरीब बच्चों के लिए एक हैंड पंप लगना चाहिए। इसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से एक अपील भी जारी की है, और ताकि इन बच्चों का भविष्य बनाने और इनके लिए जरूरी सुविधाएं जुटाने में मदद मिल सके। अपील में उन्होंने अकाउंट नंबर 3637 8382 277, IFSC code 0012303, कछवा मिर्ज़ापुर ब्रांच, उत्तर प्रदेश का विवरण दिया है।