छत्तीसगढ़ की विधानसभा को सम्बोधित करते हुए 24 जून को राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने माओवादियों से हिंसा का रास्ता छोड़ने को कहा . राष्ट्रपति की इस अपील पर माओवादी क्या और क्यों सोचते हैं, उस पूरे तर्कशास्त्र को रखती माओवादियों की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति ...
रायपुर प्रवास के दौरान राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने आज, यानी 24 जून 2011 को हमारे सामने यह प्रस्ताव रखा है कि 'माओवादी हिंसा छोड़कर बातचीत के लिए आगे आएं और मुख्यधारा से जुड़ जाएं ताकि आदिवासियों के विकास में शामिल हुआ जा सकें।' राष्ट्रपति का प्रस्ताव ऐसे समय सामने आया है जबकि भारतीय सेना के करीब एक हजार जवान बस्तर क्षेत्र के तीन जिलों में अपना पड़ाव डाल चुके हैं ताकि देश की निर्धनतम जनता पर जारी अन्यायपूर्ण युद्ध - ऑपरेशन गी्रनहंट में शिरकत कर सकें।
राष्ट्रपति ऐसे वक्त ‘वार्ता’ की बात कह रही हैं जबकि खनिज सम्पदा से भरपूर देश के कई इलाकों से प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के बाबत् सरकारों और कार्पोरेट कम्पनियों के बीच वार्ता के कई दौर पूरे हो चुके हैं और लाखों करोड़ रुपए के एमओयू पर दस्तखत किए जा चुके हैं। वे ‘वार्ता’ की बात तब कह रही हैं जबकि बस्तर क्षेत्र में 750 वर्ग किलोमीटर का वन क्षेत्र, जिसके दायरे में दर्जनों गांव और हजारों माड़िया आदिवासी आते हैं, सेना के हवाले करने का फैसला बिना किसी वार्ता के ही लिया जा चुका है।
देश की ये सर्वप्रथम महिला राष्ट्रपति हमें ऐसे समय हिंसा छोड़ने की हिदायत दे रही हैं जबकि इसी छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिणी छोर पर स्थित ताड़िमेट्ला, मोरपल्ली, पुलानपाड़ और तिम्मापुरम गांवों में सरकारी सशस्त्र बलों के हाथों बलात्कार और मारपीट की शिकार महिलाओं के शरीर पर हुए जख्म भरे ही नहीं। वे ऐसे समय हमें हिंसा त्यागने की बात कह रही हैं जबकि न सिर्फ इन गांवों में, बल्कि दण्डकारण्य, बिहार-झारखण्ड, ओड़िशा, महाराष्ट्र, आदि कई प्रदेशों में, खासकर माओवादी संघर्ष वाले इलाकों या आदिवासी इलाकों में सरकारी हिंसा रोजमर्रा की सच्चाई है।
दरअसल सरकारी हिंसा एक ऐसा बहुरूपिया है जो अलग-अलग समय में विभिन्न रूप धारण कर लेता है। जैसे कि अगर आज का ही उदाहरण लिया जाए, तो रातोंरात मिट्टी तेल पर 2 रुपए, डीजल पर 3 रुपए और रसोई गैस पर 50 रुपए का दाम बढ़ाकर गरीब व मध्यम तबकों की जनता की कमर तोड़ देने के रूप में भी होती है, जो पहले से महंगाई की मार से कराह रही थी। लेकिन राष्ट्रपति को इस ‘हिंसा’ से कोई एतराज नहीं!
भारत की यह प्रथम नागरिक हमें उस ‘मुख्यधारा’ में लौटने को कह रही हैं जिसमें कि उस तथाकथित मुख्यधारा के ‘महानायकों’ - घोटालेबाज मंत्रियों, नेताओं, कार्पोरेट दैत्यों और उनके दलालों के खिलाफ दिल्ली से लेकर गांव-कस्बों के गली-कूचों तक जनता थूं-थूं कर रही है। वो ऐसी ‘मुख्यधारा’ में हमें बुला रही हैं जिसमें मजदूरों, किसानों, आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं आदि के लिए अन्याय, अत्याचार और अपमान के अलावा कुछ नहीं बचा है।
प्रतिभा पाटिल हमें उस पृष्ठभूमि में वार्ता के लिए आमंत्रित कर रही हैं, जबकि ऐसी ही एक पेशकश पर हमारी पार्टी की प्रतिक्रिया सरकार के सामने रखने वाले हमारी पार्टी के प्रवक्ता और पोलिटब्यूरो सदस्य कॉमरेड आजाद की हत्या इसी सरकार ने एक फर्जी झड़प में की थी। इत्तेफाक से उनकी शहादत की सालगिरह ठीक एक हफ्ता बाद है, जबकि साल भर पहले करीब-करीब इन्हीं दिनों में चिदम्बरम और उनका हत्यारा खुफिया-पुलिस गिरोह उनकी हत्या की साजिश को अंतिम रूप दे रहे थे। कॉमरेड आजाद ने वार्ता पर हमारी पार्टी के दृष्टिकोण को साफ तौर पर देश-दुनिया के सामने रखा था और उसका जवाब उनकी हत्या करके दिया था आपकी क्रूर राज्यसत्ता ने। और उसके बाद भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को पकड़कर जेलों में कैद करने का सिलसिला लगातार जारी रखा हुआ है।
60-70 साल पार कर चुके वयोवृद्ध माओवादी नेताओ को जेलों में न सिर्फ अमानवीय यातनाएं दी जा रही हैं, बल्कि उन्हें बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं से भी वंचित रखकर प्रताड़ित किया जा रहा है। उन पर 10-10 या 15-15 राज्यों के झूठे केस लगाए जा रहे हैं, ताकि ताउम्र उन्हें जेल की कालकोठरियों में बंद रखा जा सके।
इसलिए देश की जनता से हमारा आग्रहपूर्वक निवेदन है कि - आप महामहिम राष्ट्रपति से यह मांग करें कि ‘शांति वार्ता’ की पेशकश करने से पहले उनकी सरकार जनता पर जारी युद्ध - ऑपरेशन ग्रीन हंट बंद करे; बस्तर में सेना का ‘प्रशिक्षण’ बंद करे; और तमाम माओवाद-प्रभावित इलाकों से सेना व अर्धसैनिक बलों को वापस ले। अगर सरकार इसके लिए तैयार होती है तो दूसरे ही दिन से जनता की ओर से आत्मरक्षा में की जा रही जवाबी हिंसा थम जाएगी।
आप महामहिम राष्ट्रपति से यह मांग करें कि ‘विकास’ की बात करने से पहले उनकी सरकार कार्पोरेट घरानों और सरकारों के बीच हुए तमाम एमओयू रद्द करे। बलपूर्वक जमीन अधिग्रहण की सारी परियोजनाओं को फौरन रोके; उनकी सरकार यह मान ले कि जनता को ही यह तय करने का अधिकार होगा कि उसे किस किस्म का ‘विकास’ चाहिए।
आप महामहिम राष्ट्रपति से यह मांग करें कि ‘मुख्यधारा’ में जुड़ने की बात करने से पहले सरकार सभी घोटालेबाजों और भ्रष्टाचारियों को गिरफतार कर सजा दे। विदेशी बैंकों में मौजूद सारा काला धन वापस लाए। घोटालों और अवैध कमाई में लिप्त तमाम मंत्रियों और नेताओं को पदों से हटाकर सरेआम सजा दे।
सीपीआइ (माओवादी) के केन्द्रीय कमेटी की यह विज्ञप्ति अभय के नाम से जारी हुई है, इसे यहाँ दखल की
दुनिया ब्लॉग से साभार प्रकाशित किया जा रहा है .