Jun 15, 2017

जिम कार्बेट के होटल मजदूर आंदोलन की राह पर

उत्तराखंड। रामनगर जिले के ढिकुली के मनुमहारानी होटल में काम करने वाले श्रमिकों ने होटल प्रबंधक पर अपना दो माह का बकाया वेतन न दिये जाने का आरोप लगाते हुये प्रशासन से वेतन दिलाये जाने की गुहार लगाई है। 


इस मामले में पीड़ितों ने स्थानीय एसडीएम का दरवाजा खटखटाते हुये उन्हें एक ज्ञापन सौंपते हुये कोतवाली व श्रम प्रवर्तन अधिकारी को शिकायत की है। रिजोर्ट में काम कर रहे श्रमिक भाजपा नेता गणेश रावत की अगुवाई में प्रशासनिक भवन पहुंचे जहां श्रमिकों ने जोरदार नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन किया। 

इस दौरान उन्होंने एसडीएम परितोष वर्मा को सौंपे गये ज्ञापन में रिसोर्ट प्रबंधक मनोज कुमार शर्मा पर आरोप लगाते हुये कहा कि उनके द्वारा उन्हें दो माह का वेतन नहीं दिया जा रहा है। जब भी वह प्रबंधक अपने वेतन की बात करते हैं, तो रिसोर्ट प्रबंधक उन्हें नौकरी से निकालने की धमकी देता रहता है। वेतन न मिलने के कारण उनके परिवार का जीवन-यापन मुश्किल भरा हो गया है। 

श्रमिकों का कहना है कि रिसोर्ट स्वामी द्वारा रिसोर्ट जुकासो कम्पनी को लीज पर दिया गया है, जिसकी लीज की अवधि पूरी होने वाली है। ऐसे में उनके सामने वेतन का संकट खड़ा हो गया है। इस मामले में एसडीएम वर्मा ने श्रमिकों को आश्वासन देते हुये कहा कि उनका पूरा वेतन होटल प्रबंधक से दिलाया जायेगा। इसके बाद श्रमिकों ने कोतवाली पुलिस व श्रम प्रवर्तन कार्यालय में भी विधिवत अपनी शिकायत दर्ज कराई। 

इस मामले में भाजपा नेता गणेश रावत का कहना है कि कार्बेट नेशनल पार्क के आस-पास डेढ़ सौ से अधिक रिसोर्ट कार्यरत हैं, लेकिन इन रिसोर्ट में कार्यरत श्रमिकों की कोई भी संगठित यूनियन न होने के चलते इनका लगातार उत्पीड़न किया जा रहा है, जबकि रिसोर्ट स्वामियों ने अपने हितों की रक्षा के लिये अपना स्वयं का संगठन बना रखा है। 

रावत ने श्रम अधिकारी से मांग की है कि क्षेत्र में कार्यरत सभी श्रमिकों की यूनियन बनाकर उनके हितों का संरक्षण किया जाये, अन्यथा श्रम विभाग के खिलाफ भी व्यापक तौर पर आंदोलन छेड़ा जायेगा। 

इस दौरान ज्ञापन देने वालों में वीरेन्द्र रावत, संजय बिष्ट, गणेश रावत, सूरज, छोटेलाल, महेश, मनोज, गुलाब हुसैन, सूरज, किशोर सहित अनेकों लोग मौजूद थे।

अब आप के भरोसे राज्यसभा नहीं जा पाएंगे कुमार विश्वास

कुमार की ठसक को पार्टी और उसके नेता बर्दाश्त नहीं करते। कुमार की इस कमजोरी का भी पार्टी को पता है कि वो भाजपा को लेकर इतने कटु कभी नहीं रहते, जितने कांग्रेस को लेकर....

जनज्वार दिल्ली। आम आदमी पार्टी में एक बात कही जाती है कि यहां कोई भी बयान यूं ही नहीं दे देता, जब तक ऊपर से अनुमति या सहमति न हो। कल दिल्ली के पूर्व संयोजक रहे दिलीप पांडेय का कुमार विश्वास पर ट्वीट करके किया गया हमला स्पष्ट करता है कि अब कुमार पर पार्टी को कितना अविश्वास है।


पर दिलीप पांडेय के ट्वीट ने कुमार को बैकफुट पर ला दिया है। कल से कुमार भाजपा के खिलाफ ट्वीट ओर रिट्वीट कर रहे हैं। कुमार के ट्वीटर हैंडल को देखकर समझ आ जायेगा कि दिलीप का तीर निशाने पर लगा है। यह लड़ाई पंजाब के विधानसभा चुनाव के नतीज़ों के समय से चली आ रही है जो कभी स्पष्ट तो कभी अस्पष्ट रूप से बाहर आ जाती है। 

अब एक बात तो तय है कि कुमार आम आदमी पार्टी में अकेले पड़ते नज़र आ रहे हैं। इसका जिक्र वो खुद 2 दिन पहले एनडीटीवी 24/7 को दिए अपने इंटरव्यू में भी कर चुके हैं। इस इंटरव्यू में कुमार खुद को अभिमन्यु की उपाधि दे रहे थे, जो महाभारत में घेरकर मार दिया जाता है। इंटरव्यू लेने वाली पत्रकार भी खुद ये बोल रही थी कि आपके खिलाफ पार्टी के ऊपरी स्तर पर साजिश रची जा रही है। कुमार ने खुद कहा कि उन्हें भी इस बात का इल्म है। आखिर क्या वजह है कि पार्टी के बड़े नेता कुमार को किनारे लगाने में लगे हुए हैं।

दरअसल दिल्ली से राज्यसभा के लिए 3 सांसद जाने हैं। पार्टी के एमएलए के हिसाब से तीनों आप के सांसद राज्यसभा जाएंगे। इसमें से एक सीट के लिए खुले तौर पर कुमार अपनी दावेदारी जताते रहे हैं। और पार्टी तक ये बात पहुंचाते रहे हैं कि उनको राजयसभा के लिए दूसरी पार्टी से भी आॅफर है। कुमार की इसी ठसक को पार्टी और उसके नेता बर्दाश्त नहीं करते। कुमार की इस कमजोरी का भी पार्टी को पता है कि वो भाजपा को लेकर इतने कटु कभी नहीं रहते, जितने कांग्रेस को लेकर। 

पार्टी के नेताओं को भी पता है उन्हें राज्यसभा के लिए कहां से आॅफर है। इसी को ध्यान में रखते हुए कल सोच—समझ कर दिलीप पांडेय ने अपने ट्वीट में कुमार पर हमला करते हुए कहा कि क्या बात है भैया आप कांग्रेस को तो खूब गाली देते हो पर कहते हो वसुंधरा के खिलाफ नही बोलेंगे। ऐसा क्यों?

कुमार ने अपने इंटरव्यू में साफ—साफ बोल दिया था कि मुझे पता है पार्टी में कौन—कौन उनके खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं कुछ तो वो हैं, जो इस घर में रहे हैं (इस घर से मतलब कुमार के घर में) और यहीं रोटी खाई है। कुमार को भी अब ये समझ आ रहा है कि इस लड़ाई में उनकी हार निश्चित है इसलिए वो खुद को अभिमन्यु घोषित कर रहे हैं। 

इस लड़ाई में किसी को कुछ हासिल हो या न हो पर राजनीति के चलते दो दोस्तों की दोस्ती में जरूर दरार आ गई है। कुमार और मनीष सिसोदिया दोनों गाज़ियाबाद ज़िले के पिलखुआ कस्बे रहने वाले बचपन के दोस्त थे। पर अब दोस्ती  में पहले जैसी बात नहीं रह गई है। इसका सबूत रविवार को राजस्थान की पार्टी की वहां के वालंटियर्स की मीटिंग की कुमार और मनीष की फ़ोटो देखकर पता चल जाता है। दोनों एक मंच पर बैठे हैं, पर ऐसा लगता है जैसे दोनों बस एक खानापूर्ति कर रहे हैं। कवि कुमार विश्वास का चेहरा देख साफ पता चल रहा है कि अब उन्हें अपने घनिष्ठ मित्र मनीष से भी कोई उम्मीद नहीं कि वे पार्टी में उनका सपोर्ट करेंगे। कुमार के चेहरे पर गुस्सा साफ दिख रहा है।

इस लड़ाई में एक और अहम किरदार है संजय राघव। ये जनाब मनीष सिसोदिया जी के साले साहब हैं। मनीष भले ही खुद कुमार पर कोई कटाक्ष करने से बचते रहे हों, लेकिन उनका साला संजय राघव जो खुद कुमार के घर के पास रहता है वो कोई भी दिन नहीं छोड़ता जब अपने ट्वीट से कुमार पर आक्रमण न करता हो। इसे मनीष की मौन सहमति कहा जाए या कुछ और। लेकिन इतना तो तय है कि मनीष और कुमार की दोस्ती एक किनारे पर आ गई है, जो कभी भी टूट सकती है।

पार्टी नेताओं को ये आपसी लड़ाई आने वाले दिनों में सोशल मीडिया से निकलकर सड़क पर भी आयेगी। बस इंतज़ार कीजिये कुछ दिनों का।

फर्जी मुठभेड़ करने वाले जवानों को डीजीपी ने पार्टी करने के लिए दिए 1 लाख रुपए

देश की सुरक्षा—व्यवस्था के इतिहास में यह पहली बार है कि किसी राज्य के डीजीपी ने एक अादिवासी की हत्या करने पर जवानों को मुर्गा—भात खाने और जश्न मनाने के लिए 1 लाख रुपए का ईनाम दिया हो, वह भी फर्जी मुठभेड़ के बदले। 

गिरिडीह से रूपेश कुमार सिंह की रिपोर्ट 

मोतीलाल बास्के : जब वह राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू की विधि व्यवस्था में लगे थे 
झारखंड के गिरिडीह जिला के पीरटांड़ प्रखंड के मधुबन थाना अंतर्गत जैन तीर्थावलम्बियों के विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल पारसनाथ पर्वत की तलहटी में स्थित आदिवासी गांव ढोलकट्टा के समीप 9 जून को माओवादियों व सीआरपीएफ कोबरा के बीच मुठभेड़ होती है। मुठभेड़ की ही शाम में पुलिस दावा करती है कि मुठभेड़ में एक दुर्दांत माओवादी को मार गिराया गया। 

मारे गए आदिवासी के पास से पुलिस एक एसएलआर व गोली समेत कई चीजें दिखाती है। 10 जून को झारखंड के डीजीपी डीके पांडेय हवाई मार्ग से मधुबन पहुंचते हैं और ‘भारत माता की जय’ ‘सीआरपीएफ की जय’ के नारे के उद्घोष के बीच गिरिडीह एसपी बी वारियार को एक लाख रूपये मुठभेड़ में शामिल जवानों को बड़ी पार्टी देने के लिए देते हैं और अलग से 15 लाख रूपये इनाम देने की घोषणा भी करते हैं। इस खबर को झारखंड के तमाम अखबारों के तमाम एडिसन में प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता है।

मुठभेड़ में मारे गए क्या सच में दुर्दांत माओवादी थे?
इस सवाल का जवाब 11 जून को मिल गया, जब मारे गये आदिवासी की पहचान उजागर हुई तो पता चला कि जिसे मारकर प्रशासन अपना पीठ खुद ही थपथपा रहा है और जिसकी हत्या का जश्न भी अब तक प्रशासन मना चुका है, दरअसल वह एक डोली मजदूर था, जो कि तीर्थयात्रियों को डोली पर बिठाकर अपने कंधे पर उठाकर तीर्थस्थल का भ्रमण कराता था और साथ ही पारसनाथ पर्वत पर स्थित चंद्र मंदिर के नीचे एक छोटा सा होटल भी चलाता था, जिसमें डोली मजदूर चावल-दाल व सत्तू खाया करते थे। 

उस डोली मजदूर का नाम मोतीलाल बास्के था। वह धनबाद जिला के तोपचांची प्रखंड अंतर्गत चिरूवाबेड़ा का रहने वाला था, लेकिन कुछ दिन से अपने ससुराल गिरिडीह जिला के पीरटांड़ प्रखंड अंतर्गत ढोलकट्टा में ही रहकर प्रखंड से पास किया गया प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अपने आवास को बनवा रहा था। 

कौन है मोतीलाल बास्के 
9 जून को वह ढोलकट्टा से पारसनाथ पर्वत स्थित अपनी दुकान ही जा रहा था, लेकिन हमारे देश के ‘बहादुर’ अर्द्धसैनिक बल सीआरपीएफ कोबरा ने उसकी हत्या करके उसे दुर्दांत माओवादी घोषित कर दिया और उसकी हत्या का जश्न भी सरकारी खजाने से मनाया। अब जबकि यह बात पूरी तरह से साफ हो चुकी है कि मृतक मोतीलाल बास्के एक डोली मजदूर था और डोली मजदूरों के एकमात्र संगठन मजदूर संगठन समिति का सदस्य भी था, उसकी सदस्यता संख्या 2065 है। 
मारे जाने के बाद छपी यह खबर 


एक आदिवासी होने के नाते वह आदिवासी संगठन सांवता सुसार बैसी का भी सदस्य था और 26-27 फरवरी 2017 को मधुबन में आयोजित मारांड. बुरु बाहा पोरोब में विधि व्यवस्था का दायित्व भी संभाला था, जिसमें झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू मुख्य अतिथि के बतौर शामिल हुई थीं। मृतक मोतीलाल बास्के को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान बनाने के पैसे भी मिले हैं, जिससे वे मकान बना रहे थे।

माओवादी बताकर मोतीलाल बास्के की हत्या पुलिस द्वारा कर दिए जाने का सच पारसनाथ पर्वत के अगल-बगल के गांवों में पहुंचते ही आम लोगों में गुस्सा बढ़ने लगा और 11 जून को मधुबन के हटिया मैदान में मजदूर संगठन समिति ने एक बैठक कर मोतीलाल बास्के का सच सबके सामने उजागर किया। इस बैठक में आदिवासी संगठन सांवता सुसार बैसी के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि भी शामिल हुए और 14 जून को वहीं पर महापंचायत करने का निर्णय लिया गया। 

धीरे-धीरे फर्जी मुठभेड़ का सच बाहर आने लगा। 12 जून को भाकपा (माले) लिबरेशन की एक टीम ने अपने गिरिडीह जिला सचिव के नेतृत्व में मृतक के परिजनों से मुलाकात करते हुए इस फर्जी मुठभेड़ की न्यायिक जांच व दोषी पुलिसकर्मियों को सजा देने की मांग के साथ 15 जून को पूरे जिला में प्रतिवाद दिवस मनाने की घोषणा की, साथ ही मृतक की पत्नी को 5 हजार रुपये की आर्थिक मदद भी की। 

13 जून को झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतागण ढोलकट्टा जाकर मृतक के परिजनों से मुलाकात की व मृतक की पत्नी की बात झारखंड के विपक्ष के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से करायी, जिसमें उन्होंने उनको न्याय दिलाने का वादा किया। 14 जून को मधुबन में आयोजित मजदूर संगठन समिति के महापंचायत में सैकड़ों गांवों के हजारों ग्रामीणों के साथ-साथ झामुमो, झाविमो, भाकपा (माले) लिबरेशन, आदिवासी संगठन सांवता सुसार बैसी व स्थानीय तमाम जनप्रतिनिधि- जिला परिषद सदस्य, प्रखंड प्रमुख व कई पंचायत के मुखिया शामिल हुए। 

महापंचायत ने इस फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ 17 जून को मधुबन बंद, 21 जून को गिरिडीह में उपायुक्त के समक्ष धरना, 2 जुलाई को पूरे गिरिडीह जिला में मशाल जुलूस व 3 जुलाई को गिरिडीह बंद की घोषणा की। 15 जून के अखबारों में भाकपा (माओवादी) का बयान भी आया कि मोतीलाल बास्के उनके पार्टी या पीएलजीए का सदस्य नहीं है।

सवाल यही कि आदिवासियों के ही राज्य में आदिवासी हत्या पर जश्न  

फर्जी मुठभेड़ के बाद प्रदर्शन करते पार्टियों के लोग और स्थानीय जनता 
उलगुलान के सृजनकार महान छापामार योद्धा बिरसा मुंडा के शहादत दिवस 9 जून को ही फर्जी मुठभेड़ में एक आदिवासी मजदूर की हत्या को माओवादी हत्या के रुप में पूरे झारखंड के तमाम अखबारों ने अपने तमाम एडीसन में मुख्य पृष्ठ पर जगह दी, लेकिन अब जबकि यह साबित हो चुका है कि मृतक मोतीलाल बास्के माओवादी नहीं था, तो सभी अखबारों ने इन तमाम समाचारों को गिरिडीह के पन्नों में ही कैद कर रखा है। 

तमाम अखबारों ने डीजीपी द्वारा एसपी को एक लाख रुपये हत्यारों को पार्टी देने की खबरों को प्रमुखता से छापा था, लेकिन आज कोई अखबार यह सवाल नहीं कर रहा है कि आखिर एक ग्रामीण आदिवासी की हत्या का जश्न क्यों और कब तक?

फर्जी मुठभेड़ की घटना को अब एक सप्ताह होने को हैं, लेकिन देश के मानवाधिकार संगठनों, बुद्धिजीवियों व न्यायपसन्द नागरिकों के कानों पर अब तक जूं भी क्यों नहीं रेंग रही? उनके लिए एक आदिवासी की हत्या और हत्यारे पुलिस अधिकारियों के द्वारा हत्या का जश्न मनाना कोई बेचैनी का सवाल क्यों नहीं बनता?

केजरीवाल के दो चेलों की वाट्सअप चैट, बताएगी कैसी राजनीति हो रही आप में

दोनों नेता अरविंद केजरीवाल के ही बागवानी के दो फूल हैं, जिसे पानी—खाद डालकर अरविंद ने अपने हाथों से सींचा है...

दिल्ली से स्वतंत्र कुमार की रिपोर्ट 



दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी अपनी किसी और नीति पर कायम रहे या न रहे, लेकिन वह शुरुआत से ही अपने ही नेताओं के खिलाफ साजिश रचने, उन्हें निपटाते रहने की परंपरा पर लगातार कायम है। माना जाता है कि केजरीवाल के लिए जो भी नेता चुनौती बनता है, या उन्हें लगता है कि उनकी राजनीतिक सल्तनत पर कोई हक जमा सकता तो उसे नितटा देने में पूरी पार्टी को लगा देते हैं। 

अबकी भी यही हो रहा है। अरविंद केजरीवाल ने दो लोगों को ढंग से निपटाने का ठेका पार्टी पदाधिकारियों को दे रखा है। जिनको निपटा देना है, वे हैं कपिल मिश्रा और कुमार विश्वास। मिश्रा और विश्वास वही लोग हैं जिनका एक समय में इस्तेमाल अरविंद ने स्वराज पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को निपटाने के लिए किया था। गौरतलब है कि योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण आम आदमी पार्टी के संस्थापकों और बड़े नेताओं में शामिल रहे हैं। 

कपिल मिश्रा के खुलासों को हाशिए पर डालने और कुमार विश्वास की छवि को कार्यकर्ताओं में धुमिल करने की जिम्मेदारी अरविंद केजरीवाल टीम की ओर से ओखला विधायक अमानतुल्लाह खान को दी गयी है। मतलब मोर्चे पर अमानतुल्लाह हैं, जबकि पीछे से दिल्ली आप के पूर्व मुखिया दिलीप पांडेय, पार्टी खजांची दीपक वाजपेयी, मनीष सिसौदिया के साले संजय राघव समेत दर्जनों पार्टी पदाधिकारी परोक्ष—प्रत्यक्ष रूप से जुटे हुए हैं। 

कल हुए एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत दिल्ली के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा आज ओखला क्षेत्र के विधायक अमानतुल्ला खान के खिलाफ ओखला के बाटला हाउस इलाके में धरना देंगे। कपिल मिश्रा के मुताबिक यह धरना बाटला हाउस में रहने वाली एक 70 वर्षीय वृद्ध महिला के घर पर कब्जा किए जाने को लेकर है। मिश्रा का कहना है कि महिला के घर पर विधायक अमानतुल्ला के इशारे पर कब्जा हुआ है। ​कब्जा करने वाले विधायक के लोग हैं। 

पर असल ये बात ये नहीं है, बल्कि बात है कपिल मिश्रा और अमानतुल्लाह के बीच हुई 13 नवंबर की रात वाट्स्अप चैट, जिसे थोड़ी देर के लिए कपिल मिश्रा ने ट्वीटर पर लगाया पर बाद में हटा दिया। 

मगर जनज्वार के पास वह पूरी बातचीत है जिसको पढ़कर आपको पता चल जाएगा कि असल में ये दोनों नेता किस स्तर के हैं और इनका असल मकसद क्या है? साथ ही आपको फैसला करने में भी आसानी होगी कि आम आदमी पार्टी किस राह पर है, क्योंकि दोनों की नेता अरविंद केजरीवाल के ही बागवानी के दो फूल हैं, जिसे पानी—खाद डालकर अरविंद ने अपने हाथों से सींचा है!