Oct 25, 2010

गिलानी का सपना, इस्लामिक राज हो अपना


कश्मीर को स्वायतता  मिले या आजादी या फिर जैसा है उसी में प्रशासनिक   बेहतरी अमल में लायी  जाये,इन पहलुओं पर भारतीय समाज क्या सोचता है,को लेकर जनज्वार में बहस जारी  है और सरोकारी लेखक आमंत्रित हैं.इसी कड़ी में आज शाम चंडीगढ़ उच्च न्यायालय  के वरिष्ठ वकील राजीव गोदारा ने फेसबुक के जरिये सन्देश भेजा, 'Hello! socialism nahnin chalega? what to about authenticity of this u tube, I watch on face बुक'.  सन्देश पढ़ने के बाद जो  विडियो दिखा, वह आप भी देखिये और तय कीजिये कि ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के प्रमुख सैयद  अली शाह गिलानी दिल्ली में कैसी जुबां बोलते हैं और कश्मीर में कैसी.

हमें नहीं पता कि यह वीडियो कितना पुराना है.इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि इस्लामिक कट्टर नजरिया रखने वाले गिलानी का रूपांतरण हुआ होगा,क्योंकि राजनीति में कोई स्टैंड अंतिम नहीं होता. अगर ऐसा नहीं हुआ है तो जिंदगी को जहन्नुम की तरह जी रहा कश्मीरी आवाम अगले वर्षों को भी भुगतेगा और जिम्मेदार गिलानी जैसे लोग होंगे,क्योंकि ऐसे लोग ही भारत सरकार को कश्मीर में दबंगई  करने का आसान  बहाना मुहैया करते हैं. 


रास्ता खोलें, नेताओं को छोड़ें


कश्मीर के मीरवाइज मौलवी उमर फारूक हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के उदारवादी धड़े के नेता हैं। अलगाववादियों के बरक्स वे कश्मीरियत के समर्थक माने जाते हैं और दूसरे नेताओं के मुकाबले उनके तर्क संयत होते हैं। उनसे बातचीत के अंश...
 
 
हुर्रियत कांन्फेंस के नेता मीरवाइज उमर फारूक से इफ्तिखार गिलानी  की  बातचीत


आप भारत सरकार से शांति वार्ता में शामिल थे। इस बातचीत की क्या उपलब्धि रही है?

हम लोग केंद्र सरकार से औपचारिक तौर पर बातचीत से कभी  जुड़े नहीं रहे। कुछ वार्ताकारों ने हमें ऐसा प्रस्ताव दिया था। हमने इस पर चर्चा की। हमने भारत  सरकार से पहले भी प्रधानमंत्री और उप-प्रधानमंत्री के स्तर पर बातचीत की है। यह एक मसला नहीं है। मसला तो यह है कि मानवाधिकारों के उल्लंघन के साथ-साथ बातचीत नहीं हो सकती। आपको मानवाधिकारों का उल्लंघन,गलियों में लोगों की हत्या करना बंद करना होगा,ताकि बातचीत का माहौल तैयार हो सके। मैं केवल दिल्ली को आगाह करना चाहूंगा कि शांति प्रकि‘या में देरी और ऐसी गतिविधियों में शामिल होकर वे अपनी स्थिति को और खतरनाक बना रहे हैं।

क्या आप फिर से राज्य में आतंकवाद की वापसी देखते हैं?

राज्य में बंदूकों का दौर अभी खत्म नहीं हुआ है। यह बात सच है कि आतंकवाद की घटनाओं में कमी आयी है, लेकिन उसका स्वरूप ज्यों का त्यों है। आज भी ऐसे आतंकवादी मौजूद हैं,जो अपने इरादों के लिए समर्पित हैं। कश्मीर में हथियारों से लड़ने वाले व्यक्ति का लक्ष्य और हुर्रियत का लक्ष्य एक ही है। वे हथियारों से लड़ रहे हैं और हम राजनीतिक जंग लड़ रहे हैं। लेकिन अगर लोग देखते हैं कि लोकतांत्रिक तरीके से कुछ हासिल होने की उम्मीद नहीं है, तो आतंकवाद फिर से सर उठा सकता है। कल अगर हुर्रियत असफल होती है, तो कश्मीरी आतंकवादी फिर से हिंसा का रास्ता चुन सकते हैं।

राज्य सरकार पुरानी गलतियों को ही फिर से दोहरा रही है। इससे माहौल और खराब हुआ है। उन्होंने अर्धसैनिक बलों और सेना को खुली छूट दे रखी है। यहां के लोग हताशा में जी रहे हैं। वे जल्द ही एक समाधान चाहते हैं। यहां कई ऐसे भी लोग हैं, जो यह समझते हैं कि हिंसक संघर्ष में तेजी लायी जाये और बातचीत की बजाय बंदूकों पर ज्यादा ध्यान दिया जाये।

आप कश्मीर में एक धार्मिक दर्जा भी रखते हैं। आप भारत में रहने के लिए भारतीय मुसलमानों के साथ हाथ क्यों नहीं मिलाते? कश्मीर का अलगाव उनके लिए और ज्यादा तनाव का कारण बनेगा।

कश्मीर को हिंदू-मुस्लिम मसला कहना गलत होगा। यह एक राजनीतिक और मानवीय समस्या है। हमें उस जगह पर डाल दिया गया है कि हम अपनी पहचान खो दें। भारतीय मुसलमानों को 1947में अपना नसीब चुनने का मौका मिला था। कश्मीरियों ने कभी महसूस ही नहीं किया कि वे भारत के नागरिक हैं। इसीलिए हम लोगों को बंधकों के तौर पर नहीं रखा जा सकता। भारतीय मुसलमान भारत के नागरिक हैं और यह भारत की सरकार के जिम्मे है कि वह उनका खयाल रखे।

कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए आपके क्या सुझाव हैं?
हम हमेशा से भारत को व्याहारिक और तर्कसंगत प्रस्ताव देते आये हैं। श्रीनगर-मुजफ्फराबाद,पुंछ-रावलकोट और करगिल-अस्कर्दू जैसे रास्तों को लोगों की बेरोकटोक आवाजाही के लिए खोल दिया जाना चाहिए। भारतीय अधिकारियों ने खुद ही कहा है कि आतंकवाद की घटनाएं कम हुई हैं। इस हालत में ारत सरकार को अपनी सेना को कठोर कानूनों से लैस करने का क्या औचित्य है?हम सभी जानते हें कि जेल में बंद हमारे ज्यादातर राजनीतिक नेता फर्जी मामलों में फंसाये गये हैं। भारत सरकार को वे सभी कदम उठाने चाहिए,जिनसे कि कश्मीरियों को लगे कि भारत सरकार कश्मीर समस्या को सुलझाने के प्रति गंभीर है। यदि ऐसा किया जाता है,तो ऐसे कदमों से समस्या को शांतिपूर्वक सुलझाने में मदद मिलेगी।
ऐसी मांगों का समर्थन पीडीपी जैसी मुख्यधारा की पार्टियों ने भी  किया है। क्या आप उनके साथ किसी गठबंधन की संभावना देखते हैं?

हमारे लिए ये तीनों मांगें ही अंत नहीं हैं,बल्कि यह तो एक शुरुआत है। मुख्य  मुद्दा तो यह है कि कश्मीर समस्या सुलझाई जाये। पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस  जैसे दलों ने कश्मीर पर भारत के नजरिये का हमेशा समर्थन किया है। अब वे हमारी भाषा में बात कर रहे हैं। उनको यह साफ करना चाहिए कि वे भारत के साथ हैं या कश्मीर के लोगों के साथ।

 आपने पिछले साल कहा था कि अगर जम्मू के लोग अलग राज्य चाहते हैं,तो इसके लिए वे आजाद हैं। क्या आपने मजहबी  आधार पर राज्य के विभाजन की मांग को आपने मंजूर कर लिया है?

ऐसा कतई नहीं है। हम राज्य की अखंडता पर यकीन करते हैं। मैंने ऐसा कहा था क्योंकि मैं कट्टरपंथियों को उनकी औकात बताना चाहता था। जम्मू के लोग सांप्रदायिक उन्माद और कश्मीर-विरोधी भावनाओं का समर्थन नहीं कर रहे, जैसा कि कुछ कट्टरपंथी दिखाना चाहते हैं। इसीलिए मैंने कहा था कि अगर कुछ लोग अलग राज्य चाहते हैं,तो राज्य ढाई जिले बताना उनको दे दिये जाये। हमलोग पूरे राज्य को बंधक बनाने की अनुमति नहीं दे सकते।

आपने कई धमकियों को दरकिनार करते हुए नयी दिल्ली के साथ बातचीत की प्रक्रिया में हिस्सा लिया है। क्या इसके लिए आपको कोई पछतावा है?

बिल्कुल नहीं। मेरा यह मानना है कि बातचीत समस्याओं को सुलझाने का सबसे प्रभावशाली तरीका है। लेकिन भारत ने बातचीत की गरिमा का खयाल नहीं रखा। हमने उन्हें कश्मीर की वास्तविक समस्या को सुलझाने के लिए कुछ प्रस्ताव दिये थे, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया।

लेकिन आपने प्रधानमंत्री के बातचीत के प्रस्तावों को खारिज कर दिया?

हमें लगता है कि इस समय कि बातचीत की प्रक्रिया  को जारी रखने का कोई अर्थ नहीं। नयी दिल्ली को कुछ ऐसे कदम उठाने होंगे,जिनसे कश्मीरियों का यह एहसास हो कि बातचीत से उन्हें फायदा हुआ है। हमने सरकार को तीन प्रस्ताव दिये हैं। अगर वे बातचीत के माध्यम से समस्या को सुलझाने के प्रति गंभीर हैं,तो उन्हें इसे स्वीकार करना होगा। मुझे लगता है कि हमने अपना काम कर दिया है। अब उन्हें अपना काम करना चाहिए।

आपके परवेज मुशर्रफ के साथ काफी मधुर संबंध थे। क्या उनकी सता  से विदाई पर आपको दुख नहीं हुआ?

यह पाकिस्तान का आंतरिक मुद्दा है। हालांकि मेरा मानना है कि अगर कोई तार्किक सुझावों को लेकर आता है, तो उसका समर्थन किया जाना चाहिए। मुशर्रफ साहब का कश्मीर को लेकर काफी सकारात्मक रवैया रहा। मैं समझता हूं कि अगर यही रवैया आगे  रहता है, तो हम कश्मीर मसले पर अपने कदम आगे बढ़ाने की स्थिति में होंगे। हमें उम्मीद है कि नयी सरकार इसी दिशा में आगे बढ़ेगी।


इफ्तिखार गिलानी कश्मीर से निकलने वाले अंग्रेजी  दैनिक 'कश्मीर टाइम्स'के दिल्ली में ब्यूरो प्रमुख हैं.उन्होंने यह साक्षात्कार पाक्षिक हिंदी पत्रिका 'द पब्लिक एजेंडा' के लिए लिया था,यहाँ साभार प्रकाशित किया जा रहा है.