माओवादी पार्टी की ओर से 13 अप्रैल को जारी प्रेस विज्ञप्ति में केंद्रीय कमेटी सदस्य और प्रवक्ता अभय ने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के समर्थन में उठे जनउभार का पार्टी की ओर से स्वागत किया है...
लोकपाल विधेयक की मसौदा समिति बनवाने के लिए दिल्ली के जंतर मंतर पर 5 अप्रैल से 9 अप्रैल तक आमरण अनशन पर बैठे अन्ना हजारे अभियान का माओवादियों ने स्वागत किया है।माओवादी पार्टी के प्रवक्ता अभय के मुताबिक जनता में भ्रष्टाचार,भ्रष्ट राजनीतिक पार्टियों तथा उन पार्टियों के नेताओं के प्रति संचित गुस्से का नतीजा ही था कि अन्ना हजारे द्वारा की भूख हड़ताल को देशभर में जनता का समर्थन मिला।
विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि जहां अन्ना के अनशन का लक्ष्य जन लोकपाल विधेयक ही था, वहीं देश के चारों कोनों से व्यक्त हुई जनता की आकांक्षा तो भ्रष्टाचार का जड़ से सफाया करने की है। लोकपाल विधेयक तैयार करने हेतु कमेटी का गठन कर उसमें आधे सदस्यों का चयन नागरिक समाज से करने का सरकार ने जो फैसला लिया है,इससे इस समस्या का हल हो गया या हो जाएगा, माओवादी पार्टी की निगाह में ऐसा मानना नादानी होगी।
केंद्रीय समिति सदस्य अभय की ओर से जारी इस विज्ञप्ति में जोर देकर कहा गया है कि आज भ्रष्टाचार के इतने गहरे तक जड़ें जमा लेने और बेहिसाब बढ़ जाने का यह कारण नहीं है कि यहां इसे रोकने का कोई कारगर कानून-कायदा ही मौजूद नहीं है। कानून चाहे जितने भी हों,चूंकि उन पर अमल करने और करवाने वाली व्यवस्था पर ही लुटेरे वर्गों का कब्जा है,इसीलिए यह बदहाली व्याप्त है। एक जमाने के जीप घोटाला और लॉकहीड विमान खरीद घोटाले से लेकर राजीव गाँधी के समय का बोफोर्स घोटाला आदि अनगिनत घोटालों का लम्बा इतिहास रहा है हमारे देश में।
चंद करोड़ रुपयों से शुरू होकर आज लाखों करोड़ रुपए के घोटाले सामने आ गए हैं। कांग्रेस,भाजपा जैसी मुख्य संसदीय पार्टियों से लेकर आरजेडी, बीएसपी, एसपी, डीएमके, अन्ना डीएमके, तेलुगुदेशम वगैरह सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पार्टियों के नेता, मंत्री तथा उनके पिट्ठू प्रशासनिक अधिकारी सभी का दामन भ्रष्टाचार से दागदार है। देश में पहले से मौजूद कानूनों पर ठीक से अमलकर और विभिन्न भ्रष्टाचार-विरोध्ी विभागों का ठीक से संचालन कर ऐसे भ्रष्टाचार-घोटालों को रोका जा सकता है तथा उसके लिए जिम्मेदार लोगों को कड़ी सजाएं दिलवाई जा सकती हैं। लेकिन पिछले 64 सालों के ‘आजाद’ भारत के इतिहास में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जिसमें भ्रष्ट राजनेताओं, मंत्रियों, कार्पोरेट घरानों के मालिकों और नौकरशाहों को कभी कोई सजा मिली हो।
जनता और विपक्ष के दबाव के कारण विरल मौकों पर किसी को गिरफ्तार कर किया भी गया तो सालोंसाल तक खिंचने वाली अदालती कार्रवाई के बाद मामलों को रफा-दफा कर दिया जाता है। बिना किसी सजा के या नाममात्र की सजा से बरी भी कर दिया जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मौजूदा न्याय व्यवस्था भी देश की शोषक राज्य मशीनरी का अभिन्न अंग है। यह उम्मीद रखना कि कानूनों या न्यायालयों के जरिए भ्रष्टाचार का अंत हो जाएगा, मरीचिका में पानी की उम्मीद रखने के बराबर होगा।
सबसे पहले यह समझना बहुत जरूरी है कि भ्रष्टाचार चंद बुरे लोगों या लोभियों के आचरण से उपजा हुआ मामला नहीं है। भ्रष्टाचार व घोटाले उस पूंजीवादी व्यवस्था का विकृत परिणाम है जिसका मूलमंत्र ही मुनाफे के पीछे भागना है। हालांकि पूंजीवाद ऊपर से लोकतंत्र का चोला ओढ़ा हुआ रहता है तथा आजादी,समानता आदि मूल्यों की रट लगाया करता है,लेकिन वास्तव में वह दूभर श्रम-शोषण, रिश्वतखोरी,दलालखोरी आदि अव्यवस्थाओं से भरा रहता है। इसलिए भ्रष्टाचार और अव्यवस्थाओं को जड़ से खत्म करने का मुद्दा व्यवस्था-परिवर्तन से जुड़ा हुआ सवाल है। यह मानकर चलना एक कोरा भ्रम ही होगा कि देश में मौजूद अर्धऔपनिवेशिक और अर्धसामंती व्यवस्था को बनाए रखते हुए ही चंद बेहतर कानूनों के सहारे से इस समस्या का पूरी तरह समाधान किया जा सकता है।
दरअसल, घोटालों के रूप में जो उजागर होते हैं उनसे कई गुना ज्यादा रोशनी में आए बिना ही रह जाते हैं। उदाहरण के तौर पर आंध्रप्रदेश के मृत मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमनसिंह, ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, झारखण्ड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, शिबू सोरेन, अर्जुन मुण्डा,कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा समेत और कई नेताओं ने जिस प्रकार माइनिंग माफिया से हाथ मिलाकर दलाली खाई और कई बड़ी कम्पनियों के साथ गुप्त एमओयू कर दलाली के रूप में हजारों करोड़ रुपए अवैध रूप से जो कमाए, उसके बारे में यहां तक कि अखबारों ने भी चर्चा की है।
सरकारों द्वारा लागू उदारीकरण, निजीकरण और भूमण्डलीकरण की नीतियों ने ही इस तरह के कई भ्रष्टाचार-घोटालों के लिए तथा देश की सम्पदाओं की मनमानी लूटखसोट के दरवाजे खोल रखे हैं। इस पृष्ठभूमि में इन साम्राज्यवाद-परस्त नीतियों का विरोध किए बिना तथा उनके खिलाफ संघर्ष छेड़े बिना ही भ्रष्टाचार का अंत कर पाने की आस लगाए बैठना या कर पाने का दावा करना जनता को गुमराह करना ही है। लोकपाल विधेयक के लिए सरकार द्वारा सांझी कमेटी की घोषणा की जाने के बाद अन्ना हजारे ने तो अपना अनशन तोड़ दिया, लेकिन जनता को इससे इंसाफ नहीं मिला जो देशभर में उनकी हड़ताल के साथ खड़ी हुई थी।
दरअसल, सरकार ने यह मांग अन्ना की भूख हड़ताल से डरकर पूरी नहीं की, बल्कि उनके समर्थन में उभरकर आए जनता के आक्रोश को ठण्डा करने के लिए की। उससे भी बड़ी बात यह है कि चूंकि शासक वर्ग भलीभांति जानता है कि इस तरह के कानूनों से मौजूदा व्यवस्था को कोई नुकसान नहीं होने वाला है,इसीलिए उन्होंने बेखौफ होकर लोकपाल विधेयक के लिए कमेटी की घोषणा की।
भ्रष्टाचार के खिलाफ देशभर में आगे आई जनता का भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केन्द्रीय कमेटी स्वागत करती है। भ्रष्टाचार विरोधी संघर्ष का हमारी पार्टी तहेदिल से समर्थन करती है। पार्टी का यह विश्वास है कि जनता के सांझे,संगठित और जुझारू संघर्षों के जरिए ही भ्रष्टाचार का अंत करना संभव हो सकेगा। हमारी पार्टी देश की जनता से आग्रह करती है कि वह सरकार द्वारा घोषित सतही कानूनों और कानून तैयार करने के लिए कमेटियों के गठन की घोषणाओं से संतुष्ट होकर अपने संघर्ष को समाप्त न करे, बल्कि संघर्ष की राह पर दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़े।
मजदूरों, किसानों, छात्रों, बुद्धिजीवियों, कर्मचारियों, जनता की भलाई चाहने वाले गांधीवादियों समेत तमाम देशभक्त तबकों से माओवादियों ने अपील की है वे देश में कैंसर की तरह फैल चुके भ्रष्टाचार के खिलाफ एक व्यापक संयुक्त मोर्चा बनाकर सड़कों पर उतर आएं। साथ प्रेस विज्ञप्ति में यह सुझाव दिया गया है कि यह नारा बुलंद किया जाए कि उन डकैतों और महाचोरों को सत्ता में एक पल के लिए भी बने रहने का हक नहीं है, जो अंतहीन भ्रष्टाचार व घोटालों में लिप्त होकर देश की जनता का खून-पसीना चूसते हुए लाखों-करोड़ों रुपए का काला धन स्विस बैंकों में छुपा रहे हैं।