Apr 19, 2011

अन्ना आन्दोलन के समर्थन में माओवादी


माओवादी पार्टी की ओर से 13 अप्रैल को जारी प्रेस विज्ञप्ति में केंद्रीय कमेटी सदस्य और प्रवक्ता अभय ने देश  में भ्रष्टाचार  के खिलाफ अन्ना के समर्थन में उठे जनउभार का पार्टी की ओर से स्वागत किया है...

लोकपाल विधेयक की मसौदा समिति बनवाने के लिए दिल्ली के जंतर मंतर पर 5 अप्रैल से 9 अप्रैल तक आमरण अनशन पर बैठे अन्ना हजारे अभियान का माओवादियों ने स्वागत किया है।माओवादी पार्टी के प्रवक्ता अभय के मुताबिक जनता में भ्रष्टाचार,भ्रष्ट राजनीतिक पार्टियों तथा उन पार्टियों के नेताओं के प्रति संचित गुस्से का नतीजा ही था कि अन्ना हजारे द्वारा की भूख हड़ताल को देशभर में जनता का समर्थन मिला।

विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि जहां अन्ना के अनशन का लक्ष्य जन लोकपाल विधेयक ही था, वहीं देश के चारों कोनों से व्यक्त हुई जनता की आकांक्षा  तो भ्रष्टाचार का जड़ से सफाया करने की है। लोकपाल विधेयक तैयार करने हेतु कमेटी का गठन कर उसमें आधे सदस्यों का चयन नागरिक समाज से करने का सरकार ने जो फैसला लिया है,इससे इस समस्या का हल हो गया या हो जाएगा, माओवादी पार्टी की निगाह में ऐसा मानना नादानी होगी।


केंद्रीय समिति सदस्य अभय की ओर से जारी इस विज्ञप्ति में जोर देकर कहा गया है कि आज भ्रष्टाचार के इतने गहरे तक जड़ें जमा लेने और बेहिसाब बढ़ जाने का यह कारण नहीं है कि यहां इसे रोकने का कोई कारगर कानून-कायदा ही मौजूद नहीं है। कानून चाहे जितने भी हों,चूंकि उन पर अमल करने और करवाने वाली व्यवस्था पर ही लुटेरे वर्गों का कब्जा है,इसीलिए यह बदहाली व्याप्त है। एक जमाने के जीप घोटाला और लॉकहीड विमान खरीद घोटाले से लेकर राजीव गाँधी  के समय का बोफोर्स घोटाला आदि अनगिनत घोटालों का लम्बा इतिहास रहा है हमारे देश में।

चंद करोड़ रुपयों से शुरू होकर आज लाखों करोड़ रुपए के घोटाले सामने आ गए हैं। कांग्रेस,भाजपा जैसी मुख्य संसदीय पार्टियों से लेकर आरजेडी, बीएसपी, एसपी, डीएमके, अन्ना डीएमके, तेलुगुदेशम वगैरह सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पार्टियों के नेता, मंत्री तथा उनके पिट्ठू प्रशासनिक अधिकारी सभी का दामन भ्रष्टाचार से दागदार है। देश में पहले से मौजूद कानूनों पर ठीक से अमलकर और विभिन्न भ्रष्टाचार-विरोध्ी विभागों का ठीक से संचालन कर ऐसे भ्रष्टाचार-घोटालों को रोका जा सकता है तथा उसके लिए जिम्मेदार लोगों को कड़ी सजाएं दिलवाई जा सकती हैं। लेकिन पिछले 64 सालों के ‘आजाद’ भारत के इतिहास में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जिसमें भ्रष्ट राजनेताओं, मंत्रियों, कार्पोरेट घरानों के मालिकों और नौकरशाहों को कभी कोई सजा मिली हो।

जनता और विपक्ष के दबाव के कारण विरल मौकों पर किसी को गिरफ्तार कर किया भी गया तो सालोंसाल तक खिंचने वाली अदालती कार्रवाई के बाद मामलों को रफा-दफा कर दिया जाता है। बिना किसी सजा के या नाममात्र की सजा से बरी भी कर दिया जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मौजूदा न्याय व्यवस्था भी देश की शोषक राज्य मशीनरी का अभिन्न अंग है। यह उम्मीद रखना कि कानूनों या न्यायालयों के जरिए भ्रष्टाचार का अंत हो जाएगा, मरीचिका में पानी की उम्मीद रखने के बराबर होगा।

सबसे पहले यह समझना बहुत जरूरी है कि भ्रष्टाचार चंद बुरे लोगों या लोभियों के आचरण से उपजा हुआ मामला नहीं है। भ्रष्टाचार व घोटाले उस पूंजीवादी व्यवस्था का विकृत परिणाम है जिसका मूलमंत्र ही मुनाफे के पीछे भागना है। हालांकि पूंजीवाद ऊपर से लोकतंत्र का चोला ओढ़ा हुआ रहता है तथा आजादी,समानता आदि मूल्यों की रट लगाया करता है,लेकिन वास्तव में वह दूभर श्रम-शोषण, रिश्वतखोरी,दलालखोरी आदि अव्यवस्थाओं से भरा रहता है। इसलिए भ्रष्टाचार और अव्यवस्थाओं को जड़ से खत्म करने का मुद्दा व्यवस्था-परिवर्तन से जुड़ा हुआ सवाल है। यह मानकर चलना एक कोरा भ्रम ही होगा कि देश में मौजूद अर्धऔपनिवेशिक और अर्धसामंती व्यवस्था को बनाए रखते हुए ही चंद बेहतर कानूनों के सहारे से इस समस्या का पूरी तरह समाधान किया जा सकता है।

दरअसल, घोटालों के रूप में जो उजागर होते हैं उनसे कई गुना ज्यादा रोशनी में आए बिना ही रह जाते हैं। उदाहरण के तौर पर आंध्रप्रदेश के मृत मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमनसिंह, ओड़िशा के मुख्यमंत्री  नवीन पटनायक, झारखण्ड के मुख्यमंत्री   मधु  कोड़ा, शिबू सोरेन, अर्जुन मुण्डा,कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा समेत और कई नेताओं ने जिस प्रकार माइनिंग माफिया से हाथ मिलाकर दलाली खाई और कई बड़ी कम्पनियों के साथ गुप्त एमओयू कर दलाली के रूप में हजारों करोड़ रुपए अवैध रूप से जो कमाए, उसके बारे में यहां तक कि अखबारों ने भी चर्चा की है।

सरकारों द्वारा लागू उदारीकरण, निजीकरण और भूमण्डलीकरण की नीतियों ने ही इस तरह के कई भ्रष्टाचार-घोटालों के लिए तथा देश की सम्पदाओं की मनमानी लूटखसोट के दरवाजे खोल रखे हैं। इस पृष्ठभूमि में इन साम्राज्यवाद-परस्त नीतियों का विरोध किए बिना तथा उनके खिलाफ संघर्ष छेड़े बिना ही भ्रष्टाचार का अंत कर पाने की आस लगाए बैठना या कर पाने का दावा करना जनता को गुमराह करना ही है। लोकपाल विधेयक के लिए सरकार द्वारा सांझी कमेटी की घोषणा की जाने के बाद अन्ना हजारे ने तो अपना अनशन तोड़ दिया, लेकिन जनता को इससे इंसाफ नहीं मिला जो देशभर में उनकी हड़ताल के साथ खड़ी हुई थी।

दरअसल, सरकार ने यह मांग अन्ना की भूख हड़ताल से डरकर पूरी नहीं की, बल्कि उनके समर्थन में उभरकर आए जनता के आक्रोश को ठण्डा करने के लिए की। उससे भी बड़ी बात यह है कि चूंकि शासक वर्ग भलीभांति जानता है कि इस तरह के कानूनों से मौजूदा व्यवस्था को कोई नुकसान नहीं होने वाला है,इसीलिए उन्होंने बेखौफ होकर लोकपाल विधेयक के लिए कमेटी की घोषणा की।

भ्रष्टाचार के खिलाफ देशभर में आगे आई जनता का भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केन्द्रीय कमेटी स्वागत करती है। भ्रष्टाचार विरोधी संघर्ष का हमारी पार्टी तहेदिल से समर्थन करती है। पार्टी का यह विश्वास है कि जनता के सांझे,संगठित और जुझारू संघर्षों के जरिए ही भ्रष्टाचार का अंत करना संभव हो सकेगा। हमारी पार्टी देश की जनता से आग्रह करती है कि वह सरकार द्वारा घोषित सतही कानूनों और कानून तैयार करने के लिए कमेटियों के गठन की घोषणाओं से संतुष्ट होकर अपने संघर्ष को समाप्त न करे, बल्कि संघर्ष की राह पर दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़े।

मजदूरों, किसानों, छात्रों, बुद्धिजीवियों, कर्मचारियों, जनता की भलाई चाहने वाले गांधीवादियों समेत तमाम देशभक्त तबकों से माओवादियों ने अपील की है वे देश में कैंसर की तरह फैल चुके भ्रष्टाचार के खिलाफ एक व्यापक संयुक्त मोर्चा बनाकर सड़कों पर उतर आएं। साथ प्रेस विज्ञप्ति में यह सुझाव दिया गया है कि यह नारा बुलंद किया जाए कि उन डकैतों और महाचोरों को सत्ता में एक पल के लिए भी बने रहने का हक नहीं है, जो अंतहीन भ्रष्टाचार व घोटालों में लिप्त होकर देश की जनता का खून-पसीना चूसते हुए लाखों-करोड़ों रुपए का काला धन स्विस बैंकों में छुपा रहे हैं।


नेपाली कवि निभा शाह की कवितायें


मार्क्स की खेती

नीचे-नीचे तहखाना बनाया, वेश्यालय चलाया
ऊपर-ऊपर पार्टी बनाई देश  चलाया
क्या गजब का देश
क्या गजब है देश
वेश्यालय  के दलाल भी खुद
देश के मुखिया भी खुद
दलाल और मुखिया का फ्यूजन
क्या गजब का देश
क्या गजब है देश.

नीचे-नीचे तहखाना बनाया
इंसान की लाश बिछाई
ऊपर-ऊपर बुद्ध की मूर्ति  बनाई
ओम शांति  फैलाई
क्या गजब का देश
क्या गजब है देश
बुद्ध भी खुद
जल्लाद भी खुद
बुद्ध और जल्लाद का फ्यूजन
क्या गजब का देश
क्या गजब है देश.

नीचे-नीचे तहखाना बनाया
रामनाम चलाया
ऊपर-ऊपर हंसिया-हथौड़ा बनाया
मार्क्सवाद चलाया
क्या गजब का देश
क्या गजब है देश
राम का हनुमान भी खुद
मार्क्स का लेनिन भी खुद
लेनिन और हनुमान का फ्यूजन
क्या गजब का देश  
क्या गजब है देश

नीचे-नीचे तहखाना बनाया
देश का व्यापार चलाया
ऊपर-ऊपर मां का हृदय बनाया
राष्ट्रीयता  का नारा चलाया
क्या गजब का देश
क्या गजब है देश
लेन्डुप भी खुद
भीमसेन भी खुद
लेन्डुप और भीमसेन का फ्यूजन
क्या गजब का देश
क्या गजब है देश

गांधारी की पट्टी कब खुलेगी
जब गांधारी की पट्टी खुलेगी
एक दिन होगा
वो मेरा देश।

फुटनोट : - 1. लेन्डुप : 1971 में सिक्किम के भारत में विलय के समय सिक्किम का प्रधानमंत्री
2. भीमसेन : 1800 सदी  के आस पास नेपाल-ब्रिटिश  के बीच चले भीषण  युद्धों में नेपाली सेना का
प्रधान सेनापति, जिसके नेतृत्व में नेपाल की गोरखाली सेना ने कई युद्धों में अंग्रेजों को हराया।
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मनसरा

पसीना बहाकर ही अगर दुनिया बदलनी होती
तो फिर क्या था मनसरा
भरिया की दुनिया कब की बदल गयी होती
खून बहाकर ही अगर दुनिया बदल गयी होती
तो क्या था मनसरा
जनता की दुनिया कब की बदल गयी होती
जबकि मनसरा
खून-पसीने से ही तो दुनिया बदलती है
खून-पसीने से न बदली हुई दुनिया क्यों नहीं बदलती
कभी आग की भरभराहट सुनी है मनसरा
आग बोलती है-आग की आवाज सुनो मनसरा

खुद की चीरी हुई लकड़ी
आग कोई और जलाये
आग अपनी नहीं होती मनसरा
आग अपनी न होने से उजाला अपना नहीं होता
उजाला अपना नहीं होने से दुनिया नहीं बदलती मनसरा
कभी आग की भरभराहट सुनी है मनसरा
आग बोलती है-आग की आवाज सुनो मनसरा

खुद की खोरिया खनी गयी खेत
औरों के नाम पर नामकरण होने से
मिट्टी अपनी नहीं होती
मिट्टी अपनी नहीं होने से
पेटभर अनाज नहीं होता
पेटभर अनाज न होने से
दुनिया नहीं बदलती मनसरा
कभी आग भुरभुराते हुए सुना है मनसरा
आग बोलती है, आग की आवाज सुनो मनसरा।

खुद की चलायी हुई बंदूक
निर्देशन कोई और करे
सत्ता अपनी नहीं होती
सत्ता अपनी न होने से
दुनिया नहीं बदलती मनसरा
कभी आग भरभराते हुए सुना है मनसरा
आग बोलती है, आग की आवाज सुनो मनसरा।


(पहली बार चर्चित नेपाली प्रगतिशील मासिक पत्रिका मूल्याङ्कन में मार्च २००९ में अंतर्राष्ट्रीय  महिला दिवस के अवसर पर प्रकाशित।)फुटनोट  -1. भरिया; भूमिहीन खेतीहर मजदूर  2. खोरिया; जमीन का एक हिस्सा जिसे पहली बार जंगल काट कर खेती योग्य बनाया गया.मूलतः  थारु भाषा का शब्द. 3. मनसरा  : दमित और उत्पीडित जनता का प्रतीक.
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शहीद

क्रांति के व्यापार में
शहीद का खून प्रधानमंत्री बन जाता है
शहीद के सपने मूर्ति बन जाते हैं।
और जब क्रांति व्यापार में बदल जाती है
तो शहीद का खून
21वीं सदी का जंगबहादुर बन जाता है।
शहीद मूर्ति बन जाते हैं
जनता गांधारी बन जाती है।
(३ फरवरी 2011)

फुटनोट:1. जंगबहादुर - नेपाल में 104 साल तक चले राणा वंश  का  संस्थापक  तानाशाह प्रधानमंत्री
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लालबहादुर का छौंका

नेपाल की सार्वभौमिकता साउथ ब्लाक में गिरवी  रखने के बाद
कुर्सी फल प्राप्ति होने वाले इस देश में
कल तक जनता के रक्त से पिचकारी खेलने वाले भी यही
आज शहीद के सम्मान में मौन धारण करने वाले भी यही
यही ही क्यूं
वो भी तो,
वही लालबहादुर का छौंका

औरों की चीरी हुई लकड़ी
खुद बेचने वाले लालबहादुर
औरों की जलायी हुई आग
खुद तापने वाले लालबहादुर
औरों के बनाये हुए झण्डे खुद फहराने वाले लालबहादुर
औरों के चलाये हथियार खुद आत्मसमर्पण करने वाले लालबहादुर
औरों के सिले हुए कपड़े खुद पहनने वाले लालबहादुर

हां वही लालबहादुर
इस दौर में क्या कर रहे हैं पता है मनसरा?
इस दौर में तो लालबहादुर का छौंका
नाभि  के नीचे चोली और नाभि के ऊपर पेटीकोट पहनकर
तुंडीखेल और कैंटोनमेंट के रंगमंच में बिना नकाब के लाखे नाच नाच रहे हैं

हां इस दौर के फागुन 1 में लालबहादुर
बिना नकाब के लाखे नाच नाच रहे हैं
इसलिए तो

अब यह देश चाहिये किसको?
यह देश पराजितों को चाहिए
पराजितों का इतिहास होगा
पराजित ही लिखेंगे
थबांग और सुखानी की गाथा
अद्दाम और कालीकोट की गाथा
क्योंकि 
पराजितों को ही नया महाभारत चाहिए
पराजितों को ही नया विश्व  चाहिए
पराजित ही लिखेंगे नया महाभारत
अपने हस्ताक्षर का एक नया महाभारत।
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फुटनोट: (22 जनवरी 2011 को लिखी गयी कविता. उसी दिन शक्तिखोर  कांटोनमेंट  में शान्ति समझौते के तहत नेपाली  माओवादी पार्टी के प्रमुख प्रचण्ड और तत्कालीन प्रधानमंत्री  माधव कुमार नेपाल ने जनमुक्ति सेना (नेपाल) को विशेष समिति के अन्तर्गत रखने के लिए समझौता किया था.)
1. टूंडीखेल - काठमांडू स्थित नेपाली सेना मुख्यालय द्वारा अधिगृहित   पार्क
2. लाखे नाच- नेवारी जनजाति का एक प्रसिद्ध नृत्य जिसमें  पुरुष बुरका पहन या भड़कीले मुखड़े लगा कर नाचते हैं.
3. फागुन 1:  इस दिन को नेपाली माओवादी जनयुद्ध दिवस के रूप में मनातें हैं.
4. थावांग- नेकपा माओवादी द्वारा शुरु किये गए जनयुद्ध का अति महत्वपूर्ण केंद्र जिसे उन्होंने नेपाल के येनान की संज्ञा दी.
5. सुखानी-  सत्तर के दशक में झापा जिले के एक गाँव में नेपाली कम्युनिस्ट  द्वारा संगठित किसान  विद्रोह  जिसे तत्कालीन पंचायत तानाशाही ने निर्ममता से कुचल दिया.
6. अछाम - पशिमी नेपाल के अछाम जिला. 16 फरवरी 2002 में अछाम जिले के मुख्यालय मंगलसेन में नेपाली माओवादी जनमुक्ति सेना द्वारा शाही नेपाली सेना पर किया गया भीषण हमला.
7. कालिकोट-  पुलिस दमन के विरोध  में 10 मई 1999 को कालिकोट जिले के पवानघात में निशस्त्र ग्रामीण महिलाओं ने  पुलिसवालों से बड़ी मात्रा में हथियार  कब्जे में लिए.



प्रारम्भिक  शिक्षा  कालिकोट और काठमांडू  में हुई.  बाद  में भारत (लखनऊ , दिल्ली) से  पत्रकारिता  की  पढाई. 
इसी  दौरान नेपाल में चल रहे माओवादी जनयुद्ध से गहरे प्रभावित हुईं और दिल्ली पुलिस द्वारा 10  जुलाई 2002 को नेपाली माओवादी नेता पार्थ क्षेत्री  के साथ गिरफ्तार. अगले  दिन नेपाली शाही सेना को सुपुर्दगी के बाद करीब  2 साल नेपाल के विभिन्न जेलों  में सजायाफ्ता.   नेपाली साहित्य जगत में चर्चित 'पारिजात साहित्यिक  पुरस्कार' से हाल में इन्हें सम्मानित किया गया है. नेपाल की   इस कवि से जनज्वार के पाठकों का परिचय जेएनयू से समाज शास्त्र में पीएचडी कर रहे पवन पटेल के जरिये हो पाया है. मूल नेपाली से हिन्दी अनुवाद भी पवन ने ही किया है.