वध की क्रिया को उत्सव की तरह हत्यारे ही देख सकते हैं। अस्वच्छता दूर करना उत्सवता की भावना पैदा करता है, पर वध उसके उलट भावना है.........
कुमार
पिछले साल अक्तूबर में गांधी मार्ग चौराहा, जयपुर पर एक बड़े से बोर्ड पर लिखा था 'आइए अस्वच्छता का वध करें।' इस स्लोगन को पढ़ते हुए तब कई विचार आये थे।
जैसे -
—क्या यह वधिकों की सरकार है।
—वध से बहे खून से क्या खुशबू फैलेगी।
—तीर-धनुष से अस्वच्छता का वध कैसे होता है।
—अस्वच्छता का मतलब गंदगी में जीने को मजबूर गरीबों से तो नहीं।
—क्या यह हिमालयी मूर्खताओं का समय है।
यूं भी वध शब्द का प्रयोग अस्वच्छता के साथ गलत है। यह खुद एक अस्वच्छ भाषा है। वध की क्रिया को उत्सव की तरह हत्यारे ही देख सकते हैं। अस्वच्छता दूर करना उत्सवता की भावना पैदा करता है, पर वध उसके उलट भावना है।
अब आज की तारीख में 'अस्वच्छता का वध' के निहितार्थ सामने आने लगे हैं और वो भी राजस्थान में ही। पिछले शुक्रवार 9 जून को प्रतापगढ़ की कच्ची बस्ती में महिलाएं शौच करने जा रही थीं। तब नगर परिषद के लोगों ने उनकी तस्वीर लेने की कोशिश की। श्रमिक संगठन के एक नेता ने इस तरह तस्वीर लेने का विरोध किया। इससे नाराज लोगों ने उन महोदय की जमकर पिटाई की जिससे उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई। अब कच्ची बस्तियों के लोग अपराधियों की गिरफ्तारी के लिए धरने पर हैं।
इसी तरह हरियाणा के एक अधिकारी अपनी फ़ेसबुक पोस्ट में स्वच्छता अभियान की आड़ में अरे-तरे पर उतारू हैं। लोगों ने जब उनकी पोस्ट पर आपत्ति जतायी तो उनका जवाब है - आपत्ति करने वालों ने मेरी भाषा अभी सुनी ही कहां है। मेरी भाषा में दस शब्दों वाले वाक्य में आठ शब्द गाली ही होते हैं। वही मेरी ऑरिजनल भाषा है और मुझे अपनी भाषा से बहुत प्यार है। आप लोगों को जाकर UPSC में शिकायत अवश्य करनी चाहिए, जिन्होंने एक बार नहीं, दो बार नहीं; बल्कि तीन बार मुझे IAS सिलेक्ट किया और वह भी बिना किसी रिज़र्वेशन के।"
आखिर क्या कारण हैं कि जिस स्वच्छता अभियान की गांधी ने एक मिसाल खड़ी कर दी थी उसी के नाम पर चला मोदी जी का अभियान मानसिक गंदगी का पर्याय हो जा रहा।