फाउंडेशनों की भीड़ में यह अलग किस्म का फाउंडेशन होगा,जो व्यक्ति तक सिमटा नहीं रहेगा,बल्कि उन मूल्यों,सिद्धांतों और संघर्षशील चेतना को आगे बढ़ाएगा, जो अनिल सिन्हा की जिंदगी का मकसद था...
सुधीर सुमन
अनिल सिन्हा : जनपक्षधर लेखक |
ईमानदारी के साथ अनवरत अपने विचारों और मूल्यों के साथ सक्रिय रहने वाले शख्स कभी हमख्याल लोगों द्वारा विस्मृत नहीं किये जाते। 23जुलाई की शाम अनिल सिन्हा की याद में उनके नाम पर गठित मेमोरियल फाउंडेशन की ओर से दिल्ली के ललित कला अकादमी के कौस्तुभ सभागार में आयोजित कार्यक्रम में साहित्यिक-सांस्कृतिक लोगों ने भी यह महसूस किया।
संस्कृतिकर्मी और पत्रकार अनिल सिन्हा की बेटी रितु ने कहा कि फाउंडेशनों की भीड़ में यह अलग किस्म का फाउंडेशन होगा जो व्यक्ति तक सिमटा नहीं रहेगा,बल्कि उन मूल्यों,सिद्धांतों और संघर्षशील चेतना को आगे बढ़ाएगा, जो अनिल सिन्हा की जिंदगी का मकसद था। रितु ने बताया कि हर साल लखनऊ में फाउंडेशन की तरफ से एक आयोजन होगा,जिसमें अनिल सिन्हा स्मृति व्याख्यान होगा और एक संगोष्ठी होगी तथा उनके नाम पर एक सम्मान दिया जाएगा।
अनिल सिन्हा के दूसरे कहानी संग्रह ‘एक पीली दोपहर का किस्सा’ का लोकार्पण कवि वीरेन डंगवाल ने किया। अनिल सिन्हा के साथ दोस्ती के अपने लंबे अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि वे हमेशा विनम्र और सहज रहे। जसम की स्थापना में उनकी भूमिका को याद करते हुए उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि फाउंडेशन उन्हीं जन सांस्कृतिक मूल्यों के लिए काम करेगा,जिसके लिए जसम की स्थापना हुई थी।
कवि मंगलेश डबराल ने कहा क़ि अनिल सिन्हा जिस तरीके से अपने पारिवारिक जरूरतों और वैचारिक मकसद के लिए पूरे दमखम के साथ संघर्ष करते थे,वह उन्हें आकर्षित करता था। आर्थिक और वैचारिक संघर्ष के साथ-साथ ही एक पिता के बतौर बच्चों को सुशिक्षित और योग्य नागरिक बनाने में अनिल सिन्हा की जो भूमिका थी,उसे भी मंगलेश डबराल ने याद किया।
'समकालीन तीसरी दुनिया' के संपादक आनंदस्वरूप वर्मा ने कहा कि उनके विचारों में जबर्दस्त दृढ़ता और व्यवहार में लचीलापन था और वे मूलतः पत्रकार थे। नेता,पुलिस,ब्यरोक्रेसी और दलालपत्रकारों के नेक्सस के खिलाफ उन्होंने जनपक्षीय पत्रकारों को संगठित करने की पहल की और नवभारत टाइम्स से अलग होने के बाद उन्होंने एक फ्रीलांसर की तरह काम किया।
इस आयोजन में इरफान ने अपनी सधी हुई आवाज में अनिल सिन्हा के ‘एक पीली दोपहर का किस्सा’ संग्रह की एक कहानी ‘गली रामकली’का पाठ किया। कुछ तो इरफान की आवाज का जादू था और कुछ कहानीकार की उस निगाह का असर जिसमें एक दलित मेहनतकश महिला के प्रति निर्मित होते सामाजिक सम्मान के बोध की बारीक दास्तान रची गई है,उसने कुछ समय के लिए श्रोताओं को अपने मुहल्लों और कस्बों की दुनिया में पहुंचा दिया। चित्रकार-कथाकार अशोक भौमिक ने व्याख्यान-प्रदर्शन पेश किया। अपनी कला-समीक्षाओं में अनिल सिन्हा की गहरी निगाह चित्रकारों के सामाजिक सरोकारों पर रहती थी।
आयोजन की अध्यक्षता कर रहे प्रो. मैनेजर पांडेय ने अनिल सिन्हा मेमोरियल फाउंडेशन के बारे में सुझाव दिए। उन्होंने कहा कि हिंदी और अंग्रेजी में अनिल सिन्हा का जो लेखन इधर-उधर बिखरा हुआ है,उसे एक क्रम में व्यवस्थित करके ठीक से एक जगह रखा जाना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन युवा आलोचक आशुतोष कुमार ने किया।
आयोजन में इब्बार रब्बी, मुरली मनोहर प्रसाद, रेखा अवस्थी, मदन कश्यप, नीलाभ, विमल कुमार, योगेंद्र आहूजा, रंजीत वर्मा, कुमार मुकुल, भाषा सिंह, गोपाल प्रधान, कविता कृष्णन, संदीप, असलम,कनिका, उमा, मनोज सिंह, अशोक चैधरी, मुकुल सरल, कौशल किशोर, भगवान स्वरूप कटियार, सुभाषचंद्र कुशवाहा, निधि, अनुराग, कौशलेश आदि भी मौजूद थे।