Sep 9, 2010

गुजरात नरसंहार के बाद भी उठा था सवाल

भाग - १
माओवादियों और सरकार के बीच शांतिवार्ता में  स्वामी अग्निवेश की भूमिका पर  उनके साथियों ने ही जो सवाल उठाये हैं  (शांति दूत की जगह चुनावी एजेंट बने अग्निवेश !) , वह साफ कर देता है कि स्वामी जी  की शांतिवार्ता नायकत्व की चालाकी थी.स्वामी अग्निवेश की इस चालाकी से निराश वह लोग जो उन्हें पहले से एक प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष शख्सियत मानते रहे हैं,उन्हें तब और निराशा होती है जब २००२ के गुजरात नरसंहार को लेकर  प्रो.शम्सुल इस्लाम, स्वामी अग्निवेश की गतिविधियों को केंद्र में रख एक हिन्दू सांप्रदायिक नेता के बतौर  विश्लेषित एक खुला पत्र जारी करते हैं. 

यह पत्र उन सभी लोगों को हतप्रभ कर देने वाला है जो स्वामी जी को धर्मनिरपेक्ष मानते हैं और उन वामपंथियों के लिए ककहरा है जो स्वामी जी से लाल सलाम सुनकर लहालोट हुए जा रहे हैं.शम्सुल इस्लाम द्वारा लिखित यह पत्र गांधीवादी नेता स्व.निर्मला देश पाण्डेय और स्वामी अग्निवेश को संबोधित है.याद होगा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के भारत आगमन पर जब पुरे देश में जबरदस्त विरोध हो रहा था,तो जो पांच सामाजिक कार्यकर्त्ता बुश के स्वागत में मिलने गए थे उनमें स्वामी अग्निवेश और देशपांडे भी शामिल थीं.  


मनमोहन सिंह का मुखड़ा लिए शम्सुल: विरोध दर्ज कराया
शम्सुल इस्लाम 


निर्मला दीदी और स्वामी जी,

आप दोनों की आत्मा पवित्र है और हममें से कई मानते हैं कि आप दोनों सच के आलंबरदार हैं!इसके बावजूद, अप्रैल 1 से 4 2002 के दौरान गुजरात में ‘करुणा की तीर्थयात्रा’ (पीओसी) नामक कार्यक्रम के दौरान आपके व्यवहार से हमें गहरी निराशा हुई है और हमारे दिल को चोट पहुंची है.अगर आप सचमुच वैसे ही हैं जैसा कि आप दावा करते हैं तो हमारी मांग है कि आप हमारे कुछ सवालों का जवाब दीजिए!

इन सवालों को आप ये कहकर खारिज नहीं कर सकते कि निशांत नाट्य मंच भी उस भीड़ का हिस्सा था जो पीओसी (पीस  कमिटी )में शामिल था  और हम कैसे आपसे सवाल करने की जुर्रत कर सकते हैं? निश्चित तौर पर हम सब पीओसी के अछूत हैं,लेकिन इस देश के अछूतों को भी आप जैसी पवित्र आत्माओं की मंशा जानने का हक है.हम आपको बताना चाहते हैं कि ये मुद्दा इसलिए नहीं उठा रहे हैं कि हम व्यक्तिगत रूप से आहत हैं,बल्कि उस जरूरी वजह से उठा रहे हैं जिससे धार्मिक असहिष्णुता के खिलाफ संघर्ष कमजोर पड़ रहा है.ये फासीवादी ताकतों की मजबूती की वजह से नहीं हो रहा है,बल्कि उन गद्दारों की गुप्त मंशाओं के कारण हो रहा है जो लोकतांत्रिक और सहिष्णु होने का चेहरा चिपकाए घूमते हैं.

आप इस तथ्य से भलीभांति अवगत हैं कि यहां पर उठाए जा रहे बहुत से मुद्दे पीओसी के दौरान हर दिन आपके संज्ञान में लाए गए हैं.तब आपसे से ये अनुरोध किया गया था कि इन मुद्दों पर पूरे ग्रुप के सामने चर्चा होनी चाहिए,लेकिन आपने उन बातों को तवज्जो नहीं दी और पीओसी को बपौती की तरह इस्तेमाल किया.

हमारे सवाल कुछ इस तरह हैं- 

1. क्या यह सच है कि ‘केन्द्रीय आर्य युवक परिषद’, दिल्ली के बैनर तले मुस्लिम विरोधी और दलित विरोधी दो पेज का पर्चा बांटा गया था?ये वही संगठन है जो पीओसी को एक अप्रैल को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन तक विदा करने आया था.पीओसी के सदस्यों ने जब इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा तो उनसे क्या कहा गया था? क्या आपने इस तरह का फासीवादी पर्चा बांटने वालों के खिलाफ कहीं एफआईआर दर्ज कराई थी?इस तरह के पर्चे देश के एक खास समुदाय के खिलाफ जहर फैलाने का काम कर रहे थे और ये भारतीय दंड संहिता का सरेआम उल्लंघन हैं?

2. ट्रेन (फ्रंटियर मेल) के अंदर हिंदी के जिस पर्चे को बांटा गया था उसे यहां फिर से दोबारा छपवाया गया.निश्चित तौर पर आपके पास इस पर्चे की मूल कॉपी होगी.और अगर नहीं है तो हम इसकी फोटोकॉपी आपको भेज सकते हैं.जिस संगठन के लोग पर्चे बांट रहे थे उसका नेतृत्व अनिल आर्य नाम का आदमी कर रहा था.ये वही अनिल है जिसने न केवल स्वामी जी और निर्मला दीदी का फूलों का हार पहना कर स्वागत किया था,बल्कि पूरे कार्यक्रम की फोटोग्राफी भी की थी.ये फोटोग्राफ दिल्ली के कई अखबारों में प्रकाशित हुए थे और जांच के लिए अभी भी उपलब्ध हैं.

 अनिल आर्य ने मार्च 31,2002को 'गुजरात दंगों की सच्चाई क्या है?'शीर्षक से जो पर्चा बांटा था उसका एक नमूना देखें...

 ये (गुजरात दंगे)सांप्रदायिक नहीं थे,बल्कि ये पाकिस्तान और पश्चिमी देशों द्वारा भारत के खिलाफ भड़काया गया (एक किस्म)गृहयुद्ध था.पाकिस्तान की आईएसआई और मुस्लिम एजेंट गुजरात के गांव-गांव तक पहुंच चुके हैं. हमने मुस्लिम कार्यकर्ताओं के साथ लंबी बातचीत की. बातचीत के दौरान उन लोगों ने हमें बताया कि माधव सिंह सोलंकी और अमर सिंह चौधरी के राज में हुए दंगों के दौरान हिंदुओं के खिलाफ लड़ते हुए औऱ लोगों की हत्या करते हुए उन्होंने इसका लंबा अनुभव प्राप्त कर लिया है.मुसलमानों की पुरानी और नई पीढ़ी लड़ाई में माहिर हो चुकी है.परिस्थिति के मुताबिक उनके पास हेलीकॉप्टर और हवाई जहाज उड़ाने की क्षमता है.सिमी के कई कार्यकर्ताओं ने हमें बताया कि उनका मकसद हिंदू बहुल इलाकों में बम गिराना है,आतंक फैलाना है और इन इलाकों को अपने कब्जे में लेना है.अहमदाबाद, पुरानी दिल्ली,है दराबाद और अजमेर को इसके उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है.

गले में गमछा लटकाए अनिल आर्य, स्वामी अग्निवेश के साथ
आज स्थिति ये है कि गुजरात के हर हाईवे के नजदीक पाकिस्तानी एजेंटों ने अपनी कॉलोनी बना ली है.बड़े-बड़े घर,हॉल और आधुनिक सुख-सुविधाओं और तहखानों से सजी-धजी हजारों मस्जिदों का निर्माण किया गया है.मुस्लिम गुंडों और आपराधिक गैंगों की उपस्थिति से आतंक फैल रहा है.हिंदू लड़कियों को प्रेम के जाल में फंसाकर उनसे शादी करना और फिर उनका धर्म परिवर्तन कराना आम बात हो चुकी है. आतंक फैलाकर हिंदू कॉलोनियों को खाली कराया जा रहा है.
{ हस्ताक्षर- मित्र महेश आर्य (अध्यक्ष आर्य केन्द्रीय सभा, अहमादाबाद), शरद चंद्र आर्य (मंत्री आर्य केन्द्रीय सभा, अहमदाबाद), अनिल आर्य (अध्यक्ष, केन्द्रीय आर्य युवक परिषद, दिल्ली) 

3. क्या यह सच है कि पीओसी के अधिकांश सदस्य गांधी आश्रम द्वारा संचालित एक दलित स्कूल में ठहरे थे और इस स्कूल के लड़के और लड़कियों (उम्र- 5 साल से 12 के बीच) को पानी भरने, बिस्तर सजाने और सफाई करने के काम में लगाया गया था? क्या ये सच है कि इन बच्चों को रात के 2 बजे उठा दिया जाता था और अगले दिन का खाना बनवाया जाता था? क्या वहां ऐसे लोग भी मौजूद जिन्होंने इस तरह की अमानवीय स्थितियों का विरोध किया था और खाने से इंकार किया था?

4. क्या ये सच है कि पीओसी के सदस्यों को गैरमुस्लिम इलाकों में जाने और शाति का संदेश प्रसारित करने की इजाजत नहीं दी गई?ऐसा क्यों हुआ कि हममें से कुछ लोगों ने जब पर्चा बांटने की कोशिश की तो उनको ऐसा करने से मना कर दिया गया.ऐसा क्यों हो रहा था कि केवल मुस्लिम राहत शिविरों में तो हम पीओसी का बैनर लगाते थे,लेकिन जब दूसरे इलाकों में होते थे तो इसे छिपाकर रखते थे?क्या आप ये मानते थे कि गैर मुस्लिम इलाकों में शांति का संदेश प्रसारित करने की कोई जरूरत नहीं,ये केवल मुसलमानों की समस्या है?क्या आपको वड़ोदरा की वो घटना याद है जहां धर्मनिरपेक्ष लोगों के एक स्थानीय समूह ने आपको सड़क पर उतरने के लिए बाध्य कर दिया था और निशांत नाट्य मंच ने हिंदुओं के बीच सांप्रदायिकता के मसले पर जोरदार हस्तक्षेप किया था.

5. देलोल गांव में जो हुआ क्या आपको उस बारे में शर्म आती है? हो सकता है आप इसे भूल गए होंगे, लेकिन हम उन घटनाओं को एक बार फिर सिलसिलेवार तरीके से आपके सामने रखना चाहते हैं?यह गांव वड़ोदरा और गोधरा हाईवे के बीच में है और दुर्भाग्य से मुसलमानों के संपूर्ण सफाये की वजह से सुर्खियों में है.मुसलमानों की संपत्तियों को यहां पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है और करीब 30 लोगों की हत्या की गई है. जब हम लोग गोधरा में थे तो इस गांव के कई मुसलमानों ने दीदी और स्वामीजी से अनुरोध किया वो इस गांव का दौरा करें.

गोधरा में इस बात का ऐलान किया गया था कि हमारी यात्रा इसी गांव में जाकर समाप्त होगी. हम दो बसों में सवार होकर इस गांव में पहुंचे.वहां पहुंचने पर हमने देखा कि जिन दो बसों में आप लोग सवार थे उसे वहां पार्क कर दिया गया है.स्वाभाविक तौर पर निशांत के लोग गांव में गए और उन्होने वहां भगत सिंह,रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्ला और चंद्रशेखर आजाद की तस्वीरों के साथ सांप्रदायिक सौहार्द के गीत गाने शुरु किए.इन गीतों में कहा गया था कि हम सबके शहीद एक हैं, हमारी विरासत एक है इसलिए धार्मिक पहचान के आधार पर लड़ाई व्यर्थ है.

गांव की सभी औरतें, बूढ़े, और बच्चे जो कि हिंदू थे बड़ी तन्मयता के साथ इन गीतों को सुन रहे थे. हम करीब 30 -35 मिनट तक गांव में थे तभी विश्व हिंदू परिषद के लोग 20-25 युवकों के साथ मारने-पीटने के मकसद के साथ गालियों की बौछार करते हुए हमारी तरफ बढ़े. हम गीत सुनते रहे, जबकि वो लोग हाथापाई पर उतर आये.गांव के लोगों ने बीचबचाव किया और उनसे चले जाने के लिए कहा.तभी अचानक पुलिस की एक जीप वहां प्रकट हुई और पुलिस अधिकारी हमें ये कहते हुए डांटने लगा कि जब आपके नेताओं ने वहां जाने की हिम्मत नहीं की तो आप यहाँ कैसे हैं? तब तक हमें ये नहीं मालूम था कि आप दोनों ने बस में ही रहने का फैसला किया था और पुलिस को भी ये बात मालूम थी.हम लोग अभी भी इस बात से व्यथित हैं कि आपने खुले तौर पर हमसे ये बात साझा नहीं की.

आखिर में हम ये जानना चाहते हैं कि अगर आपने इस गांव में नहीं जाने का फैसला किया था तो फिर गांव के बाहर अपनी बस क्यों पार्क की?क्या आप इस बात का इंतजार कर रहे थे कि हममें से किसी को पीट दिया जाए?

(पत्र का शेष भाग अगली पोस्ट में देखें  )

अनुवाद - विडी 



फिर मोदी सरकार के खिलौना बने ?

 
भाग- 2
 

6. आपको हमें ये बताना ही होगा कि अहमदाबाद के जहांपुर राहत शिविर में जहां दंगा पीड़ित हजारों मुसलमान अमानवीय परिस्थितियों में रह रहे थे, क्या हुआ था? ऐसा क्यों हुआ कि स्वामीजी के भाषण के बाद उनमें से सैकड़ों की तादात में औरतें, बड़े-बूढ़े और जवान हमारा पीछा कर रहे थे? क्या आपने कभी ये समझने की कोशिश की थी कि स्वामीजी के अमानवीय और असंवेदनशील भाषण ने उनको दुख पहुंचाया या कोई और वजह है?क्या आपको हमारे सदस्यों द्वारा विश्व हिंदू परिषद के गुंडों की तर्ज पर भगवा गमछा और बैंड बांधना याद है?क्यों दो बूढ़ी महिलाओं ने स्वामी जी को वहां से भाग जाने के लिए कहा था?आपको ये भी बताना होगा कि भागते वक्त सारे वाहनों के ले जाने से भीड़ और उत्तेजित हो गई थी.(निर्मला दीदी वहां नहीं आई थीं क्योंकि वो सरकारी अधिकारियों के साथ बातचीत में व्यस्त थीं. ...ऐसा दीदी के दो सहायकों ने बताया था) क्या आपने भागते वक्त निशांत के दूसरे साथियों के बारे में भी सोचा था. जॉन दयाल, उतिराज और दो बौद्ध साथियों के भीड़ के बीच फंस जाने के बारे में क्या आपने सोचा था? क्या आपको मालूम है कि हमारे ग्रुप का एक साथी गुस्साई भीड़ को समझाने के मकसद से सूमो के ऊपर चढ़ गया था,ताकि लोगों को ये समझा सके कि विश्व हिंदू परिषद या हत्यारे मोदी से हमारा कोई संबंध नहीं है? क्या आपने अपनी कायरता और मूर्खता के परिणाम के बारे में सोचा था?

निर्मला देश पांडे : कई छवियाँ
7. ऐसा क्यों हुआ कि पीओसी के सदस्यों द्वारा इकट्ठा किया गया राहत चंदा प्रभावितों तक नहीं पहुंचा और उसे दानदाताओं को वापस करना पड़ा?ये तथ्य है कि गोधरा के राहत शिविर की दयनीय हालात सुनकर पीओसी की एक महिला सदस्य इस कदर व्यथित हुई कि उसने प्रस्ताव रखा था हमें तुरत-फुरत पैसा इकट्ठा करना चाहिए,ताकि इसे जल्दी से जल्दी पीड़ितों तक पहुंचाया जा सके. एक घंटे के अंदर करीब 4500 रुपए इकट्ठा किए गए थे. यह प्रस्ताव भी रखा गया था कि ये चंदा उस एजेंसी को सौप देना चाहिए जिससे केड्रिक प्रकाश और तीस्ता सीतलवाड़ जुड़े हुए थे और जो सांप्रदायिक मुद्दों पर काम कर रहे थे.यहां पर भी स्वामीजी ने सलाह दी कि इसे हिंदू और मुसलमान पीड़ितों के बीच बांट देना चाहिए.इसीलिए इसे दो हिस्सों में विभाजित कर हिंदू और मुसलमान पीड़ितों में बांट दिया गया था.लेकिन थोड़ी ही देर बाद ये साफ हो गया था कि विश्व हिंदू परिषद इस पैसे को लेकर नाराज हो गया था और उसने इसे वापस कर दिया था.इस परिस्थिति में ये पैसा उन लोगों को दिया जाना चाहिए था जिनको इसकी जरूरत थी.आपको हमें ये बताना होगा कि पैसा चंदा देने वालों को वापस क्यों कर दिया गया था?

8. हमें ये जानने का हक है कि ये पीओसी किसने आयोजित की थी? हम लोग ये मान रहे थे कि इसे दिल्ली के लोगों ने आयोजित किया था और गुजरात जाने का असली मकसद नरसंहार के पीछे की ताकतों का पर्दाफाश करना था.मगर अचानक हमने आपको अटल बिहारी बाजपेयी का हस्ताक्षरित पत्र लहराते हुए देखा,जिसमें अटल बिहारी बाजपेई ने इस यात्रा को आशीर्वाद दिया था.अटल बिहारी बाजपेई का ये खत नैनीताल के उनके बेस ऑफिस से लिखा गया था.आपको किसी नेता से ये पत्र लिखवाने या हासिल करने की इजाजात किसने दी थी?

9. ज्यादातर सदस्यों को 700 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से दिए गए, लेकिन हमें शक है कि आपने दूसरे स्रोतों से भी रुपया इकट्ठा किया था. क्या आप हमें पीओसी की बैलेंस शीट दिखा सकते हैं?

10. ऐसा क्यों हुआ कि हमारी हर दिन की मांग के बावजूद किसी सदस्य के साथ कोई बातचीत नहीं की गई? हमने दो वजहों से इस मांग पर जोर दिया.नंबर एक-अभियान की दिशा के बारे में पता लगाना और मुसलिम पीड़ितों के पास विश्व हिंदू परिषद जैसे भगवा झंडे लेकर जाने जैसे मुद्दों पर राय जानना. जुरूपुरा के राहत शिविर में इस तरह के आपराधिक दिखावे पर क्या प्रतिक्रिया हुई ये हम सबको पता है.दूसरा-पीओसी के सदस्यों को सांप्रदायिकता विरोधी अभियान के बारे में समझाना था,क्योंकि उनमें से अधिकतर उग्र सांप्रदायिक थे और फासीवादी हिंदू विचारों से ओतप्रोत थे.जैसे –मध्यप्रदेश के एक युवा स्वामीजी बस में किसी को बता रहे थे कि मुसलमानों ने सदियों से हमारी औरतों की हत्या की है और उनके साथ बलात्कार किया है.अब जबकि हिंदू कुछ सप्ताह के लिए कुछ ऐसा कर रहे हैं तो हमें विरोध क्यों करना चाहिए?हमें अभियान के दौरान क्यों कहा जा रहा था कि वीएचपी-बीजेपी-मोदी-अटल-बजरंग दल का नाम नहीं लेना है?क्यों कहा जा रहा था कि विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचानी है?

पहुँच हर जगह, पकड़ हर मोर्चे पर
11 . क्या आप सांप्रदायिक-फासीवादी मोदी सरकार के हाथ का खिलौना नहीं बने?क्या आपने मोदी सरकार का अनुचर बनकर हमें जान बचाने के लिए भागने पर मजबूर नहीं कर दिया?आपको भलीभांति मालूम है कि जुरूपुरा के कैंप की शर्मनाक घटना के बाद हम लोगों ने आपके छिपे हुए मंतव्य को ताड़ते हुए आपके साथ न जाने का फैसला किया था और हम अहमदाबाद के ईश्वर भवन में ही रुक गए थे, जहां हम पिछली रात से रुके हुए थे. शाम को दो बौद्ध साथी एक ऑटो रिक्शा में भागते हुए आए और हमें बताया कि आपकी मार्फत उनको जानकारी मिली है कि पीओसी के मुसलिम सदस्यों की जान खतरे में है,क्योंकि विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों ने उन पर हमला करने की धमकी दी है.यह एक बेहद दिलचस्प वाकया था.इसके पहले विश्व हिंदू परिषद के गुंडों ने शांति के काम रहे हर संगठन पर हमला किया था, बिना किसी धार्मिक भेदभाव के. सात अप्रैल को उन्होंने साबरमती आश्रम में बिला किसी भेदभाव के इसे फिर से अंजाम दिया.वास्तव में वो हिंदू कार्यकर्ताओं पर ज्यादा गुस्सा थे.हालांकि इस बार वो पीओसी के हिंदू कार्यकर्ताओं को जाने देने के लिए तैयार थे और केवल मुसलिम कार्यकर्ताओं पर हमला करने वाले थे.

हम इस बात को पक्के तौर पर मानते हैं कि मोदी सरकार और इसकी गुप्तचर एंजेसियों के साथ सांठगांठ करके आप दोनों ने इस तरह का सीन तैयार किया कि हमें ईश्वर भवन जैसे सुरक्षित जगह को खाली करना पड़े. ये सब इसलिए किया गया क्योंकि हममें से दो सदस्य मुसलमान थे.ईश्वर भवन के एक कर्मचारी ने बताया कि वो हमें भवन से इसलिए बाहर करना चाहते थे क्योंकि स्वामीजी और मैडम हमें अपने ग्रुप के साथ रखने के लिए तैयार नहीं थे. उसने ये भी बताया कि आप और गुजरात की गुप्तचर एंजेसियां इस बात के लिए परेशान थीं कि निशांत के लोग 4अप्रैल को सांप्रदायिकता विरोधी प्रदर्शन कर सकते हैं. उस दिन प्रधानमंत्री को अहमदाबाद आना था. दीदी और स्वामीजी! बताइए कि आपने हमें इस खतरे के बारे में क्यों नहीं बताया, जबकि हममें से दो मुसलमान थे? क्या आपने इस खतरे के खिलाफ कोई एफआईआर दायर की थी?

सामाजिक काम का जलवा:  बस तू ही तू
12. आपने पीओसी के दौरान महात्मा गांधी की तस्वीर ले चलने से क्यों इंकार दिया था? हम आपको याद दिलाना चाहते हैं कि हम लोगों ने आप दोनों को महात्मा गांधी की तस्वीर ले चलने की सलाह दी थी,क्योंकि गुजराती लोग महात्मा गांधी की शांति और सांप्रदायिक सदभाव के मसीहा के रूप में पूजा करते हैं.महात्मा गांधी की तस्वीर साथ लेने से ये संदेश भी साफ हो जाता कि जिन लोगों ने महात्मा गांधी की हत्या की थी वो एक बार फिर गुजरात को नष्ट करने पर आमादा हैं.आपने ये कहते हुए इस सलाह को खारिज कर दिया कि इससे समस्या बढ़ सकती है.

कृपया इन सवालों का जवाब देने में कुछ वक्त जाया कीजिए.हम इस बहस को उन मित्रों तक तक ले जाना चाहते हैं जो फासीवाद, धार्मिक असहिष्णुता और मानवता के प्रति संवेदनशील हैं.ये बहस उन (छिपे हुए)गद्दारों के बारे में हमें और जानकारी मुहैया कराएगी जो हिंदू  फासीवादियों के काम को और आसान बनाते हैं.

स्वयंभू लोकतांत्रिक और महान धर्मनिरपेक्ष स्वामी अग्निवेश से कुछ और सवाल -

1. स्वामीजी के नेतृत्व में चलने वाले 'बंधुआ मुक्ति मोर्चा' द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेसों को वर्ष1998-2004 के दौरान आरएसएस और बीजेपी के नेताओं ने कितनी बार संबोधित किया?
2. क्या ये सच है कि आप सन 2000 में आर्य समाजियों का एक प्रतिनिधि मंडल लेकर प्रधानमंत्री बाजपेयी के निवास स्थान पर गए थे और आपने व्यक्तिगत तौर पर उन्हे केसरिया रंग की पगड़ी पहनाई थी?
3. क्या ये सच है कि आपने सन 2000 में बीजेपी के पक्ष में प्रचार किया था?
4. वर्ष 1998-2004 के दौरान जब स्वामीजी को ऑल इंडिया रेडियो में स्लॉट दिया गया तो उस वक्त मंत्री कौन था?
 
आपके जवाब के इंतजार में,

शमशुल इस्लाम, नीलिमा शर्मा, ब्रह्म यादव, जावेद अख्तर
मार्च 2002